नोआखाली का जब भी ज़िक्र होगा, वहाँ हुए नरसंहार की यादों से कोई आँख चुरा नहीं सकता। १० अक्टूबर १९४६, लक्ष्मी पूजा का पावन दिन, लेकिन नोआखाली के बदनसीब हिन्दू बंगालियों पर वो दिन कहर ही बन कर टूट पड़ा था। इलाका मुसलामानों का था। मुस्लिम लीग का पूरा वर्चस्व था । ६ सितम्बर को ग़ुलाम सरवर हुसैनी ने, मुस्लिम लीग ज्वाइन किया था और ७ सितम्बर को ही उसने शाहपुर बाज़ार में, मुसलामानों को हिन्दुओं का क़त्लेआम करने का आह्वान किया। उसका यह अनुदेश था कि हर मुसलमान हथियार उठाएगा और हिन्दुओं को किसी भी हाल में नहीं बक्शेगा। १२ अक्टूबर का दिन मुक़र्रर किया गया था, इस वहशत को अंजाम देने के लिए । अफ़सोस यह है कि इस योजना की पूरी ख़बर प्रशासन को भी थी। १० अक्टूबर को ही जिला मजिस्ट्रेट एन. जी. रे, जिन्हें १२ अक्टूबर को जाना था, उन्होंने दो दिन पहले ही जिला छोड़ दिया था और अपनी जान बचा ली थी।
योजना के मुताबिक़, हमला सुनियोजित तरीके से किया गया और १२ अक्टूबर को ही जिले के कई प्रसिद्ध और धनिक हिन्दुओं का क़त्ल हो गया। उसके बाद तो यह क़त्लो-ग़ारत का काम पूरे हफ़्ते चलता रहा। मुसलमानों ने अपने आक़ाओं के इशारे पर वहशत का वो नाच नाचा कि हैवानियत भी पानी-पानी हो गयी होगी। हिन्दुओं का नरसंहार, बलात्कार, अपहरण, हिन्दुओं की संपत्ति की लूट-पाट, आगज़नी, धर्म परिवर्तन, सबकुछ किया उन नरपिशाचों ने । तात्पर्य यह कि शायद ही ऐसा कोई जघन्य कर्म रहा हो, जो मुसलामानों ने उस दिन, हिन्दुओं के साथ नहीं किया। औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार, पत्नियों के सामने ही उनके पतियों की हत्या, पतियों की लाशों के सामने ही, औरतों का उसी वक्त धर्म परिवर्तन किया गया, और मरे हुए पति के लाश के सामने ही, उन्हीं आतताईयों में से किसे एक से बल पूर्वक निक़ाह भी कर दिया गया, जिन्होंने उनके ही पतियों का क़त्ल किया था। वहशत की कोई इन्तेहाँ नहीं थी ।
कहते हैं नोआखाली जिले के अतर्गत आने वाले रामगंज, बेगमगंज, रायपुर, लक्ष्मीपुर, छागलनैया और सन्द्विप इलाके, जो दो हज़ार से अधिक वर्ग मील में बसे हुए हैं। दंगे के बाद वो पूरा इलाका लाशों से पटा हुआ था। एक सप्ताह तक बे रोक-टोक हुए इस नरसंहार में 5000 से ज्यादा हिन्दू मारे गए थे। सैकड़ों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और हजारों हिंदू पुरुषों और महिलाओं के जबरन इस्लाम क़बूल करवाया गया था । लगभग 50,000 से 75,000 हिन्दुओं को कोमिला, चांदपुर, अगरतला और अन्य स्थानों के अस्थायी राहत शिविरों में आश्रय दिया गया। रिपोर्ट्स बताती है कि इसके अलावा, मुस्लिम गुंडों की सख्त निगरानी में लगभग 50,000 हिन्दू इन प्रभावित क्षेत्रों में असहाय बने पड़े रहे थे। कुछ क्षेत्रों से गाँव से बाहर जाने के लिए, हिंदुओं को मुस्लिम नेताओं से परमिट प्राप्त करना पड़ा। जबरन धर्म परिवर्तित हुए हिंदुओं को लिखित घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ा, कि उन्होंने स्वयं अपनी मर्ज़ी से इस्लाम क़बूला है। बहुतों को अपने घर में रहने की आज्ञा नहीं थी, वो तब ही अपने घर में जा सकते थे जब कोई सरकारी मुलाज़िम निरीक्षण के लिए आता था। हिन्दुओं को मुस्लिम लीग को जज़िया टैक्स भी देने के लिए मज़बूर किया गया।
16 अक्टूबर 1946 McInerney ने , नोआखाली के नए जिला मजिस्ट्रेट का कार्यभार सम्हाला ।
ग़ुलाम सरवर हुसैनी ने, कलकत्ता में एक संवाददाता सम्मेलन के सामने,लूट-पाट और जबरन धर्म परिवर्तन की बात को तो कबूला था लेकिन उस नराधम ने सामूहिक हत्याओं, गिरोह बलात्कार और जबरन निक़ाह की बात से साफ़ इनकार कर दिया।
