आज फिर उसने मुझको रुलाया है
रूठे हुए थे हम वो मनाने आया है
ज़ख्मों पे पपड़ी सी कुछ जमी हुई थी
नाखून से कुरेद कर उसने हटाया है
रूठे हुए थे हम वो मनाने आया है
ज़ख्मों पे पपड़ी सी कुछ जमी हुई थी
नाखून से कुरेद कर उसने हटाया है
दिल के क़तरनों के पैबंद बना कर
हमने भी कई ज़ख्म सबसे छुपाया है
मरहम धरने की नई साज़िश रचा
एक और घाव उसने फिर लगाया है
महबूब भी है खौफ़-ए-रक़ीब भी है
मेरे ही ज़ख्मों से मुझको सजाया है
हमने भी कई ज़ख्म सबसे छुपाया है
मरहम धरने की नई साज़िश रचा
एक और घाव उसने फिर लगाया है
महबूब भी है खौफ़-ए-रक़ीब भी है
मेरे ही ज़ख्मों से मुझको सजाया है
आज फिर उसने मुझको रुलाया है
ReplyDeleteरूठी हुई थी मैं पर उसने मनाया है
सुंदर गज़ल .... बधाई
मरहम धरने की नई साज़िश रचा
ReplyDeleteफिर एक घाव उसने और लगाया है
महबूब भी है खौफ़-ए-रक़ीब भी है
मेरे ही ज़ख्मों से मुझको सजाया है
ada ji
aaj to kamaal ki prastuti hai............kin lafzon mein tarif karoon............dil ko choo gaye har sher.
दिल के क़तरनों के पैबंद बना कर
ReplyDeleteहमने भी कई ज़ख्म सबसे छुपाया है
bahut khoob....waah kya baat hai
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
ReplyDeleteमरहम धरने की नई साज़िश रचा
ReplyDeleteफिर एक घाव उसने और लगाया है
उसके हाथों को गर मंजूर हो मरहम लगाना
उफ भी न करूँगा बेशक् सौ जख्म लगाना
ADA JI PLZ VISI
ReplyDeletehttp://yuvatimes.blogspot.com/2010/03/blog-post_30.html
मरहम धरने की नई साज़िश रचा
ReplyDeleteफिर एक घाव उसने और लगाया है
ye sher achcha laga.
महबूब भी है खौफ़-ए-रक़ीब भी है
ReplyDeleteमेरे ही ज़ख्मों से मुझको सजाया है
बहुत खूब!
हो गये इस गजल की अदा पर हम फिदा!
वाह, क्या बात है! गजलों का मौसम चल रहा है। बहुत खूब लिखा आज भी आपने।
ReplyDeletenishabd...!!!
ReplyDelete!!
!
महक शामिल हुई है, बेवफाई में वफ़ा की भी
ReplyDeleteदवा भी किस 'अदा' से ज़ख्म पर मरहम लगाती है..
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
किस खूब सूरत अदा से अदाजी ने कह दिया
ReplyDeleteमहबूब भी है खौफ़-ए-रक़ीब भी है
मेरे ही ज़ख्मों से मुझको सजाया है
पेड़ जंगल के हरे सब हो गए ,
ReplyDeleteख्वाब आंखो मे उतर आया कोई.
क्या बात है..
ReplyDeleteमरहम धरने की नई साज़िश रचा
ReplyDeleteएक और घाव उसने फिर लगाया है
Deep thought Ada Di.. very deep..
ज़ख्मों पे पपड़ी सी कुछ जमी हुई थी
ReplyDeleteनाखून से कुरेद कर उसने हटाया है ...
kuch "zakhm" achhe hote hain...
महबूब भी है खौफ़-ए-रक़ीब भी है
ReplyDeleteमेरे ही ज़ख्मों से मुझको सजाया है
बहुत सुन्दर कल्पना
बेहतरीन गज़ल!!
ReplyDeleteNamaste :)
ReplyDeleteMy my!! What a fabulous work done!!!
I am really touched...
Nice line
--- "नाखून से कुरेद कर उसने हटाया है"
Hats off!
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
ये सब कर गया!!! बहुत बड़ा वो है!
ReplyDeleteबेहतरीन ...लाजवाब...विशिष्ट ...उत्तम ...उम्दा ... दर्देजिगर ...निरुत्तर करती ...अद्वितीय ...
ReplyDeleteअतिसुंदर ...ख्याल ...
महबूब भी है खौफ़-ए-रक़ीब भी है
मेरे ही ज़ख्मों से मुझको सजाया है
बहुत खूब ...बहुत कुछ
दर्द को शब्दों में बड़ी खूबसूरती से ढाला है !
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