न ईश्वर के होने की गारन्टी है, न उसके नहीं होने की गारन्टी, न ही इस बात की गारन्टी कि जिसे हम मान रहे हैं, वही सही ईश्वर है :):)
इसीलिए मेरे सटके हुए दिमाग में एक बात आ रही है :)
ज़रा सोचिये, मरने के बाद, हमें जहाँ भी पहुँचना है, वहाँ हम पहुँचते हैं। पहुँचने के बाद हमें पता चलता है कि जीवन भर, हम जो भी सोचते-करते रहे, वहाँ वैसा कुछ भी नहीं है। तो क्या होगा ? :)
जैसे :
जो नास्तिक हैं उनको पता चले, कि ईश्वर तो सचमुच, साक्षात हैं।
जो आस्तिक हैं उनको पता चले, कि ईश्वर तो है ही नहीं।
जो जिस भी भगवान्/ जीजस /अल्लाह को मानते हैं, उनको पता चले कि वो सारी उम्र ग़लत भगवान्/जीजस /अल्लाह को मानते रहे हैं।
तो कईसन लगेगा बबुवा-बबुनी लोग :):)
इसीलिए मेरे सटके हुए दिमाग में एक बात आ रही है :)
ज़रा सोचिये, मरने के बाद, हमें जहाँ भी पहुँचना है, वहाँ हम पहुँचते हैं। पहुँचने के बाद हमें पता चलता है कि जीवन भर, हम जो भी सोचते-करते रहे, वहाँ वैसा कुछ भी नहीं है। तो क्या होगा ? :)
जैसे :
जो नास्तिक हैं उनको पता चले, कि ईश्वर तो सचमुच, साक्षात हैं।
जो आस्तिक हैं उनको पता चले, कि ईश्वर तो है ही नहीं।
जो जिस भी भगवान्/ जीजस /अल्लाह को मानते हैं, उनको पता चले कि वो सारी उम्र ग़लत भगवान्/जीजस /अल्लाह को मानते रहे हैं।
तो कईसन लगेगा बबुवा-बबुनी लोग :):)
जोर का झटका लगेगा ..जोर से :) कृष्ण बिहारी नूर के एक मशहूर ग़ज़ल में से एक शेर याद आ रहा है -
ReplyDeleteजिसके कारण इतने फसाद होते हैं
उसका कुछ अता पता ही नहीं
वोई तो !
Deleteनूर साहब ने बिलकुल सही कहा है।
... और अगर सोचने की नौबत ही नहीं आई तो? मसलन, कहीं पहुंचे ही नहीं, बस परमाणुओं में डिसइंटीग्रेट हो गए? ...
ReplyDeleteजब सोचने लायक ही नहीं रहे तो, सोचेंगे का :):)
Deleteबेहतरीन सवाल. जवाब मिले न मिले, इन सवालों पर विचार बिना बेस्वाद है जीवन-यात्रा.
ReplyDeleteजी हाँ, ऐसे सवाल उठते ही रहने चाहिए, जवाब मिल जाएँ तो अतियुत्तम, न मिलें तो कम से कम जीवन के भाव-रंग तो बने रहते हैं
Deletehttp://m.newshunt.com/Dainik+Bhaskar/breakingnews/20572904/997
ReplyDeleteहम क्या कहे , इ लिंक्वा देख लीजिये ...अंधविश्वास और अंधी श्रद्धा का दिल दहलाने वाला उदहारण ...जो जीवन ईश्वर ने दिया ,उससे दगा कर क्या ईश्वर मिलेगा !!
