वो..!
शुद्ध भाव, प्रबुद्ध शैली,
बोली बोले मीत सा..
बोली बोले मीत सा..
मै..!
अधर अक्षम, भाव जर्जर,
गीत मेरा अगीत सा,
गीत मेरा अगीत सा,
वाणी मेरी क्षीण सी,
अश्रु कोटर रीत सा,
देह मेरी सकुचा गई,
मन मगर विस्तृत सा,
झुक गई गर्दन हमारी,
झुक गए हैं नयन दोउ,
कृतज्ञं हूँ, ज्ञापन करूँ,
मेरी अर्चना संगीत सी,
सानिध्य तेरा स्वर्ग सा,
हार, जीत प्रतीत सा,
दृग मेरे पथ जोहते हैं,
अश्रु कोटर रीत सा,
देह मेरी सकुचा गई,
मन मगर विस्तृत सा,
झुक गई गर्दन हमारी,
झुक गए हैं नयन दोउ,
कृतज्ञं हूँ, ज्ञापन करूँ,
मेरी अर्चना संगीत सी,
सानिध्य तेरा स्वर्ग सा,
हार, जीत प्रतीत सा,
दृग मेरे पथ जोहते हैं,
प्रिय तू प्रथम प्रीत सा..!
तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ...
ये गीत सुनिए...आवाज़....'अदा' और संतोष जी..
सुबह सुबह सुंदर कविता और फिर मीठा गीत! निहाल हो गए।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteआपकी आवाज़ बहुत ही मधुर और सुरीली है ! सुबह-सुबह अपना पसंदीदा गीत सुन कर मन और आत्मा दोनों तृप्त हो गए ! कविता के तो कहने ही क्या ! शरमाई, सकुचाई, लजीली अनुरक्ता का बहुत सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है आपने ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteनिराकार के लिए सुंदर प्रतीक ...वह प्रीत भी है और प्रियतम भी ...उसके लिए दृग तरसते भी हैं और जिसके लिए
ReplyDeleteकृतज्ञं हूँ ज्ञापन करूँ यह अर्चना संगीत सा सानिध्य तेरा स्वर्ग सा हार, जीत प्रतीत सा दृग मेरे पथ जोहते हैं प्रिय तू प्रथम प्रीत सा
बहुत सुंदर
कविता और गाना दोनों ही मनमोहक!
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteआप की प्रतिभा चमत्कृत और विस्मृत करने में सक्षम है। कलेवर में विविधता आपकी बहुत बड़ी विशेषता है। और ये सब इतनी सक्रियता से करना इसका महत्व और भी बढ़ा देता है। आपके गायन और लेखन में विभिन्न भावों का संयोजन गजब का है। एकाध फ़ील्ड या विधा किसी और के लिये भी छॊड़ दो जी।
आप वैसे मानवी ही हैं न?
पढ लिया .. अब सुन रही हूं .. बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबेहतरीन कविता और उम्दा गायन!!
ReplyDeleteबहुत ही गहरी अभिव्यक्तियाँ गीत भी भावपूर्ण
ReplyDeleteआवाज़ ....... सुनने दीजिये , क्या कहना है
बेहद नायाब रचना और उत्कृष्ट गीत.
ReplyDeleteरामराम.
कविता के साथ-साथ गीत भी वेहद खुबसूरत
ReplyDeletesabd nahi hai mere pass ada didi aapki tareef ke liye
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteपेंटिंग खूबसूरत।
ReplyDeleteकविता और भी खूबसूरत।
गीत सबसे खूबसूरत और मधुर।
बहुत सुंदर कविता ओर उतना ही सुंदर गीत.
ReplyDeleteधन्यवाद
कल शिकायत की हमें क्या पता था कि
ReplyDeleteआज ही मांग पूरी हो जायेगी ..
सुन्दर लगा सुनकर ... आभार !
तारीफ करूं मैं किसकी...?
ReplyDelete...................
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http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html
wow achi rachan he
ReplyDeleteaap ko badhai
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
वाणी मेरी क्षीण सी
ReplyDeleteगीत मेरा अगीत सा
हां अभी सबकुछ ऐसा ही है ....
