हमारे पड़ोस के राज्य क्यूबेक में मुस्लिम औरतों के नकाब पहनने पर पाबन्दी लगा दी गयी है, जो एक अच्छी पहल है, यह हर तरह से अच्छी शुरुआत है, दिनों दिन बुर्के के भी फैशन में इज़ाफा ही हुआ है, बहुत अजीब से बुर्के लोगों की नज़रों से किसी को बचाते नहीं हैं बल्कि ध्यान आकृष्ट ही करते हैं..
कहते हैं पर्दा प्रथा और गोदना की शुरुआत भारत में मुगलों के आने के बाद हुई थी, उसके पहले यहाँ औरतें पर्दा नहीं किया करतीं थी, इस प्रथा के शुरू होने की वजह धार्मिक नहीं थी, यह सिर्फ बहु-बेटियों को मुग़ल सैनिकों की बुरी नज़रों से बचाने के लिए किया गया, गोदना का सहारा लिया गया था चेहरे को कुरूप बनाने के लिए जो कालांतर में, एक कला के रूप में स्थापित हुआ, और पर्दा का उपयोग युवतियों और महिलाओं ने स्वयं को छुपाने के लिए किया था ..
पर्दा का अर्थ पर्दा ही होना चाहिए, ममी बन कर नहीं रहना चाहिए, पूरे शरीर को ढँक कर मात्र आँखों को भी सही तरीके से नहीं खुला रखना खतरनाक भी होता है, इस तरह के पहनावे से दुर्घटना भी हो सकती है, इस पर पाबन्दी लगाना सही माना जाएगा, और फिर क्यूँ न हो नेशनल सिक्यूरिटी के लिए जब सभी अपनी पहचान अपने चेहरे से कराते हैं तो मुस्लिम औरतें क्यूँ नहीं करेंगी, उनका भी ये कर्तव्य हैं और देश का अधिकार की उन्हें वाध्य किया जाए इसे त्यागने के लिए , हम जिस देश में रहते हैं उस देश का कानून भी मानते हैं, और कानून सबके लिए बराबर होता है...
वैसे भी यह दोहरी मानसिकता है, जब पासपोर्ट बनवाना होता है तब फोटो खिंचवाई जाती है, परीक्षा में फॉर्म भरना है तो फोटो खिंचवाई जाती है, ड्राइविंग लाइसेंस, citizenship कार्ड, वोटिंग के लिए, बैंक में खाता खोलने के लिए, हेल्थ कार्ड के लिए भी फोटो की आवश्यकता होती है, कहीं भी नौकरी करने के लिए भी आई. डी. चाहिए ही चाहिए, अपनी सहूलियत के लिए धर्म को तोड़ा-मोड़ा जाता है, तब धर्म की मान्यताओं को ताख़ पर रख दिया जाता है, ओसामा बिन लादेन और साथी हर बार विडियो फिल्म निकाल कर भेज देते हैं, क्या फोटो खिंचवाना, विडियो बनाना धर्म में जायज़ है , अगर नहीं तो इतने सारे लोग जो फोटो खिंचवा रहे हैं, और जो धर्म के कर्णधार हैं उनका क्या होगा.. ?
कनाडियन सरकार के इस कदम का हम सब तहे दिल से स्वागत करते हैं....अति हर चीज़ की बुरी है...इस नकाब ने भी अति कर दी है....