22 अक्टूबर 1946 ग़ुलाम सरवर हुसैनी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
हारान चंद्र घोष चौधरी, बंगाल विधान सभा के लिए, नोआखाली जिले से इकलौते हिन्दू प्रतिनिधि थे। उनका कहना था, यह दंगा मुसलामानों द्वारा एक प्रायोजित और आयोजित हमला था। माननीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जो कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर और बंगाल के पूर्व वित्त मंत्री थे, ने इस तर्क को सीरे से ख़ारिज कर दिया कि नोआखाली में घटी यह जघन्य घटना एक साधारण सांप्रदायिक घटना थी । उनका कहना है कि यह बहुत सोची समझी, पूर्वनियोजित योजना थी। यह एक षड्यंत्र था, जो मुस्लिम बहुल इलाके के बहुसंख्यकों ने, अल्पसंख्यक हिन्दुओं का नृशंस तरीक़े से क़त्लेआम, बलात्कार, लूट-मार, धर्म-परिवर्तन इत्यादि करने के लिए रचा था। दुखद यह है कि इस बात की पूरी ख़बर प्रशासन को थी और प्रशासन अपने कर्तव्य से चूक गया।
7 नवंबर 1946 गांधी जी ने, शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने के लिए, नोआखाली का न सिर्फ दौरा किया, बल्कि वो पूरे चार महीने तक वहीँ डेरा जमाये रहे। लेकिन पीड़ितों का विश्वास वो नहीं जीत पाए। विश्वास बहाल करने की उनकी हर कोशिश नाक़ामयाब रही। फलतः विस्थापित हिन्दुओं का पुनर्वास भी नहीं हो पाया। शांति मिशन की इस विफलता के बाद 2 मार्चको गांधी जी ने नोआखाली छोड़ दिया। बचे हुए अधिकतर हिन्दू, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और आसाम के हिन्दू बहुल इलाकों में चले गए। उसके बाद आप सभी को ज्ञात हो, नोआखली जिले के खिलपारा नामक स्थान में 23 मार्च 1946 को मुसलामानों ने 'पाकिस्तान दिवस' मनाया था।
यह घटना १० अक्टूबर १९४६ की थी। इसके तुरंत बाद ही कांग्रेस के नेतृत्व में भारत ने, देश का विभाजन स्वीकार कर लिया। इस फैसले के बाद शांति मिशन को बर्खास्त कर दिया गया और राहत शिविरों को भी बंद कर दिया गया। और फिर 15 अगस्त 1947 भारत आज़ाद देश हो गया।
प्रस्तुत है इस शर्मनाक काण्ड के कुछ चित्र :
(इस आलेख के मुख्य तथ्य और तसवीरें इन्टरनेट से ली गईं हैं )
दुखद! वह काल देश के सबसे कठिन समयों मे से एक था। पाकिस्तान बनकर ही रहे ऐसा दवाब बनाने के उद्देश्य से देश भर मे सुनियोजित रूप से दंगों की साजिशे रची गई थीं। विडम्बना है कि 1947 में अलग पाकिस्तान के नाम पर दंगे कराने वाले नोयखाली वासी उस "पाक" की नापाकी धोने मे 1971 तक लगे रहे। कुछ दानवों के बहकावे में आने के कारण बंगाली मुसलमानों की अपनी एक चौथाई शताब्दी बर्बाद हो गई! बांग्लादेश के अलगाव के बाद बचे पाकिस्तान को अक्ल आने मेँ शायद अभी चौथाई शताब्दी और लगेगी। जितने बड़े पाप,उतना लंबा भुगतान काल!
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे अनुराग जी। भारत का इतिहास इतना दारुण है कि आज भी हताहत हुए बिना नहीं रहा जाता।
Deleteaise bahut se tathya hai jo janakari me nahi hai samanya logo ki ....itna vistrat maine bhi abhi hi jana ...
ReplyDeleteमेरे इस आलेख का मकसद भी यही था कि लोग अपने इतिहास से परिचित हों। मुझे स्वयं भी उतनी जानकारी नहीं है, अब पढना शुरू किया है, तो कुछ बातें सामने आने लगीं हैं। इस विषय पर बहुत विस्तृत रिपोर्ट पढ़ी है मैंने, जिसमें इस घटना की विभीषिका का वर्णन है, जो सचमुच अकल्पनीय है।
DeleteBahot afsos hota hai ki aisi jankari aisa ithihas hamare samne sidhe nahi ata..