मेल नहीं देख पा रही हूँ ...मूड गड़बड़ हो रहा है
जा ...नहीं सुनती कोई गीत ...कह दिया बस ....
फोटू शोटू तो बड़ी प्यारी लगाई है ....मयंक की है क्या ...??
ReplyDeleteसानिध्य तेरा स्वर्ग सा
ReplyDeleteहार, जीत प्रतीत सा
दृग मेरे पथ जोहते हैं
प्रिय तू प्रथम प्रीत सा
अदा जी!
आपकी रचना तो बहुत सुन्दर है साथ ही स्वर भी बहुत मधुर है जो तन-मन को झंकृत कर देता है!
यह अपके लिए ईश्वर का वरदान है!
"प्रिय तू प्रथम प्रीत सा........गीत सुनिए......तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ..."
ReplyDeletevery nice.
सुन्दर कविता है ।
ReplyDeleteरचना और गीत ...दोनों लाजवाब
ReplyDeletebahut hi umda aur gahan abhivyakti.
ReplyDeleteक्या कहने आपकी स्वर का जादू और रचना
ReplyDeleteरचना और गीत ...दोनों लाजवाब
ReplyDeleteअब तो शायद ही हम ये भूलेंगे कि
ReplyDeleteअभी हम मिले थे
बहुत ख़ूब अदा जी!
फ़िदा हो गया आपकी आवाज़ और आपके गीत पर
मेरी शुभकामनाएँ
सादर
अनिल जनविजय
अब तो शायद ही हम ये भूलेंगे कि
ReplyDeleteअभी हम मिले थे
बहुत ख़ूब अदा जी!
फ़िदा हो गया आपकी आवाज़ और आपके गीत पर
मेरी शुभकामनाएँ
सादर
अनिल जनविजय
अब तो शायद ही हम ये भूलेंगे कि
ReplyDeleteअभी हम मिले थे
बहुत ख़ूब अदा जी!
फ़िदा हो गया आपकी आवाज़ और आपके गीत पर
मेरी शुभकामनाएँ
सादर
अनिल जनविजय
भुला सके हमको ज़माना, ऐसा ज़माने में दम कहां.
ReplyDeleteहमसे है ये ज़माना, ज़माने से हम कहां...
अदा जी ये फ़लसफ़ा आप पर फिट बैठता है...अगर कहीं कोई ख़ामी हो तो दुरूस्त कर दीजिएगा...
जय हिंद...
Hello Adaa ji,
ReplyDelete"प्रिय तू प्रथम प्रीत सा"
-- Fantastic, umdaaaaah, beautiful :)
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
गीत जितना मधुर है, आप दोनों का गायन भी उतना ही सुमधुर , सुरीला है.
ReplyDeleteआपकी आवाज़ में मेलोडी है, और भाव पक्ष भी बहुत मज़बूत है. आपके गायन की रेंडरिंग कानों पर यूं पडती है, जैसे कोई मोरपंख से सहला रहा है.
एक सुर नीचे लेकर गानें से रुमानी एहसासात और भी बढिया प्रस्तुत हुए है, जो इस गाने की महत्वपूर्ण यू एस पी है.
गायक की आवाज़ में भी हेमंत दा जैसी गोलाई, गहराई और मींड है.
दाद देने से नहीं रह पाऊंगा. इसका ट्रेक यू ट्युब पर है?
gaane me bhi santosh ji k aage adaye dikhane se baaz nahi aa rahi mem-sahab. sataya ja raha he...
ReplyDeletedono ki awaz bahut khoobsurat lagi..gana chhota tha..dil kar raha tha aur aage tak sunti jau.
nice poem.
---कविता के भाव सुन्दर हैं।---अशुद्धियों पर ध्यान दें।
ReplyDelete-रीत, देह मेरी सकुचाई गई है,अर्चना संगीत सा
हार, जीत प्रतीत सा-
---रीत कोई शब्द नही---=रीति
--सकुचाई गयी अर्थहीन है.
--अर्चना सगीत सी होना चाहिये
---प्रतीत = प्रतीति
yahaa aakar bahut achha lagaa.gaanaa bhee sunaa.
ReplyDeleteitane saare comments mile hai aapko.dekh kar eershaa ho rahee hai
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