समीर जी, साधना जी, आशू (छोटा बेटा)
टोरोंटो का सफ़र....४ घंटे का रहा...
पहुंचना था हमें समीर जी के घर १ से २ के बीच लेकिन पहुंचे हम लगभग ४ बजे...और जैसी उम्मीद थी कहाँ रुक पाए हमारे लिए ..खा-पीकर डकार मार कर बैठे थे...साइज़-वाइज़ नहीं देखा है...:)
खैर हमारा क्या हम पहुँच गए...वो तो भला हो "अन्नपूर्णा" साधना जी का, बाकायदा उन्होंने हमें भोजन कराया ....बात-बात में पता चला कि मुर्गी हलाल तो कहीं और हुई थी लेकिन देगची में जलवा नशीन समीर जी ने ही किया है उसे...इतनी लज़ीज़ वो जीते जी भला कहाँ होती....!!
रोटी, चावल, आलू गोभी की सब्जी, बंद गोभी की सूखी सब्जी, लोबिया की दाल, चिकेन, रायता, अचार, सलाद इत्यादि-इत्यादि ...भूख के मारे वैसे भी दम निकला जा रहा था और खुशबू यूँ भी जान लेने को तुली हुई थी...बस जी हमने तो भोजन पर धावा बोल दिया....
पहुंचना था हमें समीर जी के घर १ से २ के बीच लेकिन पहुंचे हम लगभग ४ बजे...और जैसी उम्मीद थी कहाँ रुक पाए हमारे लिए ..खा-पीकर डकार मार कर बैठे थे...साइज़-वाइज़ नहीं देखा है...:)
खैर हमारा क्या हम पहुँच गए...वो तो भला हो "अन्नपूर्णा" साधना जी का, बाकायदा उन्होंने हमें भोजन कराया ....बात-बात में पता चला कि मुर्गी हलाल तो कहीं और हुई थी लेकिन देगची में जलवा नशीन समीर जी ने ही किया है उसे...इतनी लज़ीज़ वो जीते जी भला कहाँ होती....!!
रोटी, चावल, आलू गोभी की सब्जी, बंद गोभी की सूखी सब्जी, लोबिया की दाल, चिकेन, रायता, अचार, सलाद इत्यादि-इत्यादि ...भूख के मारे वैसे भी दम निकला जा रहा था और खुशबू यूँ भी जान लेने को तुली हुई थी...बस जी हमने तो भोजन पर धावा बोल दिया....
लम्बा सफ़र, अच्छा भोजन, दिलकश वातावरण, दिलनशीं मौसम, दिलदार साधना जी और दिलेर समीर जी...फिर क्या था..हम भी सोफे में धंसे हुए जो बातों की पिटारी खोल कर बैठे तो यूँ समझिये कि एक से एक, धमाकों और फुलझड़ियों का ज़िक्र होता गया...कभी ताऊ जी की ब्लॉगबस्टर शोले, तो कभी खुशदीप जी के मक्खन की बात, कभी महफूज़ मियाँ का ग़ायब होना, फिर जबलपुर में पाया जाना, उनकी टी-शर्ट, और अमेरिका में सम्मान, तो कभी झा जी की टंकी, कभी दाराल साहेब का दराल्नामा, कभी पाबला जी का वो मेरी खिड़की से झांकना, कभी ललित जी की मूंछें, कभी वाणी और मैं एक हैं इसपर शक, कभी गिरिजेश जी की वर्तनी सुधार, कभी संगीता जी का ज्योतिष और कभी फुरसतिया जी के लेखन की तारीफ, मतलब ये कि बस अविरल ब्लॉग धारा बहती रही....इतनी कि याद ही नहीं रहा मेहमानों के आने का समय भी हो गया था, और हमें अपना साज सामान भी लगाना था...महफ़िल जो थी रात की ...खैर सबकुछ समय से हो गया और शाम-ए-महफ़िल सज गयी,
