क्या तुमने देखा है ?
एक श्वेतवसना तरुणी को,
जो असंख्य वर्षों की है,
पर लगती है षोडशी
इस रूपबाला को देखे हुए
बहुत दिन हो गए,
मेरे नयन पथराने को आये
परन्तु दर्शन नहीं हो पाए
मैंने सुना है,
उस बाला को कुछ भौतिकवादियों ने
सरेआम ज़लील किया था
अनैतिकता ने भी,
अभद्रता की थी उसके साथ
बाद में भ्रष्टाचार ने उसका चीरहरण
कर लिया था
और ये भी सुना है,
कि कोई बौद्धिकवादी,
कोई विदूषक नहीं आया था
उसे बचाने
सभी सभ्यता की सड़क पर
भ्रष्टाचार का यह अत्याचार
देख रहे थे
कुछ तो इस जघन्य कृत्य पर खुश थे,
और कुछ मूक दर्शक बने खड़े रहे
बहुतों ने तो आँखें ही फेर ले उधर से
और कुछ ने तो इन्कार ही कर दिया
कि ऐसा भी कुछ हुआ था
तब से,
ना मालूम वो युवती कहाँ चली गयी
शायद उसने अपना मुँह
कहीं छुपा लिया है,
या कर ली है आत्महत्या,
कौन जाने ?
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
तो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
'मानवता' कहते हैं....
ati sunder...........
ReplyDeleteऔर उस युवती को हम
ReplyDelete'मानवता' कहते हैं....
जी हाँ देखा है हमने वह गिरफ्त में है 'अमानवता' के
सुन्दर रचना
कुछ सफ़ेद वसनधारी,
ReplyDeleteधर्मनिरपेक्ष अपहर्ता
जो
शक्ल शूरत से,
लगते थे नेक से !
अपहरण कर ले गए
उसे
भरी दोपहर में,
नई दिल्ली एक से !!
"उसका पता है :
ReplyDeleteसभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
'मानवता' कहते हैं.... "
मानवता नामक युवती को ढूँढने की कोशिश करना व्यर्थ है क्योंकि उसकी हत्या की जा चुकी है। नैतिकता नामक मकान भी खंडहर हो चुका है और सभ्यता गली उजड़ चुकी है।
"जो असंख्य वर्षों की है,
पर लगती है षोडशी"
उपरोक्त पंक्तियों को पढ़कर बरबस ही राइडर हैगर्ड (Rider Haggard) के उपन्यास She के उस काल्पनिक पात्र की याद आ गई जो असंख्य वर्षों से षोडशी है।
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअदाजी, सर्वप्रथम तो होली की शुभकामनाएं। मैं पुणे चले गयी थी तो कल आते ही आपका मेल मिला और आज सुबह ही आपका पोडकास्ट सुना। थोड़ा लम्बा हो गया इसलिए आज किसी भी ब्लाग पर जाना नहीं हुआ। प्रस्तुत कविता अच्छी है। मैं आपको अलग से मेल करूंगी।
ReplyDeleteji aapki ye kavita pahle bhi padhi hai aur hamesha naya aabhas deti hai........iske bare mein kahne ko shabd nhi hain..........mook kar diya hai.
ReplyDeleteअरे अरे..भौतिकतावादियो पर ये आरोप भई उन्हीने तो बचाया है अब तक मानवता को
ReplyDeleteउसका पता है :
ReplyDeleteसभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
'मानवता' कहते हैं.... "
अदा जी बहुतच्छी लगी कविता। मानवता सही मे मर चुकी है । बहुत मुश्किल है ये सच सवीकारना मगर अब लगता है स्वीकारना ही पडेगा। शुभकामनायें
बहुत ही सुन्दर रचना....
ReplyDeleteअगर तुम्हें कहीं वो मिले,
ReplyDeleteतो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
'मानवता' कहते हैं....
वाह क्या अंदाज़ है मैडम.......कविता का अंत बहुत ही बेहतरीन बन पड़ा है....अच्छी रचना के लिया आपको बधाई.....
bahut sundar bhav.
ReplyDeleteअभी अभी खबर आयी है कि स्वार्थ और लोभ ने मिल कर मानवता का वध कर दिया है !!!
ReplyDeleteआप की ये सुन्दर अभिव्यक्ति एक गहरी सोच को प्रेरित करती है !!!
ReplyDeleteमानवता तो अभी नहीं मिली, पर हम उसका ठिकाना देखने आपके बताये पते पर गये तो हैरानी हुई कि वो मकान, वो गली भी अपनी जगह से गायब है। शायद वहां भी किसी भूमाफ़िया ने चमकदार मेंशन बना दिया हो। लगता है मानवता की विशेषतायें ही उसकी कमजोरी बन गईं। तलाश जारी है, दोषियों को बक्शा नहीं जायेगा, कड़ी कार्रवाई की जायेगी, सरकार सख्त कार्रवाई करेगी, वगैरह-वगैरह। बाकी तो आप समझदार हैं ही।
ReplyDeleteमानवता --अज़ी ढूंढते रह जाओगे।
ReplyDeleteजवाब नहीं ...बहेतरीन प्रस्तुति ..
ReplyDelete"आशियाने की बात करते हो,
ReplyDeleteदिल जलाने की बात करते हो।"
क्या मैडम, आज के समय में मानवता की बात छेड़ बैठीं आप। दूरदर्शन का एक विज्ञापन याद आ गया, "सावधानी, व्हाट सावधानी मैन?" उसी तर्ज पर कह सकते हैं, "मानवता? व्हाट मानवता, मैडम?"
बहुत बढ़िया रचना ... कुछ कुछ व्यथा कहती हुई ...आभार
ReplyDeleteअगर तुम्हें कहीं वो मिले,
ReplyDeleteतो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
'मानवता' कहते हैं....
-क्या पता..कहाँ मिलेगी. मुश्किल ही दिखता है लेकिन उम्मीद पर तो आसमान टिका है..खोजते हैं.
बहुत उम्दा रचना!
इस कविता को पहले भी पढ़ा था ...लेकिन इस बार कुछ और ही अनुभूति हो रही है... यही कविता की विशेषता है ।
ReplyDeleteआप बेस्ट हो दीदी , अब आप के लिए क्या कहूँ बार-बार ,।
ReplyDeleteलाजवाब कविता ! इस ब्लॉगजगत में आप से ही अपेक्षित !
ReplyDeleteअंत तो निश्चित ही बहुत प्रभावी है ! आभार ।
मानवता की हत्या ..
ReplyDeleteकोई माई का लाल नहीं कर सकता....
जो कहते हैं के मानवता की ह्त्या हो गयी है..
ReplyDeleteवो सब बकवास करते हैं...
Behad khubsurat!!
ReplyDeleteवाह,मन को छू गयी .
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