यूँ तो हमरी आदत है, सुबह के साढ़े चार या पौने पाँच बजे उठ जाने का। बचपन से बाबा ने ऐसी आदत लगाई कि आज तक, हम उस आदत के मारे हुए हैं। हमरा जल्दी उठना कई बार, लोगों को हमको कुछ न कुछ सुनाने का ज़बरदस्त मौका दे ही देता है, 'न खुद सोती है न हमें सोने देती है', ई उलाहना हम सैकड़ों बार सुन चुके हैं। यही आदत अब हम विरासत स्वरुप अपनी बेटी को भी दे ही दिए हैं। अब हम अकेले काहे सुने ई उलाहना-फुलाहना, हमारे बाद भी तो कोई सुने :)
ख़ैर, उस दिन उठ कर बाहर झाँका तो देखा, मौसम बहुत बहुत ख़राब था । बल्कि ख़राब कहना भी, मौसम की तारीफ़ करना था। स्नो स्ट्रोम यानि बर्फीली आँधी चल रही थी, हवा की रफ़्तार भी बहुत ही तेज़ थी । उसके एक दिन पहले ही, मौसम बहुत सुहाना था। लेकिन मौसम से ज्यादा बेवफ़ा कोई और हो ही नहीं सकता। कभी-कभी तो लगता है, ये मौसम भी कोई इंसानी फितरत का जीता-जागता नमूना है,
कभी एक चेहरा लगा, खुश करता है दुनिया को
कभी एक चेहरा लगा, खुश करता है खुद को
मौसम भी कोई बड़ा चित्रकार है
मौसम भी कोई बड़ा चित्रकार है
हर पल नई तस्वीर में ढाल लेता है खुद को।
मौसम का क्या भरोसा, ये भी इन्सानी ज़ुबान की तरह कभी भी बदल जाता है।
ख़ैर जी ! हाँ तो हम क्या कह रहे थे, हाँ तो हम कुछ कह रहे थे न ! हाँ याद आया, हाँ तो हम कह रहे थे, मौसम ऐसा बेईमान था कि अगले कुछ घंटों तक उससे किसी भी तरह की कोई भी ईमानदारी की गुंजाईश हमको तो कम से कम नहीं ही थी। खिड़की के बाहर देखते ही मन एकदम से अलसा गया। आँधी-तूफ़ान देख के हम वापिस बिस्तर पर आ गए, कम्बल खींच कर फिर से बिस्तर में दुबक गए। हमने गौर किया है, अगर आप एक बार उठ कर फिर सो जाएँ तो जम कर नींद आती है, हमारे कौनो सुर्खाब के पर थोड़े ही लगे हैं, हमरे साथ भी वही हुआ। फिर से नींद आ गयी, वो भी जम कर।
मेरी बेटी पौने छ: बजे निकल जाती है, यूनिवर्सिटी के लिए। दूसरा कोई भी दिन होता है , तो हम बिटिया से पहले ही उठते हैं, उसके लिए नास्ता बनाते हैं, वो तैयार होकर नीचे आती है, नास्ता करती है, हम उसको दरवाज़े तक छोड़ते हैं, थोड़ी देर लव यू लव यू होता। उसे हर तरह की ताक़ीद देते, आने का वक्त पूछते। मतलब ये कि हम दोनों माँ-बेटी के लिए हर सुबह दरवाज़े पर बिताये गए कुछ पल, बहुत-बहुत सुखद होते हैं। हर दिन दरवाज़े पर खड़े होकर उसे जाते हुए देखना, मेरी आदत हो गयी है।
लेकिन उस दिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मेरी बिटिया ने भी शायद, मुझे उस सुबह निर्दन्द सोते देखा, या फिर सोते हुए मेरी शक्ल ऐसी रही हो कि उसे उठाने का दिल ही नहीं किया, तो उसने नहीं उठाया। उसने खुद ही नास्ता बनाया, खुद ही खाया (जैसे बाकि दिन हम खाते थे :)) और अकेली ही तैयार हो गयी। हमको याद है जाने से पहले वो आई थी, हमारे पास और कहा था, "मम्मी हम जा रहे हैं ", थोड़ी सी मेरी नींद खुली थी,मन कुछ दोषी महसूस कर गया था। लेकिन उसने कहा 'आप आराम से सो जाओ, हम नास्ता कर लिए हैं ।' आलस ऐसा छाया हुआ था, हम भी कम्बल में घुसे-घुसे ही कह दिए। ठीक है बेटा अच्छे से जाना। बेटी ने हमको जादू की झप्पी दी और वो चली गयी। वो गई और इधर हम फिर नींद के हवाले हो गए।
