वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, ठहर जायेंगे
तब सोचेंगे लोग कि वो किधर जायेंगे
वो शहर बस गया है सहर से पहले
वो शहर बस गया है सहर से पहले
ये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
पहुँचे हैं कगार पर, आस है बाकी
यकीं है ये दिन भी सुधर जायेंगे
शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं गेसू मेरे
ग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
यकीं है ये दिन भी सुधर जायेंगे
शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं गेसू मेरे
ग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
उम्मीद के हंगामों में शामिल है 'अदा'
नज़र भर देख लो हम निखर जायेंगे
शानदार...
ReplyDeleteआजकल बहुत शानदार रचनाएँ आ रही हैं आपकी तरफ से.
nice
ReplyDeleteबहुत बढ़िया........
ReplyDeleteअभी सुबह सुबह आंख खुलते सबसे पहले आपकी ही रचना देख रहा हूँ.....दिल खुश हो गया उम्मीद है दिन भी अच्छा जाएगा.....काफी उम्दा रचना है .... बधाई.
दौड़ते से रस्ते हैं....
ReplyDeleteक्या बात है और यहाँ तो गजब ही कर दिये हैं..
नजर भर देख लो, हम निखर जायेंगे ।
रास्ते दौड़ रहे हैं! वाह!
ReplyDeleteवाह ! सुन्दर ग़ज़ल है ! मुझे यह शेर वाकई बहुत अच्छा लगा ....
ReplyDeleteपहुँचे हैं कगार पर,पर आस है बाकी
यकीं है ये दिन भी सुधर जायेंगे
बहुत खूब लिखा है जी,
ReplyDeleteबरबस ही जगजीत सिंह की गाई गज़ल याद आ गई,
"आपको देखकर देखता रह गया--
ऐसे बिछड़े सभी रात के मोड़ पर,
आखिरी हमसफ़र रास्ता रह गया"
मंजिल की तलाश में रास्ता बहुधा उपेक्षित रह जाता है।
पढ़कर बहुत अच्छा लगा,
आपकी आवाज में कभी इन्हें सुनना तो बहुत ही अच्छा लगेगा। (सुझाव भी है और फ़रमाईश भी)
आभार।
बेहतरीन रचना ........
ReplyDeleteदी की कल्पना नू मैं भी पहुंचू ........गर ऐसा दीदी सिखला दे तो ..................
ReplyDeleteवो शहर बस गया है सहर से पहले ये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे .............दी बस ऐसे ही आपका रास्ता कभी को नहीं सकता.........
बहुत खामोश रहे तेरी गली, बस देखते रहे
ReplyDeleteकभी जाना नहीं कि यूँ भी कुछ कह पाएँगे।
नजर भर देख लो ...
ReplyDeleteहम निखर जायेंगे ...
क्या बात है ...
पहुंचे हैं कगार पर
आस बाकी है ..
आस है तो सांस है ...
अच्छी ग़ज़ल ...!!
वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, ठहर जायेंगे
ReplyDeleteतब सोचेंगे लोग कि वो किधर जायेंगे
बहुत ख़ूबसूरत बंदिश है ! ठहरे हुए रास्तों से हमेशा ठहरने की ही अपेक्षा सबको क्यों होती है ! हमारे आवेगों और संवेगों के साथ ये सदैव दौड़ते से क्यों लगते हैं ! इन सवालों के जवाबों की मुझे भी तलाश है ! ख़ूबसूरत भावपूर्ण रचना के लिये बधाई एवं आभार !
शिद्दते-गम से परेशान हैं गेसू मेरे..
ReplyDeleteकर लें...
शिद्दत-ए-ग़म से परेशाँ हैं मेरी ज़ुल्फ़
ग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
पहली लाइन में जुल्फ--स्त्रीलिंग है...और दूसरी में ( संवर जायेंगे )
अलग सा लग रहा है...है ना....??
अब अगर हम जुल्फों को गेसू कहें...तो दूसरी लाइन जिसमें ( संवर जायेंगे ).. यानी पुल्लिंग आया हुआ है...
तो जुल्फें संवर जायेंगे के बजाय गेसू संवर जायेंगे हो जाएगा...जो कि ज्यादा सही है....
@मनु जी,
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका..
सुधारने के लिए..
@ जुल्फ
ReplyDeleteमैंने देखा था लेकिन 'कटुक बचन जब सीता बोला...' सोच कर चुप रहा।
:)
वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, ठहर जायेंगे
ReplyDeleteतब सोचेंगे लोग कि वो किधर जायेंगे
आपने तो बहुत ही सहजता से जीवन का फलसफा बयान कर दिया!
