श्री कृष्ण
इससे पहले कि आप मेरी रचना पढ़ें सोचा ...ये चित्रकला दिखा दूँ आपलोगों को ...मेरे बेटे मयंक ने बनाया है ...बताइयेगा आप क्या सोचते हैं...
ऐ ज़िन्दगी सुन ले मैं तेरा यार भी नहीं
पर तेरे जलवों से मैं बेज़ार भी नहीं
बाज़ार में बिक रही मेरी खुलूसे मोहब्बत
इसका यहाँ कोई मगर खरीददार भी नहीं
क्या जाने कल यहाँ हम रहें या न रहें
ये सोचने की आपको दरकार भी नहीं
बदनाम हो गया है मेरा नाम हर जगह
अब मुँह कहाँ छुपायें हम, दीवार भी नहीं
महरूमियों की धूप थी सपने ही जल गए
'अदा' तो चल रही है और बीमार भी नहीं
पर तेरे जलवों से मैं बेज़ार भी नहीं
बाज़ार में बिक रही मेरी खुलूसे मोहब्बत
इसका यहाँ कोई मगर खरीददार भी नहीं
क्या जाने कल यहाँ हम रहें या न रहें
ये सोचने की आपको दरकार भी नहीं
बदनाम हो गया है मेरा नाम हर जगह
अब मुँह कहाँ छुपायें हम, दीवार भी नहीं
महरूमियों की धूप थी सपने ही जल गए
'अदा' तो चल रही है और बीमार भी नहीं
खुलूसे = पवित्र, निष्कपट
महरूमियों = वंचित
Bahut Sundar chitra ....Mayank ji ko dhero shubhkaamnae!!
ReplyDeleteRachana to lajwab hai ...Dhanywad!!
बाज़ार में बिक रही मेरी खुलूसे मोहब्बत
ReplyDeleteइसका यहाँ लेकिन कोई खरीददार भी नहीं
बहुत खूब सुन्दर रचना
चित्र लाज़वाब
काव्य-मंजूषा से ऐसे रत्न निकलें स्वाभाविक है । इधर कुछ प्रविष्टियां एकरस हो रहीं थीं । टोकने वाला था, देर हो, पर न्याय हो !
ReplyDeleteबेहतरीन है यह शेर !
"बदनाम हो गया है मेरा नाम हर जगह
अब मुँह कहाँ छुपायें हम, दीवार भी नहीं"
आभार ।
प्रिय मयंक और उनके माँ, दोनों की रचनाएँ बेजोड़! !
ReplyDeleteबात चित्रकला की
ReplyDeleteस्पष्ट, सहज, तीक्ष्ण रेखांकन
शानदार रंग संयोजन
संभावनाएँ बहुत हैं
मयंक को शाबासी, शुभकामनाएँ
Di.. Mayank me ek bahut bada artist chhupa hua hai.. aur mujhe bharosa hai ki aap logon ke sahyog milne se ek din ye ladka art ki dunia me chamakta sitara banega..
ReplyDeletebas maulikta barkarar rakhe aur apni paintings ko auron se alag ek nishchit pahichan de.. :)
best wishes
कहना क्या है...
ReplyDeleteमयंक की रेखाओं के हम पहले से ही फैन हैं.....
शायद किसी चित्र कथा के लिए बनाया लगता है....
उसके लिए..करोड़ों आशीर्वाद..
ढेरों शुभकामनायें...
दुनिया भर की कामयाबी की दुआएं...
इन सधी हुई रेखाओं की तरह से ही आप ज़रा सा अपनी ग़ज़ल को साध लेतीं तो...
एकदम बह्र में आ जाती ग़ज़ल...
बहुत खूब सुन्दर रचना
ReplyDeleteचित्र लाज़वाब
बदनाम हो गया है मेरा नाम हर जगह
ReplyDeleteअब मुँह कहाँ छुपायें हम, दीवार भी नहीं ..
वाह,क्या कहने हैं इन लाइनों के.
प्रिय मयंक की कृति तो लाजवाब है ,मुझे बहुत अच्छी लगी.
(इसी लिए तो माँ का दुलारा है)
Girijesh ji ne email karke ye kaha hai ...
