Monday, March 15, 2010

मुर्दों का शहर....

मुर्दों का शहर है ये
जहाँ हर कोई
अपना जनाज़ा खुद उठाये
चला जा रहा है
बस फर्क सिर्फ इतना है
कफ़न अब रंग-बिरंगे
हो गए हैं
मातम ने खुशियों
के मुखौटे पहन लिए हैं
और सभी लाशें
सीधी खड़ी हैं
क्योंकि दफ़नाने को
जगह बची नहीं है.....



वीराना.....

तन्हाई ने तन्हाई से 
घबराकर
वीराने से पूछा
तुम इतने वीरान क्यों हो
वीराने ने ठंडी आह
भरी और कहा
मेरा घर इस वीराने 
में अकेला खड़ा है
तुम चली आओ न
तो इस वीराने में
तन्हाई के साथ
अकेले जी लेंगे....

मयंक की चित्रकारी...ज़रा अलग हट कर है ...आज...
 

जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम ...खेल अधूरा छूटे न...
आवाज़ सिर्फ़ 'अदा' की...

31 comments:

  1. बहुत अच्छी हैं दोनों कवितायेँ और मयंक की कलाकारी. लेकिन आज गाने को फुल बटा फुल मार्क्स..

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  2. क्या है ये सुबह सुबह मुर्दों का शहर ...वीराना ...
    मैं तो चली वापस नींद लेने ...मूड ख़राब कर दिया ...
    कहाँ कल का गीत और कहाँ आज की ये सड़ी मनहूस ग़ज़ल ...
    अच्छा ... अच्छा ...गीत तो आज भी है ...
    मगर वो कल वाली बात कहाँ ...):

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  3. क्या है ये सुबह सुबह मुर्दों का शहर ...वीराना ...
    मैं तो चली वापस नींद लेने ...मूड ख़राब कर दिया ...
    कहाँ कल का गीत और कहाँ आज की ये सड़ी मनहूस ग़ज़ल ...
    अच्छा ... अच्छा ...गीत तो आज भी है ...
    मगर वो कल वाली बात कहाँ ...):

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  4. सभी लाशें
    सीधी खड़ी हैं
    क्योंकि दफ़नाने को
    जगह बची नहीं है....

    -ओह!! क्या गज़ब की गहरी बात कह दी...लौट कर तो आप और जबरदस्त लिख रही हैं..एक बार फिर जाकर आईये. :)

    -चित्रकारी और गीत भी बहुत आनन्ददायी.

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  5. मुझे लगता है कि अब आप को मुक्तिबोध को पढ़ना चाहिए - 'अंधेरे में' और 'ब्रह्मराक्षस'।

    मयंक का चित्र - पत्तियों से घिरे आकाश और जमीन से लगे आकाश में रंगों का अंतर क्यों है?

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  6. अदा बहन,
    दोनो कविताएं सुदर भावों को अभिव्यक्त करती हैं
    मयंक की चित्रकारी भी अच्छी है।
    गाना भी बहुत अच्छा है।
    हो सके तो फ़ाईल भेज दें।
    आभार
    शुभकामनाएं

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  7. तुम चली आओ न
    तो इस वीराने में
    तन्हाई के साथ
    अकेले जी लेंगे....
    कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

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  8. मयंक जी की चित्रकारी तो बढ़िया है ही!
    इसके साथ ही
    आपकी दोनों रचनाएँ
    बहुत कुछ सोचने का विवश करती हैं!

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  9. इत्ती डरावनी कवितायें! जुलुम है जी!

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  10. Blog ka yah naya rup bahut accha lag raha hai ...dono kavitae bahut umda hai gahan bhav liye aur Mayank babu ke to kya kahane :)

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  11. हमारे तो जी फ़ैवरेट हैं ये तनहाई, वीराना, दर्द, पीड़ा। और फ़िर पुरानी कवितायें। जुल्म पे जुल्म कर दिये जी। और ये गाना तो हमने पहले ही आपके ब्लॉग से डाऊनलोड कर रखा है, कौन रहे आपके भरोसे। पुरानी चीजों के तो हम मुरीद हैं, पर ये मयंक के चित्र तो नये हैं, ये भी बहुत प्रभावित करते हैं।
    आभार।

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  12. कविता, चित्र और गीत ..सब अदभुत, बेहतरीन और नायाब.

    रामराम.

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  13. बहुत बढिया दी। आपका ही ट्रेडमार्क लिये हुए..बहुत दिनो के बाद आ रहा हू जो मै हमेशा ही करता हू :)

    seems you are in a bad mood...everything fine na? aur mayank ke sketches dekhe...pretty good...is he pursuing fine arts?

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  14. कोई दोस्त है न रकीब है,
    तेरा शहर कितना अजीब है,
    मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
    यहां सब के सर पे सलीब है,
    तेरा शहर कितना अजीब है.
    कोई दोस्त है न रकीब है...

    जय हिंद...

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  15. khushboo jaise log mile...
    VEERAANE mein...

    ek puraanaa khat kholaa...
    anjaane mein...........


    gulaam ali ki ghazal yaad ho aayi..
    aapkaa veeraanaa dekh kar...
    bahut sunder...chitraa bhi..kavitaayein bhi...

