देश की अखंडता के सामने ना ही किसी धर्म का कोई मोल है ना ही मज़हब का ..देश और देशवासियों की सुरक्षा से पहले कुछ भी नहीं आना चाहिए ...फिर चाहे वो हुसैन हों या फिर शाहरुख़ या फिर बाल ठाकरे ....जब किसी की बात या अभिव्यक्ति देश के तंतुओं को तार-तार करने लगे तो वह व्यक्ति निश्चित तौर पर धिक्कार का पात्र है...मकबूल फ़िदा हुसैन एक ऐसा ही नाम है ....हुसैन अगर भारत में नहीं होते तो शायद ...गुमनामी की ज़िन्दगी जी कर इस दुनिया से कूच कर चुके होते ....ये तो भला हो श्रीमती इंदिरा गाँधी का....जिनके लिए उन्होंने 'शक्ति' की पेटिंग बनाई थी...और वो रातों रात स्टार बन गए ....
ऐसा नहीं है कि मकबूल हुसैन की यह पहली गलती है...उन्होंने यह गलती बार-बार जानते बूझते हुए की है...और जो ग़लती बार-बार जान बूझ कर की जाती है वो ग़लती नहीं होती है... एक सोची-समझी हुई साज़िश होती है.... हुसैन को बहुत अच्छी तरह से मालूम था कि वो क्या कर रहे हैं...ऐसा तो हुआ नहीं है कि उन्होंने ये सारी पेटिंग्स एक ही रात में बना डालीं और लगा दी ...नहीं.... उन्होंने बार-बार बनाया और बार-बार लोगों को आहत किया...
कोई भी कलाकार, चाहे तो इन्कलाब ला सकता है, हुसैन चाहते तो अपनी जमात में कुछ तब्दीलियाँ ला सकते थे बनिस्पत इसके कि उस विषयवस्तु को छूना जिसकी ना उनको समझ है नहीं पकड़... कलाकार को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए ...लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसे उसके कुत्सित विचारों के भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए...ऐसा ही है तो फिर ब्लू फिल्मों ने क्या गुनाह किया है ....उनको भी कला का जमा पहना दिया जाए और उनकी भी प्रदर्शनी लगा दीजिये...उनको भी पुरस्कृत कीजिये...हुसैन की अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है....यह एक महा घटिया इन्सान की महा घटिया सोच है...और उसका समर्थन करने वाले उससे भी ज्यादा घटिया सोच के लोग हैं....क्यूंकि हुसैन ने न सिर्फ़ धर्म का अपमान किया है बल्कि .....उन्होंने भावनात्मक आतंकवाद का प्रयोग किया है....उसका साथ देनेवाले भी उतने ही बड़े आतंकवादी हैं...
आप गाँधी जी की इस पेटिंग को देखिये...इसमें हिटलर भी है ....गाँधी जैसे अहिंसावादी की गर्दन उड़ाने का काम एक सरल हृदय इन्सान नहीं कर सकता... फिर वो कल्पना में ही क्यूँ ना हो...और उसे कला का रूप एक कुंठित इन्सान ही दे सकता है...आप हुसैन की इस तस्वीर को उनकी भड़ास भी समझ सकते हैं...
अब आप इस तस्वीर को देखिये...एक पंडित बिलकुल नग्न....क्या बताना चाहते हैं, हुसैन इस तस्वीर में...???
गणेश जी से कंधे पर नग्न लक्ष्मी ??? यह हमारे विधान के अनुसार भी ग़लत है ...लक्ष्मी हमेशा बायीं ओर बैठतीं है गणेश जी के ...ना कि सर के ऊपर....और लक्ष्मी जी का पाँव गणेश जी के कंधे पर ....यह कैसी सोच है ..और इसमें कलात्मकता कहाँ है ..लेकिन नग्नता का नाटक तो है ही...
अगली तस्वीर सरस्वती जी की है...वैसे सरवती जी एक कुँवारी देवी मानी जातीं हैं (जहाँ तक मुझे पता है, अगर मैं ग़लत हूँ तो कृपा करके सुधारा जाए)..सरस्वती विद्या की देवी है और विद्यार्जन करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है...अगर सरस्वती एक सात्विक देवी हैं तो क्या उनकी ऐसी तस्वीर बनाना उचित है...???