शायद आधा घंटा बीता होगा, डोर बेल की आवाज़ सुनाई पड़ी, हम हड़बड़ाये उठे, लगा शायद बिटिया कुछ भूल गयी होगी, वही लेने आई होगी। दौड़ते हुए हम नीचे पहुंचे, तो देखा सामने का दरवाज़ा पूरा का पूरा खुला हुआ था, बर्फीली हवा अन्दर तक आ रही थी। घर भी काफी ठंडा लग रहा था। और दरवाज़े के सामने एक आकृति खड़ी थी। मौसम ऐसा था कि वो सिर्फ आकृति ही लग रही थी। पल भर को मेरा दिमाग ख़राब हो गया, कौन है ये और इसने मेरे घर का दरवाज़ा कैसे खोल दिया है ?? दरवाज़े पर पहुँच कर देखा तो सामने एक महिला खड़ी थी। सर्दी इतनी थी कि दरवाज़े पर खड़ा होना कठिन काम था। मन में आ ही गया कैसे-कैसे लोग हैं। सवा छ: या साढ़े छ: बजे होंगे। इतनी सुबह-सुबह कुछ बेचने तो नहीं आ गयी ये, हिम्मत है बाबा इनलोगों की भी ?? हम हैरान भी थे और अन्दर-अन्दर नाराज़ भी। वो भी हमको देख कर समझ गई थी, हम सीधा बिस्तर से छलाँग मार कर ही आ रहे हैं। बाहर बरफ का बवंडर था और इतनी देर में ही मेरे मन में सवालों का बवंडर उठ गया था। इतनी सुबह-सुबह कौन है ये, सबसे बड़ी बात, इसने मेरे घर का दरवाज़ा कैसे खोल लिया ??? इत्यादि, इत्यादि।
हम जैसे ही दरवाज़े पर पहुँचे, उसका पहला सवाल था ' इज एवरी थिंग ओ के ?? मैंने कहा 'येस, एवरी थिंग इज फ़ाईन। उसके बाद जो उसने बताया वो कुछ इस तरह था। वो और उसके पति हमारे घर के आस-पास ही कहीं रहते हैं। सुबह-सुबह वो दोनों ऑफिस जाने को निकले थे। हमारे घर का दरवाज़ा, इतने खराब मौसम में पूरा खुला देख कर उन्हें कुछ आशंका हुई। उन्होंने हमारे घर के सामने गाडी रोक दी, तकरीबन बीस मिनट तक वो घर के सामने ही रुके रहे। किसी भी तरह की कोई हरक़त उन्हें नज़र नहीं आई, तब उन्हें लगा कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं !!! इसी ख़याल से उस महिला ने घंटी बजा कर, अच्छी तरह जान लेना चाहा, कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गयी हमारे घर में ! क्योंकि ऐसे मौसम में घर बिलकुल खुला होना, अटपटी बात थी। मैंने खुद को जी भर के धिक्कारा, कैसा उल्टा-पुल्टा सोच लिया था मैंने। मैं उस महिला का न जाने कितनी बार धन्यवाद करती रही, और वो बार-बार कहती रही सॉरी मैंने आपको सोते हुए से जगा दिया। वो बार-बार मुझसे पूछती रही, सब ठीक है न, कुछ ज़रुरत तो नहीं है। वो पूरी तरह तसल्ली कर लेना चाहती थी। पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही वो और उसका पति दोनों ऑफिस गए। समय उनका भी कीमती था। ये सब करने की उनको कोई आवश्यकता भी नहीं थी। उनकी बला से उस तूफानी मौसम में कोई हमारे घर ही घुस जाता तो उनका क्या जाता भला ! हम जहाँ रहते हैं, वहाँ लोगों में संवेदनशीलता कूट-कूट कर भरी हुई है। हर इंसान हर वक्त मदद को तैयार रहता है। ये घटना बस अभी महीने भर पहले की है। बाद में पता चला कि मेरी बिटिया ने दरवाज़ा तो बंद किया था, लेकिन ताला लगाने का ज्यादा चलन भी नहीं है हमारे यहाँ, हवा इतनी तेज़ थी कि दरवाज़ा खुल ही गया। सोचती हूँ, दुनिया में अच्छाई तो है ही, लेकिन हर जगह दिखाई क्यों नहीं देती ये ?