एक घटना यहाँ बताना चाहूंगी, हमारे यहाँ citizenship लेने का समारोह चल रहा था, बहुत लोगों को नागरिकता का प्रमाणपत्र दिया जा रहा था, संतोष जी को भी यहाँ की नागरिकता मिल रही थी, मैं भी वहीं थी, यह समारोह कुछ ख़ास ही था इसलिए कई मंत्री भी आये हुए थे और पूरा प्रेस भी था, ज़ाहिर सी बात हैं फोटोग्राफ्स भी लिए जा रहे थे, कनाडा में वैसे भी बिना इजाज़त किसी की भी तस्वीर लेना कानूनन जुर्म है, तस्वीर लेने से पहले पूछा गया, जो भी नहीं चाहता कि उसकी तस्वीर ली जाए कृपा करके हाथ उठाएं, पूरे पांच सौ लोगों में एक ही हाथ उठा था , वो भी पूरा ढंका हुआ, यहाँ तक की हाथों में भी दास्ताने थ, उस महिला के बुर्के में सिवाय आँखों के पास की खिड़की के और कुछ भी नहीं खुला था...उसकी तस्वीर लेकर अगर उसके पति को भी दिखाई जाती तो वो किसी भी हाल में नहीं पहचान पाता, लेकिन उसी महिला को नागरिकता के कार्ड के लिए फोटो खिंचवाने में कोई आपत्ति नहीं हुई, न जाने यह फोटो कितने गैर मर्दों के हाथों से होकर आई होगी, और सबसे बड़ी बात ऐसा करके वो सबकी नज़रों में और आ गई, जबकि शायद अगर वो ऐसा न करती तो कोई भी उसकी तरफ ध्यान नहीं देता, नागरिकता के कार्ड पर उसका फोटो लगा हुआ था, ये दोहरी मानसिकता है...वहाँ उपस्थित लोगों के चेहरे उसकी इस मूर्खता पर विद्रूप सी हंसी आ रही थी...
जैसा कि आप सभी जानते हैं माहौल ही शक़-ओ-शुबह का हो गया है, और जब बात देश की सुरक्षा की आती है तो बाकी सभी बातें बेमानी हो जातीं हैं, इसलिए कनाडियन सरकार ने प्रशंसनीय काम किया है..
एक बार इस पर्दा या बुरका के बारे में विचार करते हैं, क्या सचमुच पर्दा को पर्दा के विचार से अपनाया गया था...मुझे नहीं लगता, अब ज़रा आप उन देशों की भौगोलिक स्थिति देखिये, कितनी गर्मी, रेगिस्तान, धूल के तूफ़ान, पानी की किल्लत, जिस जगह और जिस ज़माने में इसे अपनाया गया था इसकी वजह हर हाल में भौगोलिक और प्राकृतिक नज़र आती है, वर्ना पुरुष भी ऐसे कपडे क्यूँ पहनते, लम्बे लबादे से, सर पर कपड़ा, और सर के कपड़े को सर पर टिकाये रखने के लिए भारी सा रिंग...यह सब कुछ धूप, गर्मी और धूल की आँधी से बचने के लिए और शरीर की सुरक्षा के लिए था, पानी की किल्लत की वजह से सर पर साफा बाँधा जाता था जिससे बाल जल्दी गंदे न हों धूल की आंधी में और आँखों को धूल से बचाया जा सके, इसके लिए चेहरे पर हिजाब डाला गया हो, पानी की इतनी ज्यादा किल्लत थी कि रोज नहाना संभव ही नहीं था, बुरका, या लबादा पहनना वहां के लोगों के लिए environmental ज़रुरत थी न कि धार्मिक ज़रुरत, जिसे बाद में धार्मिक रूप दिया गया है, इन्सान अपना रहन-सहन अपने परिवेश के अनुसार करता हैं, जो भी उपलब्ध होता है उसे ही उपयोग में लाता है, और याद रखिये आप जो भी पहनते हैं उसकी फिर आदत भी हो जाती है तब आप उसे जल्दी से छोड़ना भी नहीं चाहते हैं, आपके अपनों को आपको उसी तरह के लिबास में देखने की आदत हो जाती है इसलिए आप भी उसी परिधान के साथ चिपके रहते हैं, आप ज्यादा स्वाभाविक महसूस करते हैं...
ये सारे निर्णय 'उस समय' की परिस्थिति के अनुसार लिए गए थे, जिसे बाद में धर्म का जामा पहनाया गया, वैसे भी किसी से कुछ भी मनवाना है धर्म का नाम लीजिये वो तुरंत मानेंगे, हिन्दू धर्म की सारी कुरीतियाँ इसका उदाहरण बन सकती हैं....