और सबसे हृदयविदारक है यह चित्र जिसमें माता सीता को नग्न, रावण की जंघा पर बैठा दिखाया गया है ...इससे बड़ा भयानक और दुखद क्या हो सकता है ?? देखिये ज़रा..
और कई ऐसी तसवीरें हैं जिन्हें आप मेरी पोस्ट जो नीचे दी गई है , देख सकते हैं....यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि हुसैन के एल फिल्म 'मीनाक्षी ..ए टेल ऑफ़ थ्री सिटिज ' दो दिन के बाद ही सिनेमा हाल से उतार ली गई थी क्योंकि उसके एक गाने में कुछ धार्मिक आयतें थीं...हुसैन को उसे तुरंत ख़ारिज़ करना पड़ा ...लेकिन इतने विरोधों के बाद भी वो तसवीरें नष्ट नहीं की गई हैं...
सोचने वाली बात ये है कि हुसैन अगर चाहते तो क्या उन्हें अमेरिका, कनाडा, इंग्लॅण्ड की नागरिकता नहीं मिलती ...ज़रूर मिलती ....लेकिन उन्होंने क़तर को चुना.... क्यूँ ?? वो एक इस्लामिक राष्ट्र है ...और आज तक राजतंत्र भी है ...हुसैन जो कि ख़ुद को प्रगतिशील मानते हैं और उनके जो भी पिठ्लग्गु क्या मुझे बातायेंगे कि ...एक प्रगतिशील इन्सान राजतंत्र के वरदहस्त में क्यों गया है.... मैं बताती हूँ....सिर्फ़ इसलिए कि वहाँ उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता....देश जिनका है कानून भी उन्ही का है... अब वो और सुरक्षित और पावरफुल है ...वो हमारी संस्कृति पर हमला बहुत ही आसानी से करेंगे .. मैंने १९ फ़रवरी को एक पोस्ट लिखी थी ... इन्तेलेक्चुअल आतंकवाद क्या है ?? उसमें हुसैन की तस्वीरों की तुलनात्मक विवेचना की गई है...आप उन तस्वीरों को फिर एक बार देखें ..
हम बड़े आराम से अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर इन तस्वीरों को देख कर कह देते हैं कि ...वाह क्या रंग का संयोजन है...क्या कल्पना की उड़ान है...हो सकता है कि आप बहुत बड़े कला के पारखी हैं...लेकिन ये क्यूँ भूलते हैं कि भारत की ९०% जनता सिर्फ़ श्रद्धा और विश्वास पर ही जीती है...उनकी भावनाएं इन्ही देवी-देवताओं से जुड़ी हैं...किसने हुसैन को हक दिया है कि वो जनमत की भावनाओं से खेलें ...क्या उन करोड़ों मजदूरों ने दे दिया है या लाखों किसानों ने ?? क्योंकि ये जो विश्वास की डोर है इन्होने ने ही थाम कर रखी है....हर अपने दुःख-सुख में ये निरीह इन्हीं देवी-देवताओं के चरणों से जा लिपटते हैं...हमारी संस्कृति जो विरासत के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही है ...वो सिर्फ़ निम्नवर्गीय और माध्यमवर्गीय परिवारों कि वजह से... उच्चवर्गीय लोगों के पास ना समय होता है ना ही वैसी आस्था और ना ही प्रेरणा.....उनके पास होता है बहुत सारा समय और पैसा ऐसे ही बेतुके कलाकारों को ख्वामखाह की तूल देने के लिए ...
२००७ में एक खबर आई थी .. सूडान के एक स्कूल में एक नर्सरी की ब्रिटिश शिक्षिका गिलियन गिबन्स ने बच्चों को खेलाते हुए ..एक टेडी बेअर का नाम 'मोहम्मद' रख दिया ...वो गिरफ्तार कर ली गई ...और सजा की हकदार हो गई ...ये तो अच्छा हुआ कि वो ब्रिटिश थीं और बरतानियाँ सरकार ने उसे छुड़ा लिया ...वर्ना उसका राम-नाम सत्य तो तय ही था...यहाँ देख सकते हैं आप : http://news.bbc.co.uk/2/hi/ 7112929.stm
लेकिन हम हिन्दुस्तानी परले दर्जे के अहमक और कायरता की हद्द तक सहनशील हैं ....हमारी सबसे बड़ी खासियत यह है ..कि हम ख़ुद ही नहीं जानते कि हम क्या चाहते हैं...या तो हमें अपनी ही आस्था पर भरोसा नहीं है...वर्ना हमारा इस तरह अपमान करके साफ़ निकल जाने की हिम्मत कोई कैसे कर सकता है भला...