मुझे और संतोष जी को तो गाना ही था, समीर जी ने अपनी कविता स-स्वर सुनाई, कविता तो बहुत-बहुत अच्छी थी... और सुर..!! ठीके-ठाक है.....सुर में थोड़ी बहुत टंकण त्रुटि हैं.....लेकिन झेलनीय है ....सो झेल लिए खुदा भी आसमान में जब सुनता होगा, तो अब ख़ुश होके सुन लेता होगा..... :)
साधना जी ने भी समीर जी की कविता सुर के साथ सुनाई....जिसे सबने दिल खोल कर पसंद किया...बहुत ही सुन्दर गाया साधना जी ने....ये तो उस कविता कि खुशकिस्मती कहेंगे कि उसे साधना जी का स्वर मिला...वर्ना...आप समझ ही रहे होंगे मैं क्या कहना चाहती हूँ ...:)
मैंने भी अपनी कवितायेँ सुनाई...जब मैं सुना रही थी और लोग वाह-वाह कर रहे थे...तब कहीं किसी को कुछ हो रहा था, लेकिन मैंने ध्यान नहीं देना ही उचित समझा ...:) अब ऐसा है कि मेरे साथ ये होता ही रहता है....हाँ नहीं तो...!!
ये महफ़िल रात २ बजे तक चली...
और हम रात ३ बजे के करीब बिस्तर के हवाले हुए...
सुबह जब उठ कर नहा-धो कर मैं नीचे पहुंची तो देखती हूँ कि ब्लॉग टाइकून हरी मिर्च काट रहे है....मैं उनका यह रूप देख फट से वहीँ नत-मस्तक हो गयी... सर्वश्रेष्ठ ब्लाग्गर आभा मंडल अपने चारों ओर लिए हुए और करछुल भांजते हुए जो उन्होंने लेमन चवाल बनाया ...उसके लिए सारे उपमा-उपमेय तेल लेने चले गए....अगर ये लेमन चावल पोस्ट हो जाती तो निःसंदेह २०० टिप्पणियों और २०-३० चटकों के साथ टॉप पर आ ही जाती...हम उस वक्त चटके नहीं लगा पाए लेकिन चटखारे तो लगा ही आये....आहा आहा ...
हम तो बस ये रूप देखते जाते और सारे गुर अंटी में बाँधते जाते थे...कि क्या पता कौन सा नुस्खा ब्लॉग्गिंग में कब काम आ जाए....
फिर ब्लॉग गोड फादर विराजमान हुए अपने सिंहासन पर ...और उसी मुस्तैदी से जिस मुस्तैदी से ऊ करछुल भाँज रहे थे अब माउस भांजने लगे....हमने BUZZ की बात की, हिंदी के विकास के लिए अपने resources मिलाने की बात की, न जाने कितने आइदिआस पर बातें होती रहीं समीरजी और संतोष जी के बीच ....और ये वादा लिया-दिया गया कि आगे भी इन बातों पर अमल किया जाएगा... कुछ करना ही होगा, जो सार्थक होगा...
लगे हाथों समीर जी के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेर की बात भी खुल कर सामने आ गयी...हम दांतों तले ऊँगली दबाने ही लगे थे ...कि वो खुशनसीब छम से सामने ही आ गयी....देखा तो श्याम वरण, चपल-चंचल, बड़ी-बड़ी आँखों वाली गिलहरी थी जिससे समीर जी रोज आँख मटका किया करते हैं...और मूंगफली बतौर पटाने के लिए दिया करते हैं...साधना जी ने बताया कि आज कल उन दोनों
में नहीं बन रही है....बने कि न बने हमरे दिल में काहे को साँप लोटेगा भला...!!
थोड़ी देर में हमने brunch किया और वो ही कहावत चरितार्थ करते हुए वहां से ओट्टावा के लिए रवानगी की राय ले लिए....गंजेड़ी यार किसके खाए पिए खिसके....