हर समाज में लोगों को अनुशासित करने के लिए धर्म का सहारा लिया जाता है, और इसमें कोई बुराई नहीं है...बुराई तब आती है जब इसे कट्टरपंथ का रूप दिया जाता है ...और इसका इस्तेमाल प्रगति को रोकने के लिए किया जाता है, धर्म को तोड़-मरोड़ कर फायदे के लिए इस्तेमाल करना गलत बात है फिर चाहे वो कोई भी धर्म क्यों न हो.....
और अब ये भी देखें...
सुना है माइकल जैक्सन का भूत CNN कर एक Interview के दौरान Neverland में नज़र आया...या कैमरे में भी क़ैद हो गया है देखिये ज़रा....
हम जैसे-जैसे शिक्षित होते जा रहे हैं, उतने ही अंधविश्वासी भी बनते जा रहे हैं। परिस्थितिवश किये गए आचरण हमारी परम्परा बन गयी हैं और उन्हें कट्टरता से निभा रहे हैं। अच्छा आलेख है। माइकल जैक्सन का भूत भी देख दिला। अमेरिका से कनाडा एकदम पास है, भारत तो दूर है। बच कर रहना, फिर तुम्हारा स्वर भी तो माशाल्लाह है। कहीं तुम्हें ही न पकड ले। कहीं वो बोले चलो अदा तुम गाओ और मैं नाचूंगा। हा हा हा हा।
ReplyDeleteरोचक जानकारियों से भरा आलेख बहुत च्छा लगा!
ReplyDeleteNice Post...
ReplyDeleteबहन फिरदौस की तरह ही सभी पढी लिखी मुस्लिम महिलाओं को खुलकर आगे आना चाहिए, देर से ही सही मगर एक नई क्रान्ति आयेगी ! और इन मुल्लों के होश ठिकाने लगाएगी !
ReplyDeleteदेर होगा अंधरे नहीं....
ReplyDelete.काफी वर्जनाएं टूट रही हैं....
जिस दिन महिलाओं की यह पीड़ा झेलने की क्षमता कम हो जायेगी, या जब वे पीड़ा झेलना बंद कर देंगी ,... उस दिन से पुरुषों का जीवन दूभर हो जाएगा....महिलाओं की यही विशेषता उसके लिए वरदान की जगह अभिशाप बन गया है....पुरुष सदियों से नारियों का दमन करते आये हैं....
नारी पर मेरा पूरा पोस्ट पढ़ें....
ReplyDelete...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html
बहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeleteरोचक जानकारियों से भरा आलेख बहुत च्छा लगा!
ReplyDeleteएक जरुरी और सोलिड पोस्ट !
ReplyDeleteपर्दा प्रथा भारत में नहीं थी । सच है ।
ReplyDeleteहर धर्म में कुछ लोग नहीं चाहते कि परिवर्तन आये ..उन्हें इससे भी तकलीफ नहीं कि उनकी अपनी माँ और बहिनों को कितनी तकलीफ होगी ...
ReplyDeleteआशा करते हैं कि अच्छा हो ..
उनके वस्त्र वहाँ के जलवायु के अनुकूल हैं। मैं भी सऊदी अरब में रही हूँ और कई बार मैंने भी आँचल से चेहरा उन्हीं की तरह ढाँपा है। जब रेत की आँधी चलती है तो चेहरा ढकने के अतिरिक्त कोई रास्ता ही नहीं रह जाता। पुरुष व स्त्री सभी चेहरे ढक लेते हैं। शायद इसीलिए पुरुषों के सिर का कपड़ा इतना लम्बा रहता है कि चेहरा ढका जा सके। जैसे हम भी कोई ऐसा काम करें जिससे कपड़े व बाल खराब होंगे तो ओवरऔल पहन लेते हैं व सिर पर कपड़ा बाँध लेते हैं यह भी कुछ उसी तरह है।
ReplyDeleteवैसे सच तो यह है कि जिसे जो करना है करने दिया जाए बस किसी अन्य या समाज को कष्ट न हो। इसीलिए सुरक्षा व समाज की सहूलियत के लिए बुर्के पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है।
घुघूती बासूती
यह सच है की पर्दा प्रथा महिलाओं को बचने के लिए शुरू हुई। पहले मुग़ल , फिर अँगरेज़। लेकिन मुस्लिम समाज में तो अति ही लगती है। बेवज़ह !
