कुछ बातें है ऐसी होती है जिनको न सिर्फ समझना बेहद कठिन है बल्कि असंभव भी है। लेकिन दिमाग चैन से कहाँ बैठता है। ज़हन में कई प्रश्न आते-जाते रहते हैं, जिनका हल खोज पाना अपने वश की भी बात नहीं है, लेकिन फिर भी चुप-चाप थोड़े ही न बैठना है। यह दुनिया रहस्यों से अटी पड़ी है। यूँ तो अधिकतर रहस्य, रहस्य ही रह जाते हैं। लेकिन उनके तह तक जाने की कोशिश जारी रहती है ।ऐसे ही रहस्यों से घिरे हुए हैं पूर्वजन्म और पुनर्जन्म । मन तो कहता है, विश्वास कर लें कि पूर्वजन्म भी है और पुनर्जन्म भी। लेकिन दिमाग उसे मानने को तैयार नहीं होता।
शायद आपको याद हो 80 के दशक में ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म आई थी ‘कर्ज़’। अपने समय की बहुत ही हिट फिल्म थी। आज भी वो फिल्म अंत तक बांधे रखती है। उसकी पटकथा पुर्नजन्म के इर्द-गिर्द ही घूमती है । राज किरण की हत्या और उसी का ऋषि के रूप में पुनः जन्म लेना। हाल ही में एक और फिल्म इसी से मिलती जुलती आई थी, ओम शान्ति ओम। उस फिल्म में भी पुनर्जन्म की बात दिखाई गयी है। एक टीवी सीरियल ‘राज़ पिछले जन्म का’ में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। ये तो हुई फिल्म और टेलीविजन की बातें। वास्तविक जीवन में भी कभी-कभी, ऐसी अनहोनी बातें, सुनने को मिल ही जातीं हैं कि फलाने बच्चे को अपने पिछले जन्म की बातें याद हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा कुछ होता है ?
शायद आपको याद हो 80 के दशक में ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म आई थी ‘कर्ज़’। अपने समय की बहुत ही हिट फिल्म थी। आज भी वो फिल्म अंत तक बांधे रखती है। उसकी पटकथा पुर्नजन्म के इर्द-गिर्द ही घूमती है । राज किरण की हत्या और उसी का ऋषि के रूप में पुनः जन्म लेना। हाल ही में एक और फिल्म इसी से मिलती जुलती आई थी, ओम शान्ति ओम। उस फिल्म में भी पुनर्जन्म की बात दिखाई गयी है। एक टीवी सीरियल ‘राज़ पिछले जन्म का’ में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला। ये तो हुई फिल्म और टेलीविजन की बातें। वास्तविक जीवन में भी कभी-कभी, ऐसी अनहोनी बातें, सुनने को मिल ही जातीं हैं कि फलाने बच्चे को अपने पिछले जन्म की बातें याद हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा कुछ होता है ?
भारत में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में, पुनर्जन्म एक चर्चा का विषय तो रहा ही है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, जहाँ इसे नकारते हैं, वहीँ विश्व की अधिकतर आबादी, इसपर विश्वास करती है। यह सदा से ही एक, बहस का मुद्दा बना हुआ है। कई धर्म पुस्तकों में, पुनर्जन्म का ज़िक्र है। हिन्दू, जैन, बौद्ध जैसे धर्मों के ग्रंथों में इसका वृहद् उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं कई प्रसिद्ध दार्शनिक भी, जैसे सुकरात, पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। हाँ इस बात को सीधे से ख़ारिज करने वाले भी कई धर्म हैं, जैसे ईसाई धर्म और इस्लाम। लेकिन जीजस का जी उठाना भी तो पुनर्जन्म का उदाहरण माना जा सकता है।
