Friday, April 23, 2010

टाँग अड़ाने की अदा ....

आज एक पुरानी पोस्ट डाल रही हूँ...उम्मीद आपको पसंद आएगी...



कल से एक एक कहावत है या मुहावरा मेरे दिमाग में उमड़ घुमड़ रहा है....'टाँग अड़ाना' ..सुनने  में कितना आसान लगता है...सोचो तो एक दृश्य सामने आता है ...किसी ने अपनी टाँग आड़ी कर के लगा दी...अब ऐसा है कि किसी की टाँग अगर हमारे सामने आ जाए तो ज़ाहिर सी बात है ..हमारी गति रुक जायेगी.....अब आप कल्पना करके देखिये ज़रा ...आपने अपनी टाँग किसी के  सामने कर तो उसकी तो  ऐसी की तैसी हो जायेगी ना....!!

ज़रा एक बार फिर इसे सोचें ...आपके दिमाग में एक शारीरिक भंगिमा उभर आएगी...एक बिम्ब बनेगा.....इसे सोचने से दृश्य सामने आया कि आपने अपनी टाँग किसी के सामने कर दी...लेकिन क्या सचमुच ऐसा है...दृश्य और अर्थ  में काफी फर्क  है...कोई तालमेल नहीं....यह सिर्फ सुनने में ही आसान लगेगा लेकिन इसका अर्थ बहुत गहन है...इसी  से मिलता जुलता  एक और दृश्य अभी अभी दृष्टिगत हुआ है...लंगी मारना....इसकी अगर विवेचना करें तो जो दृश्य सामने आता है...उसमें एक ने दूसरे  की टाँग में अपनी टाँग  फ़सां दी और दूसरा व्यक्ति चारों खाने चित्त...अब ज़रा दोनों कहावतों पर गौर करें तो पायेंगे कि...टाँग अड़ाना एक स्थिर प्रक्रिया  है जबकि लंगी मारना एक गतिमान प्रक्रिया...

अब इस महाशास्त्र की विवेचना को जरा आगे लिए चलते  हैं और सोचते हैं कि आखिर इस 'टाँग अड़ाने'  का सही अर्थ क्या  है...तो इसका सार्वजनिक अर्थ है... अनावश्यक हस्तक्षेप करना...आप चाहे न चाहें और ज़रुरत हो कि न हो....आपने अपनी टाँग अड़ा दी.....यह  प्रक्रिया व्यक्ति विशेष की पसंद-नापसंद पर भी निर्भर है...अब कोई ज़रूरी नहीं कि आप जिस विषय को 'टाँग अडाऊ' सोच रहे हैं ..मैं भी उसे वैसा ही सोचूं...यह पूरी तरह टाँग अड़ाने वाले की इच्छा, सुविधा और ज़रुरत पर निर्भर करता है....
कोई ज़रूरी नहीं है कि... यह एक ज़रुरत हो, यह एक शौक़ भी हो सकता है...या फिर आदत या फिर बिमारी...हाँ शौक़ जब हद से बढ़ जाए तो यह एक बीमारी का रूप ले लेता है...और तब बिना टाँग अड़ाए... उस व्यक्ति को आराम ही नहीं मिल पाता है....

कुछ लोग तो टाँग अड़ाना अपनी राष्ट्रीय, या सामाजिक जिम्मेवारी भी समझते हैं...बल्कि इस काम के लिए वो अपना काम-धाम छोड़ कर पूरी तन्मयता के साथ 'टाँग अड़ाने' की नैतिक जिम्मेवारी निभाते हैं...

टाँग अड़ाने की भी अपनी एक शैली  है...कुछ तो सीधा अपनी टाँग अड़ा देते हैं और फिर उनकी ख़ुद की टाँग अथवा  शरीर के अन्य अंगों पर भी मुसीबत आ जाती है....इसलिए इस प्रक्रिया में सावधानी की बहुत आवश्यकता होती है....
कुछ लंगी मारने में विश्वास करते हैं...लंगी मारना ज्यादा दिमागी प्रक्रिया है ...इसकी सफलता के चांस भी बहुत ज्यादा होते हैं....लंगी मारना एक स्वार्थ परक प्रक्रिया है....और बहुत कम लोग लंगी मारने  में पारंगत होते हैं....लेकिन टाँग अड़ाना एक कलात्मक प्रक्रिया है...और इसमें अधिक कलाबाजी देखने को मिलती है...

टाँग अड़ाना विशुद्ध मानवीय वृति है ...और जैसा मैंने बताया ...यह एक कला है....और अधिकांश इस कला के कलाबाज़....जब यह अपनी सीमा पार कर जाए तो लोग यही कहते हैं ...'इसे तो टाँग अड़ाने की बीमारी है' ...अब  ज़रा  सोचिये.... आप क्या है  ??? कलाबाज़ या बीमार ????

27 comments:

  1. टांग अड़ जाये तो अड़ा मानिये
    न अड़े तो चिकना घड़ा मानिये

    बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. टांग फँसाने के बारे में आप की क्या राय है?
    औऱ टांग अ़ड़ाने वालों की फाँस ली जाए तो?