समर्थक नहीं..
ReplyDeleteप्रशंषक...
इन दोनों में भी फर्क होता है..
हम फ़िर भी कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि हम वाकई परलेदर्जे के सहनशील हैं।
ReplyDeleteशायद ये कि्सी दिमागी रोग से ग्रस्त हैं,
ReplyDeleteकुछ दिन पहले माधुरी के पीछे पड़े थे,
अब किसी और के साथ नाम सुना था।
इनके चित्रों मे दौड़ते हुए घोड़े, फ़्रायड के मनोविज्ञान की तस्दीक करते हैं। कोरी नग्नता हैं इन चित्रों मे और इन्हे कला का जामा पहनाया जा रहा है। इससे इनका उद्देश्य स्पष्ट होता है।
अच्छी पोस्ट
होली की शुभकामनाएं
Badhiya.... dhang se bakhiya udhedee aapne..
ReplyDeleteDi jab bhi free hon call karna kuchh bahut urgent baat hai..
बहुत बढ़िया आलेख. बिलकुल सही कहा आप ने. वो जान बूझ के ऎसी पेंटिंग्स बनाता है. इतना ही बड़ा कलाकार है हुसैन तो एक बार मुहम्मद की नग्न तस्वीर बना तो दे .......... और नग्न ही क्यों, बस एक तस्वीर बना दे और उसका नाम मुहम्मद रख दे ......... अगले ही दिन फ़तवा जारी हो जाएगा.
ReplyDeleteसही है की हम हिन्दू कायरता की हद तक सहनशील हैं. बहुत अच्छी पोस्ट.
पता नहीं हमारा कमेन्ट छपेगा या नहीं...
ReplyDeleteमगर हम हुसैन की कला के प्रशंषक हैं...इसे कभी भी किसी धर्म से जोड़ कर नहीं देखा...ना ही हुसैन के बारे में जाना, पढ़ा...
हम सच में कहते हैं , कसम उठा कर कहते हैं..के हमें नहीं पता के वो ये सब क्या सोच कर बनाता है...
अगर उसका इरादा महज किसी धर्म विशेष को आहत करने का है..तो हम उस के समर्थक बिलकुल नहीं हैं...
ये भी हम सच कहते हैं...कसम उठा कर...
अगर उसके मन में भारत के लिए सच में घरना है तो हम उसके दुश्मन हैं...
ये भी सच कहते हैं...कसम उठा कर...
सच में हुसैन के मन में क्या है..ये वही बता सकता है...
आप ,हम , दर्शक, पाठक , लेखक...सिर्फ कयास लगा सकते हैं....
मैं उन्हें विक्षिप्त मानसिक हालातों के रहमों करम पर छोड़ देना चाहता हूँ...उनके बारे में बात करना तो दूर...सोचना भी पसंद नहीं करता.
ReplyDeleteहम वाकई परले दर्जे के सहनशील हैं...
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट
लेकिन हम हिन्दुस्तानी परले दर्जे के अहमक और कायरता की हद्द तक सहनशील हैं ....हमारी सबसे बड़ी खासियत यह है ..कि हम ख़ुद ही नहीं जानते कि हम क्या चाहते हैं...या तो हमें अपनी ही आस्था पर भरोसा नहीं है...वर्ना हमारा इस तरह अपमान करके साफ़ निकल जाने की हिम्मत कोई कैसे कर सकता है भला...
ReplyDeleteयही असली बात है,इसी कारण सबसे ज्यादा प्रयोग हमारी आस्था पर ही हुयें है.
हमारी सबसे बड़ी खासियत यह है ..कि हम ख़ुद ही नहीं जानते कि हम क्या चाहते हैं
ReplyDeleteकितना कटू सत्य है
होली की शुभ कामनाए
ReplyDeleteचार लाईन श्री हुसैन के लिए भी.....
नंगे पैरो चलते-चलते सोच नंगी हो गयी,
कल्पना के कैनवस में इतनी तंगी हो गयी!