हिंदू मान्यतानुसार, मनुष्य मरणोपरांत, पुनर्जन्म अवश्य लेता है। उसका शरीर बदल जाता है परन्तु आत्मा वही रहती है। ये अलग बात है कि मरने के बाद पुनर्जन्म कब होता है, यह कहीं भी नहीं बताया गया है । हिन्दू मान्यता कहती है, मानव शरीर नश्वर है परन्तु आत्मा अनश्वर है। मृत्यु के बाद आत्मा विचरण करती रहती है। उस आत्मा के कर्मानुसार, सही समय आने पर और सही शरीर मिलने पर ही आत्मा को शरीर प्राप्त होता है, और तदुपरांत उसका जन्म । अगर हम अपने धर्म ग्रंथों को खंगालते हैं तो ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जिसमें पुर्नजन्म की बात कही गई है।
महाभारत के पात्र शिखंडी से आप सभी परिचित हैं। शिखंडी अपने पूर्व जन्म में, काशीराज की पुत्री अम्बा थी । शिखंडी के रूप में, अंबा का ही पुनर्जन्म हुआ था। उसकी दो और बहनें थीं अम्बिका और अम्बालिका। जब लडकियाँ विवाह योग्य हो गयीं तो उनके पिता ने उन तीनों का स्वयंवर रचाया। लेकिन वहाँ एक घटना घटित हुई। हस्तिनापुर के संरक्षक भीष्म ने, अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए काशीराज की तीनों पुत्रियों का स्वयंवर से ही हरण कर लिया। जब तीनों को लेकर वो, हस्तिनापुर पहुँचे, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि अंबा किसी और से प्रेम करती है। यह जान लेने के तुरंत बाद ही, भीष्म ने अम्बा को उसके प्रेमी के पास, पहुँचाने का प्रबंध कर दिया। अंबा अपने प्रेमी के पास पहुँच भी गयी, लेकिन भीष्म द्वारा हरे जाने के कारण, उसे अपमानित होकर लौटना पड़ा। अम्बा ने इस पूरे प्रकरण के लिए भीष्म को ही जिम्मेवार माना और भीष्म को स्वयं से विवाह करने पर जोर दिया। भीष्म ने आजीवन ब्रम्हचर्य का व्रत लिया था, अस्तु वो विवाह नहीं कर सकते थे। भीष्म के मना करने पर, अंबा ने प्रतिज्ञा ली, कि वह एक दिन भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए उसने घोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने, उसकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दे दिया। उसके बाद अंबा ने ही शिखंडी के रुप में पुनर्जन्म लिया और वही भीष्म की मृत्यु का कारण बनी।
कहते हैं मीराबाई द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की सखी थी, जिसका नाम ललिता था। उसी ललिता का पुनर्जन्म कलियुग में कृष्ण भक्त 'मीरा' के रूप में हुआ था। उदयपुर के राणा साँगा के पुत्र कुँवर भोजराज के साथ उनका विवाह हुआ था। विवाह के कुछ वर्षों बाद ही कुँवर भोजराज का निधन हो गया। मीरा को पति के साथ सती होने के लिए भी बाध्य करने की कोशिश गयी थी, परन्तु मीरा ने सती होना स्वीकार नहीं किया । विधवा मीरा ने अपना सम्पूर्ण जीवन, श्री कृष्ण की भक्ति में लगा दिया। वो अपना घर त्याग कर कृष्ण की तलाश में निकल पड़ीं । ऐसा कहा जाता है कि अंत समय में, तीर्थाटन करती हुई मीरा, मथुरा, वृन्दावन में भटकती हुई मीरा, द्वारिकापुरी के रणछोड़ दास की मूर्ति में सशरीर समा गई थी।
कहते हैं, श्री रामचंद्र जी के छोटे भाई, लक्ष्मण का पुनर्जन्म द्वापर में, भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में हुआ था। ऐसी कई कथाएँ हमारे धर्म ग्रंथों में पढने को मिल जायेंगी।