तुमने जो लिंक दिया है उसके लिए हृदय से धन्यवाद। ईश्वर प्रदत्त जीवन का ऐसा दुरूपयोग, ईश्वर के नाम पर, ईश्वर के साथ ही छल है ये और कुछ नहीं।
Deleteबेहद अफसोसनाक हादसा है ये । अंध-विश्वास की पराकाष्ठा शायद इसे ही कहा जाएगा । अपना जीवन इस तरह दे देना, न तो धर्म अनुरूप है न ही मानवता की द्रष्टि से सही है । स्वयं के साथ-साथ बच्चों को भी इसमें शामिल करना, हद हो गई ये तो :(
इहलोक में खेले / खाये / अघाये / झटका दिये / झटका खाये / पर-बौराये / खुद-बौराये / छल किये / छल पाये मानुष के लिये नया अनुभव क्या होगा 'वहां' पर ? :)
ReplyDeleteवैसे ईश्वर ही क्यों ? 'वहां' नामित स्थान के होने / ना होने की गारंटी भी तो नहीं है :)
आपको लगता है कि इला मनु कुल सपूत / कपूत अपने जीते जागते ऐसी बातों , अ-बातों / वैसी बातों , अ-बातों का इतना अभ्यास / रियाज़ भी नहीं करता कि उसे , वहां / अ-वहां पे कोई झटका लगेगा :)
मरने के बाद की चिंता काहे करें जब अ-मरते हुए भी , ये वो फला ढिकां हमारा है / ये वो फला ढिकां हमारी है , सोच के भी सच होता / सच नहीं होता है या फिर कई बार बिना सोच के भी सच / अ-सच हो जाता है :)
लगता है मानुष देहधारी अनुभव संचित/रचित/सृजित, टी वी सीरियल्स नहीं देखती हैं आप :) जहां...एक बाप / भाई / पति / पत्नि / पुत्र / पुत्री / प्रेमी / प्रेमिका / दोस्त / दोस्तानी, वगैरह / अगैरह जीवन भर होके भी सच में नहीं हुआ निकल जाता है :)
फिलहाल ड्यूटी पर ज़रा ज़ल्दी जाना है वर्ना इस सोचनीयता पर और भी ज्यादा टंकण कौशल का प्रदर्शन करता :)
बहरहाल क्षमा कीजियेगा , क्या पता जिसे अभी के अभी हम अपनी ड्यूटी समझ रहे हैं बाद में वो ...
एक शंका मन में लिए आपको शुभ दिन (वहां रात होगी, मतलब अभी आप जहां हो / हैं ?) कह रहे हैं कि आपकी इस चिंतनीय पोस्ट पर हमारी टिप्पणी, आखीर तक टिप्पणी ही मानी जायेगी या फिर...
Deleteअरे बाप रे !
Deleteआपके इस टंकण कौशल प्रदर्शन पर तो हम मूक भये हैं। आपकी टिप्पणी को आखीर तक हम तो टिप्पणी मान लेवेंगे पर ...:)
बड़ा जटिल विषय है और कुछ भी आम सहमति बननी मुश्किल है !
ReplyDeleteमेरा तो बस यह कहना है इस लोक को सुधारों -परलोक है भी या जीते जी तो हम जान ना पायेगें!
मरने पर ?
ना त्वहम कामये राज्यं ना स्वर्गम ना पुनर्भवम
कामये दुःख तप्तानाम प्राणिनाम नाशनम ......