बात अन्दर की दिखे बाहर ज़रूरी तो नहीं,
शौक़ था उनका, यहाँ पर खाना जंगी हो गयी.
aapka lekh satyparak laga.
आपके साहस को सलाम ....
ReplyDeleteहम हिन्दुस्तानी पहले अपनी भाषा ,जाति, प्रान्त जैसे झगड़ों से तो निपट लें ....
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मकबूल फ़िदा जी को क्या कोसें ...अपने आस पास ही बहुत मिल जायेंगे .....!!
अदा जी,
ReplyDeleteजो दूसरों की भावनाओं का सम्मान नहीं कर सकता, वह कहीं से भी कलाकार कहलाने का हकदार नहीं है।
रही बात धर्मनिर्पेक्षता और प्रगतिशीलता के झंडाबरदारों की, तो उनके सभी तर्क हिंदु विरोधी लोगों के समर्थन में मिलेंगे। तस्लीमा नसरीन, सलमान रश्दी, डेनिश अखबार में कार्टून का मामला जैसे अनगिनत मुद्दे है जहां ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे कुतर्क नहीं देते।
आपने हुसैन की बनाई जो तस्वीरें दर्शाई हैं उससे तो यह कलाकार अव्वल दर्जे का बदमाश मालुम पडता है। हिन्दू -आस्था पर जबर्दस्त हमला है। अहिंसा परमोधरम का पालन करते रहो लेकिन ऐसी नंगी तस्वीरों पर पूरे विश्व में पाबन्दी लगाना बेहद आवश्यक है।
ReplyDeleteकुछ नहीं होगा...आप सरकार से शिकायत कर देखिए...उलटे आप को ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बंद कर देगी...अदा जी, आप को साधुवाद...आप सिक्के का दूसरा पहलू दिखा रही हैं...ये तस्वीरें जो आप दिखा रही हैं, मैं नहीं समझता की एक या दो प्रतिशत भारतीयों ने पहले देखी हों....रह-रह कर भारतमाता की नग्न तस्वीर का ज़िक्र हुसैन के नाम के साथ भारत में होता रहा है...लेकिन आप सिर्फ हुसैन को ही क्यों दोष देती हैं...क्या हमारे भारत में उच्च आय वर्ग या उच्च मध्यम आय वर्ग के लोगों की ये तमन्ना नहीं होती कि हुसैन की पेंटिग्स (भले ही नकली हों) को अपने ड्राईंग रूम की दीवारों पर सजाया जाए...मैंने तो सुना है कि कुछ धन्नासेठों ने अपने घरों की कुछ दीवारें ही हुसैन को मोटी रकम देकर पेंट करा रखी हैं...माधुरी, तब्बू, अमृता राव जैसी हीरोइन सिर्फ हुसैन के मुंह पर अपना नाम आने से ही बलिहारी जाती हैं...जब तक ये सोच नहीं बदलेगी, हुसैन ऐसे ही हमारी भावनाओं के साथ बलात्कार करते रहेंगे...
ReplyDeleteजय हिंद...
मैं तो उडन तश्तरी जी से सहमत हूँ। आपका ये प्रयास सराहणीय है सोये हुये लोगों को जगाने का। शाबास
ReplyDelete"हम हिन्दुस्तानी परले दर्जे के अहमक और कायरता की हद्द तक सहनशील हैं ....हमारी सबसे बड़ी खासियत यह है ..कि हम ख़ुद ही नहीं जानते कि हम क्या चाहते हैं...या तो हमें अपनी ही आस्था पर भरोसा नहीं है...वर्ना हमारा इस तरह अपमान करके साफ़ निकल जाने की हिम्मत कोई कैसे कर सकता है भला..."
ReplyDelete100% agreed !!घोंचू हैं सबके सब !
एक विकृत मस्तिष्क वाला व्यक्ति और कर ही क्या सकता है? किन्तु ऐसे व्यक्ति को सहते रहना हमारी कायरता का द्योतक है।
ReplyDeleteAvadhiya Bhaiya ne kaha hai :
ReplyDeleteएक विकृत मस्तिष्क वाला व्यक्ति और कर ही क्या सकता है? किन्तु ऐसे व्यक्ति को सहते रहना हमारी कायरता का द्योतक है।
jagruk ker dene wala lekha .....M.F HUSSAIN ......mujhe to klakaar nahi lagta nalki mansik roop se bimaar lagta hai
ReplyDelete".... एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों."