बौद्ध धर्म के गुरु दलाईलामा को बौद्धावतार माना जाता है। आज भी उनकी पूजा प्रत्येक तिब्बती नागरिक देवता के रूप में करता है । कहा जाता है कि उन्हें अपने पिछले जन्म का पूरा वृतान्त याद है। पिछले जन्म में वे कहां पैदा हुए थे, उन्हें सब मालूम है । यह भी कहा जाता है कि, उनका अगला जन्म कहाँ होगा, यह भी उनको पता है । सुनने में तो यहाँ तक आता है, कि सभी दलाईलामा अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपने शिष्यों को बता देते हैं, कि उनका अगला जन्म कहाँ होने वाला है।
वर्तमान में भी अगर आसपास नज़र डाले तो ऐसी कई घटनाऐं हमारे सामने आ जायेंगी। आये दिन समाचार पत्र व न्यूज़ चैनल की सुर्खिया बनती रहतीं हैं ऐसी घटनाएं । उनकी प्रमाणिकता पर बेशक़ हम सवाल खड़े कर सकते हैं, लेकिन उनको नज़रंदाज़ हम नहीं कर सकते। ये रही ऐसी ही एक ख़बर :
सीतामढ़ी, बिहार के शिवहर जिले के महुअरिया गांव के, चार वर्षीय आयुष को, अपनी पूर्व जन्म की सभी बातें बखूबी याद हैं। उसकी बातों को सुनकर परिजन ही नहीं, बल्कि पूरा इलाका हैरत में है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग, उसकी बातें सुनने के लिए गांव पहुँचने लगे । उदय चन्द द्विवेदी के द्वितीय पुत्र आयुष, पूर्व जन्म की बातें याद होने का दावा कर रहा है और उसके घर पहुंच रही भीड़ से, अपनी पूर्व जन्म की बातें धड़ल्ले से बखान करता है।
उसकी मां सुमन देवी बताती है कि पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा था कि कुछ लोगों को पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं। परन्तु अब उनके माथे पर ही यह पड़ गया। वे किसी अनहोनी की आशंका व्यक्त करते हुए कहती हैं कि जो भी हो रहा है, वह उनके परिवार के लिए अच्छा नहीं है। इधर, चार वर्षीय आयुष ने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम उज्जैन सिंह था तथा उसकी पत्नी का नाम बेबी सिंह था। उसके पिता धीरेन्द्र सिंह और माता वीणा देवी थीं। वे तीन भाई थे। जिनका नाम धीरज, नीरज व धर्मेन्द्र था।
उसका दिल्ली के एलमाल चौक के रोड न. 4 में भव्य आवास है तथा चांदनी चौक की गली न. 5 में भी एक मकान है, जहां उसके बड़े भाई नीरज सिंह रहते हैं। उसके पास दो मारूती कार, एक लाइसेंसी बन्दूक तथा एक पिस्टल एवं कई मोबाईल फोन थे। उसकी तीन बहनें थीं और उसकी ससुराल बिहार के औरगांबाद जिले में है । आयुष का दावा है कि उसकी शादी का जोड़ा आज भी, उसके अलमीरा में सजाकर रखा हुआ है। सोने वाले कमरे में उसका और उसकी पत्नी बेबी सिंह का संयुक्त फोटो टंगा हुआ है।
आयुष का कहना है कि वह पूर्व जन्म में भवन निर्माण विभाग में ठेकेदारी का कार्य करता था और सरकारी भवने बनवाता था। उसका कहना है कि उसने बाबा रामदेव का योग भी, त्रिकुट गांव में सीखा था जो आज भी याद है। चार वर्ष की उम्र में ही आयुष, अच्छी तरह से योग भी कर लेता है। वह कहता है कि एक बार उसका एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गया था। 21 सितम्बर 2006 की सुबह उसे सांप ने कांट लिया, जिसके बाद परिजनों ने इलाज कराया और वह बेहोश हो गया। इस घटना के बाद की कोई भी बात उसे याद नही हैं। आयुष की मां सुमन देवी का कहना है कि यदि आयुष का कहना सत्य है तो इसकी मौत सांप के काटने से हुई है और 21 सितम्बर 2006 के दोपहर में ही आयुष का जन्म हुआ था। हालाँकि, आयुष द्वारा बताई गयी सभी बातों का सत्यापन किया जा सकता है।
उसकी मां सुमन देवी बताती है कि पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा था कि कुछ लोगों को पूर्व जन्म की बातें याद रहती हैं। परन्तु अब उनके माथे पर ही यह पड़ गया। वे किसी अनहोनी की आशंका व्यक्त करते हुए कहती हैं कि जो भी हो रहा है, वह उनके परिवार के लिए अच्छा नहीं है। इधर, चार वर्षीय आयुष ने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम उज्जैन सिंह था तथा उसकी पत्नी का नाम बेबी सिंह था। उसके पिता धीरेन्द्र सिंह और माता वीणा देवी थीं। वे तीन भाई थे। जिनका नाम धीरज, नीरज व धर्मेन्द्र था।
उसका दिल्ली के एलमाल चौक के रोड न. 4 में भव्य आवास है तथा चांदनी चौक की गली न. 5 में भी एक मकान है, जहां उसके बड़े भाई नीरज सिंह रहते हैं। उसके पास दो मारूती कार, एक लाइसेंसी बन्दूक तथा एक पिस्टल एवं कई मोबाईल फोन थे। उसकी तीन बहनें थीं और उसकी ससुराल बिहार के औरगांबाद जिले में है । आयुष का दावा है कि उसकी शादी का जोड़ा आज भी, उसके अलमीरा में सजाकर रखा हुआ है। सोने वाले कमरे में उसका और उसकी पत्नी बेबी सिंह का संयुक्त फोटो टंगा हुआ है।
आयुष का कहना है कि वह पूर्व जन्म में भवन निर्माण विभाग में ठेकेदारी का कार्य करता था और सरकारी भवने बनवाता था। उसका कहना है कि उसने बाबा रामदेव का योग भी, त्रिकुट गांव में सीखा था जो आज भी याद है। चार वर्ष की उम्र में ही आयुष, अच्छी तरह से योग भी कर लेता है। वह कहता है कि एक बार उसका एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गया था। 21 सितम्बर 2006 की सुबह उसे सांप ने कांट लिया, जिसके बाद परिजनों ने इलाज कराया और वह बेहोश हो गया। इस घटना के बाद की कोई भी बात उसे याद नही हैं। आयुष की मां सुमन देवी का कहना है कि यदि आयुष का कहना सत्य है तो इसकी मौत सांप के काटने से हुई है और 21 सितम्बर 2006 के दोपहर में ही आयुष का जन्म हुआ था। हालाँकि, आयुष द्वारा बताई गयी सभी बातों का सत्यापन किया जा सकता है।
राजस्थान के हनुमानगढ़ में रहनेवाले सात साल के अवतार ने, न सिर्फ विज्ञान को बल्कि कानून के जानकारों के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी । बच्चे का दावा है कि उसका पुनर्जन्म हुआ है और वो अपने कातिलों को अच्छी तरह जानता है। सात साल पहले बड़ी बेरहमी से उसकी हत्या कर दी गयी थी। उसकी इन बातों से परेशान होकर एक दिन अवतार के पिता चरण सिंह ने फैसला किया कि वो अपने बच्चे को उस जगह लेकर जाएगें, जिस जगह का ज़िक्र वो हमेशा किया करता है।
पंजाब के फिरोजपुर जिले में, अबोहर पहुंचते ही सात साल का अवतार अजीबोगरीब हरक़त करने लगा। सात साल पहले वो जिन रास्तों से आया-जाया करता था, उसे वो सभी रास्ते बहुत अच्छी तरह याद थे। वो कई लोगों को पहचानने लगा। उसे चौक, घर, दुकानें सभी याद आने लगीं। चरण सिंह एकदम हैरान रह गए जब सात साल के अवतार ने अपने पिता को एक घर के सामने लाकर खड़ा कर दिया और उनको बता दिया यही उसके पूर्वजन्म का घर है। उस घर में मौजूद लोगों ने तो अवतार को नहीं पहचाना, लेकिन अवतार ने उन सब को एक-एक कर पहचान लिया।
ऐसी ही एक घटना महरहा गाँव में 1990 में घटित हुई। इस गांव के डॉ. राकेश शुक्ला के चार वर्षीय बेटे भीम ने एक दिन अचानक ही अपने माता-पिता से यह कहना शुरू कर दिया कि उसका नाम भीम नहीं है और न ही यह उसका घर है। उसके द्वारा रोज-रोज ऐसा कहने पर आखिर माता-पिता को पूछना ही पड़ा, बेटा तुम्हारा नाम भीम नहीं है तो क्या है और तुम्हारा घर यहां नहीं है तो कहां है? इस पर भीम ने जो उत्तर दिया उससे डॉ. शुक्ला आश्चर्यचकित रह गए। भीम ने बताया कि उसका असली नाम-सुक्खू है। वह जाति का चमार है और उसका घर बिन्दकी के पास मुरादपुर गांव में है। उसके परिवार में पत्नी एवं दो बच्चे हैं। बड़े बेटे का नाम उसने मानचंद भी बताया। भीम ने यह भी बताया कि वह खेती-किसानी किया करता था। एक दिन खेत में सिंचाई करते समय उसके चचेरे भाइयों से उसका झगडा हो गया और उसके चचेरे भाइयों ने उसे फावड़े से काटकर मार डाला ।
भीम द्वारा बताया गया गाँव मुरादपुर, महरहा से मात्र तीन-चार किलोमीटर की ही दूरी पर है इसलिए डॉ. शुक्ला ने मुरादपुर जाकर लोगों से सुक्खू चमार और उसके परिजनों के बारे में पूछ-ताछ की और जो जानकारी मिली, भीम द्वारा बतायी गई बातों से पूरी तरह मेल खाती थी।
गौरतलब है कि वर्तमान में पुनर्जन्म केवल एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं रह गया है। यह भी सही है कि सभी वैज्ञानिक समान रूप से पुनर्जन्म की अवधारणा पर विश्वास नहीं करते। जहां कुछ वैज्ञानिक इसे अंधविश्वास मानते हैं, वहीं कुछ इसे हकीकत मानकर इस पर रिसर्च कर रहे हैं।
सवाल आज भी वहीं है कि क्या हम अपना शरीर त्याग कर फिर से लौट कर आएँगे, या ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है ? हम सबको इन सवालों के जबाव का इंतजार था, है और शायद हमेशा रहेगा !
पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के कई किस्से हमारे सामनें आते हैं और धार्मिक ग्रंथो में भी इस बात का उल्लेख है ! इसलिए इस पर आमजन तो सहसा विश्वास करते हैं लेकिन आज का विज्ञान अभी तक इसको स्वीकार नहीं कर पाया है ! जिस पर इतना ही कहूँगा कि आधुनिक विज्ञान को अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी है !!
ReplyDeleteयह नहीं कहा जा सकता, सभी वैज्ञानिक इसे सीरे से खारिज़ कर रहे हैं। कुछ तो हैं ही जो इसकी सत्यता की जांच के लिए कटिबद्ध हैं।
Deleteहिन्दू धर्म दर्शन तो पुनर्जन्म की नीव पर ही मानो टिका है -पर वैज्ञानिक पद्धति से इसे सिद्ध कर पाना मुश्किल है ! आपने परिश्रम से यह लेख लिखा है !
ReplyDeleteभले आज की स्थिति को देख कर हम यह निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि विज्ञान इसे साबित नहीं कर सकता। किसने सोचा था कि एक छोटे से स्टेम सेल से एक जीवन का निर्माण किया जा सकता है, आखिर विज्ञान ने ये करके दिखाया ही है, कौन जाने इसे भी साबित करने में वैज्ञानिक सफल हो जाएँ, आखिर कोशिश जो ज़ारी है ही :)
Deleteजो भी दृष्टांत इस पोस्ट में दिए हैं, वे मन उलझा कर रख देते हैं...विश्वास करना मुश्किल और अविश्वास भी कैसे करे कोई .
ReplyDeleteपुनर्जन्म में आस्था रखने से बड़ी राहत यह मिलती है कि अगर कोई बहुत कष्ट में हो तो ये सोच लेता/लेती है कि उसके पूर्वजन्म का फल है और यह सोचकर मन को संतोष देता /देती है कि अगले जन्म में सुख मिलेगा .
पर ह्त्या, अपराध ,दुसरे कुकृत्य करने वाले यह क्यूँ नहीं सोचते कि उन्हें भी अगले जन्म में यह सब भोगना पड़ेगा ??
इसलिए बेहतर तो यही है कि सोच कर चला जाए, अपना किया-धिया इसी जन्म में सामने आएगा ,अच्छे कर्म का अच्छा फल बुरे कर्म का बुरा.
ज़िन्दगी बस ऐसे जी जाए जैसे न मिलेगी दोबारा क्यूंकि पता नहीं कल हो न हो :)
रश्मि,
Deleteपरफेक्ट जवाब।
मुझे पुनर्जन्म से कोई एतराज़ नहीं, अगर ऐसा होता है तो मुझे भला क्या दिक्कत हो सकती है ! फिर से मौका मिलेगा दुनिया में आने का और हंगामा मचाने का। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है !!! लेकिन मैं श्योर नहीं हूँ कि ऐसा ही होगा । मेरे लिए A bird in a hand is better than two in a bush. इसलिए जो मेरे पास है वो certain है और जो मेरे पास नहीं है वो uncertain है, uncertain के लिए certain को मैं खोना नहीं चाहती । इसलिए इस जीवन को ऐसे ही जीना है, जैसे दुबारा नहीं मिलने वाला । अगर मिल गया तो वो ज़बर्दस्त बोनस होगा और अगर नहीं मिला तो कोई अफ़सोस नहीं होगा। वैसे भी मुझे अफ़सोस करना पसंद नहीं :)
'Born Again' book has many instances of reincarnation . according to author its true but is there any way to prove it , i have my doubts still the book and the series is a enjoyable reading experience
ReplyDeleteHindu system is based on concept of "soul" which never dies so punar janam is acceptable to all of us though unproved
even a family friend had a son who used to say he was a IAS officer and he would behave like one as well but then we all made it a point NOT to discuss with him any thing about it
after 7 years of age gradually he stopped talking about all of it
Some people say that sometimes the soul is split , i read in the series that rajiv gandhi and baenajeer bhutto had split souls and that is why they both suffered a similar violent death
its also said people who have a accidental death have more probability of remembering past life to a extent
https://www.google.com/url?sa=t&rct=j&q=&esrc=s&source=web&cd=3&cad=rja&ved=0CDkQtwIwAg&url=http%3A%2F%2Fwww.youtube.com%2Fwatch%3Fv%3DYlLaWkIUcgs&ei=04lWUcWDPMaIrAeL6YHwCQ&usg=AFQjCNHt3mUIYy0IZ_Cf0PRnq60uq8IN1w&sig2=LSksmjveFucL0cvedVWCXA
this may be of interest to u
Thanks a lot Rachna ji, much appreciated !
Deleteपूर्वजन्म के बारे बहुत कुछ सुनने और देखने को मिलता ही रहता ही परन्तु वैज्ञानिक अवधारणा में इसकी सत्यता को साबित करना मुशिकल है.
ReplyDeleteबेशक़ अभी यह मुश्किल है, लेकिन कल किसने देखा है। शायद यही मुश्किल आसन हो जाए ...
Deleteये सारे पिछले जन्म में भी भारतीय ही थे और साथ में हिन्दू भी और इस जन्म में भी ऐसा ही है।क्या पुनर्जन्म का ऐसा भी कोई नियम या सिद्धान्त है।मैंने ऐसे दावे करने वाले जितने भी लोग देखे हैं सभी पिछडे इलाके से ही है और कोई ये नहीं कहता कि मैं पिछले जन्म में चोर बदमाश या भिखारी था सब या तो अमीर थे या किसीके अन्याय का शिकार ।इन बच्चों को घरवालों ने सिखा दिया होगा ।चर्चा में आने को लोग क्या क्या नहीं करते।वैसे इसमें कुछ सच्चाई हो सकती है।सुषुप्त मस्तिष्क और उसके पूर्वानुमानों या सिक्सथ सेंस आदि को तो कुछ हद तक विज्ञान भी मानता है ये कोई चमत्कार नहीं ।आपने कई बार अनुभव किया होगा हम कोई दृश्य अचानक ऐसा देखते हैं की कुछ सैकेंड तक लगता है अरे यह तो मैं पहले ही देख चुका हूँ।शायद ये हम सपने में देख चुके होते हैं।पर ये दिलचस्प है कि भविष्य की घटना पहले ही स्वपन में कैसे दिख जाती है।शायद हमारा मस्तिष्क बहुत तेज है जिसकी क्षमता का हमें भी पूरी तरह पता नहीं।
ReplyDeleteराजन तुम्हारी बातें बिलकुल सही हैं, ऐसी बातें ज्यादातर पिछड़े इलाकों में होतीं हैं।
Deleteऔर तुम deja vu की बात कर रहे हो ।
विज्ञान न सिद्ध कर पाया है और न असिद्ध। विज्ञान अपनी प्राथनिकताओं पर ही चलेगा।
ReplyDeleteसही कहा आपने, विज्ञान तो अपने रास्ते चलेगा ही। इतना ज़रूर है, विज्ञान हमें चीजों को समझने के लिए तर्कसंगत दृष्टिकोण देता है।
Deleteवाह बहुत सही और सार्थक सच को व्यक्त
ReplyDeleteकरती रचना
बहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
jyoti-khare.blogspot.in
धन्यवाद !
