Sunday, April 25, 2010

कल होंगे न होंगे दुनिया में जायेंगे कहाँ मालूम नहीं ...


हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
मंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं

बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं

ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो, भगवान् के पहरेदारों सुनो
मोहब्बत की बोली रब की जुबाँ, तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं

तुम पर वो बहारें बरसतीं रहीं, तुम अपने हाथों उजड़ते रहे 
क्यों दीदें फटीं हैरानी से, कब आई खिंजां मालूम नहीं

शिद्दत-ए-ग़म से घबरा कर, चुप-चाप यहीं हम बैठ गये
कब दिल के फफोले फूट गए, कब दे दी सदा मालूम नहीं  

हम क्या हैं, क्यों हैं, क्या जाने, दिल चाहे वही फ़रमाते हैं
कल होंगे, न होंगे दुनिया में, जायेंगे कहाँ मालूम नहीं

और अब मयंक की चित्रकारी .....
 

34 comments:

  1. ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं
    जिसका कुछ पता ही नहीं उसके लिये हम अपना वक्त क्यों जाया करें, निर्विकार अपना काम करते जायें.
    बहुत सुन्दर रचना

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  2. ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो, भगवान् के पहरेदारों सुनो
    मोहब्बत की बोली रब की जुबाँ, तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं

    Ada ji bahut sundar...karara jawaab sabhi dharm ke thekedaron ko

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  3. हम क्या हैं, क्यों हैं, क्या जाने, दिल चाहे वही फ़रमाते हैं
    कल होंगे, न होंगे दुनिया में, जायेंगे कहाँ मालूम नहीं

    -बेहतरीन रचना..बधाई!!

    मयंक की चित्रकारी बहुत बढ़िया.

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  4. "हम क्या है, क्यों हैं, क्या जाने, दिल चाहे वही फ़रमाते हैं
    कल होंगे, न होंगे दुनिया में जायेंगे कहाँ मालूम नहीं"
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।


    अपनी जगह पर यदि आप ठीक हैं तो, दुनिया की बातों की परवाह नहीं होनी चाहिये।

    रचती रहिये आप तो बस ऐसे ही, दिल से और मन से।

    सदैव आभारी।

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  5. ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो,
    भगवान् के पहरेदारों सुनो
    मोहब्बत की बोली रब की जुबाँ,
    तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं
    --
    अदा जी!
    बहुत ही सुन्दर गजल लिखी है आपने तो!
    गजल की हर लाइन और हरेक शब्द
    नगीने की तरह तराश कर लगाया गया है!
    --
    मयंक जी को भी सुन्दर चित्रकारी के लिए
    शुभकामनाएँ!

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  6. जाएंगे पर किधर, है ये कैसी डगर,
    कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं,
    चलते हैं सब मगर,
    कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं,
    ज़िंदगी का सफ़र...

    अर्थ डे पर मंयक की रचनात्मकता का जवाब नहीं...
    जय हिंद...

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  7. "बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
    तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं "
    यह सबसे खूबसूरत शेर लगा मुझे, और आपकी शख़्सियत के करीब ।
    मयंक की चित्रकारी भी बहुत खूबसूरत ! भारत की असली प्रकृति भी यही है ! अनगिन शाखें, अनगिन पत्तियाँ-सब एक दूसरे से संयुक्त, एक भाव संपृक्त !

    आभार ।

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  8. गहरे भाव लिए हैं संग में बहुत अदा से गजल कही
    लोग हजारों भटक रहे हैं, क्या खुदा यहाँ, मालूम नहीं

    शुभकामनाएं बहन मंजूषा।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  9. हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
    मंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं

    क्या खूब लिखा है आपने. बहुत ही अच्छा. बस मैं और कुछ नहीं लिख सकता.

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  10. शिद्दत-ए-ग़म से घबरा कर, चुप-चाप यहीं हम बैठ गये
    कब दिल के फफोले फूट गए, कब दे दी सदा मालूम नहीं
    बहुत खूब अदाजी ! दिल को छू लिया आपकी रचना ने ! अति सुन्दर !