ReplyDeleteयह विमर्श आवश्यक है, बार बार हजार बार, ब्लॉगों, पत्र-पत्रिकाओं, बुद्धु बक्सों, रेडियो मे.
Chhattisgarh has left a new comment on your post "हुसैन की अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है....":
ReplyDelete".... एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों."
यह विमर्श आवश्यक है, बार बार हजार बार, ब्लॉगों, पत्र-पत्रिकाओं, बुद्धु बक्सों, रेडियो मे.
देवेश प्रताप has left a new comment on your post "हुसैन की अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है....":
ReplyDeletejagruk ker dene wala lekha .....M.F HUSSAIN ......mujhe to klakaar nahi lagta nalki mansik roop se bimaar lagta hai
हुसैन की पेंटिंग को लेकर अपनी बातों को मैं आपकी पिछली पोस्ट पर
ReplyDeleteकह चुका हूँ ...
अतः उनकी उद्धरिणी क्या करूँ !
हाँ 'गिलियन गिबन्स' जी के बारे में जानकारी नयी रही मेरे लिए ! इसके लिए आभार !
दीदी मैं तो यही कहना चाहुंगा कि कहीं ना कहीं ये हमारी कमजोरी ही है कि हम हिन्दू एक नहीं है जिसका फायदा ये हुसैन जैसा पागल और मुर्ख उठाता है, इस पर तो मैं भी बहुत कुछ कह चुका हूँ ।
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं,
ReplyDeleteकुछ दिनों पहले 'चित्रलेखा' पढ़ी...
... श्वेतांक ने पूछा : और पाप?
चलिए माना कि हुसैन कि अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है पर एक 'Not-so-dignified ' प्रश्न सभी से पूछना चाहूँगा, अपने से भी कि क्या हम (या atleast हम में से बहुत से लोग) ब्लू फिल्म एन्जॉय नहीं करते? (database कि बात करें तो सबसे ज़्यादा clicks prone sites में ही होते हैं) वास्तव में परफेक्ट सत्य जैसी कोई चीज़ मैंने तो अभी तक नहीं देखी.एक और 'Not-so-dignified ' बात ये कि सबसे ज़्यादा घृणित कही जाने वाली वस्तु सदेव हमारे पेट में रहती है.In other words 'Truth' not only varies from person to person, but even within one person it may vary from frame of mind to frame of mind.
एक बहुत बड़े लेखक ने कहा था (अपने बुढ़ापे में) कि जब मैं १६-१७ साल का था तो लड़की को पूरे कपड़े में देख के भी उत्तेजित हो जाता था, पर अब कोई लड़की अर्धनग्नावस्था में भी आ जाये तो उल्टा उसे मैं उलाहने दूंगा उसके ऐसे dressing sense के प्रति.
अश्लीलता और कला में भेद करना मुश्किल हो जाता है - रमेश चन्द्र शाह (अकेला मेला)
खजुराहो का तो अगर में उद्धरण भी दूं तो Repetitive कहलाऊँगा .
(मैंने इन विचारो को उनके विचारकों के साथ इसलिए ही quote किया है कि सभी विचार आरोपित लगें और मैं बाइज्ज़त बरी हो जाऊं)
:)
और इश्वर यदि सत्य हैं तो वो दण्डित करेंगे ना...
"Let Truth Prevail".
ये मेरे अपरिपक्व विचार थे, अब अगर पोस्ट की बात करें:
विरोध होना और आलोचना होना ज़रूरी है अच्छी से अच्छी और बुरी से बुरी बात की, क्यूंकि जैसा मैंने कहा nothing is perfect. इसलिए लोगों के एक ही चीज़ पे अलग अलग विचार जान के ही सिद्ध होता है की दुनिया बहुआयामी है, बहुरंगी है. और जैसी अभी है ऐसी है क्यूंकि आप जैसे, हम जैसे लोग विचार करते हैं 'Brain Storming' You See.
BTW: aDaDi लगता है की आपकी इस मुहीम के डर से ही हुसैन साहब क़तर (आ) गए भारत की नागरिकता से.
