हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
मंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं
बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं
ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो, भगवान् के पहरेदारों सुनो
मोहब्बत की बोली रब की जुबाँ, तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं
तुम पर वो बहारें बरसतीं रहीं, तुम अपने हाथों उजड़ते रहे
क्यों दीदें फटीं हैरानी से, कब आई खिंजां मालूम नहीं
शिद्दत-ए-ग़म से घबरा कर, चुप-चाप यहीं हम बैठ गये
कब दिल के फफोले फूट गए, कब दे दी सदा मालूम नहीं
हम क्या हैं, क्यों हैं, क्या जाने, दिल चाहे वही फ़रमाते हैं
ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं
ReplyDeleteजिसका कुछ पता ही नहीं उसके लिये हम अपना वक्त क्यों जाया करें, निर्विकार अपना काम करते जायें.
बहुत सुन्दर रचना
ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो, भगवान् के पहरेदारों सुनो
ReplyDeleteमोहब्बत की बोली रब की जुबाँ, तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं
Ada ji bahut sundar...karara jawaab sabhi dharm ke thekedaron ko
हम क्या हैं, क्यों हैं, क्या जाने, दिल चाहे वही फ़रमाते हैं
ReplyDeleteकल होंगे, न होंगे दुनिया में, जायेंगे कहाँ मालूम नहीं
-बेहतरीन रचना..बधाई!!
मयंक की चित्रकारी बहुत बढ़िया.
ek behatreen samsaamyik rachna di..
ReplyDelete"हम क्या है, क्यों हैं, क्या जाने, दिल चाहे वही फ़रमाते हैं
ReplyDeleteकल होंगे, न होंगे दुनिया में जायेंगे कहाँ मालूम नहीं"
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
अपनी जगह पर यदि आप ठीक हैं तो, दुनिया की बातों की परवाह नहीं होनी चाहिये।
रचती रहिये आप तो बस ऐसे ही, दिल से और मन से।
सदैव आभारी।
ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो,
ReplyDeleteभगवान् के पहरेदारों सुनो
मोहब्बत की बोली रब की जुबाँ,
तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं
--
अदा जी!
बहुत ही सुन्दर गजल लिखी है आपने तो!
गजल की हर लाइन और हरेक शब्द
नगीने की तरह तराश कर लगाया गया है!
--
मयंक जी को भी सुन्दर चित्रकारी के लिए
शुभकामनाएँ!
जाएंगे पर किधर, है ये कैसी डगर,
ReplyDeleteकोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं,
चलते हैं सब मगर,
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं,
ज़िंदगी का सफ़र...
अर्थ डे पर मंयक की रचनात्मकता का जवाब नहीं...
जय हिंद...
Karaaree chot kee, ada ji !
ReplyDelete"बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
ReplyDeleteतुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं "
यह सबसे खूबसूरत शेर लगा मुझे, और आपकी शख़्सियत के करीब ।
मयंक की चित्रकारी भी बहुत खूबसूरत ! भारत की असली प्रकृति भी यही है ! अनगिन शाखें, अनगिन पत्तियाँ-सब एक दूसरे से संयुक्त, एक भाव संपृक्त !
आभार ।
गहरे भाव लिए हैं संग में बहुत अदा से गजल कही
ReplyDeleteलोग हजारों भटक रहे हैं, क्या खुदा यहाँ, मालूम नहीं
शुभकामनाएं बहन मंजूषा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
ReplyDeleteमंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं
क्या खूब लिखा है आपने. बहुत ही अच्छा. बस मैं और कुछ नहीं लिख सकता.
शिद्दत-ए-ग़म से घबरा कर, चुप-चाप यहीं हम बैठ गये
ReplyDeleteकब दिल के फफोले फूट गए, कब दे दी सदा मालूम नहीं
बहुत खूब अदाजी ! दिल को छू लिया आपकी रचना ने ! अति सुन्दर !
बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
ReplyDeleteतुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं
अदा जी बहत अच्छा व्यंग है.
APNI MAATI
MANIKNAAMAA
हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहींमंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं
ReplyDeleteअदा जी बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...बहुत बढ़िया भाव ...मयंक की चित्रकारी भी सुंदर....धन्यवाद
अदा जी आपके इन सभी प्रश्नो
ReplyDeleteका उत्तर मेरे पास है जैसे कि दूध में
घी होता है परन्तु उसे निकालने की
क्रिया करनी होती है जैसे कि माचिस
में आग होती है पर तीली को रगङना
होता है कितने अफ़सोस की बात है
भारत जिस ग्यान के लिये हमेशा शीर्ष पर रहा
देखे ..
हर घट तेरा सांईया सेज न सूनी कोय
बलिहारी उन घटन की जिन घट्प्रगट होय
आप एक बार कबीर की अनुराग सागर
पङ लें फ़िर आप को सत्संग सुनने की
जरूरत नही होगी
अदा जी आपके इन सभी प्रश्नो
ReplyDeleteका उत्तर मेरे पास है जैसे कि दूध में
घी होता है परन्तु उसे निकालने की
क्रिया करनी होती है जैसे कि माचिस
में आग होती है पर तीली को रगङना
होता है कितने अफ़सोस की बात है
भारत जिस ग्यान के लिये हमेशा शीर्ष पर रहा
देखे ..
हर घट तेरा सांईया सेज न सूनी कोय
बलिहारी उन घटन की जिन घट्प्रगट होय
आप एक बार कबीर की अनुराग सागर
पङ लें फ़िर आप को सत्संग सुनने की
जरूरत नही होगी
बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
ReplyDeleteतुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं
वाह अदा जी ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! हर शेर अच्छा लगा !
बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
ReplyDeleteतुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं
वाह अदा जी ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! हर शेर अच्छा लगा !
Baap re baap! Kya gazabka likhti hain aap!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना..बधाई और शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत नगमा ... सच है ये खुद कहाँ है किसको मालुम ....
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर लगा मयंक का चित्र भी लाजवाब है ...
सुबह से लग रहा था कि कुछ कमी रह गई है आज के कमेंट में, याद आ गया तो दोबारा आना पड़ा।
ReplyDeleteमयंक की प्रशंसा करनी रह गई थी, बहुत सुंदर चित्र बनाया है, हमारी तरफ़ से बधाई स्वीकार भी करें और आगे भी पास-ऑन कर दें।
धन्यवाद।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
nice word selection
ReplyDeletewords selection auchha hai
ReplyDeleteAre ye kalakari dekhna to bhoo hi gaya tha.. bahutei badhia.. :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण है यह ललकार ।
ReplyDeleteख़ुदा के ठेकेदारों सुनो, भगवान् के पहरेदारों सुनो
ReplyDeleteमोहब्बत की बोली रब की जुबाँ, तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं
...उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ..
waah ada ji ... behtareen bhavnayein... badhai...
ReplyDeleteगज़ब की भावभीनी प्रस्तुति और उसके साथ मयंक की चित्रकारी के क्या कहने।
ReplyDeleteबढिया है। मयंक की चित्रकारी शानदार है। इसको अपनी आवाज में सुनवायें!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गजल
ReplyDeleteहम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
ReplyDeleteमंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं
बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं
बहुत सुंदर रचना है...
ghazal laajwaab hai !
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