दूर क्षितिज में सूरज डूबा
साँझ की लाली बिखर गयी
रात ने आँचल मुख पर डाला
चाँद की टिकुली निखर गयी
ओस की बूँदें बनी हीरक-कणी
जब चन्द्र-किरण भी पसर गयी
तारे टीम-टीम मुस्काते नभ पर
जुगनू पूछे जुगनी किधर गयी ?
एक रात मेरे जीवन में आई
उसमें ऐसा कुछ कहीं न था
न साँझ की लाली ही बिखरी
चाँद का टीका सजा न था
न उम्मीद की किरण नज़र आई
विश्वास का तारा दिखा न था
आंसू के सैलाब बहे थे और
जुगनू-जुगनी का पता न था
बरस पर बरस बीत गए
पर वो रात तो जैसे ठहर गयी
युग बीते न जाने कितने
और लगता था एक पहर गयी
न जाने किस भावः ने कब
किस भावः से मेरे झगड़ गई
इक चिंगारी फूटी कहीं
और शोला बन वो लहर गई
अब भी रात वहीँ ठहरी है
पर बहुत उजाला लगता है
किरण-किरण से जुड़ जाते हैं
उम्मीद सुनहरा लगता हैं
चाँद का टीका भूल गई मैं
विश्वास तिलक सा लगता हैं
जीवन सी बस जी उठी मैं
हर साँस सवेरा लगता है
साँझ की लाली बिखर गयी
रात ने आँचल मुख पर डाला
चाँद की टिकुली निखर गयी
ओस की बूँदें बनी हीरक-कणी
जब चन्द्र-किरण भी पसर गयी
तारे टीम-टीम मुस्काते नभ पर
जुगनू पूछे जुगनी किधर गयी ?
एक रात मेरे जीवन में आई
उसमें ऐसा कुछ कहीं न था
न साँझ की लाली ही बिखरी
चाँद का टीका सजा न था
न उम्मीद की किरण नज़र आई
विश्वास का तारा दिखा न था
आंसू के सैलाब बहे थे और
जुगनू-जुगनी का पता न था
बरस पर बरस बीत गए
पर वो रात तो जैसे ठहर गयी
युग बीते न जाने कितने
और लगता था एक पहर गयी
न जाने किस भावः ने कब
किस भावः से मेरे झगड़ गई
इक चिंगारी फूटी कहीं
और शोला बन वो लहर गई
अब भी रात वहीँ ठहरी है
पर बहुत उजाला लगता है
किरण-किरण से जुड़ जाते हैं
उम्मीद सुनहरा लगता हैं
चाँद का टीका भूल गई मैं
विश्वास तिलक सा लगता हैं
जीवन सी बस जी उठी मैं
हर साँस सवेरा लगता है
behatreen mancheey kavita ban padi hai lekin aaj Mayank babu kahan hain..
ReplyDeleteचाँद का टीका भूल गई मैं
ReplyDeleteविश्वास तिलक सा लगता हैं
जीवन सी बस जी उठी मैं
हर साँस सवेरा लगता है
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विश्वासों का जब तिलक होगा
हर पत्थर चकमक होगा
कितनी बेहतर बात है तिलक लगे विश्वास।
ReplyDeleteसाँस सबेरा जब बने बढ़ जाती तब आस।।
शुभकामनाएँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
nice
ReplyDeleteवाह .....ada जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!
ReplyDeleteजीवन सी बस जी उठी मैं
ReplyDeleteहर साँस सवेरा लगता है
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
चाँद की टिकुली भूल गयी ...
ReplyDeleteमन का विश्वास जीत गया ...
चाँद अपना नहीं था भूला तो भूला
मन अपना है ...विश्वास वही कायम रहे ...
इस कविता में हिंदी का रंग कुछ अलग है ...अच्छी लगी ...!!
nice
ReplyDeleteरात कली इक ख्वाब में आई,
ReplyDeleteऔर गले का हार हुई,
सुबह को जब हम नींद से जागे,
आंख उन्ही से चार हुई,
रात कली इक ख्वाब....
जय हिंद...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
ReplyDeleteलाजवाब ख्यालात!!
ReplyDeleteआप अनंत समय तक ऐसी ही जिजीविषा भरी रचनायें रचती रहें, हार्दिक कामना है।
आभार
आखिर आशा की किरण लौट ही आई।
ReplyDeleteआस का विश्वास ही जीवन को बल देता रहता है।
तर्ज :
ReplyDeleteउठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लाई हूँ मुँह धो लो
बीती रात कमल दल फूले
उनके उपर भौंरे झूले ...
जी करता है सारी कविता ही यहाँ लिख जाऊँ। क्या रवानी है ! क्या प्रवाह है !! उस कविता में ;)
बहुत बढ़िया लगी। एक पल सोचा कि मैंने तो नहीं रचा इसे ! होता है होता है!!
चाँद की टिकुली, जुगनू-जुगनी । बाद में गम्भीरता का स्पर्श। वाह।
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
चाँद का टीका भूल गई मैं
ReplyDeleteविश्वास तिलक सा लगता हैं
जीवन सी बस जी उठी मैं
हर साँस सवेरा लगता है
आपने विरोधाभास का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है!
बुन्देले हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी
ReplyDeleteखूब लडी मर्दानी, वह तो झासी वाली रानी थी॥
लगा कि मै कविता पाठ कर रहा हू :) उपमाये जबरदस्त है-
साँझ की लाली
चाँद की टिकुली
विश्वास का तारा
विश्वास तिलक
साँस सवेरा
इस जानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteचाँद का टीका भूल गई मैं
चाँद का टीका भूल गई मैं
ReplyDeleteविश्वास तिलक सा लगता हैं
जीवन सी बस जी उठी मैं
हर साँस सवेरा लगता है
....दिल में उतर गयी ये पंक्तियाँ.....
http://laddoospeaks.blogspot.com/
दूर क्षितिज में सूरज डूबा
ReplyDeleteसाँझ की लाली बिखर गयी
रात ने आँचल मुख पर डाला
चाँद की टिकुली निखर गयी
बहुत सुन्दर रचना अदा जी !
जीवन सी बस जी उठी मैं
ReplyDeleteहर साँस सवेरा लगता है
हर साँस सबेरा ही है, तन, मन में नवीनता लाती है । सुन्दर कविता ।
क्या खूब विश्वास है.
ReplyDeleteek bahut hi vishisht rachnaa....
ReplyDeleteblog jagat mein aksar kam hi milti hain aisee rachnaayein...
subhaan allaaaaaaaaaaaaah.....