डाक्टर साहेब,
Deleteमेरी इस छोटी सी पोस्ट और मेरी अदना सी बुद्धि में उभरे (मेरे जैसे बहुत हैं जो ऐसा ही सोचते हैं ) इतने विशाल प्रश्न का उत्तर यहाँ कौन दे पायेगा भला। बेशक़ हैं लोग जो वड्डी वड्डी टिप्पणी और वड्डी वड्डी हिंदी का मकड़ जाल बिछा कर, खुद को ख़ुदा का भी ख़ुदा बना कर ज़वाब देते फिरते हैं, जिनको यही खुशफहमी है कि स्वर्ग का सारा साम्राज्य उनके ही कब्ज़े में आने वाला है, और हम जैसे लोगों के लिए नरक के द्वार भी बंद रहेंगे। तो फिर आपकी ही बात कहती हूँ "मुझे स्वर्ग और पुनर्जन्म वैसे भी नहीं चाहिए -होता तो भी नहीं" ! लेकिन कुछ ग्रे मैटर खर्च करने में क्या हर्ज़ है। इसी बहाने कम से कम मष्तिष्क का कुछ व्यायाम तो हो जाएगा और क्या :)
*प्राणिनाम आर्त नाशनं
ReplyDeleteअदा जी , यकीन मानिए आपके दिमाग जैसी ही सटकन बहुत सारे दिमागों में है :) मैं तो कई बार इस विषय पर बहुत कुछ उटपटांग लिखकर, फिर कुछ सोचकर डिलीट कर देता हूँ। आपने अभी जिस रोज अपने ब्लॉग पर पुनर्जन्म और पूर्व जन्म के विषय में लिखा था, सच कह रहा हूँ उसी से एक दिन पहले, सुबह चाय की चुसकिया लेते हुए मैं अपनी वाइफ़ से ऐसे ही मजाक के तौर पर कह रहा था कि यह अच्छा किया कुदरत ने कि किसी को अपना पूर्वजन्म याद नहीं रहता वर्ना तो यहाँ मार काट मच जाती कि फलां-फलां तो मेरी बीबी अथवा मेरा शौहर है, वह कैसे इससे शादी कर सकता है? :)
ReplyDeleteअब आपके सवालों का जबाब;
1)जो नास्तिक हैं उनको पता चले, कि ईश्वर तो सचमुच, साक्षात हैं।,,,,,,,,,,,,, उसके पास अपना सर पीटने और पछताने के सिवाए कुछ नहीं बचेगा, गलानी महसूस करेगा।
2)जो आस्तिक हैं उनको पता चले, कि ईश्वर तो है ही नहीं।,,,,,,,,,,,,,उसे बुरा जरूर लगेगा की बेकार की मेहनत करता रहा भगवान् के पीछे किन्तु उसके लिए पछतावे या आत्मग्लानी जैसी कोई चीज नहीं होगी। हाँ जो एक्स्ट्रीम अन्धविश्वाशी था उसने तो जीते जी सिर्फ लोगो को धोखा दिया था, वह सोचेगा कि उसे भी अब वहा कर्मों का फल मिल रहा है यानि धोखा।
जो जिस भी भगवान्/ जीजस /अल्लाह को मानते हैं, उनको पता चले कि वो सारी उम्र ग़लत भगवान्//अल्लाह को मानते रहे हैं।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, वही ऊपर वाला ही जबाब कि उसे बुरा जरूर लगेगा की बेकार की मेहनत करता रहा किन्तु उसके लिए पछतावे या आत्मग्लानी जैसी कोई चीज नहीं होगी।
चंद बाते अपने अनुभव के हिसाब से और कहूंगा ;
यदि कुदरत या भगवान है तो वह भी पृथ्वी में मौजूद परिस्थितियों के अनुकूल अपने क़ानून बदलता रहता है। मसलन, हिन्दुस्तान में यह आम धारणा है ( कितना सच है यह तो डिबेट का एक लंबा विषय हो सकता है, इसलिए जिन्हें यह बुरा लगे उनसे अग्रिम क्षमा ) कि जो इंसान शुरू से लालची, कंजूस या पैसे(धन) से अगाध प्रेम करने वाला होता है उसके यहाँ अमूमन लडकिया ही पैदा होती है। वैसे पाठकों को यह स्पष्ट कर दूं कि लडकी पैदा होने का मतलब यह नही कि लडकी पैदा होना गलत बात है किन्तु मैं जिस बाबत यह बात बोल रहा हूँ ( अपनी समझ के अनुरूप ) उसे समझने की कृपया कोशिश कीजियेगा; कुदरत को मालूम है कि धरती के इस प्रदेश में लडकी पर शादी