थोड़ी देर में हमने brunch किया और वो ही कहावत चरितार्थ करते हुए वहां से ओट्टावा के लिए रवानगी की राय ले लिए....गंजेड़ी यार किसके खाए पिए खिसके....
घर आकर सोच रही हूँ....साधना जी और समीर जी से क्या सचमुच हम पहली बार मिले...ऐसा तो कुछ भी नहीं था जो पहली बार मिलने में होता है, अगर कुछ था तो बस ढेर सारा अपनापन, छटका भर-भर सम्मान और अंचरा भर-भर प्यार...
समीर लाल...सचमुच....ठंडी हवा का झोंका....हाँ नहीं तो...!!!
समीर लाल...सचमुच....ठंडी हवा का झोंका....हाँ नहीं तो...!!!
ReplyDeleteऔर हाँ देखिये ना यहाँ तक ठंडक पहुँचने लगी.
और फिर खाद्य पदार्थों का इतना विस्तृत विवरण उफ़! मुँह में पानी आ गया.
भाग्यशाली हो,दादा से मिलना निसंदेह सुखद अनुभव रहा होगा.आपने लिखा उस मुलाकात के बारे में यूँ लगा जैसे मैं भी वहीं कहीं हूँ आप लोगों के आस पास.
ReplyDeleteदादा इतने बड़े ब्लोगर है,पहले मुझे नही मालूम था,मैं जिन्हें जानने लगी थी वो एक बेहद प्यारा इंसान था .वे इतने बड़े ब्लोगर न भी होते तों भी मेरी सेहत पर कोई फर्क नही.आप लोगों ने एक कवि,एक ब्लोगर को देखा,जाना.
मैंने देखा वो एक प्यारा सा बेटा है और ममतामयी माँ है और उनके उसी रूप को खूब प्यार करती हूँ,सम्मान देती हूँ.आज जैसे उनसे मिल ली मैं .
आपकी लेखनी?
अंगुली पकड़ कर ले गई जैसे उस सब के आमने और क्या कहूँ ?
आप भी न...एक कवि से क्या राग भैरवी गाने की उम्मीद लगायें थी जी...हा हा!! :)
ReplyDeleteबहुत आनन्द आया महफिल में और आपके, सतोष जी और बिटिया के आने से.
बकिया तो आपने तारीफ कर ही दी है. :)
अदा जी, रिपोर्ट समीर साहब के ब्लाग पर भी पढ़ ली और आपके ब्लाग पर भी। रिपोर्टिंग और प्रतिभा के मामले में मुकाबला एक्दम टक्कर का था।
ReplyDeleteये मुकाबला WWF जैसा ही रहा होगा न?
पर फ़ोटो समीर साहब की ज्यादा बढ़िया हैं, मेरा मतलब है समीर साहब वाली ज्यादा बढ़िया हैं, मेरा मतलब है आप की भी अच्छी हैं, मतलब..।
रोचक संस्मरण।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अदा जी, रिपोर्ट समीर साहब के ब्लाग पर भी पढ़ ली और आपके ब्लाग पर भी।
ReplyDeletebahut hi shaan dar tarike se parastut kiya ha.
ReplyDeleteआभासी दुनियां ने इस कदर जोड़े रखा है कि मुलाकात होने पर अनभिज्ञता का सवाल ही नहीं होता..!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतर संस्मरण ।
आभार..।
रोटी, चावल, आलू गोभी की सब्जी, बंद गोभी की सूखी सब्जी, लोबिया की दाल, चिकेन, रायता, अचार, सलाद इत्यादि-इत्यादि ..
ReplyDeleteबस भी कीजिये मैडम...
काहे उधर बैठे बैठे जान लेने पर तुली हैं.....?
@ समीर जी...
शायद आपको याद हो ना हो..अपने वायदा किया था..''बिखरे मोती'' को अपने हस्ताक्षर सहित भेंट करने का...जब आप आयेंगे...
अब उस वायदे में थोड़ा और इजाफा कर लीजिये.....
बोले तो ....खाली किताब हस्ताक्षर से बात नहीं बनेगी अब...