ReplyDeleteमयंक के चित्र अमर चित्र कथा के कॉमिक्सों की याद दिलाते हैं। मैं तो बहुत पहले से फैन हूँ। सामान्यत: कैलेंडर चित्रकारी या हरे कृष्ण आन्दोलन के चित्रों में कृष्ण का चित्रण नारी समान लगता है। इस योद्धा के लालित्य, सौन्दर्य और रसिया स्वभाव के आगे पौरुष छिप सा जाता है लेकिन मयंक की चित्रकारी में इन गुणों को बनाए रखने के साथ साथ पौरुष भी उभर आया है। जरा कृष्ण की भुजा देखिए ! भुजदण्ड नाम सार्थक हो रहा है लेकिन कोमलता पगी हुई है।.. राम स्तुति याद आ रही है "नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम..." आभूषणों से लादने के बजाय मिनिमलिस्ट शृंगार बहुत जँचा। व्यक्तित्त्व पर मेकअप भारी नहीं होना चाहिए।
कविता ग़ज़ल है या नहीं यह तो पंडित जन ही बता पाएँगे। निष्कपट प्रेम का बिकना और कोई खरीददार नहीं होना - प्रभाव चमत्कार के अलावा भी बहुत कुछ है जिसे समझते हुए भी बयाँ नहीं कर पा रहा। दीवार विहीन दौर में बदनाम होना, इतनी शर्म का बचे रहना कि मुँह छिपाने के लिए उस दीवार को ढूँढ़ना जो है ही नहीं ! - तेज़रफ्तारी में फँस चुके 'पुरानी सोच' के आदमी की व्यथा अभिव्यक्त हुई है- बेचारा झोंक में कुछ कर बैठा जो अनुचित था अब पछता रहा है लेकिन निर्मम दौर में रोने को कन्धा कहाँ !
इसे टिप्पणी मान कर छाप दीजिएगा। ब्लॉग जगत से जैसे तैसे जुड़ाव बनाए हुए हूँ। पढ़ना लगभग शून्य हो गया है। ई मेल सब्सक्राइव नहीं किया होता तो यह पोस्ट छूट जाती। जाने कितने उत्तम लेख और कविताएँ पढ़ने से छूट गई होंगी :(
आप दोनों की रचनाएँ अपने अपने क्षेत्र में लाजवाब है!आपके गीत भी सुने,अच्छे है..मेरी शुभकामनायें!!
ReplyDeleteमयंक द्वारा चित्रित श्री कृष्ण के रेखाचित्र सुंदर हैं, उनके कारनामें तो आप अक्सर हमें दिखाती रहती हैं,
ReplyDeleteग़ज़ल को समझने की दरकार है....
हम तो कृष्णजी के भक्त हैं और इतना सुन्दर रेखाचित्र वाकई लाजबाब, बहुत दिनों बाद कुछ शब्द पढ़ने को मिले आपकी रचना की बदौलत..।
ReplyDeleteचित्रांकन बहतु सुंदर है, बेटे को बधाई!
ReplyDeleteयथा जननी, तथा सुत...
ReplyDeleteमयंक के बारे में तो मैंने बहुत पहले ही लिख दिया था, जनाब लंबी रेस के घोड़े हैं...
रहे आपके उदगार...तो उनके बारे में बस इतना ही कहूंगा...
रहे न रहे हम,
महका करेंगे,
बागे कली, बागे सबा में...
जय हिंद...
सुन्दर चित्र अच्छी गजल!
ReplyDeleteमयंक की चित्रकला और आपकी रचना, दोनों ने प्रभावित किया.
ReplyDeleteमयंक के रेखाचित्र सुन्दर है ..उसे शुभकामनायें ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर चित्र बना है श्री कृष्ण का!
ReplyDelete"मोर मुकुट कटि काछनी उर वैजंती माल।
वा बानिक मो मन बसो सदा बिहारी लाल॥"
"क्या जाने कल यहाँ हम रहें या न रहें ..."
फिल्म ममता का गीत याद आ गया
रहें न रहें हम ...
बदनाम हो गया है मेरा नाम हर जगह
ReplyDeleteअब मुँह कहाँ छुपायें हम, दीवार भी नहीं
महरूमियों की धूप थी सपने ही जल गए
'अदा' तो चल रही है और बीमार भी नहीं
bahut khoob.........
mayank kee painting bahut acchee lagee .samay samay par uskee paintings dikhatee rahe ye aagrah hai........
बच्चों के एक्जाम चल रहे हैं ...देर सवेर हो जाती है ....
ReplyDeleteमयंक की चित्रकारी के बारे में क्या कहूँ ...इस कला की बारीकियों की इतनी समझ नहीं ....मगर लुभाती रही है ...बहुत सुन्दर..
