Wednesday, April 24, 2013

तुमको मालूम हो, ये दिल कभी बेचारा न था ...

जब तुम न थे मेरे, मेरा कोई सहाऱा न था
पूरी दुनिया तो थी संग में, मगर कोई हमारा न था

अब भी रात बाक़ी है, मगर घूँघट उठाऊँ कैसे
हुस्न के ऐतमाद को, इश्क़ का भी इशारा न था

घोल के रंग-ओ-रोगन फिर, बियाबाँ रंगीं किये मैंने
इससे बेहतर मेरे लिए, कोई नज़ारा न था

दिल के हर गोशे में, एक आतिश सी सुलगती है
गुनगुनाते हैं अकेले में, किसी को भी पुकारा न था

लुत्फ़ की बात हो या फिर, क़हर की रात हो 'अदा '
तुम्हें मालूम हो इतना, कभी ये दिल बेचारा न था

और एक गीत....गाना इसे तीन लोगों को चाहिए था...लेकिन अपुन तो एकला चलो रे हैं ना !

15 comments:

  1. कविता के साथ गाना, दो भिन्न भाव जगा जाता है यह मेल..गियर बदलने में दिक्कत होती है।

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    1. क्या प्रवीण जी, आप भी न !
      ई मल्टीटास्किंग का ज़माना है :)

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  2. लुत्फ़ की बात हो, या क़हर की रात 'अदा '
    तुमको मालूम हो, ये दिल कभी बेचारा न था......बढ़िया।

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  3. बिलकुल....हर दिल जो प्यार करगा वो गाना गायेगा...
    भले ही बेसुरा गाये..(सबकी अदा आपसी कहाँ :-)
    loved it!!!

    अनु

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    1. इन लाजवाब लाईनों पर कुछ ये याद आया -
      इस बेकसिये हिज्र में मज्बूरिये नुक्स
      हम उन्हें पुकारें तो पुकारे न बने

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  4. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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  5. अच्छा लिखा है, पर हमें गाना बेहतर लगा ...
    जारी रखिये ...

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  6. घोल के रंग-ओ-रोगन, मैंने बियाबाँ रंगीन किये
    इससे बेहतर मेरे लिए, कोई नज़ारा न था------

    वाह बहुत गजब की अनुभूति
    सुंदर अहसास

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  7. सैकड़ों में पहचाना जाने वाला दिल, बेचारा कैसे हो सकता है :)
    गीत और ग़ज़ल दोनों बेहतरीन

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  8. आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

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  9. बहुत खूब प्रस्तुति |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  10. ग़ज़ल तो अच्छा है परन्तु गाना ज्यादा अच्छा लगा

    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

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  11. पहचान लिया। कोई बेचारा-वेचारा नहीं है। जबर है!

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  12. दिल के गोशे में एक आतिश, सी सुलगती है
    गुनगुनाते हैं हम, और हमने पुकारा न था

    ...बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति...

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