आपको ''हस्ताक्षर'' किचन में भी करने पडेंगे..
बोले तो...
हां नहीं तो....
घर आकर सोच रही हूँ....साधना जी और समीर जी से क्या सचमुच हम पहली बार मिले...ऐसा तो कुछ भी नहीं था जो पहली बार मिलने में होता है, अगर कुछ था तो बस ढेर सारा अपनापन, छटका भर-भर सम्मान और अंचरा भर-भर प्यार...
ReplyDeleteसमीर लाल...सचमुच....ठंडी हवा का झोंका....हाँ नहीं तो...!!!
YH VRITTANT HM LONGO KO BHEE BHA GYA.
क्या बात है ...आज कल मिलने मिलाने का दौर चल रहा है ...
ReplyDeleteरोचक शैली में लिखा गया संस्मरण आपके साथ सैर पर ले गया ...
समीर जी कविता और हिंदी के प्रचार के साथ किचन में भी हाथ चला लेते हैं ...वैसे ज्यादातर सेहतमंद (भगवान् बुरी नजर से बचाए )लोग खाना बनाने के शौक़ीन भी होते ही हैं ...अब उनके लिए इतना सारा खाना रोज रोज कौन पकाएगा .. .साधना जी तो साक्षात् अन्नपूर्ण है है ...तभी तो ....:):)
और आप ...मुझे संतोष जी की दूसरी फोटो दिखा कर भरमाया गया था(गलत बात है ) ...ये तो अच्छा हुआ कि .....(ये ब्लैंक्स चैट पर भरे जायेंगे )... :):)
@.जब मैं सुना रही थी और लोग वाह-वाह कर रहे थे...तब कहीं किसी को कुछ हो रहा था, लेकिन मैंने ध्यान नहीं देना ही उचित समझा ....किस को क्या हो रहा था ...अब बता भी दीजिये ..वर्ना लोग क्या क्या कयास लगाते रहेंगे ...
@ढेर सारा अपनापन, छटका भर-भर सम्मान और अंचरा भर-भर प्यार...
बहुत है यही जीने के लिए ...नहीं क्या ...
कुल मिलकर बहुत अच्छा लगा आपका यह संस्मरण ...ऐसी मुलाकाते होती रहे ...:):)
अदा जी,
ReplyDeleteक्या समीर जी की कल वाली पोस्ट कम थी जो आज हमें और जलाने-भुनाने के लिए आपने ये एक पोस्ट और लिख मारी...आप यही बताना चाहती हैं न कि इस तरह की महफ़िल में हिस्सा लेने का मौका नसीब वालों को ही मिलता है...चलो मैं न सही मेरा मक्खन तो शरीक हुआ इस मौका-ए-ख़ास में...
और गुरुदेव समीर जी, वो मिर्ची इसी लिए काट रहे थे कि सबको ये गाना सुना सकें...
सबको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं...
जोक्स अपार्ट...ये गर्मजोशी, स्नेह देखकर यही कहने को मन करता है...चश्मेबद्दूर
जय हिंद...
वाह वाह वाह,
ReplyDeleteमजा आ गया मुर्गी वाला प्रकरण सुनकर,
(जीते जी लजीज क्यों नही हुई)हा हा हा
क्या बात है? अच्छी दृश्यावली खींची है आपने,
बधाई,
बेहतरीन। लाजवाब।
ReplyDeleteअदा जी , मज़ा आ गया , यह वृतांत पढ़कर। लगा जैसे हम भी वहीँ बैठे हुए हैं। वैसे भी पिछले साल जुलाई में हम वहीँ थे । बस बेसमेंट में नहीं , लिविंग रूम में बैठकर बैठक की थी और कविताओं का दौर चला था।
ReplyDeleteसाधना जी के खाने का तो ज़वाब ही नहीं ।
और आपने तो सारा ब्लॉग जगत ही चर्चा कर डाला । बहुत बढ़िया रहा ये मिलन। बधाई।
अदा जी , मज़ा आ गया , यह वृतांत पढ़कर। लगा जैसे हम भी वहीँ बैठे हुए हैं। वैसे भी पिछले साल जुलाई में हम वहीँ थे । बस बेसमेंट में नहीं , लिविंग रूम में बैठकर बैठक की थी और कविताओं का दौर चला था।
ReplyDeleteसाधना जी के खाने का तो ज़वाब ही नहीं ।
और आपने तो सारा ब्लॉग जगत ही चर्चा कर डाला । बहुत बढ़िया रहा ये मिलन। बधाई।
ये संस्मरण पढकर ....ऐसा प्रतीत ही नहीं हुआ की हम वहाँ मौजूद नहीं थे .