:)
श्रीमती इंदिरा गाँधी का....जिनके लिए उन्होंने 'शक्ति' की पेटिंग बनाई थी...और वो रातों रात स्टार बन गए थे यही पापुलरिटी ने उनका दिमाग खराब कर दिया
ReplyDeleteहुसैन की अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है...इसे हुसैन की कुंठित रचना धर्मिता भी कहिये ! मकबूल साहब धार्मिक उन्माद को
को पंखा झाल रहे हैं ! सियासत और आर्ट की दुरभि:संधि की बानगी है ये. आइये आप हम इन महाशय के चिंतन में घुसी गलीच बातों का मातम मनाएं
Dil ko bahut hi aaghat pahuncha ye jaankar ki M.F.Hussain kee soch itni ghatiya ho sakti hai. Jis Thali mein khata hai usi mein chhed kar raha hai. Bahut he badia lekh. Jago hinustanio Jago......
ReplyDeleteaaj hamre computer mein kuch samasya hai...
ReplyDeleteदर्पण साह 'दर्शन' has left a new comment on your post "हुसैन की अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है....":
होली की शुभकामनाएं,
कुछ दिनों पहले 'चित्रलेखा' पढ़ी...
... श्वेतांक ने पूछा : और पाप?
चलिए माना कि हुसैन कि अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है पर एक 'Not-so-dignified ' प्रश्न सभी से पूछना चाहूँगा, अपने से भी कि क्या हम (या atleast हम में से बहुत से लोग) ब्लू फिल्म एन्जॉय नहीं करते? (database कि बात करें तो सबसे ज़्यादा clicks prone sites में ही होते हैं) वास्तव में परफेक्ट सत्य जैसी कोई चीज़ मैंने तो अभी तक नहीं देखी.एक और 'Not-so-dignified ' बात ये कि सबसे ज़्यादा घृणित कही जाने वाली वस्तु सदेव हमारे पेट में रहती है.In other words 'Truth' not only varies from person to person, but even within one person it may vary from frame of mind to frame of mind.
एक बहुत बड़े लेखक ने कहा था (अपने बुढ़ापे में) कि जब मैं १६-१७ साल का था तो लड़की को पूरे कपड़े में देख के भी उत्तेजित हो जाता था, पर अब कोई लड़की अर्धनग्नावस्था में भी आ जाये तो उल्टा उसे मैं उलाहने दूंगा उसके ऐसे dressing sense के प्रति.
अश्लीलता और कला में भेद करना मुश्किल हो जाता है - रमेश चन्द्र शाह (अकेला मेला)
खजुराहो का तो अगर में उद्धरण भी दूं तो Repetitive कहलाऊँगा .
(मैंने इन विचारो को उनके विचारकों के साथ इसलिए ही quote किया है कि सभी विचार आरोपित लगें और मैं बाइज्ज़त बरी हो जाऊं)
:)
और इश्वर यदि सत्य हैं तो वो दण्डित करेंगे ना...
"Let Truth Prevail".
ये मेरे अपरिपक्व विचार थे, अब अगर पोस्ट की बात करें:
विरोध होना और आलोचना होना ज़रूरी है अच्छी से अच्छी और बुरी से बुरी बात की, क्यूंकि जैसा मैंने कहा nothing is perfect. इसलिए लोगों के एक ही चीज़ पे अलग अलग विचार जान के ही सिद्ध होता है की दुनिया बहुआयामी है, बहुरंगी है. और जैसी अभी है ऐसी है क्यूंकि आप जैसे, हम जैसे लोग विचार करते हैं 'Brain Storming' You See.
BTW: aDaDi लगता है की आपकी इस मुहीम के डर से ही हुसैन साहब क़तर (आ) गए भारत की नागरिकता से.
:)
दर्पण,
ReplyDeleteतुम्हारी बात और मेरी बात में कोई तुलना नहीं या तो तुम बात नहीं समझे या समझने की कोशिश नहीं कर रहे हो...हम यहाँ बात 'कला' की कर रहे हैं...ब्लू फिल्म कला की श्रेणी में अगर आती है और उसे पद्म श्री, पद्म भूषन, भारत रत्न, पुरस्कार मिलता हो फिर तो तुम्हारी बात में कोई दम है अन्यथा ये एक बचकानी दलील है..
