था वो मंजर कुछ गुलाबी, रंग भी छूटा न था
दिल में इक तस्वीर थी और आईना टूटा न था
हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
आज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था
चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
सब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
रौनकें पुरनूर थीं और गमकता था आसमाँ
झाँक कर देखा जो दिल में एक गुल-बूटा न था
मंजिलें दरिया बनीं और रास्ते डूबे 'अदा'
मेरे दम का कच्चा घड़ा, तूफ़ान में टूटा न था
इस शेर ने मुझे कल से परेशान किया हुआ था .....शायद अब ये ठीक हो ..
'दम' की जगह 'साँस' भी हो सकता था ...लेकिन दम मुझे ज्यादा पसंद आया..
khoobsurat gazal ke sath lagaya gya Soni-Mahiwal ka yah khoobsoorat chitra khoob fub raha hai di..
ReplyDeleteहादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
ReplyDeleteआज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था
वाह अन्दाज़े बयाँ क्या कहने
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ... हरेक शेर बेहतरीन है !
ReplyDeletewaah...
ReplyDeleteWAAH.........
WAAAH..........
WAAAAAH..................
kyaa likhaa hai....!!
kamaal.............!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
aapne likhaa hai..?
अद्भुत।
ReplyDeleteकच्चा घड़ा सुनते ही इक सोहनी याद आती है।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteगज़ल मिली थी मुझसे,
ReplyDeleteउसका एक वादा था,
रोज़ रोज़ नहीं पढ़ोगे मुझे,
मुझे भी आराम चाहिए,
तन्हा कुछ लम्हों की दरकार है...
अदा जी, आपसे अब एक लंबी पोस्ट की गुहार है...
जय हिंद...
Kitani sundar Prastuti
ReplyDeleteबहुत सेंटी होकर लिखी गई गजल है । अपने अंदाज़ में टीपने के लिए दोबारा आएंगे । अभी इतना बताने आए थे कि पढ लिए , कमाल है ।
ReplyDeleteदी आपणे जो खबसूरत तस्वीड लगाई हैं ,वा ने देखी णे म्हारी प्रेमिका कच्चे घडें के तलाश में बाज़ार घुमीरी ................और साथ में आपकी ग़ज़ल गुण गुनाते हुए ................
ReplyDeleteचुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
ReplyDeleteसब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
वाह वाह! क्या कहने..हर शेर पूरा है..आनन्द आ गया!
बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल
ReplyDelete@दिल में एक तस्वीर थी आईना टूटा ना था ...
ReplyDeleteफिर तो तस्वीर साफ़ ही दिखती होगी ...
@ हादसे होते रहे दिल के साथ ...किसी ने पहले शहर यूँ लूटा ना था ...
बहुत बढ़िया
@ चुभ जाते तेरे अल्फाजों के शर ...
चुभने दीजिये ...गहरी पीड़ा ही तो इतनी अच्छी ग़ज़ल लिखवाती है
@ कच्चा घड़ा मेरे दम का, तूफ़ान में टूटा न था
कच्चा नहीं था तभी तो टूटा नहीं ....
आज की ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है ...इतनी ज्यादा समझ तो नहीं मुझे मगर क्लासिक शायद इसे ही कहते होंगे ...बहुत बढ़िया
पीड़ा में डूबे स्वर ही ऐसे ग़ज़ल बनाते हैं ...कभी ख़ुशी में कुछ लिख दिया कर ....
शेर तो सारे ही लाजवाब है,लेकिन आखिरी शेर ने तो कमाल ही कर दिया।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत जज़्बात पेश किये हैं आपने।
आभार।
"कच्चा घड़ा मेरे दम का, तूफ़ान में टूटा न था"
ReplyDeleteहमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
कच्चा घड़ा मेरे दम का, तूफान में टूटा न था। बहुत अच्छी बात कह दी। अरे हमें तो आपके दम पर ही दम हैं। फुनवा नहीं आया।
ReplyDeleteचुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
ReplyDeleteसब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
अदा जी!
किस-किस अशआर की तारीफ करूँ!
यह तो पूरी ही गजल शानदार है!
बहुत-बहुत बधाई!
"कच्चा घड़ा मेरे दम का, तूफ़ान में टूटा न था....."
ReplyDeletebahut bahut sunder
-Shruti
चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
ReplyDeleteसब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
Waah! kya kahun bas dil se nikali baat aur dil me utar gai ...behad dilkash gazal....Aabhaar!
