जब तुम न थे मेरे, मेरा कोई सहाऱा न था
पूरी दुनिया तो थी संग में, मगर कोई हमारा न था
अब भी रात बाक़ी है, मगर घूँघट उठाऊँ कैसे
हुस्न के ऐतमाद को, इश्क़ का भी इशारा न था
घोल के रंग-ओ-रोगन फिर, बियाबाँ रंगीं किये मैंने
इससे बेहतर मेरे लिए, कोई नज़ारा न था
दिल के हर गोशे में, एक आतिश सी सुलगती है
गुनगुनाते हैं अकेले में, किसी को भी पुकारा न था
लुत्फ़ की बात हो या फिर, क़हर की रात हो 'अदा '
तुम्हें मालूम हो इतना, कभी ये दिल बेचारा न था
पूरी दुनिया तो थी संग में, मगर कोई हमारा न था
अब भी रात बाक़ी है, मगर घूँघट उठाऊँ कैसे
हुस्न के ऐतमाद को, इश्क़ का भी इशारा न था
घोल के रंग-ओ-रोगन फिर, बियाबाँ रंगीं किये मैंने
इससे बेहतर मेरे लिए, कोई नज़ारा न था
दिल के हर गोशे में, एक आतिश सी सुलगती है
गुनगुनाते हैं अकेले में, किसी को भी पुकारा न था
लुत्फ़ की बात हो या फिर, क़हर की रात हो 'अदा '
तुम्हें मालूम हो इतना, कभी ये दिल बेचारा न था
और एक गीत....गाना इसे तीन लोगों को चाहिए था...लेकिन अपुन तो एकला चलो रे हैं ना !
कविता के साथ गाना, दो भिन्न भाव जगा जाता है यह मेल..गियर बदलने में दिक्कत होती है।
ReplyDeleteक्या प्रवीण जी, आप भी न !
Deleteई मल्टीटास्किंग का ज़माना है :)
लुत्फ़ की बात हो, या क़हर की रात 'अदा '
ReplyDeleteतुमको मालूम हो, ये दिल कभी बेचारा न था......बढ़िया।
बिलकुल....हर दिल जो प्यार करगा वो गाना गायेगा...
ReplyDeleteभले ही बेसुरा गाये..(सबकी अदा आपसी कहाँ :-)
loved it!!!
अनु
इन लाजवाब लाईनों पर कुछ ये याद आया -
Deleteइस बेकसिये हिज्र में मज्बूरिये नुक्स
हम उन्हें पुकारें तो पुकारे न बने
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
Deleteअच्छा लिखा है, पर हमें गाना बेहतर लगा ...
ReplyDeleteजारी रखिये ...
घोल के रंग-ओ-रोगन, मैंने बियाबाँ रंगीन किये
ReplyDeleteइससे बेहतर मेरे लिए, कोई नज़ारा न था------
वाह बहुत गजब की अनुभूति
सुंदर अहसास
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
सैकड़ों में पहचाना जाने वाला दिल, बेचारा कैसे हो सकता है :)
ReplyDeleteगीत और ग़ज़ल दोनों बेहतरीन
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteबहुत खूब प्रस्तुति |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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ग़ज़ल तो अच्छा है परन्तु गाना ज्यादा अच्छा लगा
ReplyDeletelatest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
पहचान लिया। कोई बेचारा-वेचारा नहीं है। जबर है!
ReplyDeleteदिल के गोशे में एक आतिश, सी सुलगती है
ReplyDeleteगुनगुनाते हैं हम, और हमने पुकारा न था
...बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति...