Saturday, April 3, 2010

प्रिय तू प्रथम प्रीत सा........गीत सुनिए......तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ...


वो..!
शुद्ध भाव, प्रबुद्ध शैली,
बोली बोले मीत सा..
 

मै..!
अधर अक्षम, भाव जर्जर,
गीत मेरा अगीत सा,
वाणी मेरी क्षीण सी,
अश्रु कोटर रीत सा,
देह मेरी सकुचा गई, 

मन मगर विस्तृत सा,
झुक गई गर्दन हमारी,
झुक गए हैं नयन दोउ,
कृतज्ञं हूँ, ज्ञापन करूँ, 

मेरी अर्चना संगीत सी,
सानिध्य तेरा स्वर्ग सा,
हार, जीत प्रतीत सा,
दृग मेरे पथ जोहते हैं,
प्रिय तू प्रथम प्रीत सा..!

तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ...
ये गीत सुनिए...आवाज़....'अदा' और संतोष जी..

37 comments:

  1. सुबह सुबह सुंदर कविता और फिर मीठा गीत! निहाल हो गए।

    ReplyDelete
  2. आपकी आवाज़ बहुत ही मधुर और सुरीली है ! सुबह-सुबह अपना पसंदीदा गीत सुन कर मन और आत्मा दोनों तृप्त हो गए ! कविता के तो कहने ही क्या ! शरमाई, सकुचाई, लजीली अनुरक्ता का बहुत सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है आपने ! बधाई स्वीकार करें !

    ReplyDelete
  3. निराकार के लिए सुंदर प्रतीक ...वह प्रीत भी है और प्रियतम भी ...उसके लिए दृग तरसते भी हैं और जिसके लिए
    कृतज्ञं हूँ ज्ञापन करूँ यह अर्चना संगीत सा सानिध्य तेरा स्वर्ग सा हार, जीत प्रतीत सा दृग मेरे पथ जोहते हैं प्रिय तू प्रथम प्रीत सा

    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  4. कविता और गाना दोनों ही मनमोहक!

    ReplyDelete
  5. अदा जी,
    आप की प्रतिभा चमत्कृत और विस्मृत करने में सक्षम है। कलेवर में विविधता आपकी बहुत बड़ी विशेषता है। और ये सब इतनी सक्रियता से करना इसका महत्व और भी बढ़ा देता है। आपके गायन और लेखन में विभिन्न भावों का संयोजन गजब का है। एकाध फ़ील्ड या विधा किसी और के लिये भी छॊड़ दो जी।
    आप वैसे मानवी ही हैं न?

    ReplyDelete
  6. पढ लिया .. अब सुन रही हूं .. बहुत सुंदर प्रस्‍तुति !!

    ReplyDelete
  7. बेहतरीन कविता और उम्दा गायन!!

    ReplyDelete
  8. बहुत ही गहरी अभिव्यक्तियाँ गीत भी भावपूर्ण
    आवाज़ ....... सुनने दीजिये , क्या कहना है

    ReplyDelete
  9. बेहद नायाब रचना और उत्कृष्ट गीत.

    रामराम.

    ReplyDelete
  10. कविता के साथ-साथ गीत भी वेहद खुबसूरत

    ReplyDelete
  11. sabd nahi hai mere pass ada didi aapki tareef ke liye

    ReplyDelete
  12. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

    ReplyDelete
  13. पेंटिंग खूबसूरत।
    कविता और भी खूबसूरत।
    गीत सबसे खूबसूरत और मधुर।

    ReplyDelete
  14. बहुत सुंदर कविता ओर उतना ही सुंदर गीत.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  15. कल शिकायत की हमें क्या पता था कि
    आज ही मांग पूरी हो जायेगी ..
    सुन्दर लगा सुनकर ... आभार !

    ReplyDelete
  16. तारीफ करूं मैं किसकी...?
    ...................
    .
    .
    .
    .
    .

    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html

    ReplyDelete
  17. wow achi rachan he
    aap ko badhai



    shekhar kumawat


    http://kavyawani.blogspot.com/

    ReplyDelete
  18. वाणी मेरी क्षीण सी
    गीत मेरा अगीत सा
    हां अभी सबकुछ ऐसा ही है ....
    मेल नहीं देख पा रही हूँ ...मूड गड़बड़ हो रहा है
    जा ...नहीं सुनती कोई गीत ...कह दिया बस ....

