Friday, April 26, 2013

है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है....




ये थका-थका सा जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है

ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली 
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है

ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने 
है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है

है बसा हुआ कोई शऊर है, मेरे ज़ह्न के किसी कोने में 
है चमक गौहर की कोई, या नज़र में मेरी आब है

क्यूँ पिघल रही मैं बर्फ़ सी, न चराग़-ओ-आफ़ताब है 
अब क्या कहूँ ये क्यूँ हुआ, ये सवाल ला-जवाब है  

वो हज़ार इश्क़-ए-चमन सही, मेरी हज़ार दीद-ए-शिकस्त सही 

मैं हर क़दम पे कुचल गई, तेरे सामने सारा हिसाब है !

ये दिल कभी तो धड़क गया, कभी बिखर गया गुलाब सा   
है ख़ुमार तारी क्यूँ 'अदा', क्या जगा हुआ कोई ख़्वाब है ?

न रोएगी नर्गिस कहीं, न आएगा कोई दीदावर
ये दिन भी अब वो दिन नहीं, और रात ज़ाहराब है

ज़ाहराब=ज़हरीला पानी

जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे ....

25 comments:

  1. ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली
    तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है------

    गजब की अनुभुतीं
    बधाई

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  2. ये तो ग़ालिबाना अंदाज़ में लिखी हुई प्रतीत होती है !
    लिखते रहिये।

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    1. मजाल साहेब,
      अंदाज़ का तो कोई अंदाजा नहीं मुझे।
      बस अंदाज़े से जो अंदाज़ आ जाए, वही अंदाज़ अपना अंदाज़ होता है :)

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    2. ये गालिबाना नहीं बहादुर शाह जफ़रि का अंदाज़ है.....

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  3. दी............
    आज पता नहीं क्यूँ.....
    नींद ही नहीं आ रही है

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    1. ए पगली सो जा नहीं तो तबियत ख़राब हो जायेगी :)

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  4. सुंदर प्रस्तुति

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  5. क्यूँ पिघल रही मैं बर्फ़ सी, जब चराग़-ओ-आफ़ताब नहीं ?
    अब क्या कहूँ ये क्यूँ हुआ, ये सवाल ला-जवाब है

    ....लाज़वाब! बहुत उम्दा प्रस्तुति....

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  6. "वो हज़ार इश्क़-ए-चमन सही, मेरी हज़ार दीद-ए-शिकस्त सही
    हर क़दम पे मैं कुचली गई, तेरे सामने सारा हिसाब है"
    खूबसूरत रचना.

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    1. सुब्रमनियन जी, आपको हज़ारों शुक्रिया !

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  7. शुक्रिया करम मेहेरबानी यशोदा :)

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  8. बहुत सशक्त यादगार रचना

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    1. अब तो बस यही कोशिश है :
      रहें न रहें हम ........

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  9. वाह बहुत सुन्दर | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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  10. किस पंक्ति या किस शब्द पर इंगित करूँ ,बस आदाब करती हूँ :)
    साथ में आपकी आवाज़ ......

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    1. निवेदिता जी,
      सच्ची भावनाओं को शब्दों की ज़रुरत ही नहीं होती।
      आपका स्नेह मिला और क्या चाहिए भला !

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  11. ये थका-थका सा जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
    तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है

    ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली
    तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है--बहुत सुन्दर है

    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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