Tuesday, March 16, 2010

समय.......गीत....ये समा समा है ये प्यार का


याद है मुझे,
जब मैं छोटी बच्ची थी,
झूठी दुनिया की
भीड़ में, भोली-भाली
सच्ची थी,
तब भी सुबह होती थी
शाम होती थी,
तब भी उम्र यूँ ही
तमाम होती थी,
लगता था पल बीत रहे हैं
दिन नहीं बीता है
मैं जीतती जा रही हूँ,
वक्त नहीं जीता है,
पर,अब बाज़ी उलटी है पड़ी,
वक्त भाग रहा है,और मैं हूँ खड़ी
वक्त की रफ़्तार का
नहीं दे पा रही हूँ साथ,
इस दौड़ में न जाने कितने
छूटते जा रहे हैं हाथ
अब समय मुझे दिखाने लगा अंगूठा
कहता है, तू झूठी,
तेरा अस्तित्व भी झूठा
जब तक तुम सच्चे हो
तुम्हारा साथ दूंगा
जब कहोगे,जैसा कहोगे,
वैसा ही करूँगा
अच्छाई की मूरत बनोगे तो
समय से जीत पाओगे
वर्ना दुनिया की भीड़ में
बेनाम खो जाओगे
आज भी समय जा रहा है भागे
सदियों पुरानी सच्चाई की मूरत
अब भी हैं आगे
ये वो हैं जिन्होंने
ता-उम्र बचपन नहीं छोडा है
वक्त ने इन्हें नहीं,
इन्होने वक्त को मोड़ा है
सोचती हूँ
कैसे लोग बच्चे रह जाते हैं
झूठ की कोठरी में रह कर भी
सच्चे रह जाते हैं,
अभी तो मुझे
असत्य की नींद से जागना है
फिर समय के
पीछे-पीछे दूर तक
भागना है ....

और अब गीत....
ये समा समा है ये प्यार का ... 
आवाज़  ..'अदा'



मयंक की चित्रकारी :

23 comments:

  1. जब मैं बिल्कुल बच्चा था,
    बड़ी शरारत करता था,
    मेरी चोरी पकड़ी जाती,
    रौशनी देता बजाज...

    अब मैं बिल्कुल बूढ़ा हूं,
    गोली खाकर जीता हूं,
    फिर भी रौशनी देता बजाज...

    मयंक की कला वाकई लाजवाब है, अभी तक उसकी कृतियों की कोई प्रदर्शनी लगी है या नहीं...

    जय हिंद...

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  2. हमको मन की शक्ति देना
    मन विजय करें
    दूसरों की जय से पहले
    खुद की जय करे ...
    आत्मावलोकन के लिए सही मौका चुना ....
    नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें ....
    शुभ हो ....!!

    ब्लॉग अब सुन्दर लग रहा है ...

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  3. बहुत ही मर्यादित तरीके से जीवन के सार और अनुत्तरित प्रश्नों को इस कविता में पिरो दिया है... वह
    जब तक तुम सच्चे हो तुम्हारा साथ दूंगाजब कहोगे,जैसा कहोगे, वैसा ही करूँगा.....

    सोचती हूँ कैसे लोग बच्चे रह जाते हैंझूठ की कोठरी में रह कर भी सच्चे रह जाते हैं...

    मुझे असत्य की नींद से जागना हैफिर समय के पीछे-पीछे दूर तक भागना है ...

    जवाब नहीं इन पंक्तियों का...

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  4. बड़ा होने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, हम तो छोटे ही रहना चाहते हैं जी। और आप समय के पीछे नहीं समय के साथ भागइये।
    मयंक की चित्रकला भी लाजवाब है।
    आभार।

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  5. मेरा प्रिय गीत आपकी सुरीली आवाज़ में सुनकर मन झूमने लगा :)
    नवरात्र पर्व पर मंगल कामनाएं
    Nice Pic too ....
    स्नेह
    -लावण्या

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  6. तब भी सुबह होती थी
    शाम होती थी,
    तब भी उम्र
    यूँ ही तमाम होती थी



    मीना कुमारी की याद टूट कर याद आई...जब आपकी लिखी ये लाइनें देखीं...

    यूं ही आये दिन ब्लॉग के रंग बदलते रहिये.....
    अच्छा लगता है...