    ReplyDelete
  19. फोटू शोटू तो बड़ी प्यारी लगाई है ....मयंक की है क्या ...??

    ReplyDelete
  20. सानिध्य तेरा स्वर्ग सा
    हार, जीत प्रतीत सा
    दृग मेरे पथ जोहते हैं
    प्रिय तू प्रथम प्रीत सा

    अदा जी!
    आपकी रचना तो बहुत सुन्दर है साथ ही स्वर भी बहुत मधुर है जो तन-मन को झंकृत कर देता है!
    यह अपके लिए ईश्वर का वरदान है!

    ReplyDelete
  21. "प्रिय तू प्रथम प्रीत सा........गीत सुनिए......तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ..."

    very nice.

    ReplyDelete
  22. रचना और गीत ...दोनों लाजवाब

    ReplyDelete
  23. bahut hi umda aur gahan abhivyakti.

    ReplyDelete
  24. क्या कहने आपकी स्वर का जादू और रचना

    ReplyDelete
  25. रचना और गीत ...दोनों लाजवाब

    ReplyDelete
  26. अब तो शायद ही हम ये भूलेंगे कि
    अभी हम मिले थे
    बहुत ख़ूब अदा जी!
    फ़िदा हो गया आपकी आवाज़ और आपके गीत पर
    मेरी शुभकामनाएँ
    सादर
    अनिल जनविजय

    ReplyDelete
  27. अब तो शायद ही हम ये भूलेंगे कि
    अभी हम मिले थे
    बहुत ख़ूब अदा जी!
    फ़िदा हो गया आपकी आवाज़ और आपके गीत पर
    मेरी शुभकामनाएँ
    सादर
    अनिल जनविजय

    ReplyDelete
  28. अब तो शायद ही हम ये भूलेंगे कि
    अभी हम मिले थे
    बहुत ख़ूब अदा जी!
    फ़िदा हो गया आपकी आवाज़ और आपके गीत पर
    मेरी शुभकामनाएँ
    सादर
    अनिल जनविजय

    ReplyDelete
  29. भुला सके हमको ज़माना, ऐसा ज़माने में दम कहां.
    हमसे है ये ज़माना, ज़माने से हम कहां...

    अदा जी ये फ़लसफ़ा आप पर फिट बैठता है...अगर कहीं कोई ख़ामी हो तो दुरूस्त कर दीजिएगा...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  30. Hello Adaa ji,

    "प्रिय तू प्रथम प्रीत सा"
    -- Fantastic, umdaaaaah, beautiful :)

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

    ReplyDelete
  31. गीत जितना मधुर है, आप दोनों का गायन भी उतना ही सुमधुर , सुरीला है.

    आपकी आवाज़ में मेलोडी है, और भाव पक्ष भी बहुत मज़बूत है. आपके गायन की रेंडरिंग कानों पर यूं पडती है, जैसे कोई मोरपंख से सहला रहा है.

    एक सुर नीचे लेकर गानें से रुमानी एहसासात और भी बढिया प्रस्तुत हुए है, जो इस गाने की महत्वपूर्ण यू एस पी है.

    गायक की आवाज़ में भी हेमंत दा जैसी गोलाई, गहराई और मींड है.

    दाद देने से नहीं रह पाऊंगा. इसका ट्रेक यू ट्युब पर है?

    ReplyDelete
  32. gaane me bhi santosh ji k aage adaye dikhane se baaz nahi aa rahi mem-sahab. sataya ja raha he...

    dono ki awaz bahut khoobsurat lagi..gana chhota tha..dil kar raha tha aur aage tak sunti jau.

    nice poem.

    ReplyDelete
  33. ---कविता के भाव सुन्दर हैं।---अशुद्धियों पर ध्यान दें।
    -रीत, देह मेरी सकुचाई गई है,अर्चना संगीत सा
    हार, जीत प्रतीत सा-

    ---रीत कोई शब्द नही---=रीति
    --सकुचाई गयी अर्थहीन है.
    --अर्चना सगीत सी होना चाहिये
    ---प्रतीत = प्रतीति

    ReplyDelete