DeleteKya biti hogi un behan bbhaiyo par ..
noakhali bhartiy upmahadwip ki sabse dardnak ghatnao main se hai. aisi wahshiyat ko rokne vishesh prayatn sabko apne apne star par karne chahiye
ReplyDeleteधर्मांध जन आज भी मौका मिलते ही नया नोआखाली उत्पन्न कर ही देते हैं, मुम्बई हादसा कुछ ऐसा ही हादसा है।
Deleteनोआखाली में नरसंहार को कौन भुला सकता है ..ऐसी अनेको घटनाओं का साक्षी रहा है हमारा इतिहास।
ReplyDeleteये तस्वीरे कितना दर्द बोल रही हैं।
आपके कमेंट से मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलेगी। आप मेरे ब्लॉग को join भी कर सकते हो।
आभार
हम सब भूल ही जाते हैं रोहतास, तब तक जब तक एक नया नोआखाली सामने नहीं आ जाता।
Deleteमैं सौहार्द के पक्ष में हूँ, लेकिन न भूलने के पक्ष में हूँ, न भूलने देने के पक्ष में। याद रखना ज़रूरी है ताकि दोबारा ऐसा कुछ न हो।
दुखद, किन्तु अदा जी, एक बार फिर यहाँ अपनी टिपण्णी में दोहराना चाहूँगा कि सुप्त, स्वार्थी और बुजदिल कौमे ऐसी त्रासदिया बार-बार झेलती है।
ReplyDeleteगोदियाल साहेब,
Deleteआपकी बात सर्वथा सत्य।
हम काहिल, अहमक, आलसी, स्वार्थी, बिन पेंदी के लोटे, कौम हैं। अहिंसा का लाबादा ओढ़ कर हम अपनी जिम्मेदारियों से पहले भी भागते रहे, आज भी भाग रहे हैं। हम लोग सिर्फ दर्शक दीर्घा वाले लोग हैं। सब अपनी डफली अपना राग बजाते रहे हैं और बजाते रहेंगे। आज़ादी से पहले भारत ५६५ टुकड़ों में बंटा हुआ था। वो तो भला हो अंग्रेजों का जिन्होंने सब को इकठ्ठा किया, वर्ना आज भी भारत न जाने कितने टुकड़ों में होता। इन्हीं टुकड़ों में बंटे होने के कारण तो इतनी लम्बी गुलामी का इतिहास है हमारे पास, वर्ना दो हज़ार साल तक कोई गुलाम रहता है ? आज हम अपने गौरवशाली इतिहास के गुण गाते नहीं थकते, लेकिन भूल जाते हैं, कि इतिहास में गुलामी भरे दिन भी शुमार हैं। आज भी हमारी आज़ादी एक मृगतृष्णा है, जिसे देख देख कर हम खुश होते हैं, लेकिन अब हम मुट्ठी भर गुंडों के गुलाम है और आगे भी रहेंगे क्योंकि हमें गुलामी की आदत हो चुकी है। सबको खुश करना और अपने फायदे के लिए चापलूसी करना हमारी आदर में शुमार है, और इसके लिए देश और अपने ही लोगों की खरीद-फरोख्त हमारा पेशा। कहाँ जायेगी ये आदत जो रक्त में ही घुसी हुई है ?
जी इसमें दुखद बाली कोई बात नहीं है इसका मुख्या कारण है हिन्दू में एकता का अभाव .. जैसे नमूना में आप देख लोजिये की जैसा कश्मीर में जब हिन्दू की हत्या हो रहा था तो पूरा देश जैसे सो रहा था किसी को पड़ी नहीं था .. वैसे ही उस समान हुआ होगा ...
Deleteक्यू जी मुस्लमान में एकता तो बहुत है .. जैसा जब बर्मा से रोहिणी मुसलामन को भगाया गया था तब भारत के मुस्लमान लोग उसके साथ दिया और उसे कश्मीर में रहने भी दिया बल्कि कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी हिन्दू लोग अब ही शिबिर में रह रहे है .. उसके लिए देश के हिन्दू लोग किया कर रहे है और किया किया . देश के सभी हिन्दू सोया हुआ है .. अब तो बंगाल में ही भी वही हो रहा है अब्र कुछ दिन बाद आप लोग को बंगाली हिन्दू भी बसें को मिलेगा .. बस इसी इंतजार में सोये रहिये ...
जी हाँ ये एक भयंकर त्रासदी वाला दिन था,बेहत ही मार्मिक आलेख.
ReplyDeleteआपका धन्यवाद !