    ReplyDelete
  3. अच्छा लेख है ! वैसे ये मनोवृत्ति भारतीयों में ज्यादा देखने को मिलती है ! खासकर गावों की तरफ ... आप कुछ भी करिये ... कुछ लोग होते हैं जो बस हमेशा तंग अड़ाते रहते हैं !

    ReplyDelete
  4. इसे बांचकर तो हमको अपनी ये पोस्ट याद आ गयी:
    मुश्किलों में मुस्कराना सीखिये,
    हर फ़टे में टांग अड़ाना सीखिये।

    काम की बात तो सब करते हैं,
    आप बेसिर-पैर की उड़ाना सीखिये।

    ReplyDelete
  5. पुरानी पोस्ट बड़े मौके से फिर से लाई गई है.

    ReplyDelete
  6. इस आभासी जगत मे भी कुछ लोग टांग अडाने और फ़ंसाने के अलावा अडवाने और फ़ंसवाने मे बहुते माहिर हैं यानि बिल्कुल मेराडोना के चच्चा हैं...अब नाम तो सब लोग जानते ही हैं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. टांग अड़ाने की ’अदा’
    या फ़िर यूं कहें कि
    टांग अड़ाने वाली ’अदा’
    है तो कुछ पुरानी लेकिन समसामयिक है।

    सर्फ़ के विज्ञापन ’दाग अच्छे हैं’ की तरह ये ’टांग अड़ाने की अदा’ अच्छी है।
    आभार

    ReplyDelete
  8. ये टांग अड़ाने वाली अदा भी खूब है ...:):)

    ReplyDelete
  9. ataang adane kaa andaaz or hnsihnsi men apni baat kehnaa khubsoort andaaz he. akhtar khan akela kota rajasthan

    ReplyDelete
  10. कोई टाँग अड़ाये तो कूद कर निकल लीजिये क्योंकि बहुतों के लिये यह मनोविनोद होता है ।

    ReplyDelete
  11. टांग लड़ गई रे, ब्लॉग्वा में कसक होई बे करी,
    धर्म का छुटवत पटाखा, धमक होई न करी...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  12. bahut khoob Ada ji aapki lekhni ka to jawaab nahi...

    ReplyDelete
  13. अदा जी , टांग अडाने के कई शारीरिक फायदे है, मसलन
    मानसिक संतुष्ठी मिलती है,
    रक्तचाप सही रहता है,
    अपने को बड़ा तीस मारखा समझता है इंसान
    और फलस्वरूप शरीर में खून बढ़ता है !
    मन के अन्दर से हीन भावना दूर होती है !
    इंसान की उम्र बढ़ती है !
    टांग अडाते वक्त अगर सामने वाला गिर पड़े और उसके जेब से पर्स छिटककर दूर जा गिरे तो आर्थिक लाभ की भे संभावना रहती है
    :):)

    ReplyDelete
  14. बढिया सामयिक पोस्ट :-)

    ReplyDelete
  15. वाह!
    मुझे भी एक पुराना ख्याल याद आया मेरा नहीं है.

    "टांग वो टांग के जिस टांग ने दिल टांग दिया,
    और मांग वो मांग के जिस मांग ने दिल मांग लिया"

    ReplyDelete
  16. nice to know the multiple uses of 'taang' by Mr. P C Godiyal.

    ReplyDelete
  17. आपका
    "टांग अड़ाने की अदा" नामक व्यंग्य पढ़ा।
    रोचक एवं प्रभावकारी प्रस्तुति। साधुवाद!
    टांगों पर अपनी एक गजल का एक शेर
    मुझे याद आ गया.......
    ////////////////////////////////
    जिंदगी में कुछ नहीं करिए महज ऐंठे रहिए।
    टांग पे टांग रख आराम से बैठे रहिए ॥
    जो भी आया यहाँ घुसपैठिया बनके आया-
    पैठ जब हो गई तो ठाठ से पैठे रहिए॥
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
    ///////////////////////////////////

    ReplyDelete
  18. आपका
    "टांग अड़ाने की अदा" नामक व्यंग्य पढ़ा।
    रोचक एवं प्रभावकारी प्रस्तुति। साधुवाद!
    टांगों पर अपनी एक गजल का एक शेर
    मुझे याद आ गया.......
    ////////////////////////////////
    जिंदगी में कुछ नहीं करिए महज ऐंठे रहिए।
    टांग पे टांग रख आराम से बैठे रहिए ॥
    जो भी आया यहाँ घुसपैठिया बनके आया-
    पैठ जब हो गई तो ठाठ से पैठे रहिए॥
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
    ///////////////////////////////////

    ReplyDelete
  19. ये टांग अड़ाने वाली अदा भी खूब है

    ReplyDelete
  20. bahut achchha. kabhi samay mile to hamari kavitao par bhi comment kariyega at http://1minuteplease.blogspot.com aap jaise kavio ka comment hamare liye mardarshan ka kaam karega.

    ReplyDelete
  21. गाजर के चित्र और उम्दा पोस्ट ने मुहावरे में जान फूँक दी है!

    ReplyDelete
  22. अरे अत्रे गिरा दिया ना टांग अडा कर, क्या अदा है?

    ReplyDelete