में खर्च अधिक होता है, दहेज़ कुप्रथा इत्यादि की वजह से। इसलिए कंजूस या धन लोभी इन्सान के घर लडकिया अधिक जन्म लेती है, या यूं कहें कि उसके यहाँ नालायक औलाद ( लड़का ) पैदा नहीं होती :)। अब , फर्ज करो कि अचानक समाज का माहौल बदल जाता है और लडकी पैदा होना मतलब साक्षात् घर में लक्ष्मी का आना समझा जाने लगता है यानी जिसके घर जितनी ज्यादा लडकिया वह उतना ही अधिक धनवान और सुखी,,,,,,,,,,,,,,,,,फिर कुदरत भी अपना नियम बदल लेगी और कंजूस, लालची , धन लोभी इंसानों के घर लडिया पैदा ही नहीं होंगी। एक और उदाहरण,,,,,, कुदरत भी जानती है कि यह सरकार अनुचित कर लगाकर लोगो का जीना मुहाल किये है फिर भी वह अपना क़ानून धरा पर मौजूद कानूनों के अनुरूप ही रखती है, यानि इधर से आप दस रूपये की टैक्स चोरी करो, उधर से बीस निकल जाते है ( सिर्फ समझने और मानने वाले के लिए ) . जबकि कुदरत भी यह जानती है कि यह सर्कार नुचित कर वसूल रही है, फिर भी वह यहाँ के नियमों कानूनों का ही पक्ष लेती है।
शायद ज्यादा बड-बड कर गया, रखता हूँ :)
हा हा हा ..गोदियाल साहेब,
Deleteआपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ।
आपकी इस बात से भी सहमत हूँ कि कंजूसों के घर में खर्चे का जोगाड़ भगवान् कर ही देते हैं। ईश्वर बहुत होशियार हैं, सब कुछ बैलेंस करके चलते हैं। वो कभी किसी को पूरा सुख नहीं देते कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमी वो रखते ही हैं। तभी तो सबके अपने-अपने दुःख होते हैं और इसी बहाने हम उनको याद करते रहते हैं।
आपको जितना जी करे बड़-बड़ कीजिये यहाँ कोई रोक टोक नहीं है :)
अदा जी, आपका इशपैम बक्सा कौन्हो टिपण्णी खा गया, :)
ReplyDeleteहमरा इश्पैम बक्सा टिप्पणी खाने की कोसिस कर सकता है, लेकिन हमरे जीते जी खा नहीं सकता है।
Deleteहाँ नहीं तो !
एकदमे सच कहलीं
ReplyDeleteआउर का !
Deleteआप कौन से पाले में हैं ईश्वर को माननेवाले में या नहीं माननेवाले में? और यदि इस विषय पर आप पोस्ट लिखते हैं तो पोस्ट और टिप्पणीकारों के विचार दोनों गम्भीर होने चाहिए। तभी आपको आपके प्रश्नों का समुचित उत्तर भी प्राप्त हो जाएगा। आपके ब्लॉग पर मैंने कई गम्भीर आलेख पढ़े हैं। जैसे कि आपने हिन्दू देश के बारे में लिखा था कि हिन्द सिन्ध के बदले में बोला जाता है भारत को। पढ़कर बहुत गम्भीर हो गया था आपके उक्त आलेख को। परन्तु प्रत्येक गम्भीर आलेख के सम्बन्ध में की गईं आपकी व्यंगात्मक टिप्पणियों से ऐसा लगता है जैसे अपने समुचित आलेखों के साथ सबसे बड़ा अन्याय आप स्वयं ही कर रहे हैं।
ReplyDeleteविकेश,
Deleteहम सभी किसी न किसी पाले में हैं, मैं भी किसी एक पाले में हूँ ही। इसमें शक नहीं कि विषय बहुत गंभीर है, और इतना गंभीर है कि इस ब्लॉग जगत के किसी भी ब्लोग्गर के वश की बात नहीं कि इस बात का जवाब दे सके। हाँ हम सिर्फ अपने विचार रख सकते हैं, उत्तर देने की ताब फ़िलहाल नहीं है हमारे पास। तुम्हारा ये कहना कि मैं व्यंगात्मक प्रति-टिप्पणी देकर, अपने पोस्ट्स के साथ अन्याय करती हूँ, इस बात से सहमत नहीं हूँ। पहली बात व्यंग और हास्य में थोडा फर्क होता है। मुझे हास्य पसंद है और मैं गंभीर विषयों, जिनका कोई उत्तर आज तक नहीं मिला है, और निकट भविष्य में मिलने की सम्भावना भी नहीं दिखती, उनमें हास्य का पुट देने की कोशिश करती हूँ। कारण साफ़ है उस गंभीरता का क्या फायदा जो सिर्फ गंभीर बन कर रह जाए और कोई निष्कर्ष न निकल पाए।