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  16. Subah say shaam tak bojh dhotaa hua, apni he laasha ka khud majaar aadmi.

    Waah...... kya khubsurati say sach kaha aapnay.

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  17. अदा जी,
    आप अच्छा लिखती भी और गाती भी है। अभी कुछ दिनों पहले जब मैं, ललित जी, अवधिया जी, पाबला जी, भाई संजीव, शरद कोकास जी होली के पहले होली मनाने के लिए एकत्रित हुए थे तब मुझे आपका गाना सुनाया गया था। मैं भी थोड़ा बहुत कारोके में गुनगुना लेता हूं। मुझे लगता है कि जो संगीत से प्रेम करता है वह थोड़ा ज्यादा संवेदनशील होता है। संवेदनशीलता आपकी रचनाओं में नजर आती है। काम कुछ इस तरह का है कि ब्लागजगत को बहुत ज्यादा समय नहीं दे पाता। ललितजी से ही पता चलता रहता है कि आज आपने क्या लिखा है।
    इसी संवेनशीलता के साथ लिखते रहिए। संवेदनशील होना मनुष्य होने की सबसे पहली शर्त है। आप इन शर्तों का ठीक ढंग से निर्वाह कर रही है। मैं आपकों बधाई व शुभकामनाएं देता हूं।

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  18. अदा जी,
    आप अच्छा लिखती भी और गाती भी है। अभी कुछ दिनों पहले जब मैं, ललित जी, अवधिया जी, पाबला जी, भाई संजीव, शरद कोकास जी होली के पहले होली मनाने के लिए एकत्रित हुए थे तब मुझे आपका गाना सुनाया गया था। मैं भी थोड़ा बहुत कारोके में गुनगुना लेता हूं। मुझे लगता है कि जो संगीत से प्रेम करता है वह थोड़ा ज्यादा संवेदनशील होता है। संवेदनशीलता आपकी रचनाओं में नजर आती है। काम कुछ इस तरह का है कि ब्लागजगत को बहुत ज्यादा समय नहीं दे पाता। ललितजी से ही पता चलता रहता है कि आज आपने क्या लिखा है।
    इसी संवेनशीलता के साथ लिखते रहिए। संवेदनशील होना मनुष्य होने की सबसे पहली शर्त है। आप इन शर्तों का ठीक ढंग से निर्वाह कर रही है। मैं आपकों बधाई व शुभकामनाएं देता हूं।

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  19. दोनों कवितायेँ ....लाजवाब

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  20. ओह मुर्दों को जगह नहीं दफनाने को ....बढ़िया रचना

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  21. dono rachnayein gazab ki hain aur mayank ki chitrkari bhi bahut hi badhiya hai.

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  22. मुझे तो आप की कवितये पढ कर डर लगने लगा है जी, वो तो सुंदर ओर फ़टा फ़ट खुलने वाले टेम्प्लेट ओर उस सुंदर गीत ने बांध लिया, वर्ना तो .....

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  23. अभी दुबारा पढ़ी ये ग़ज़ल ...
    अब इतनी बुरी नहीं लग रही ...:):)

    मातम ने खुशियों के मुखौटे पहन लिए ...सारी लाशें खड़ी है ..कि दफ़न करने को जगह नहीं ...
    ये जिन्दा चलती फिरती लाशें ...जिनमे जीने की उमंग नहीं ...लाशें ही तो हैं ....

    तन्हाई पर सुन ले दो शब्द ...

    आज तन्हाई में सोचा
    जब तेरे बारे में
    खुद पर हंसी आ गयी
    तू औ तन्हाई ..
    मुमकिन ही नहीं ....

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  24. क्योंकि दफ़नाने को
    जगह बची नहीं है..
    kya bat kahi hai...or gana or mayank ke chitr to sadabahar hain hi.

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  25. तन्हाई के साथ
    अकेले जी लेंगे....
    अच्छी लगी रचना.
    मयंक की चित्र कला तो अच्छी है ही.

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  26. कविता मे जब कल्पना का समावेश हो जाता है तब इसमें निहित ध्वन्यार्थ अलग प्रतीत होने लगता है और शब्दों के कई कई अर्थ दिखाई देने लगते हैं । बहुत सुन्दर कविता ..और मयंक के क्या कहने ..उसके लिये अलग से ब्लॉग बनाइये ना ?

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  27. dono rachnaye to hai hi behtrin magar meri pasand ka gaana aapne kaise chura liya ,main to badi hifajit se rakkhi rahi apne paas ,mujhe behad pasand hai aur baar baar sunti hoon .

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  28. आज कि दोनों रचनाएँ...मुर्दों का शहर और वीराना बहुत अच्छी लगीं....सच्चाई को बताती नज्में हैं...बधाई

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  29. morden murdo ka shahar hai bhai...isliye rangbirange murde hai..

    aur tanhai aur virane ka saath waah kya badhiya baat kahi hai...aur vo b dono ek sath rahne ko taiyar...akele..kya khoob hai..

    aaj apki lekhni ka ye rang b umda he.

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  30. नज़र में खटके है बिन तेरे घर की आबादी.
    हमेशा देख कर रोते हैं हम, दरो-दीवार..



    bade uncle yaa ho aaye aaj..

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