बिट्टू रश्क कर रही थी अपनी लगातार चलने वाली परीक्षाओं के कारण ....कब से कोई स्केच नहीं बना पायी है ....
दुनिया करती रही लेकर जिसका नाम बदनाम
बस उसकी जुबान पर ही नहीं आया मेरा नाम ..
मेरी अगली ग़ज़ल का मुखड़ा बन गया ...
दीवार ढूँढने की नौबत कहाँ आई ...समझ में नहीं आया ...
बाज़ार में बिक रही मेरी खुलूसे मोहब्बत
इसका यहाँ कोई मगर खरीददार भी नहीं ...
निष्कपट मुहब्बत बिकाऊ हो नहीं सकती फिर खरीददार की दरकार कहाँ ....
निकलते रहिये ऐसे रत्न ....कद्रदान बड़े इन्तजार में रहते हैं ...:)
सुन्दर है ये गजल जैसी चीज़ ...(आपने लिखा ये गजल नहीं है)
ReplyDeleteबदनाम हो गया है मेरा नाम हर जगह
अब मुँह कहाँ छुपायें हम, दीवार भी नहीं
...... ये शेर खास पसंद आया
अच्छा लगता है आपकी पोस्ट पर आ कर ... मै तो पाठकों की उपेक्षा वश कई दिनों से लिखना ही बंद कर दिया था, जी नहीं माना तो कल फिर कुछ लिख दिया है ...अगर समय मिले तो ...
SUNDAR KALAA DONO HEE MEIN, CHITR MEIN BHEE AUR GAJAL MEIN BHEE !
ReplyDeleteBahut hi khoobsurat likha hai aapne...
ReplyDeleteShabdo ko itna umdaah prayog...!!
Rgds,
Dimple
बहुत ही बेहतरीन लगी दीदी आज की पोस्ट , मयंक के चित्र वास्तव में लाजवाब है , आने वाले समय में ब्लोगिंग में शैल परिवार का वर्चस्व चलेगा ऐसा प्रतित हो रहा है , मयंक को मेरी अग्रीम शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना लगी दीदी , मयंक मे एक बहुत बड़ा कलाकार छिपा है , दीपक भईया ने सही कहा एक दिंन यह सितारा अपनी कला के माध्यम से पुरी दुनियां को रोशन करेगा ।
ReplyDeleteजब माँ इतनी गुणी है तो बेटा तो एक कदम आगे निकलेगा ही ना? मयंक को हमारी तरफ से बधाई दीजिएगा।
ReplyDeleteऐ ज़िन्दगी सुन ले मैं तेरा यार भी नहीं
ReplyDeleteपर तेरे जलवों से मैं बेज़ार भी नहीं .
.......सुन्दर रचना
खुलूसे मोहब्बत निभाना बहुत ही कठिन है । खरीददार नहीं, पक्का दीवाना चाहिये ।
ReplyDeletebahut sundar chitr mayank ko badhai kahiyega.
ReplyDeleteaapki rachna bhi achchi lagi
बाज़ार में बिक रही मेरी खुलूसे मोहब्बत
ReplyDeleteइसका यहाँ कोई मगर खरीददार भी नहीं
बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ।
मयंक की चित्रकारी बहुत खूबसूरत है।
मयंक के कला कौशल ने कतई भी आश्चर्यचकित नहीं किया। यदि आपके परिवार का कोई सदस्य असाधारण कौशल न रखता होता, तो हमें आश्चर्य जरूर होता। बहुत सुंदर रचनायें - मयंक की भी और आपकी भी।
ReplyDeleteCHITRA AUR RACHNA DONO HI GAZAB KE HAIN.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
mayanak ka haath bahut abhyast hai...sundar chitr hai...mera aashirwaad
ReplyDeleteaur gazal hamesha ki tarah behtareen
मिलावट इस क़दर शामिल हुई है जिंदगानी में...
ReplyDeleteकि खालिस दूध से पेचिस है, घी से बाँस आती है..
हमें भी गर्क कर देनी पड़ी सचाइयां अपनी..
कहाँ अब अहले-दुनिया को खुलूसी रास आती है....
दिल करे तो छाप दीजिएगा अदा जी,
कहीं और नहीं कहेंगे हम...
Gazab!
ReplyDeleteचित्र बढियां, बहुत ही बढियां है. हर स्ट्रोक में एक लय है, गति है.
ReplyDeleteजितना अच्छा माँ लिखती है उतने ही अच्छे बेटा चित्र बनाता है। मंयक को बहुत बहुत आशीर्वाद्
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