ReplyDeleteअदा जी, आज की पोस्ट के लिए बधाई। आपने बहुत सधे शब्दों में अपनी बात रखी। देश, काल व समय के अनुसार परंपरायें बदलती हैं और हमें ऐसे मामलों में बहुत ज्यादा कट्टर नहीं होना चाहिये। दोहरी मानसिकता व विरोधाभास वाली बात एकदम ठीक कही है आपने। Law of the land must be observed at all costs, और फ़िर धर्म कोई ऐसी चीज नहीं कि फ़ायदा-नुकसान देखकर ओढ़ लिया जाये या उतार लिया जाये।
ReplyDeleteकई दिन से चल रहा गजल का मौसम शायद थम गया है, लेकिन विविधता अच्छी लगी।
पुन: बधाई स्वीकार करें।
पर्दा है पर्दा है...
ReplyDeleteअदा जी, डॉ अजित गुप्ता जी की सलाह को हल्के में मत लीजिएगा...ये माइकल जैक्सन सुरीले गले वालों को अपने शो में शामिल करने के लिे बेताब रहता था...कहीं माइकल का भूत आपको साथ लेकर अगला वर्ल्ड टूर ही इस नाम से न प्रमोट करने लगे...invisible MJ, visible ADA
सबसे पहले टिकट मैं लूंगा...
जय हिंद...
रोचक जानकारियों से भरा आलेख बहुत च्छा लगा!
ReplyDeleteलाजबाब !
ReplyDeleteहा हा हा। मैं तो पहला फोटो ही देख कर ... हा हा हा
ReplyDelete.. फिर आऊँगा।
पर्दाप्रथा के कारणों और प्रभावों पर अच्छा संतुलित आलेख लिखा है आपने ...किसी भी देश के नागरिक को अपनी मान्यताओं से ज्यादा देश के कानून का पालन करना आवश्यक होना चाहिए ...
ReplyDeleteअजितजी की टिप्पणी से डर लगने लगा है ...हा हा हा ...अपना खयाल रखियेगा ....:):)
समय काल परिस्थिति के अनुसार रहन सहन, रीति रिवाज आदि बदलते रहते हैं। हो सकता है कि किसी समय पर्दा प्रथा की आवश्यकता रही हो, किन्तु आज इसकी आवश्यकता नहीं है। इसलिये अब प्रथा को खत्म ही कर देना उचित है।
ReplyDeleteek public litigation kuch din pahle supreme Court ke paas aayi thi.. wo is baat par discuss kerna chhate the ki photo identity card ke liye muslim auraton se parda na hatwaya jaaye.. matlab photo id card par burqe mein photo.. litigation mein tha ki ye islaam ke khilaf hai..
ReplyDeleteSupreme court ne bade pyaar se use anzi ko khariz kiya aur unse bola ki agar vote dena hai to buraqa to uthana hi hoga.. aap ek kaam kar sakte hain ki aap vote na den.. :)
जाने भूत है या क्या है...
ReplyDeleteपर फोटो बड़ी मस्त हैं सब की सब...
आज दिनांक 9 अप्रैल 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में यह पोस्ट पर्दे के पीछे शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई।
ReplyDeleteआज दिनांक 9 अप्रैल 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में यह पोस्ट पर्दे के पीछे शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई।
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