Deleteजहाँ तक हमारी नज़र जाती है हम देखकर यथावत बातें कह देते हैं किन्तु उसका दूसरा साक्ष्य होना ज़रूरी है और दूसरी बात हम दूर या पास की भी वस्तु नहीं देख पाते तो क्या वहां जीवन नहीं? बस यही पूर्व जन्म और पुनर्जन्म में होता है सामान्य व्यक्ति इन घटनाओं का साक्षी नहीं बन सकता . इसके लिए अलौकिक शक्ति या दृष्टि चाहिए ....
ReplyDeleteजिस अलौकिक दृष्टि की आप बात कर रहे हैं, उसी अलौकिक दृष्टि के साथ कई अवतार इसी धरती पर आये। कौन जाने ऐसे ही कोई अवतार आ जाएँ इसी धरती पर एक बार फिर ..
Deleteपूर्वजन्म एक अमिट सत्य है | मानो या ना मानो | बधाई | सुन्दर प्रस्तुति | सार्थक लेखनी |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
सही है :
Deleteमानो
या न मानो !
जीने के लिए एक जन्म में ही कितना होता है , कितने रंग , कितने ढंग ...कौन सोच कर दिमाग खराब करे की क्या थे पिछले जन्म में ...कौन उलझे इस पुनर्जन्म की पहेली में :)
ReplyDeleteचाहे एक जीवन में कितने ही रंग हो और कैसा भी ढंग हो, जीवन का मोह मनुष्य नहीं छोड़ पाता, वो बार-बार जीवन जीना चाहता है :)
Delete’एहि जग मिट्ठा, अगला किन डिट्ठा’(यही लोक मीठा है अगला किसने देखा है?) ऐसा मानने वाले भी हैं और श्री गुरू ग्रंथ साहब में स्थान पाये पद ’कई जनम भये कीट पतंगा, कई जनम गज मीन कुरंगा, कई जन्म पंखी सरप होईयो, कई जनम हैवर ब्रिख जोईओ’ पर विश्वास करने वाले लोग भी। बहुत से ऐसे भी मिल जायेंगे जो अलग अलग समय पर सुविधानुसार इन थ्योरीज़ को मान नकार भी लेते हैं। जिस्ट ये है कि our stand depends on what suits us.
ReplyDelete@ ये अलग बात है कि मरने के बाद पुनर्जन्म कब होता है, यह कहीं भी नहीं बताया गया है - एक शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा कहीं हाईबरनेशन में या रिचार्ज होने चली जाती हो, ऐसा नहीं लगता। इधर ड्यूटी खत्म और उधर ड्यूटी शुरू, किसी भी योनि में जन्म लेने वाले शिशु का शरीर जब दुनिया को दिखता है उससे बहुत पहले ही गर्भ में रहते ही उसमें प्राण आ चुके होते हैं। पुनर्जन्म और पूर्वजन्म की मान्यता में विश्वास करने वाला होने के नाते ये अंदाजा लगा रहा हूँ।
जहाँ तक विज्ञान द्वारा कुछ सिद्ध होने न होने की बात है, कहीं पढ़ा था कि बहुत पहले लोग अपने घर से बहुत दूर भी नहीं जाया करते थे। धरती के गोल होने की बात सिद्ध करने में विज्ञान और शुरू के वैज्ञानिकों को बहुत से पापड़ बेलने पड़े होंगे जबकि आज पहली दूसरी कक्षा का छात्र भी यह बात जानता है।
ZNMD, KHNH जैसी सुपर-डुपर हिट फ़िल्मों के बावज़ूद अपना विश्वास है जिंदगी मिलेगी दोबारा, शायद इसलिये because it suits me :) http://mosamkaun.blogspot.in/2012/11/blog-post.html
@ जिस्ट ये है कि our stand depends on what suits us.