बहुत अच्छी बात कह दी।
ReplyDeleteचुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
ReplyDeleteसब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
बहुते लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
हमेशा की तरह बेहतरीन
ReplyDeleteachi rachana he
ReplyDeletebahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
काफी खुबसूरत.......
ReplyDeleteएक एक शब्द दिल से जुड़ते चले गए......
बधाई.....
चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
ReplyDeleteसब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
मंजिलें दरिया बनीं और रास्ते डूबे 'अदा'
कच्चा घड़ा मेरे दम का, तूफ़ान में टूटा न था
आज की गज़ल माशाल्लाह बहुत खूबसूरत है....ऐसा लग रहा है जैसे दिल निकाल कर रख दिया है....कच्चे घड़े का दम ...बिलकुल नया प्रयोग लगा..और बहुत सटीक भी....सब्र के प्याले को थाम कर रखना...
Bahut sunder prastuti hai. Bhav ke saath pesh karne ke liye chuni gayee prishthbhumi bhi sundr hai.
ReplyDeleteआप तो लिख गये ख्यालात अपनी रंगत में,
ReplyDeleteकैसे कहें दिल उन जज़बात से अछूता न था
चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
ReplyDeleteसब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
क्या बात है अदा जी. बहुत खूब.
हर शेर अच्छा है .......बहुत खूब !!
ReplyDeleteक़लम चूम लेने का मन है . लाज़बाब ।
ReplyDelete@ अरुणेश जी,
ReplyDeleteआशीर्वाद बनाये रखिये...
आगे भी लिखने की कोशिश करूंगी..
@ मनु जी,
ReplyDeleteकोई शक..??
आया देखने आपके ब्लॉग को जो इधर नहीं देख पा रहा था ..
ReplyDeleteइस कविता ने तो मन मोह लिया ..
सबसे अच्छा लगा कि आप के यहाँ अब लय-साधते हुए दिख रही है ;
यहाँ की रवानी काबिले तारीफ है ---
'' हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
आज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था ''
--- जैसे अनुभूति लपक कर लफ्ज का पैराहन पहन ले रही है .. आभार !
साधते को 'सधते' पढ़ा जाय ..
ReplyDeleteनहीं तो गिरिजेश भैया अभी मीठी झप्पी दे देंगे :)
गजल का एक एक शेर ढाई-ढाई कीलो का है अदा जी , बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमंजिलें दरिया बनीं और रास्ते डूबे 'अदा' मेरे दम का कच्चा घड़ा, तूफ़ान में टूटा न था
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
arey arey ye tasveer to mere living room ki diwar par lagi hui hai....aur jo ki maine hi banayi hai...aap ne kab kab me chura li.....?????
ReplyDelete(mujhe ye chitrkari bahut acchhi lagti he..aur sach me maine banayi thi yahi painting.)
ab aate he aapki gazel par..
kyu aaina tutne ki baat karta hai..
kyu shehar lut jane ki baat karta hai.
chal kahin aur chal...kyu dam ko kacche ghade me pakane ki baat karta hai..!
bahut acchhi gazel di..
aur last ka sher..to wah
ki dam ka kacchha ghada he fir bhi tufano se lad raha hai...yessss this is the spirit. KEEP IT UP.
हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
ReplyDeleteआज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था ..सोहनी के दिल का दर्द ..आपकी कलम से फूट निकला..वाह बहुत खूब..!!
Main kya bolu... Main itni zor-2 se padi yeh kavita aur ma ko sunaayi... Dil ko chooh gayi :) Unko bhi khoob achhi lagi...
ReplyDeleteAdaa ji aap ka talent goonjta hai inn shabdo ke maadhyam se!!
Regards,
Dimple
हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
ReplyDeleteआज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था
bahut aacha Ada Ji...
aur merai beje hue songs ka kya hua..?
चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
ReplyDeleteसब्र का प्याला मगर ऐसे कभी फूटा न था
bahut sundar ashrar..........har sher lajawaab.
बहुत सुंदर ग़ज़ल. बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteमुझे अंतिम शेर में 'मेरी सांस' ज्यादा अच्छा लगा.
गज़ल खूब सधती है आपकी कलम से !
ReplyDeleteबेहतरीन गज़लों में से एक ! मुझे तो इस शेर ने खूब लुभाया -
"रौनकें पुरनूर थीं और गमकता था आसमाँ
झाँक कर देखा जो दिल में एक गुल-बूटा न था "
आभार ।