एक उम्दा ग़ज़ल.
ReplyDeleteहमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
ReplyDeleteख़ूबसूरत भावपूर्ण रचना के लिये बधाई एवं आभार !
ReplyDeleteचर्चा में शामिल करने के लिए शुक्रिया ! आप सब उत्साह देते रहे तो में भी कमर बाँध के लगा रहूँगा !
ReplyDeleteआपके इस रचना पर मेरी राय मैं पहले ही दे चूका हूँ !
बहुत सुंदर रचना, लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम.
देख लिया जी
ReplyDeleteउम्मीद के हंगामें बेहतरीन प्रयोग है ।
ReplyDeleteये पोस्ट पढ़कर राज़ फिल्म का ये गाना ज़ेहन में गूंजने लगा...
ReplyDeleteआप के, प्यार में, हम संवरने लगे,
देख के, आप को, हम निखरने लगे,
इस कदर आप से हम को, मुहब्बत हुई,
टूट के बाज़ुओं में बिखरने लगे,
आप के प्यार में हम संवरने लगे...
जय हिंद...
wow
ReplyDeleteशिद्दते-गम से परेशान हैं मेरे गेसू
ReplyDeleteग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
एक उम्दा ग़ज़ल.
शिद्दते-गम से परेशान हैं मेरे गेसू
ReplyDeleteग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
Bahut khoob !
नज़र भर देख लो हम निखर जायेंगे ....
ReplyDeleteBeautiful expression of love !
badi zabardast gazal likhi hai ada ji...........bahut khoob.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना । यही माहौल बनाये रखिये ।
ReplyDeletebahut sundar rachna
ReplyDeleteshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
वो जो दौड़ते से रस्ते हैं, ठहर जायेंगे
ReplyDeleteतब सोचेंगे लोग कि वो किधर जायेंगे
वो शहर बस गया है सहर से पहले
ये गाँव ये बस्ती अब उजड़ जायेंगे
पहुँचे हैं कगार पर,पर आस है बाकी
यकीं है ये दिन भी सुधर जायेंगे
शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं मेरे गेसू
ग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
उम्मीद के हंगामों में शामिल है 'अदा'
नज़र भर देख लो हम निखर जायेंगे
BAHUT SUNDAR RACHNA
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है । एकदम परफेक्ट।
ReplyDeletebahut hi shandar likha...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
वाकई ये है अदा जी का कलाम।
ReplyDeleteशिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं मेरे गेसू
ReplyDeleteग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
वाह! अदा जी,
कमाल का कलाम,
इस रचना को मेरा भी सलाम:
"माना तुम्हें मिल जायेगी मन्ज़िल,जो मिला हमकदम,
जो पहुंच के मन्ज़िल पे भी भटके है,वो किधर जायेंगे."
kamaal ka likha hai Adaa Ji
ReplyDelete-Shruti
वाह! वाह!
ReplyDeleteउम्मीद के हंगामों में शामिल है 'अदा'
ReplyDeleteनज़र भर देख लो हम निखर जायेंगे
yar aur kitta nikhrogi??????
itna hi bahut hai.
bahut acchhi gazel...
badhayi.
aaj kal aapki qalam to Carl Lewis ki tarah sarpat bhag rahi hai di... bahut hi behatreen pradarshan.. :)
ReplyDeleteitane dino ke baad aaj aapko pada aur maza aagaya ek din fursat se pichali posts bhi padungi.....bahut hi umda gazal!!
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है जी
ReplyDeleteशिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं मेरे गेसू
ReplyDeleteग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे
is sher me kuch gender ki problem hai ..dekhiyega ....ghazal achhi hai ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 17.04.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
खूबसूरत गज़ल है !
ReplyDeleteआप हैं कि लिखे जा रही हैं, हमारी बदकिस्मती देखिए कि पढ़ने का वक्त भी नहीं निकाल पा रहे !
श्रीकृष्ण तिवारी मँजे हुए गीतकार हैं, बनारस के !
उनकी गज़ल में एक शेर है यह भी -
"सामने बैठिए आईने की तरह,
देखकर आपको हम सँवर जाँयेगे !
कोशिश सफल हुई तो पूरी गज़ल का काव्यपाठ पॉडकास्ट करता हूँ !
@ शिद्दत-ए-गम से परेशाँ हैं गेसू मेरे
ReplyDeleteग़र आईना मिल जाए,ये संवर जायेंगे ..
--------- हासिले-गजल सा लग रहा है यह शेर !
पढता आ रहा हूँ तो अब लग रहा है कि आपकी गजलें
स्वयं ही अपना रास्ता ढूंढ रही हैं .. यही सही भी है ..
आभार !