और भी ऐसी ही छोटी-मोटी घटनाएँ हैं, सुनाती रहूँगी।
वाह, दूसरों के प्रति कुशलक्षेम का यह भाव समाज में भरा रहे। तनिक कष्ट तो हुआ होगा, पर ऐवेरीथिंग हैस टु बी फाइन।
ReplyDeleteयेस सर एवरी थिंग इज फ़ाईन !
Deleteदुनिया में अच्छे लोग भी होते हैं ,अब वे किसको कब कहाँ किस भेष में मिले , यह बात अलग है !
ReplyDeleteजी हाँ सही कहतीं हैं, अच्छे लोग तो कहीं भी मिल सकते हैं, लेकिन कहीं कहीं ऐसे लोग बहुतायत में मिलते हैं ।
Deleteकितना सुखद अहसास हुआ पोस्ट पढ़कर
ReplyDeleteकनाडा में यह माहौल है , मैंने भी देखा है | यहाँ के लोग दुनिया के सबसे मिलनसार लोगों में से हैं |
मोनिका जी,
Deleteअच्छा लगा जानकार कि आप भी चश्मदीद गवाह हैं, वर्ना लोगों को तो यकीन ही नहीं होता है, कि पश्चिम में मानवीय मूल्यों का कितना मुल्य है। लोगों को लगता है क्योंकि मैं विदेश में रहती हूँ, इसलिए बिना मतलब उनको टूल देती हूँ। इन बातों को बताने का मेरा एकमात्र उद्देश्य होता है, इनकी अच्छाईयों न सिर्फ जानना बल्कि उनको अपनाने की कोशिश करना। अधिकतर भारतीय सिर्फ उनके कपड़ों में ही उलझ कर रह जाते हैं, जैसे मनुष्यता कपड़ों में बंधी कोई पोटली हो, जो जितनी ज्यादा कपड़ों में बंधी होगी वो उतनी ही खूबसूरत होगी । जबकि मनुष्यता इन आवरणों से बिलकुल परे की बात है।
Jaipur India, scooter accident on road, a woman and daughter died on spot, Husband injured and asking for help. Nobody bothered to stop!
ReplyDeleteAnd people raise question on Western Culture!
Not knowing something is often more comfortable than knowing it, that is what is called 'ignorance is bliss'.
DeleteSome people think they have right to put questions, without having any intention at all, to get the answers.
दुनिया भर को अपना कुटुंब मानने वाले, सारी दुनिया में प्रेम का सन्देश फ़ैलाने वाले भारतीय लोग असल में क्या हैं ये जयपुर की घटना से सामने आ जाता है। हम लोग सिर्फ बातें करना जानते हैं और कुछ नहीं .........
ReplyDeleteदिल तो नहीं करता कि ऐसा कुछ कहूँ, लेकिन सच्चाई यही है। जयपुर की घटना तो सामने आ गयी, ऐसी अनगिनत घटनाएं होतीं ही रहतीं हैं। लड़कियों के कपडे भरी बाज़ार में उतारे जाते हैं, और दर्शकों की भीड़ देखने लायक होती है। अकसर किसी के साथ कोई भी दुर्घटना, भीड़ का मनोरंजन बन जाती है।
Deleteबहुत ही सकारात्मक एहसास, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
धन्यवाद ताऊ जी !
Deleteसीते सीते !
