Monday, April 8, 2013

जब तक तुम मिलो हमसे, न उम्र की शाम हो जाए....


जब तक तुम मिलो हमसे, न उम्र की शाम हो जाए
ज़िक्र तेरा करूँ ख़ुद से, और चर्चा आम हो जाए

तुझे मिलने की ख़्वाहिश और तमन्ना दिल पे तारी है
ख़्वाबों और हक़ीकत में, न क़त्ले आम हो जाए

दहाने ज़ख्म के दिल के, ज़िन्दगी सोग करती है 
हुनर ये ज़िन्दगी का है, दिल ग़ुलफ़ाम हो जाए

वो बारिश जो कभी खुल कर, खुली छत पर बरसती है 
मेरे कमरे में भी बरसे, तो मेरा काम हो जाए 

करिश्मा ग़र कोई ऐसा, मेरा क़ातिल ही कर जाए 
मेरे ख़ूने जिगर से ही, सही इक जाम हो जाए 


तेरे सीने से लगने दे, मेरे हमदम मेरे साथी 
के दिल के कुछ फफोलों को, ज़रा आराम हो जाए  

आवाज़ 'अदा' की....
जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई




22 comments:

  1. पढ़ा हुआ लग रहा है :)
    वॆसे पिछली ग़ज़ल में कह रही थी जाना है तो जाओ , अबके सीने से लगने दे मेरे साथी ...double smile !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. Are waah aapko yaad hai ?
      ham to aise hi chalte firte likh diye the, accha laga jaan kar ki aapko ab tak yaad hai :)
      aapka comment spam mein chala gaya tha isliye publish karne mein der hui maafi ! :):)

      Delete
  2. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
  3. वो बारिश जो कभी खुल कर, खुली छत पर बरसती है
    मेरे कमरे में भी बरसे, तो मेरा काम हो जाए

    ऐसी ग़ज़ल और तुम्हारी आवाज़ में ऐसा गाना ..deadly package :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. Dekh na yaar, tujhe udhar Deadly gaana sunaya idhar mere keybord ne devnaagri typna band kar diya :)

      Chal tujhe pasnd aaya ham prasann bhaye baalike :)

      Delete
  4. अदा जी नमस्ते ! रश्मि जी की पोस्ट पर मेरे जवाब में आई आपकी टिप्पणी देखी जहाँ आपने कहा कि मेरी टिप्पणी आपको समझ नहीं आई।आपको हुई असुविधा और देर से जवाब के लिए क्षमा चाहता हूँ।अदा जी मैंने यहाँ कई बौद्धिक बहसों में देखा है कि कुछ सेकुलर बुद्धिजीवी ये कहते हैं कि जिस प्रकार हिंदुओं द्वारा भगवान बुद्ध और महावीर आदि को भगवान और अवतार कहा गया तो यह उनकी यानी हिंदू धर्म के ठेकेदारों का राजनीति थी।तो बस इसी बात का जवाब मैंने वहाँ दिया है कि यदि ऐसा है तो ये धर्म अस्तित्व में कैसे आए इसका भी विश्लेषण किया जाए।बौद्ध धर्म भी अलग से कोई धर्म नहीं था बस हिंदू धर्म की अच्छी बातों को अपना लिया गया पर हम हर धर्म का उसके आराध्यों का सम्मान करते हैं।आप अब मेरी टिप्पणी पर ध्यान देंगी तो आपको बात समझ में आ जाएगी कि मैं क्या कहना चाहता था।

    ReplyDelete
  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

    ReplyDelete

  6. प्यार के नुक्ते,नुक्तों में प्यार---क्या बात है

    ReplyDelete
    Replies
    1. अच्छा जी! नुक्ते पर नुक्ताचीनी :):)

      Delete
  7. लाजवाब ग़ज़ल ,अदा जी ,आपका ध्यान "एकला चोलो रे ..." की और आकर्षित करना चाहूँगा .सही है "एकला चलो रे .."
    LATEST POSTसपना और तुम

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत धन्यवाद कालिपद जी !

      Delete