Sushil has left a new comment on your post "हुसैन की अभिव्यक्ति किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं है....":
ReplyDeleteDil ko bahut hi aaghat pahuncha ye jaankar ki M.F.Hussain kee soch itni ghatiya ho sakti hai. Jis Thali mein khata hai usi mein chhed kar raha hai. Bahut he badia lekh. Jago hinustanio Jago......
man aahat hooa..
ReplyDeleteprastuti ke liyen dhanyawad
हुसैन के इन कृतियों को होलिका देवी को समर्पित कर देना चाहिए !
ReplyDeleteभारत में कला और संस्कृति की रक्षा का भार निम्न, निम्न-मध्य और मद्धम वर्ग के अधिसंख्य व्यक्ति के ऊपर है, और वे सदियों से निभा भी रहे हैं.
ReplyDeleteकुछ विकृत मानसिकता वाले उच्च वर्ग/ सत्ताधारी/ चापलूस वर्ग/ चापलूस कलाकार वर्ग हमेशा से अधिसंख्य पर भारी पड़े हैं.
आश्चर्य की बात है की अधिसंख्य(ऊपर वर्णित) संस्कृति की रक्षा करते हैं इनका मान और मूल्य बढाते हैं. जबकि कुछ विकृत इसका सौदा करते हैं और फिर भी हीरो कहलाते हैं.
सिर्फ इसलिए की उसके प्रशंशक/समर्थक भी बहुतायात में मौजूद हैं.
bahut badhiya dhang se prastut kiya hai aapne ..........mujhe kisi bhi trh se ye klakaar nahi lagte hai .....
ReplyDeleteये हमारी सहनशीलता है जिसे कायरता समझ कर उसकी परीक्षा बार बार ली जा रही है जिस दिन हिंदू जाग गया उस दिन सब को समझ मे आ जायेगा।
ReplyDeleteसठिया गये लगते हैं, ये पेंटर बाबू… इन्हें तो हम अपनी चाहरदीवारी भी रंगने नहीं देंगे। चाहे बाहरी ग्रह वाले भी इन पर फिदा हो जायें……
ReplyDeleteवैसे आपकी आवाज बहुत प्यारी है, अभी उड़नतश्तरी से होकर यहाँ आया हूँ, सुनकर वाकई बुखार चढ़ गया। :) :)
आप फिल्मों में भी गाती है क्या??? या कोई आपका एलबम ???
एक अच्छा कलाकार/फनकार होने से
ReplyDeleteकहीं ज्यादा अच्छा है
एक अच्छा इंसान होना
यही आवश्यक है और यही महत्वपूर्ण है
विक्षिप्त मानसिकता
अगर जान बूझ कर ओढ़ ही ली गयी हो
तो उसके प्रति
तिरस्कार और घृणा का उपजना
स्वाभाविक ही है
आपके साहस भरे प्रयास को सलाम
विचारों की अभिव्यक्ती के नाम पर बहुसंख्य लोगों के देवी देवताओं की खिल्ली उडाना और उस पर सीना जोरी करना केवल भारत में ही संभव है । यदि खादिजा जी को ऐसे कोई दिखाये तो बवाल मच जाये ।
ReplyDeleteपर हाथी को चलते रहना चाहिये कुत्ते तो भंकते रहते हैं ।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी
सदियों रहा है दुष्मन दौरे जहां हमारा ।
post ko hit karnae ke liye jo shirshak aapne post ka diya hai, wo kahan tak sahee hai. agar aap simple sa shershak denti to kya aapka itne pathak milte. ADA aur FIDA mein antar nahin hai. donon hee sansaneekhez kar rahen hain.
ReplyDeleteइनके मस्तिष्क के यौन केंद्र में असामान्य कोशिकीय वृधि हो गई है । जिससे इन महाशय को हर नारी में एक ही चीज़ नज़र आती है। मानसिक विकृति का जीता जगता नमूना ।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट,कटू सत्य है !
ReplyDeleterat ko to samay nahi mila ...abhi shanti se pasi aapki post. bahut satya sarthak aur yatharparak aalekha hai ....ab bhi na samjhenge to phir kabhi na samjh paaenge!!
ReplyDeleteमनु जी,
ReplyDeleteहुसैन के प्रशंसक बनने से पहले आप ज़रूर उसके दिमाग में घुसे होंगे ...है ना ??
आप भी तो प्रशंसक कयास लगा का ही बने हैं...
और हम भी उसका विरोध कयास लगा कर ही कर रहे हैं...