दूसरी बात मैं एक साधारण मनुष्य हूँ, और साधारण बातें ही करती हूँ। न ही मैंने कभी स्वयं को बहुत ज्ञानी माना है, न ही ऐसा प्रतीत करवाया है। मेरे प्रश्न वही होते हैं जो गाहे-ब-गाहे किसी साधारण इंसान के मन में भी आते हैं। पाठक गण अपने-अपने तरीके से जवाब देते हैं। जो जवाब मेरी मंद बुद्धि को समझ आ जाता है, मैं उसे स्वीकार करती हूँ, जो नहीं समझ आता मैं नहीं स्वीकार करती। मेरी पोस्ट्स का मकसद सिर्फ इतना होता है, जो भी जानकारी मेरे पास है, उसे सामने लाना। छुपाओ-दुराव करके अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराओं की कमियों पर पर्दा डालने के पक्ष में मैं नहीं हूँ। अगर कुछ कमी है तो उस कमी को स्वाकार करो, उस कमी को दूर करने की कोशिश करो और जीवन में आगे बढ़ो। मेरा यही मानना है।
आशा है मेरा जवाब तुम्हारे कुछ संशयों का निदान कर पाया होगा। अगर नहीं तो फिर पूछना मैं फिर कोशिश करुँगी अपनी बात बताने की।
क्या कह सकता हूँ आगे। लेखक लोगों की बीमारी से आप भी अछूते नहीं रहे यह कहते रहने से कि मैं जो कुछ होता है मन में दिमाग में सब पाठकों हेतु समर्पित कर देती हूँ। इसके अलावा मैं खुद को विद्वान या ज्ञानी नहीं मानती। यह रोग तो ठीक है परन्तु यदि किसी के (आपके) उल्लेखनीय विचारों पर कोई सम्मान या प्रोत्साहन मिलता है तो मात्र धन्यवाद कह के भी काम चलाया जा सकता है कि नहीं। आप खुद को नम्रता के नाम पे परले दरजे पर ले जाने को क्यों तुले रहते हैं।
Deleteइतना हो गया है पर आप ने अभी तक मेरे ब्लॉग स्पाट पर पैर नहीं रखे हैं लगता है ......
धन्यवाद विकेश :)
Deleteआपका स्वागत सदैव।
Deleteवैसे आपकी यह पोस्ट विषय संबंधी बातों की लंबी गूढ़ व्याख्या भी बन सकती थी।
Deleteव्याख्या तो अब भी हो सकती है। शुरुआत तुम करो, लोग आते जाएँगे मुझे विश्वास है ...
Deleteटिप्पणी की व्याख्या नहीं, पोस्ट रुप में व्याख्यायित हो आपका विषय।
Deleteचलो मैं ही जवाब देती हूँ विकेश,
Deleteमुझे पूरा यकीन है कि ईश्वर है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण है हमारा अंतःकरण। किसी भी गलत काम को करने से पहले हमें अपने अन्दर से ही एक आवाज़ सुनाई देती है, और एक भय होता है कि ये गलत है। यही सबसे बड़ा प्रमाण है, ईश्वर के होने का ...
इसके बाद भी अगर पता चल मुझे कि ईश्वर नहीं है, तब भी मुझे इस बात की ख़ुशी होगी कि मेरे पास मेरा अंतःकरण था जिसकी आवाज़ मैंने सुनी थी।
अनंत विचारों का प्रवाह अपने मस्तिष्क में लेकर मानव इतना सिद्ध कैसे हो सकता था बिना ईश्वरीय शक्ति के! जो लोग विपुल सुख-सुविधाओं को छोड़ वैरागी बनते हैं उनके अभिमत में तो उनके जीवित रहते-रहते ही उन्हें र्इश्वर और उसका सुप्रभाव दृष्टिगत होता है। निश्छल प्रेम, दया, अहिंसा जैसे सद्गुण जहां विद्यमान हैं, वहां निश्चित ईश्वर है।
Deleteअरे हमें नहीं सोचना.....