ReplyDeleteई ब्लागर मीट जबरदस्त तो रहनी ही थी. हमने तो इससे एक दिन पहले ही घोषणा कर दी थी.:)
ReplyDeleteआपकी लेखन की रोचक शैली पढकर हैरान हूं कि आप गद्य भी इतना जबरदस्त प्रवाह में लिखती हैं. गीत गायन से इतर यह संस्मरणात्मक आलेख बहुते पसंद आया. तो एक बार और पढना ही पडेगा.
रामराम.
Wow Blessed moments doston
ReplyDeleteGreat!!
समीर लाल जी नाम के पूरक निकले जी। जबलपुर के लोग तो समीर को लाल कहते ही हैं, आपने तो समीर..को ठंडी हवा का झोंका कहकर और नाम पूरक बना दिया।
ReplyDeleteचलते चलते : कुछ पंक्तियाँ
जब भैया बोलकर छुप जाती हैं बहनें, तो अक्सर हैप्पी जैसे भाई बुरा मनाते होंग़े।
अदा जी और शैल जी आप भी तैयार रहें मेहमान निवाजी के लिए समीर जी और साधना जी अतिथि आते होंगे।
वाह ! ब्लॉगजगत के दो दिग्गज एक जगह पर. वो जगह तो फिर ब्लॉगतीर्थ बन गई होगी.
ReplyDeleteअदाजी, क्या बात है? जैसे ही शीर्षक पढ़ा, फिल्म याद आ गयी और ठंडी हवा का झोंका भी। खैर छोडिए यह सब। आपका गद्य लेखन बहुत अच्छा है, इसका प्रयोग अधिक करें। ऐसे ही उदयपुर कब आ रही हैं? भाई मुर्गी-वुर्गी तो हम खाते नहीं तो कंद फल मूल ही खिला पाएंगे। बस उठाइए गाड़ी और चले आइए। हम भी आपको सुनने को बेताब हैं। और अपनी सुनाएंगे भी नहीं, क्योंकि गायकी तो हमारी सात पीढियों में भी नहीं है।
ReplyDeleteसमीर जी के ब्लॉग पर भी आपलोगों के इस अद्भुत मिलन का ब्यौरा पढा .. आपने भी एक एक करके सारी बातों की इतनी सुंदर रिपोटिंग की आपने .. ब्लॉगिंग की वजह से एक दूसरे को पढते हुए शायद हम सब अपने को इतने करीब महसूस करते हैं .. कि मिलने पर ऐसा नहीं महसूस होता है कि हम पहली बार मिल रहे हैं .. बहुत धन्यवाद !!
ReplyDeleteKitna badhiya warnan kiya hai! Kuchh derke liye mujhe mahsoos hua, maibhi saamne baithi sab kuchh dekh sun rahi hun....bas kha nahi pa rahi!
ReplyDeleteांब तो लगता है कि हमे भी समीर जी का न्योता स्वीकार करना पडेगा। देखते हैं।
ReplyDeletesameer naam yun hi thode hi hai.......han nahi to..........aapki dastan padhkar to yun laga jaise hum bhi wahin mojud the.