Deleteगोदियाल जी की बात को रिपीट करुंगा। और इसमें जोड़ना चाहूंगा कि (कौमें) नहीं तंत्र।
ReplyDeleteमैं भी सोचती हूँ, ये तंत्र की बात नहीं है ये कौम की ही कमजोरी है :(
Deleteक्योंकि तुम भी वही कहना चाहते हो जो गोदियाल साहेब कह रहे हैं, मैंने गोदियाल जी को जवाब दे दिया है वही जवाब तुम्हारे लिए भी है, समय मिले तो पढ़ लेना।
बहुत ही दुखद और शर्मनाक घटना
Deleteबहुत ही दुखद और शर्मनाक घटना
Deleteदंगा तो कहीं भी हो दर्द दे जाता है लेकिन नोआखली के दंगे का दर्द सदियों तक सालता रहेगा ! जरुरत है तो इतिहास से सबक लेनें की और विगत में हुयी भूलों को सुधारनें की !!
ReplyDeleteBHAAI जी इसमें दुखद बाली कोई बात नहीं है इसका मुख्या कारण है हिन्दू में एकता का अभाव .. जैसे नमूना में आप देख लोजिये की जैसा कश्मीर में जब हिन्दू की हत्या हो रहा था तो पूरा देश जैसे सो रहा था किसी को पड़ी नहीं था .. वैसे ही उस समय हुआ होगा ...
Deleteक्यू जी मुस्लमान में एकता तो बहुत है .. जैसा जब बर्मा से रोहिणी मुसलामन को भगाया गया था तब भारत के मुस्लमान लोग उसके साथ दिया और उसे कश्मीर में रहने भी दिया बल्कि कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी हिन्दू लोग अब ही शिबिर में रह रहे है .. उसके लिए देश के हिन्दू लोग किया कर रहे है और किया किया था . देश के सभी हिन्दू सोया हुआ है .. अब तो बंगाल में ही भी वैसा ही रहा है अब्र कुछ दिन बाद आप लोग को बंगाली हिन्दू के बारे में सुनने को मिलेगा .. बस इसी इंतजार में सोये रहिये ...
ॐ अब भी समय है हिन्दू एक जुट होए नहीं तो इसी तरह काटने को तैयार रहे .. ॐ
हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है की हम इसे नियति मन कर चलते है ।
ReplyDeleteदर्द भरा आलेख ।
शर्मिंदगी के अलावा कुछ भी नहीं
ReplyDeleteइतिहास के दुखद पृष्ठ हैं ये ...
ReplyDeleteDOCOTR जी इसमें दुखद बाली कोई बात नहीं है इसका मुख्या कारण है हिन्दू में एकता का अभाव .. जैसे नमूना में आप देख लोजिये की जैसा कश्मीर में जब हिन्दू की हत्या हो रहा था तो पूरा देश जैसे सो रहा था किसी को पड़ी नहीं था .. वैसे ही उस समय हुआ होगा ...
Deleteक्यू जी मुस्लमान में एकता तो बहुत है .. जैसा जब बर्मा से रोहिणी मुसलामन को भगाया गया था तब भारत के मुस्लमान लोग उसके साथ दिया और उसे कश्मीर में रहने भी दिया बल्कि कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी हिन्दू लोग अब ही शिबिर में रह रहे है .. उसके लिए देश के हिन्दू लोग किया कर रहे है और किया किया था . देश के सभी हिन्दू सोया हुआ है .. अब तो बंगाल में ही भी वैसा ही रहा है अब्र कुछ दिन बाद आप लोग को बंगाली हिन्दू के बारे में सुनने को मिलेगा .. बस इसी इंतजार में सोये रहिये ...
ॐ अब भी समय है हिन्दू एक जुट होए नहीं तो इसी तरह काटने को तैयार रहे .. ॐ
अंग्रेज़ों ने सदा लड़ाना चाहा, लड़ाया और अपना हित भी साधा। अभी भी स्थितियाँ अलग नहीं है, लोग सच सामने लाना ही नहीं चाहते, सच की कड़वाहट पचाने में कष्ट जो होता है।
ReplyDeleteThis also shows that Islamists have remained fanatic, brutal and inhuman but unfortunately such people are getting full shelter by Human Rights Activists even today.
ReplyDeleteहिन्दुओ ने कितना अत्याचार सहा फिर भी आज हिन्दू मेहमान का सत्कार और अन्य धर्मों का आदर करना नहीं भुला।इतिहास बताने के लिए आपका आभार
ReplyDeleteहिन्दुओ ने कितना अत्याचार सहा फिर भी आज हिन्दू मेहमान का सत्कार और अन्य धर्मों का आदर करना नहीं भुला।इतिहास बताने के लिए आपका आभार
ReplyDeleteआजभी कोई गद्दार हिंदू है जो इन बातोकी अनदेखी करते है.
ReplyDeleteआज भी हिंदुओ की बड़ी आबादी ऐसे अत्याचारों और सुनियोजित साजिशों से अनजान है और जो जानते हैं वो भाईचारा निभाने में लगे हुए हैं
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