Tuesday, April 13, 2010

मैं......दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती...



मैं !  
अनादि काल से
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती
बन कर जन्मती रही हूँ , 
करोड़ों सर
झुकते रहे
मेरे चरणों में,
और दुगुने हाथ
उठते रहे 
मेरी गुहार को,
झोलियाँ भरती रही मैं,
कभी दुर्गा, 
कभी लक्ष्मी,
और कभी सरस्वती बन कर ,
मेरे भक्त, 
कभी साष्टांग तो 
कभी नत मस्तक 
होते रहे 
मेरे सामने 
और मैं भी,
बहुत सुरक्षित रही
तब तक, जब तक
अपने आसन पर
विराजमान रही
लेकिन,
जिस दिन मैंने  
आसन के नीचे 
पाँव धरा  
मैं दुर्गा;
जला दी गई,
मैं लक्ष्मी;
बेच दी गई,
और मैं सरस्वती;
ले जाई गई
किसी तहख़ाने में
जहाँ,
नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं
पर ऊपर आने की एक भी नही...


33 comments:

  1. आसन पर विराजी थी जब लक्ष्मी , सरस्वती थी ...
    लोग सर झुकाते थे ...
    मगर जब आसन से उतरी ....
    देवी श्रद्धा तो उपजाती हैं मगर
    मगर जीवन मानव बनकर ही जीया जाता है ...
    ठोकरे लगे ...लांछन लगे
    गिरते संभलते ...!!

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  2. नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं
    पर ऊपर आने की एक भी नही...
    बहुत गहराईयुक्त रचना
    सीढिया थी ही कब!! न नीचे जाने का न ऊपर आने का. बिना सीढियों के ही धकेली गयी -----

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  3. दैवत्व छोड़ना महंगा पड़ा न?
    इंसान बनना इतना आसान नहीं है।
    आसन पर विराजमान रहने का, वरदान देने का,दूसरों की इच्छा पूरी करने का बस,
    कोई लफ़ड़ा नहीं मांगता इदर।
    नहीं तो यईच होयेगा,
    जलाया जायेगा, बेचा जायेगा या दफ़नाया जायेगा।

    बहुत खूब!

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  4. आसन के नीचे पाँव धरा
    मैं दुर्गा;जला दी गई,
    मैं लक्ष्मी;बेच दी गई,
    और मैं सरस्वती;ले जाई गई किसी तहख़ाने में
    जहाँ,नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं
    पर ऊपर आने की एक भी नही...

    क्यों हर चीज इस कदर टूट रही है
    गिर रही है कि
    जुड़ने का, उठने का कोई साधन कोई सीढ़ी
    नजर नहीं आती

    सुंदर रचना

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  5. क्या ये राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार, यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी, विरोधी दल की नेता सुषमा स्वराज, विदेश सचिव निरूपमा राव, अमेरिका में भारतीय राजदूत मीरा शंकर, मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता, इंद्रा नूई, चंदा कोचर, किरण शाह मजूमदार का ही देश है...

    या इसी देश में कोई दूसरा देश भी है, जहां आज के युग में भी सीताओं को बार-बार अग्नि का इम्तिहान देने की ज़रूरत पड़ती है...

    जय हिंद...

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  6. बहुत सुन्दर रचना है ! विडम्बना तो यही है की दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती सब उसी शक्ति का रूप है जिसे मनुष्य कभी समझ नहीं पाया !

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  7. दी i m back हम इन्सान बनकर खुबसूरत ज़ज्बात बेचेंगे ............जीवन इंसानों के दरम्यान बेमियादी व्यापार हैं .............सादर चरण स्पर्श !

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  8. बहुत उम्दा रचना...दिल को छू गई..

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  9. बहुत अच्‍छी रचना !!