ReplyDeleteवाह, आपसे तो ईर्ष्या सी हो रही है। बहुत बढ़िया समय बिताकर आईं हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
रोचक संस्मरण।
ReplyDeleteतुम्हारे रिपोर्ट का इंतज़ार ही हो रहा था, और सारी बातें तो समीर जी, के पोस्ट से पता चल गयी थीं. पर यह खाने -पीने का वर्णन और उनकी गर्लफ्रेंड गिलहरी के बारे में तो तुम ही बता सकती थी...एक तो वे होस्ट थे और दूसरे अपने अफेयर की चर्चा यूँ खुलेआम कैसे करते :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा समय बिताया तुमलोगों ने...और तुम्हारा और साधना जी का गाना और दोनों लोगों का कविता पाठ...महफ़िल गए रात तक तो चलनी ही थी...सुन्दर तस्वीरें हैं
वाह वाह ..हां नहीं तो ..एकदम से कमाल का रिपोर्ट रहा जी ई तो एकदम से धांसू वाला ..और खा खा कर इतना गाए हैं सुनाए हैं आप लोग कि बस समझ नहीं आ रहा है कि कौन बात पर फ़ुंक जाए ...खाना छूट गया ई बात पर कि गनवा नहीं सुने । ओईसे तो वीडियों शिडियो का वादा किए ही हैं ठंडी हवा जी ....बहुत सारा पोल खोल हुआ । मजा आ गया .....सच में हां नहीं तो ...
ReplyDeleteअजय कुमार झा
ठंडी हवा का झोका कह कर समीर जी के नाम को आपने सार्थक कर दिया आपने अपने वर्णन से.
ReplyDeleteहम सब रोज ब्लोग्स पर इतना गपियाते है कि जब भी पहली बार मिळते हे तो लगता ही नही
कि ये पहली मुलाकात है. अच्छा लगा ये सब पढ कर. और समीर जी के परिवार को चित्रो
में देख कर...लेकिन मैं एक बात सोच सोच कर हैराण हू और पारेषण हू कि अदा दी...
आपके दांत कहा गये????कहीं गिल्हेरी तो नही खा गयी.??? (हा.हा.हा.)
उमंगियत बिछी रहे कनाडा में ।
ReplyDeleteसच में बेहद अविस्मरणीय पल रह होगा ,जब हम लोगों को यहं से प्रतीत हो रहा है तो वहाँ क्या हाल रहा होगा
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
लेमन राइस की रेसीपी पोस्ट की जाए और जो कविताएं सस्वर सुनाई गयी वो हमें भी सुनाई जाएं। :)
ReplyDeleteलगे हाथों समीर जी के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेर की बात भी खुल कर सामने आ गयी...हम दांतों तले ऊँगली दबाने ही लगे थे ...कि वो खुशनसीब छम से सामने ही आ गयी....देखा तो श्याम वरण, चपल-चंचल, बड़ी-बड़ी आँखों वाली गिलहरी थी जिससे समीर जी रोज आँख मटका किया करते हैं...
ReplyDeleteसानिया मिर्ज़ा के बाद ये स्कैंडल.......?
अखबारों /रोजिया चैनल्स की नज़र न पडी वरना.....
main un palon kee khushi ko mahsoos kar sakti hun, aur bhai khana to laajwaab menu hai........
ReplyDeleteहरी मिर्च काटने का किस्सा पुराना है
ReplyDeleteउनमें निकले बीजों को ही तो बदलते हैं
वे बाद में टिप्पणियों में और कर आते हैं
पोस्टों पर चस्पा
और उनका असर मीठा रहे
इसके लिए देते हैं उन बीजों को
एक बार चीनी की चाशनी में पगा।
ये है उड़नतश्तरी टिप्पणी सीक्रेट।
"फिर ब्लॉग गोड फादर विराजमान हुए अपने सिंहासन पर ..." सही उपमा दी है जी ! समीर जी पर फिट है !
ReplyDeleteमज़ेदार और रोचक प्रसंग!