ReplyDeleteहमारा दिमाग सटका थोड़े ही है :-)
हाँ नई तो...मरने के बाद भी कन्फ्यूज़न ???
अनु
मरने के बाद भी कन्फ्यूज़न ???
Deleteहा हा हा ...ये एकदम परफेक्ट बात कही है, सच में गज़बे बात कह दिहिस :)
हमारे हिसाब से तो सारा अणु परमाणुओं का खेल है यदि मरने के बाद सचमुच ईश्वर मिल गया तो ताऊ की सारी ताऊगिरी धरी रह जायेगी.:)
ReplyDeleteरामराम.
हे भगवान् !
Deleteतब तो आपको पक्का भगवान् मिलबे करेंगे ...हा हा हा
सोच लीजिये ठाकुर :)
इसीलिए हम सोचते ही नहीं...बस जिए चले जाते हैं :)
ReplyDeleteऔर ऐसे ही एक दिन मर भी जायेंगे बिना कुछ सोचे :(
Delete'सिर्फ जिए जा रहे हैं, क्यों कहा ...'
Deleteहमलोग सिर्फ जी नहीं रहे हैं ख़ुशी-ख़ुशी जी रहे हैं। अपने सारे कर्तव्यों को पूरी तरह निभाते हुए और बहुत खुश होकर। सही अर्थों में खुश रह कर। होंगे लोग जिनको ख़ुशी और मौज-मस्ती में फर्क नहीं मालूम।
फिर मरना तो सबको है, कोई यहाँ अजर-अमर हो कर नहीं आया है। मैं भी मरूंगी और तू भी । हैं लोग जो सीधा स्वर्गारोहण करने वाले हैं, उनसे हम काम्पिटिशन कर ही नहीं सकते। जाने दो उनको स्वर्ग, हमें तो हमारा स्वर्ग यहीं मिल गया है। तभी तो हम खुश हैं। मरने के बाद क्या होगा इसकी चिंता काहे करें बे-फजूल में। :)
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआशा है टिप्पणी ज्यादा बड़ी भी नहीं लगेगी और हिंदी मकड़जाल वाली भी नहीं :)
जी नहीं सर जी,
Deleteआपकी टिप्पणी बिलकुल वैसी ही है, जैसी मुझे उम्मीद थी :)
आपका धन्यवाद !
अभी अभी आपकी टिप्पणी पढी कि आपका विश्वास है कि ईश्वर है...हम तो डर गये. अब कालिये ताऊ का क्या होगा? मारे गये बिन बात. कुछ समय पहले बता देती तो हम ईश्वर के पाले में शामिल होकर उसको मना लेते. अब तो गये काम से.:)
ReplyDeleteअभी शहर छोड कर बाहर जा रहे हैं.:)
रामराम.
ताऊ जी,
Deleteआप तो जानते ही हैं, बाबा गब्बर सिंह कह गए हैं 'जो डर गया समझो मर गया', फिर दल बदलने में केतना टाईम लगता है। भारत में तो वैसे भी जो दल नहीं बदलता है उनको दल बदल देता है :)
ये सब तो बस ऐसे ही लिख देते हैं, कुछ न कुछ होना चाहिए ब्लॉग जगत में, नहीं तो ए के हंगल की तरह कहना पड़ता है 'इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई ?? :)
यहाँ सभी अच्छे लोग हैं और प्रभु हम सबका बेड़ा पार करेंगे।
जो सही है वो किया जाय ...जिया जाय , इसका ईश्वर के होने या न होने से कोई लेनादेना नहीं ..... और इस सही की परिभाषाएं भी सबकी अपनी अपनी हैं ..... जहाँ तक आस्था का प्रश्न है मुझे तो भगवन में विश्वास है , इतना कि वे नहीं है ये सोचा ही नहीं , क्योंकि विश्वास है... बहुत है ....
ReplyDeleteहम तो बस उतने ही बेवकूफ रहेंगे जितने हमारे पूर्वज रहे।
ReplyDeleteअसमंजसवश जस तस बातें,
भाग गये दिन, हो गई रातें।