कोई कभी भी किसी के लिए कभी नहीं सोच सकता कि वो कोई भी काम क्या सोच कर कर रहा है...
यहाँ तक कि घर में बीवी ने खाना क्या सोच कर बनाया है...क्या आप सचमुच जानते हैं ??
There are many such nudists...
ReplyDeleteसुयर है यह आदमी जिस कॊम का खाया उन्हे ही धोखा दिया.... ओर यह काम सिर्फ़ सुयर ही करता है
ReplyDeleteye insaan mansik rogi hai.....
ReplyDeletevisit my blog- www.vicharonkadarpan.blogspot.com
Much has been written on this issue here, but this is the first post which has properly substantiated the views with PROOF .
ReplyDeleteI appreciate your hard-hitting approach !
adaji, himmat k sath likha gaya aapka lekh behad pathneey hai. sochane par vivash karataa hai.kalaa k naam par husen ne jo nangai ki hai, vah maaf karane yogy nahi hai. durbhagy hai ki nagnataa kee palaki dhone vale log bhi kam nahi hai. yah ek faishan hi ki aap nagnata ko kalaa bataye. khjuraho ka udaaharan de de. baharhaal, aise prayaas jaree rahe. badhai aapko..
ReplyDeleteपोस्ट मे व्यक्त हर मत से सहमत हूँ
ReplyDeleteसरस्वती को ब्रह्मा की मानस पुत्री कहा गया है। यह भी कहा गया है कि सरस्वती पर मुग्ध हो उन्हों ने उनसे विवाह कर लिया था। यह भी कहा गया है कि इस कुकर्म के कारण ही ब्रह्मा की आराधना बन्द हो गई।
ReplyDeleteहमारे पूर्वज बातों को प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से कहने के अभ्यस्त थे। मानवीकरण उनका प्रिय शगल था। गूढ़ार्थ लुप्त होते गए और प्रतीकों को ही सच मान लिया गया.. कुछ ऐसा जैसे भाषा में व्यंजना और लक्षणा को अभिधा मान लिया जाय।.. ब्रह्मा सृष्टि रचयिता है, बिना विद्या के संयोग हुए रचना कैसे होगी ? सब कुछ मन से उत्पन्न है.. विद्या को भी रचयिता की मानस पुत्री कहा गया जो बाद में देवी हो विद्यादायिनी हो गई।.. संझा भाषा में और भी बहुत कुछ है। अस्तु..
हुसैन और उसके जैसे हिन्दू मान्यताओं के इस रूप का प्रयोग कुंठा प्रदर्शन और करेंसी, प्रतिष्ठा वग़ैरह प्राप्त करने के लिए सनसनी खेज ढंग से करते रहे हैं। ..इस बात से सहमत हूँ कि ऐसे लोगों को समय दर समय अनावृत्त करते रहना चाहिए ताकि लोग सोचें समझें।
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का मतलब ये नहीं होता की हम किसी की भावना को आहत करें और कम-से कम एक कलाकार के लिए ये सोचना भी गुनाह है ...रही बात इस म... च......की (गाली लिख नहीं सकता क्युकी यहाँ मेरी मर्यादा इजाजत नहीं देती ) और इसके समर्थक और प्रशंषको की तो ये
ReplyDeleteअपने सगे रिश्तों की नग्नता को भी एन्जॉय कर सकते है इनके लिए हर बात मै कला है
हुसैन देश का गद्दार है और उसके कुक्रित्य को समर्थन देने वाले उससे भी बडे गद्दार है !!!
ReplyDeleteमैंने सिर्फ अपनी आत्मा से अपने सहज ज्ञान को अभिव्यक्त किया "--हुसैन एम् ऍफ़ ---हिन्दुस्तान समाचार ०४-०३-१० --अब आप स्वयं ही समझिये जिस व्यक्ति का सहज ज्ञान व आत्मा इतनी कलुषित है कि वह उन्हें नंगे चित्रों , भारतीय धर्म के देवी -देवताओं के( सिर्फ भारतीय के ) नंगे व अभद्र चित्रों में अभिव्यक्त करता है तो उस मनुष्य का वैचारिक धरातल क्या होगा ? क्या एसे व्यक्ति को भारतीय( अपितु मनुष्य भी ) कहलाने का अधिकार है?
ReplyDelete