सत्य और असत्य ने
रचा है यह संसार
जैसा मैं सोचूं
वैसा ही है यह संसार
मैं स्वयं हूँ
रचयिता अपने संसार का
स्वामी भी मैं
दृष्टि भी और
दृश्य भी
मैंने ही रचा है निज को
अपने विचारों से,
यह सारा खेल
ही है विचारों का
जो साझा है
विष और अमृत का,
जैसा मनन वैसा मन,
जैसा मनन वैसा मन,
विवेक मथानी चाहिए
विचार के समुद्र
को मथने के लिए
मथोगे तो
निकलेंगे
सदविचारों के रत्न
जो ले जायेंगे
मोक्ष के पथ पर,
और कहीं जो
विपरीत हुए तो
धकेल देंगे तुम्हें
गहनतम अन्धकार में
और तब तपोगे नरक के
गर्त में,
क्योंकि तुम्हारे विचार
तुम्हारा नरक बन जायेंगे,
सोच लो
विचार लो
विचार भ्रमित तो करते हैं
लेकिन
ये विचार ही तो हैं जो
व्यक्तित्व का निर्माण
करते हैं.....
विचार भ्रमित तो करते हैं ...
ReplyDeleteमगर ये विचार ही हैं जो व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं ...
क्या बात कही ....
हम वही होते हैं जो हम दिखाना चाहते हैं ....वह नहीं... जो छिपाना चाहते हैं ...
इसलिए हमें वही होने का प्रयास करना चाहिए जो हम दिखाना चाहते हैं ...
यही सारतत्व है इस जीवन और व्यक्तित्व का ...
यही इस कविता का भी ....!!
ये विचार ही तो हैं जो
ReplyDeleteव्यक्तित्व का निर्माण
करते हैं.
-निश्चित ही विचारों की ही छाप है व्यक्तित्व!
सुन्दर रचना!
bahut khoob kaha vichar hi to hain jo insaan ko insaan ya haivaan banatehain...satya darshati rachna...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
बहुत सुन्दर कविता है ! जीवन का ससार यही है । हम वही बनते हैं जैसी हमारी सोच हैं । बुरी सोच होगी तो बुरा ही बनेंगे, और अच्छी सोच रखेंगे तो व्यतित्व में निखार आ जायेगा ।
ReplyDeleteaapkee ye adaa bhee judaa hai
ReplyDeleteAPNI MAATI
MANIKNAAMAA
यह सारा खेल
ReplyDeleteही है विचारों का
जो साझा है
विष और अमृत का,
जैसा मनन वैसा मन,
विवेक मथानी चाहिए
APNI MAATI
MANIKNAAMAA
सत्य और असत्य ने
ReplyDeleteरचा है यह संसार
जैसा मैं सोचूं
वैसा ही है यह संसार
मैं स्वयं हूँ
रचयिता अपने संसार का
स्वामी भी मैं
दृष्टि भी और
दृश्य भी
मैंने ही रचा है निज को
अपने विचारों से,
यह सारा खेल
ही है विचारों का
बहुत सुन्दर कविता है...
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर...
ये विचार ही तो हैं जो
ReplyDeleteव्यक्तित्व का निर्माण
करते हैं.....
बिना विचार का अर्थात पशु
सुन्दर रचना, विचारणीय
जैसा बोओगे वैसा काटोगे........
ReplyDeleteजैसे सोचोगे वैसे बनोगे...........
विचार भ्रमित तो करते हैं
ReplyDeleteलेकिन
ये विचार ही तो हैं जो
व्यक्तित्व का निर्माण
करते हैं.....
क्या सुन्दर बात कही है ।
Very deep and divine thought!
ReplyDeleteGreat presentation.
बहुत सही कहा है आपने कि हम अपना संसार खुद बनाते हैं।
ReplyDeleteहम सब किसान हैं जो विचारों की खेती कर रहे हैं। जैसे विचार बीज के रूप में अपने मानस में डालते हैं, वैसी ही फ़सल काटने के लिये तैयार रहना चाहिये।
विचारों में गतिशीलता भी जरूरी है, आत्मावलोकन भी।
आज आपको ’अहं ब्रह्मोस्मि’ की भावना का प्रसार करते देखना अच्छा लगा।
आभार
जैसा मैं सोचूं
ReplyDeleteवैसा ही है यह संसार
सच है ।
दी आपके विचार को मेरा प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है |
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteयही सारतत्व है इस जीवन और व्यक्तित्व का ...
यही इस कविता का भी ....!!
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteअति सुंदर रचना जी
ReplyDeleteमैं स्वयं हूँ रचयिचा
ReplyDeleteअपने सुखद संसार का!
ध्यान रखता हूँ हमेशा
मैं स्वयं परिवार का!!
अदा जी आपकी रचना वाकई में बहुत बढ़िया है!
दुनिया बनाने वाले,
ReplyDeleteकाहे को दुनिया बनाई...
काहे बनाए तून्हे माटी के पुतले,
काहे लगाया जीवन का मेला,
गुपचुप तमाशा देखे, सारी खुदाई,
काहे को दुनिया बनाई...
जय हिंद...
विचार भ्रमित तो करते हैं
ReplyDeleteलेकिन
ये विचार ही तो हैं जो
व्यक्तित्व का निर्माण
करते हैं...
क्या कहूँ शब्द नहीं है, इतने सुन्दर विचार और इतनी सुन्दरता से विचारों को शब्दों में ढालना, वाह !
सदविचारों के रत्न
ReplyDeleteजो ले जायेंगे
मोक्ष के पथ पर,
और कहीं जो
विपरीत हुए तो
धकेल देंगे तुम्हें
गहनतम अन्धकार में
और तब तपोगे नरक के
गर्त में,
bahut ghahri baat........
Girijesh Rao said:
ReplyDeleteपिताजी अध्यापन काल में कहा करते थे - तुम जो सोच रहे होते हो वह न कोई सुनता है, न जानता है। सोचने में ईमानदार रहो। बहुत से हल इतने से ही निकल आएँगे।
Very true
ReplyDelete-Shruti
अच्छी दार्शनिक कविता...विचारों से ही मनुष्य की पहचान होती है.....भ्रम कुछ देर तो हो सकता है पर टिक नहीं सकता..
ReplyDeleteसोच लो
ReplyDeleteविचार लो
विचार भ्रमित तो करते हैं
लेकिन
ये विचार ही तो हैं जो
व्यक्तित्व का निर्माण
करते हैं.....
बहुत सही !!
hnm...
ReplyDelete..
bahut sunder likhaa hai....
badhaai..
बहुत बढ़िया रचना आभार ....
ReplyDeleteकवि कुंवर नारायण की एक कविता याद आने लगी
ReplyDeleteकि व्यक्ति लपक कर नाप लेगा अपनी अस्मिता में
विश्व का विस्तार , बशर्ते ---
'' उसकी बुद्धि को हर दासता से मुक्त रहने दो '' !
जबर्दस्त रचना ! यहाँ तो सब कुछ कह दिया है आपने -
ReplyDelete"विवेक मथानी चाहिए
विचार के समुद्र
को मथने के लिए
मथोगे तो
निकलेंगे
सदविचारों के रत्न"
बस ! इन सदविचारों से ही बात शुरु होती है, बनती है !