ReplyDeleteरोचक ...मनभावन ...दिलकश ...सुंदर संस्मरण । समीर लाल जी के व्यक्तित्व को नजदीक से परिचित करवाने के लिए धन्यवाद ।
ReplyDeleteजीवंत विवरण. हमने भी व्यंजनों का भरपूर स्वाद लिया...बधाई.
ReplyDeleteअदा जी बहुत अच्छा लगा आप को आज पढना, विदेश मै कोई अपना सा मिले तो खुशी बेईंताह होती है, बहुत अच्छा लगा यह मिलन... धन्यवाद
ReplyDeleteहिन्दुस्तान से बाहर कुछ सच्चे हिंदुस्तानियों का मेल मिलाप और हिन्दी की कविता..सब कुछ लाज़वाब.. हम जैसे हिन्दी प्रेमी को बहुत अच्छा लगा यह संस्मरण..धन्यवाद अदा जी!!
ReplyDeleteवाह अदा जी,
ReplyDeleteआपने तो समीर जी की मेहमान नवाजी के झंडे गाड़ दिए....आपका ये संस्मरण बहुत बढ़िया है....वैसे आधी बात तो समीर जी की पोस्ट से ही पता चल गयी थी....बस ये ठंडी हवा का झोंका यूँ ही प्रवाहित होता रहे.....
रोचक !
ReplyDeleteपरिवारिक मीट-संगीत संध्या के लिए बधाई हो |
ReplyDeleteहम तो आपके कलेजे की दाद देते हैं जो समीरलाल के दो गाने एक साथ झेल लीं और इसके बाद पोस्ट लिखने की हिम्मत की। जय हो!
ReplyDeleteसमीरलाल के गायन पर हमने कभी लिखा था -समीरलाल को पता है कि दुनिया सुरीली आवाजों से ऊबकर जस्ट फ़ार अ चेंज ही सही बेसुरे की फ़रमाइश करेगी सो जहां मौका मिलता है गाने लगते हैं। इसीलिये वे हमसे बहुत जलते हैं कि जित्ता बेसुरा वो मेहनत करके पसीना बहाकर गा पाते है उत्ता तो हम बायें हाथ से गा देते हैं। पूरा जोर लगा दें तो प्रलय हो जाये! इसीलिये लगाते नहीं। भगवान कुनमुनाने लगेंगे कि हमारा धंधा चौपट करते हो! :)
इसके बाद से हम जब भी समीरलाल का गायन सुनते हैं हमेशा कान बंद करके और वोल्यूम म्यूट करके। ऐसा करते हुये समीरलाल को सुनने का अनुभव अद्भुत है।
आपका अंदाजे बयां बेहतरीन है। बिन्दास! आवाज आपकी मधुर है ही। अपने गाने सुनाइये! अपनी कवितायें हमेशा साथ में पाडकास्ट करके पोस्ट किया करिये अगर समय मिले। ये वाली पोस्ट पाडकास्ट करके पोस्ट करिये! आवाज के उतार-चढ़ाव के साथ कमेंट्री सुनना मजेदार होगा।
तीन दिन बाद टिपिया रहे हैं और फ़रमाइशें इत्ती सारी! आप भी सोचेंगे बड़े आये फ़रमाइश करने वाले!
हां नहीं तो! तो आपका ट्रेड मार्क टाइप गया है। मजेदार है।
कनाडा में वैसे भी मौसम बर्फ़ीला रहता है। वहां आपको समीरलाल ठंडी हवा का झोंका जैसे लगे। मतलब करेला ऊपर से नीम चढ़ा। आपकी बात देखिये हम सही समझे। बाकी लोग समझ ही नही पाये!
है कि नहीं!
शानदार, बिन्दास संस्मरणात्मक पोस्ट- हां नहीं तो (हां नहीं तो- अदा जी से शून्य ब्याज दर पर कभी वापस न लौटाने वाली योजना के तहत उधार लिया गया तीन शब्द का वाक्य !)
बेहतरीन संस्मरण ! विवरण भी जानदार । आभार ।
ReplyDelete