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  11. बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
    तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं

    अदा जी बहत अच्छा व्यंग है.
    APNI MAATI
    MANIKNAAMAA

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  12. हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहींमंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं

    अदा जी बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...बहुत बढ़िया भाव ...मयंक की चित्रकारी भी सुंदर....धन्यवाद

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  13. अदा जी आपके इन सभी प्रश्नो
    का उत्तर मेरे पास है जैसे कि दूध में
    घी होता है परन्तु उसे निकालने की
    क्रिया करनी होती है जैसे कि माचिस
    में आग होती है पर तीली को रगङना
    होता है कितने अफ़सोस की बात है
    भारत जिस ग्यान के लिये हमेशा शीर्ष पर रहा
    देखे ..
    हर घट तेरा सांईया सेज न सूनी कोय
    बलिहारी उन घटन की जिन घट्प्रगट होय
    आप एक बार कबीर की अनुराग सागर
    पङ लें फ़िर आप को सत्संग सुनने की
    जरूरत नही होगी

    ReplyDelete
  14. अदा जी आपके इन सभी प्रश्नो
    का उत्तर मेरे पास है जैसे कि दूध में
    घी होता है परन्तु उसे निकालने की
    क्रिया करनी होती है जैसे कि माचिस
    में आग होती है पर तीली को रगङना
    होता है कितने अफ़सोस की बात है
    भारत जिस ग्यान के लिये हमेशा शीर्ष पर रहा
    देखे ..
    हर घट तेरा सांईया सेज न सूनी कोय
    बलिहारी उन घटन की जिन घट्प्रगट होय
    आप एक बार कबीर की अनुराग सागर
    पङ लें फ़िर आप को सत्संग सुनने की
    जरूरत नही होगी

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  15. बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
    तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं
    वाह अदा जी ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! हर शेर अच्छा लगा !

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  16. बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
    तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं
    वाह अदा जी ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! हर शेर अच्छा लगा !

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  17. Baap re baap! Kya gazabka likhti hain aap!

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  18. बेहतरीन रचना..बधाई और शुभकामनाएँ!!

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  19. बहुत ही खूबसूरत नगमा ... सच है ये खुद कहाँ है किसको मालुम ....
    आपके ब्लॉग पर लगा मयंक का चित्र भी लाजवाब है ...

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  20. सुबह से लग रहा था कि कुछ कमी रह गई है आज के कमेंट में, याद आ गया तो दोबारा आना पड़ा।
    मयंक की प्रशंसा करनी रह गई थी, बहुत सुंदर चित्र बनाया है, हमारी तरफ़ से बधाई स्वीकार भी करें और आगे भी पास-ऑन कर दें।

    धन्यवाद।

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  21. बहुत सुंदर
    धन्यवाद

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  22. Are ye kalakari dekhna to bhoo hi gaya tha.. bahutei badhia.. :)

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  23. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है यह ललकार ।

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  24. ख़ुदा के ठेकेदारों सुनो, भगवान् के पहरेदारों सुनो
    मोहब्बत की बोली रब की जुबाँ, तुमको ये जुबाँ मालूम नहीं
    ...उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ..

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  25. waah ada ji ... behtareen bhavnayein... badhai...

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  26. गज़ब की भावभीनी प्रस्तुति और उसके साथ मयंक की चित्रकारी के क्या कहने।

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  27. बढिया है। मयंक की चित्रकारी शानदार है। इसको अपनी आवाज में सुनवायें!

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  28. बहुत ही सुन्दर गजल

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  29. हम उसकी तलब में निकले हैं, मिलेगा कहाँ मालूम नहीं
    मंदिर भी गए मस्जिद भी गए, ख़ुदा है कहाँ मालूम नहीं
    बस नाम हमारा रुसवा हुआ, जब भी इक सच्ची बात कही
    तुम कहते हो हम जैसों को, अंदाज़-ए-बयाँ मालूम नहीं

    बहुत सुंदर रचना है...

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