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुती। कविता भी और गीत भी दोनो बहुत अच्छी लगे। धन्यवाद और नव संवत्सर की व नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

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  8. समय समय की बात होती है। कभी हम सोचा करते थे कि हम पूरे संसार को पाल सकते हैं पर आज सोचते हैं कि काश सारा संसार मिल कर हमे पाल लेता!

    मयंक की चित्रकारी अच्छी लगी!

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  9. बेहतरीन रचना!


    मयंक की कलाकारी ने तो मन मोह लिया.


    गीत भी बढ़िया/

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  10. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

    बहुत खूब, लाजबाब !

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  11. नवसम्‍वतसर की हार्दिक बधाई। आगामी वर्ष आप हमें प्रतिदिन एक गीत सुनाती रहे बस यही आकांक्षा है।

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  12. बहेतरीन ...रचना .....और मयंक की कलाकारी भी लाजवाब .......और आपकी आवाज की तो कोई तुलना नहीं ......अति सुन्दर .

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  13. वक्त के साथ जिंदगी के झूठ और सच को कहती अच्छी रचना.....बधाई

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  14. 1. आपकी कविता - यह अच्छी कविता है लेकिन आप तुक के मोह में क्यों रहती हैं कभी कभी तुक से भी लय बाधित होती है । यह आपसे बेहतर कौन समझ सकता है । बिना तुक के भी उत्तम प्रभाव व लय उत्पन्न की जा सकती है ( उदाहरण के लिये यह गीत देखे .. इस मोड़ से जाते हैं/ कुछ सुस्त कदम रस्ते/ कुछ तेज़ कदम राहें / पत्थर की हवेली को...... । और भी ऐसी कई कवितायें हैं ।

    2. मयंक का चित्र गहरे अर्थ रखता है । एक चेहराविहीन व्यक्ति ..यह आज के चालाक समाज का चित्र भी हो सकता है और आज के एक आम आदमी का भी ..जो अपने ही चेहरे की तलाश में हैं । मयंक को सही विचारधारा मिल जाये तो वह गज़ब ढा सकता है ।

    3. आपका गाया गीत ..ऊँहूँ... आज आपने मस्ती के साथ इस गीत को नहीं गाया । फिर एक बार इसे उसी मूड के साथ गाइये ।
    4... इतना सब कहने के बाद नूतन वर्षाभिनन्दन कहना तो भूल ही गया । आपको और आपके परिवार को शुभकामनायें ।

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  15. 1. आपकी कविता - यह अच्छी कविता है लेकिन आप तुक के मोह में क्यों रहती हैं कभी कभी तुक से भी लय बाधित होती है । यह आपसे बेहतर कौन समझ सकता है । बिना तुक के भी उत्तम प्रभाव व लय उत्पन्न की जा सकती है ( उदाहरण के लिये यह गीत देखे .. इस मोड़ से जाते हैं/ कुछ सुस्त कदम रस्ते/ कुछ तेज़ कदम राहें / पत्थर की हवेली को...... । और भी ऐसी कई कवितायें हैं ।
    2. मयंक का चित्र गहरे अर्थ रखता है । एक चेहराविहीन व्यक्ति ..यह आज के चालाक समाज का चित्र भी हो सकता है और आज के एक आम आदमी का भी ..जो अपने ही चेहरे की तलाश में हैं । मयंक को सही विचारधारा मिल जाये तो वह गज़ब ढा सकता है ।
    3. आपका गाया गीत ..ऊँहूँ... आज आपने मस्ती के साथ इस गीत को नहीं गाया । फिर एक बार इसे उसी मूड के साथ गाइये ।
    4... इतना सब कहने के बाद नूतन वर्षाभिनन्दन कहना तो भूल ही गया । आपको और आपके परिवार को शुभकामनायें ।

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  16. हमें और कुछ नहीं दिखा ..बस इन्तहां ही खूबसूरत गीत और आपकी आवाज़..

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  17. gulzar sahab ki wo wali lines.... der tak baithe huye dono ne baarish dekhi...

    blog ka to rang dhang sab change ho gaya hai....
    bahut badhiya... bahut saare gaane aapke pending ho gaye hain.. samay nikalna padega....

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  18. अच्छी रचना है। शुक्रिया

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  19. बहुत बढ़िया गाया जी।
    मयंक की चित्रकारी --गज़ब।

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  20. नव संवत्सर मंगलमय हो.
    हर दिन सूरज नया उदय हो.
    सदा आप पर ईश सदय हों-
    जग-जीवन में 'सलिल' विजय हो..

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