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  10. बहुत ही नायाब रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  11. नारी तो कहीं भी पैर रखे, अपना वजूद बना ही लेती हैं। हाँ जब व्‍यावसायिक दुनिया में कदम रखती है तब उसे भी संघर्षों का सामना तो करना ही पडेगा। लेकिन वहाँ भी नारी ने स्‍वयं को सिद्ध कर दिया है, जैसा की खुशदीप जी ने बताया है। मैं तो मानती हूँ कि नारी कल भी दुर्गा, लक्ष्‍मी, सरस्‍वती थी और आज भी है।

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  12. "बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव."

    KUNWAR JI,

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  13. नारी के स्वरूप में शक्तिस्वरूपा दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती को नमन करता हूँ!
    बढ़िया पोस्ट!

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  14. बहुत अच्‍छी रचना !

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  15. दोहरे मापदंड के शिकार हैं हम सब। जिस दुर्गा, लक्ष्मी , सरस्वती की पूजा करते हैं , हकीकत में उनको ही मलिन करते हैं। अपनी सुविधानुसार रंग और चोला बदल लेते है हम ।
    इसीलिए कहता हूँ --अगर इंसान बन कर दिखलाओ तो जाने ।
    बहुत अच्छी रचना पेश की है आपने । बधाई।

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  16. आदरणीया
    स्त्री शक्ति को आपकी कविता के माध्यम से प्रणाम......! सुन्दर रचना के लिए बधाई....!

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  17. बहुत अच्छी रचना।

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  18. मैं दुर्गा;
    जला दी गई,
    मैं लक्ष्मी;
    बेच दी गई,
    और मैं सरस्वती;
    ले जाई गई
    किसी तहख़ाने में
    जहाँ,
    नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं
    पर ऊपर आने की एक भी नही...

    Bahut khoob, ati sundar !!

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  19. @आदित्य
    बहुत दिनों बाद तुम आये हो...चिंता में डाल कर चले जाते हो..
    बताया तो करो कहाँ हो !!
    बहुत ख़ुशी हुई तुम्हें देख कर....

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  20. PADH KAR STABDH HAIN....


    AADITYAA AAFTAAB ISHQ KO KAAFI SAMAY BAAD DEKHNAA ACHCHHAA LAGAA...

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  21. jab tak mandir mein rahi pooji jaati rahi.. jab dhara par paav rakha bech di gayi

    Ada is vishay ko jis khoobsurti ke sath likha hai uski tareef mein kuch bhi kahu to kam hai

    -Shruti

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  22. वाह के अलावा और क्या!

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  23. Hello ji :)

    "नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं
    पर ऊपर आने की एक भी नही..."

    Brilliant!!
    Bahut hi badiyaaa!!

    Regards,
    Dimple
    http://poemshub.blogspot.com

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  24. Aapki qalam hamesha khamosh kar deti hai...

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  25. rachna k bhaav man ko chhuu gaye.
    bahut saargarbhit.

    pichhli post bhi bahut badhiya thi.

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  26. आपकी हिन्दी की कविताएं बहुत ही सटीक होती हैं और सीधे आत्मा तक जाती हैं ...
    चिंतन को मजबूर कर देती हैं
    विदेश में रह कर भी अपनी मिट्टी से जुड़ाव और हिन्दी के लिए आपका योगदान प्रसंशनीय भी है और अनुकरणीय भी ...

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  27. आसन के नीचे पाँव धरा मैं दुर्गा;जला दी गई,मैं लक्ष्मी;बेच दी गई,और मैं सरस्वती;ले जाई गई किसी तहख़ाने मेंजहाँ,
    नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं पर ऊपर आने की एक भी नही...


    एक कठोर सच और सच की सुन्दर प्रस्तुति...

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  28. यही है पुरुष का मापदन्ड एक ओर स्त्री को देवी कहना और दूसरी ओर उसे प्रताड़ित करना ।

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  29. जहाँ,
    नीचे जाने की सीढ़ियाँ तो बहुत थीं
    पर ऊपर आने की एक भी नही...
    sachmuch...

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  30. सही कहा ..
    स्त्री ही नहीं स्त्री-मिथकों / प्रतीकों को लेकर भी स्थिति
    वही दिखती है , पक्षपाती !
    सुन्दर भाव .. सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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