पिछली एक सदी से
मेरे जज़्बात टाईटैनिक की मानिन्द
उम्मीद के सूखे बर्फ की चट्टान
से टकराते रहे हैं
सारे सपने एक एक कर
दम तोड़ते जा रहे हैं
कोई डूब गया तो कोई ठिठुर गया,
किसी ने छलांग लगा दी,
तो कोई सहम कर घुट गया
पर एक थकी सी कल्पना
अभी तक जिन्दा है
हाथों में टिमटिमाता ख़्वाब लिए
जो किसी भी पल महकने को तैयार है
गीत सुनिए....दिल लगा लिया मैंने तुमसे प्यार करके...
गीत सुनिए....दिल लगा लिया मैंने तुमसे प्यार करके...
कोई डूब गया तो कोई ठिठुर गया,
ReplyDeleteकिसी ने छलांग लगा दी,
तो कोई सहम कर घुट गया
जज्बातो का हश्र अक्सर ऐसा ही होता है. कुछ जज्बात पर किनारा पा ही लेंगे.
सुन्दर -- बहुत सुन्दर रचना
टैटानिक होता है कि टाइटेनिक?
ReplyDeleteहल्के पक्ष से कहें तो अब टाइटेनिक के हीरो हिरोइन मिलें तो गाएँगे,"सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था..."
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लेकिन फिल्म का गुलज़ार का गीत कुछ ऐसा सा है:
मैं एक सदी से बैठी हूँ
इस राह से कोई ग़ुजरा नहीं
कुछ चाँद के रथ तो गुजरे थे
पर चाँद से कोई उतरा नहीं ..
जज़्बात, 'उम्मीद की सूखी बर्फ
', 'टकराना'
सपनों का दम तोड़ना, डूबना, ठिठुरना, छलांग लगाना, थकी सी कल्पना, 'टिमटिमाता' ख्वाब किसी भी पल 'महकने' को तैयार ! - आप ने आज उलझा दिया - सॉलिड।
ख्वाब पलते रहने चाहियें जी, ख्वाब भविष्य की नींव हैं।
ReplyDeleteसुंदर रचना लिखने पर आपका आभा
जनसत्ता में प्रकाशन की बधाई
ReplyDeletenice
ReplyDeleteकोई डूब गया ...कोई ठिठुर गया ..
ReplyDeleteमगर एक थकी सी कल्पना अभी तक जिन्दा है ...
उम्मीद का यह दिया जलाये रखे ...जलता रहे ...
डूबती हैं किश्तियाँ तो छिछले गागर में भी ...
नहीं डूबती तो सागर में भी नहीं ...
सागर से लौ लगाये रहे तो डूब कर भी डूबने का एशास नहीं होता ...अपनी लहरों के साथ किनारे तक पहुंचा देता है ...
हाथो में टिमटिमाता ख्वाब महकता रहे हर पल ...
शुभकामनायें ...!!
वाह क्या सुन्दर आशा का भाव है!बधाई.
ReplyDeleteदिल का दिया जला के गया,
ReplyDeleteये कौन मेरी तन्हाई में....
आज पता चला आपको चट्टान जैसे इरादों की प्रेरणा कहां से मिलती रही है...
जय हिंद...
वर्मा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया...!!
ReplyDeleteअपने जज़्बात को Titanic से तुलना करके और सपनो को मरते लोगो से, बहुत सुन्दर कविता लिखी आपने !
ReplyDeleteye khwab hi to hai jo insan ko milo ka safar tay kara dete hai...inhi khabo ka sahare liye rakhiye..
ReplyDeletegana acchha laga...agar isme awaz santosh ji ki he to vo thodi dabi dabi si lagi..
जज्बातों को टाइटैनिक का बिम्ब देना और ख़्वाबों को जिन्दा रखना ....गज़ब की सोच है....खूबसूरती से उकेरे हैं जज़्बात,.....बधाई
ReplyDeleteजज्बातों को टाइटैनिक का बिम्ब देना और ख़्वाबों को जिन्दा रखना ....गज़ब की सोच है....खूबसूरती से उकेरे हैं जज़्बात,.....बधाई
ReplyDeleteकविता में भी डूब गए ,,,निकलने की कोशिश की मगर गीत ने फ़िर डुबो दिया ..अब तो डूबे रहने का ही मन है
ReplyDeleteअजय कुमार झा
हम भी बधाई दे रहे हैं जनसत्ता की। टाइटेनिक का क्या करें अब तो डूब गया। अलबत्ता आपकी आवाज में गाना सुनना अच्छा लगा।
ReplyDeleteकुछ तकनीकी कारणों से आपका गाना नहीं सुन पा रहा हूँ । शीघ्र ही सुन पाउँगा । एक छोटी सी आशा की किरण ही हमें मंजिलों तक पहुँचा देती है ।
ReplyDeleteजनसत्ता में छपा सांस्कृतिक सरोकार से संबंधित आपका लेख पढ़ा , अच्छा लगा । पाबला जी हमें ऐसी जानकारियाँ देकर बहुत बड़ा काम कर रहें हैं ।
आप यूँ ही प्रिंट मीडिया में महकती रहें ...
पर एक थकी सी कल्पना
ReplyDeleteअभी तक जिन्दा है
हाथों में टिमटिमाता ख़्वाब लिए
जो किसी भी पल महकने को तैयार है
-बहुत जबरदस्त....
और गीत तो आप जानती ही हैं कि हमारा प्रिय गीत है. इसी पर नचाये गये थे. :)
जनसत्ता की कटिंग बाजू पट्टिका पर देखकर प्रसन्नता हुई..बधाई.
अनूप जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कहते हैं आपको ...
भारती जी,
ReplyDeleteआपका ह्रदय से आभार..
उड़न तस्तरी जी,
ReplyDeleteका कहें...धन्यवाद कहेंगे तो लगता है.आपको दूर कर रहे हैं....
लेकिन कह देते हैं...
हाँ नहीं तो...!!
are wah di jansatta me chhane ke liye badhaai.. kavita bahut achchhi ban padee hai aur geet ke to kahne hi kya.. :)
ReplyDeleteपर एक थकी सी कल्पना
ReplyDeleteअभी तक जिन्दा है
हाथों में टिमटिमाता ख़्वाब लिए
जो किसी भी पल महकने को तैयार है
sabke liye sach
-Shruti