Delete-
you said it all:)
i believe. you believe.
- there are no proofs to prove it exists - nor any proofs to the opposite theory :)
"our stand depends on what suits us."
DeleteAbsolutely! This goes to disbelievers too. :)
- there are no proofs to prove it exists - nor any proofs to the opposite theory :)
आप सम कौन जी,
Deleteजी हाँ विज्ञान ने ही इस क़ाबिल बनाया की हम घर से दूर जा सके, वैज्ञानिकों के ही पापड़ का कमाल है कि आज आप दिल्ली में हैं और हम कनेडा में फिर भी लड़ पा रहे हैं :)
विज्ञान, धर्म नहीं है। धर्म आस्था पर आधारित है और आस्था को साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती । धर्म रहस्यमय है, जबकि विज्ञान रहस्योद्घाटन। विज्ञान का क्षेत्र विस्तृत होता जाता है। उसमें मानवता द्वारा स्वयं के मूल और उद्देश्य की खोज करने का उद्यम है, एक अद्भुत प्रयास है। कोई ज़रूरी नहीं कि विज्ञान हर बात को साबित करे, प्रयत्न करना उसका काम है। साबित कर सका तो ठीक वर्ना किसी भी बात को सिर्फ मान कर निष्क्रिय बैठ जाना, विज्ञान का उद्देश्य नहीं।
लड़ वड़ कुछ नहीं रहे हैं जी, ये तो हम बस चर्चा में बने रहने के लिये थोड़ा सा बहस विवाद करते हैं वरना तो न हम विज्ञान के छात्र और न धर्मशास्त्र के। हाँ, वैज्ञानिकों के पापड़ के कमाल से कौन इंकार कर सकता है? :)
Deleteलड़ वड़ कुछ नहीं रहे हैं जी, ये तो हम बस चर्चा में बने रहने के लिये थोड़ा सा बहस विवाद करते हैं वरना तो न हम विज्ञान के छात्र और न धर्मशास्त्र के। हाँ, वैज्ञानिकों के पापड़ के कमाल से कौन इंकार कर सकता है? :)
Deletemain maantaa hoon .. kyunki eri buaa ji ko 6 saal ki umar tak puri mahaabhaarat kathaa yaad thi .. jise dheere dheere bade hote hote wo ekda bhoolti chali gayin
ReplyDeletemanu
आपकी बुवा जी से एक बार ज़रूर मिलना चाहिए :)
Deleteमनुष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण दो पहलुओं जीवन और मृत्यु के परिप्रेक्ष्य में (पूर्वजन्म से पुनर्जन्म तक) वाला यह आलेख अत्यन्त विचारणीय है। इस विषय पर आपके विचार और लेखन दोनों उपयोगी हैं।
ReplyDeleteचलिए कम से कम विचार के योग्य ही इस आलेख को समझा यही बहुत है।
Deleteआपका आभार !
आप ब्लॉगर मित्रों की किसी प्रतिक्रिया को कभी गम्भीरता से भी लेती हैं? चलिए कम से कम विचार के योग्य ही इस आलेख को समझा यही बहुत है...........यह उत्तर प्राप्त कर ऐसा लगा जैसे आपको टिप्पणी रास नहीं आई। मुझे ऐसा लगा, इसलिए लिख रहा हूं।
Deleteविकास जी आपको ऐसा कैसे लगा कि मैं पाठकों की टिप्पणियों को गंभीरता से नहीं लेती ? इसी पोस्ट पर आप दोबारा मेरा जवाब पढ़ लें। आपकी टिप्पणी मुझे बहुत पसंद आई। हाँ आपको जवाब देने में मुझे भी चूक दिखाई दे रही है, शायद मैंने जवाब सही नहीं दिया। आपको बुरा लगा क्षमाप्रार्थी हूँ।
Delete