Monday, March 29, 2010

सवेरा ...


दूर क्षितिज में सूरज डूबा
साँझ की लाली बिखर गयी
रात ने आँचल मुख पर डाला
चाँद की टिकुली निखर गयी
ओस की बूँदें बनी हीरक-कणी
जब चन्द्र-किरण भी पसर गयी
तारे टीम-टीम मुस्काते नभ पर
जुगनू पूछे जुगनी किधर गयी ?

एक रात मेरे जीवन में आई
उसमें ऐसा कुछ कहीं न था
न साँझ की लाली ही बिखरी
चाँद का टीका सजा न था
न उम्मीद की किरण नज़र आई
विश्वास का तारा दिखा न था
आंसू के सैलाब बहे थे और
जुगनू-जुगनी का पता न था

बरस पर बरस बीत गए
पर वो रात तो जैसे ठहर गयी
युग बीते न जाने कितने
और लगता था एक पहर गयी
न जाने किस भावः ने कब
किस भावः से मेरे झगड़ गई
इक चिंगारी फूटी कहीं
और शोला बन वो लहर गई

अब भी रात वहीँ ठहरी है
पर बहुत उजाला लगता है
किरण-किरण से जुड़ जाते हैं
उम्मीद सुनहरा लगता हैं
चाँद का टीका भूल गई मैं
विश्वास तिलक सा लगता हैं
जीवन सी बस जी उठी मैं
हर साँस सवेरा लगता है

22 comments:

  1. behatreen mancheey kavita ban padi hai lekin aaj Mayank babu kahan hain..

    ReplyDelete
  2. चाँद का टीका भूल गई मैं
    विश्वास तिलक सा लगता हैं
    जीवन सी बस जी उठी मैं
    हर साँस सवेरा लगता है
    --
    विश्वासों का जब तिलक होगा
    हर पत्थर चकमक होगा

    ReplyDelete
  3. कितनी बेहतर बात है तिलक लगे विश्वास।
    साँस सबेरा जब बने बढ़ जाती तब आस।।

    शुभकामनाएँ।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. वाह .....ada जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!

    ReplyDelete
  5. जीवन सी बस जी उठी मैं
    हर साँस सवेरा लगता है

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

    ReplyDelete
  6. चाँद की टिकुली भूल गयी ...
    मन का विश्वास जीत गया ...
    चाँद अपना नहीं था भूला तो भूला
    मन अपना है ...विश्वास वही कायम रहे ...
    इस कविता में हिंदी का रंग कुछ अलग है ...अच्छी लगी ...!!

    ReplyDelete
  7. रात कली इक ख्वाब में आई,
    और गले का हार हुई,
    सुबह को जब हम नींद से जागे,
    आंख उन्ही से चार हुई,
    रात कली इक ख्वाब....

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

    ReplyDelete
  9. लाजवाब ख्यालात!!
    आप अनंत समय तक ऐसी ही जिजीविषा भरी रचनायें रचती रहें, हार्दिक कामना है।
    आभार

    ReplyDelete
  10. आखिर आशा की किरण लौट ही आई।
    आस का विश्वास ही जीवन को बल देता रहता है।

    ReplyDelete
  11. तर्ज :
    उठो लाल अब आँखें खोलो
    पानी लाई हूँ मुँह धो लो
    बीती रात कमल दल फूले
    उनके उपर भौंरे झूले ...

    जी करता है सारी कविता ही यहाँ लिख जाऊँ। क्या रवानी है ! क्या प्रवाह है !! उस कविता में ;)

    बहुत बढ़िया लगी। एक पल सोचा कि मैंने तो नहीं रचा इसे ! होता है होता है!!
    चाँद की टिकुली, जुगनू-जुगनी । बाद में गम्भीरता का स्पर्श। वाह।

    ReplyDelete
  12. चाँद का टीका भूल गई मैं
    विश्वास तिलक सा लगता हैं
    जीवन सी बस जी उठी मैं
    हर साँस सवेरा लगता है

    आपने विरोधाभास का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है!

    ReplyDelete
  13. बुन्देले हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी
    खूब लडी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी॥

    लगा कि मै कविता पाठ कर रहा हू :) उपमाये जबरदस्त है-

    साँझ की लाली
    चाँद की टिकुली
    विश्वास का तारा
    विश्वास तिलक
    साँस सवेरा

    ReplyDelete
  14. इस जानकारी के लिए आभार


    चाँद का टीका भूल गई मैं

    ReplyDelete
  15. चाँद का टीका भूल गई मैं
    विश्वास तिलक सा लगता हैं
    जीवन सी बस जी उठी मैं
    हर साँस सवेरा लगता है
    ....दिल में उतर गयी ये पंक्तियाँ.....

    http://laddoospeaks.blogspot.com/

    ReplyDelete
  16. दूर क्षितिज में सूरज डूबा
    साँझ की लाली बिखर गयी
    रात ने आँचल मुख पर डाला
    चाँद की टिकुली निखर गयी

    बहुत सुन्दर रचना अदा जी !

    ReplyDelete
  17. जीवन सी बस जी उठी मैं
    हर साँस सवेरा लगता है

    हर साँस सबेरा ही है, तन, मन में नवीनता लाती है । सुन्दर कविता ।

    ReplyDelete
  18. ek bahut hi vishisht rachnaa....



    blog jagat mein aksar kam hi milti hain aisee rachnaayein...


    subhaan allaaaaaaaaaaaaah.....

    ReplyDelete