दुनिया में अच्छे आदमी भी है। उन्होने आपको जगा दिया वरना कुल्फ़ी जम जाती :)
ReplyDeleteललित जी कुल्फी तो ना जमती लेकिन, शायद कुछ और घटना घट भी सकती थी। जब किस्मत खराब हो तो ऊँट पर बैठे बौने को भी कुत्ता काट लेता है।
Deleteकाश कि यह भावनात्मकता सभी जगह कूट कूट कर भरी गई होती ।
ReplyDeleteभावनात्मकता, कूट-कूट कर भरी है या नहीं ये नहीं मालूम, लेकिन एक ज़रा सी बात पर आपको कूट-कूट कर रख देंगे लोग इस बात की गारंटी ज़रूर देती हूँ। :)
Delete:)
Deleteकई लोगों की पश्चिम के विषय में भ्रांतियां दूर हो जायेंगी .
ReplyDeleteऐसी संवेदनशीलता और सहृदयता हो, तभी मनुष्य कहलाने योग्य हैं वरना क्या फायदा इस जीवन का.
पश्चिम के बारे में बेकार की भ्रान्ति पालना भारतीयों को अच्छा लगता है, ये सिर्फ उनके अपने अहम् की तुष्टि करता है। यहाँ जो भी आते हैं, इसी भावना के साथ ही आते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में उनका अहम् चकनाचूर हो जाता है , मैं भी ऐसी ही थी। लेकिन इनकी अच्छाईयों के आगे, मेरा भारतीय अहम् इतना बौना हुआ कि कोम्पेयर करने की कोई गुंजाईश ही बाकी नहीं रही। इनकी खूबियों को नकार करके बिना मतलब खुद को आत्ममुघतता में डुबो देना हमारा अपना ही नुक्सान है।
Deleteयह कहना आपकी मानसिक परिपक्वता दर्शाता है। वरना ... कभी न मानने वाले लोग भी कम नहीं हैं :(
Deleteसचमुच कितनी ही बातें ऐसी होती हैं जिनकी भारत में रहते हुए कल्पना भी नहीं की जा सकती।
अच्छा लगा इसे पढ़कर। लेकिन आपका गाना किधर है आज!
ReplyDeleteआपको पसंद आया, धन्यवाद कहते हैं। गाना कल आएगा, पक्का !
Deleteहमें सीखना चाहिए
ReplyDeleteजी हाँ डॉक्टर साहेब सीखना ही होगा।
Deleteजब आँख खुली तभी सवेरा समझा जाए।
अच्छा लगा पढ़ कर।
ReplyDeleteथैंक्स शिल्पा !
Deleteअच्छे लोगों को अच्छे लोग मिल ही जाते हैं ।
ReplyDeleteशायद ऐसा ही हो आशीष जी, इस मामले में हमें आप खुशनसीब कह सकते हैं। इनदिनों हमें निवेदिता जी मिल गयीं हैं :)
Deleteसंवेदनशीलता का कूट-कूट (सब जगह) का कूट (कोड)हो जाए तो क्या बात हो, विशेषकर भारत का।
ReplyDeleteसंवेदनशीलता भारत में भी है, हाँ इन देशों से बेशक़ कम है।
Deleteइस घटना के ज़िक्र के लिए आभार। यह बातें सामने आती रहनी चाहिए ताकि इंसानियत में भरोसा बना रहे - क्या फर्क पड़ता है की धारा के किस तरफ की बात है ...
ReplyDeleteअनुराग जी, आपने भी कुछ एक घटनाओं का ज़िक्र किया ही है। आप और हम जैसे लोग जो दोनों दुनिया देख पाते हैं, बहुत आराम से फर्क देख लेते हैं । आपकी बात बिलकुल सही है ऐसी बातों को सामने आना ही चाहिए, क्या फर्क पड़ता है धारा के किस तरफ की बात है। मतलब तो है अच्छी बात से।
Deleteबेटा, बनिता, पौरिया, विप्र, परोसी, वैद्य, आपकी तपै रसोई की याद dila दी आपने .......
ReplyDeleteहम समझे ही नहीं भईया आपकी बात :(
Deleteअच्छाई किसी देश या संस्कृति की मोहताज नहीं होती.
ReplyDeleteसच्चाई ये है कि अच्छाई ही एक ऐसी चीज़ है जिसे कोई देश या धर्म पेटेंट नहीं करा सकता :)
Deleteएवरी थिंग इज फ़ाईन !......अच्छा लगा पढ़ कर।
ReplyDeleteआपका धन्यवाद !
Delete