मैंने फिर, अपने वजूद को, झाडा, पोंछा, उठाया दीवार पर टंगे, टुकडों में बंटें आईने में खुद को कई टुकडों में पाया....लेकिन समेट लिए हैं सभी टुकड़े और पंख बना लिए हैं रोक सको तो रोक लो....ये मैं चली जूऊऊऊउSSSSSS
हाँ नहीं तो....!!
आज जो भी मैं कहने जा रही हूँ, बहुत संभव है आप अपने-अपने घरों में ऐसा ही कुछ करते हैं.....ये आलेख बस मैं आपको याद दिलाने के लिए लिख रही हूँ....अगर आप सचमुच ऐसा ही करते हैं फिर धन्यवाद स्वीकार कीजिये मेरा...
किसी एक महिला के साथ जुड़ी मात्र मातृत्व अथवा अर्धांगिनी की भूमिका को आज की नारी ने अपने संबल से असत्य सिद्ध कर दिया है, नारी सिर्फ़ माँ, बहन, पत्नी, पुत्री नहीं इससे भी ज्यादा बहुत कुछ है, आज के इस युग में न सिर्फ वो पुरुष के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही है, अपितु कई क्षेत्रों में उसने पुरुषों से भी बाज़ी मार ली है, निःसंदेह आज की नारी न तो अबला रही न ही पुरानी विचारधारा के अनुसार पुरुषों के पाँव की जूती....
अधिकतर, निम्न-माध्यम वर्गीय या माध्यम-वर्गीय परवारों में तो पुरुषों ने महिलाओं को प्रोत्साहन देने हेतु नौकरी करने के लिए प्रेरित किया है अथवा स्वार्थ या मजबूरी के लिए महिलाओं को कामकाजी होने के लिए बाध्य किया है..
तुलनात्मक दृष्टि से अगर विचार करें तो हम देखते हैं कि आज के युग में नारी पुरुष की अपेक्षा कई क्षेत्र में, अधिक कुशल, दूरदर्शी, परिश्रमी एवं ईमानदार साबित हो रही है, तो फिर दोनों ही क्षेत्रों में उसकी सफलताओं एवं उपलब्धियों को कैसे नकारा जा सकता है ?? अगर आप अपने घरों में या आस-पास देखेंगे तो पायेंगे कि महिलाएं बड़ी मुस्तैदी से दोनों ही कार्य क्षेत्रों में अर्थात घर तथा बाहर , फिर चाहे वह दफ्तर, स्कूल, अस्पताल इत्यादि कोई भी जगह हो, में सफलता पूर्वक काम कर रही हैं,
लेकिन अगर आप और अधिक सूक्ष्मता से विचार करेंगे तो पायेंगे कि नारियाँ, ख़ास करके माध्यम वर्गीय परिवारों में अपने घरेलू काम के बोझ तले पिस जातीं हैं, संयुक्त परिवारों में तो ऐसी महिलाओं की स्थिति प्रायः और भी जटिल है , शारीरिक परिश्रम तो होता ही है, मानसिक तनाव को झेलना, भी उन्हें अपने स्वभाव में शामिल करना पड़ता है ... संयुक्त परिवार हो या एकल परिवार, नारी की दयनीय स्थिति उस समय और दयनीय हो जाती है जब उसके अपने पति का अहम छोटे-छोटे घरेलू कामों को न करने की आदत या करने में शर्म अथवा लज्जा महसूस करने की प्रवृति या फिर 'लोग क्या कहेंगे' जैसी सोच , पत्नी के काम के बोझ से टकराती है... अधिकतर पति अपने समकक्ष या उच्च स्तर वाली पत्नी को सह पाने की विवशता भी दिखाते हैं...
घर और बाहर के पाटों के बीच में पिस रही महिला चाहती है कि, सदियों पुरानी पुरुष मानसिकता और रवैया अब बदल जाए लेकिन अगर, पुरुष मन में ऐसी धारणा बना ले कि अमुक काम सिर्फ पुरुष के हैं और अमुक काम सिर्फ स्त्री के तो समस्या का समाधान कठिन है
परिवर्तन तो संसार का नियम है, अगर महिलाओं में परिवर्तन आया है, उन्होंने घर की दहलीज से बाहर कदम रख कर काँधे से काँधा मिलाया है, घर की अर्थव्यवस्था में अपना खून-पसीना लगाया है, बेशक चाहे परिस्थियां इसका कारण रहीं हों, पति की इच्छा हो या स्वयं का संतोष, तो क्या पुरुष को भी अपने आप में समयानुसार बदलाव नहीं लाना चाहिए ??
अगर पुरुष अधिक न भी करे कुछ ही छोटे-छोटे कामों को अपने हाथ में ले ले तो स्त्री (पत्नी) को बहुत राहत मिल सकती है, इस प्रकार थोड़ा-बहुत अपने साथी का साथ देने से न सिर्फ स्त्री इस दयनीय स्तिथि से उबरेगी अपितु उसके आत्मबल को भी बल मिलेगा, घर का वातावरण सौहार्दपूर्ण होगा ...याद रखिये जब एक-एक घर मुसुकुरायेगा तो समाज मुस्कुराएगा और तब ही राष्ट्र खिलखिलाएगा ......आमीन ...!!
और अब बारी है मयंक की चित्रकारी की ...ये पता नहीं क्या बनाया है उसने वही जाने लेकिन बना है कुछ देखिये ज़रा...
और अब गीत सुनिए ...
नैनों में बदरा छाये.....आवाज़ .वही...'अदा' की..
"घर चलाना भी बहुत बड़ी बात होती है। अगर भारतीय नारी विदेशी नारियों की तरह स्वयं में पुरूष भाव जाग्रत करने को तरक्की समझती हैं तो फिर भारतीय समाज को तबाह होने से कोई नहीं बचा सकता....
ReplyDelete"
amitraghat.blogspot.com
achchha laga ..aapko wapas dekhkar
ReplyDeleteसुस्वागतम, खुशामदीद, वेल्कम बैक
ReplyDeleteWELCOME BACK :)
ReplyDeleteऔर सब लोग आपको वेलकम क्यों कर रहे हैं ...कहा गयी थी आप ...??
ReplyDeleteसही कहा ...घर के छोटे छोटे काम करने में कोई इगो नहीं होना चाहिए ....
ReplyDeleteइस मामले में मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ...यदि पतिदेव के पास समय हो तो मुझसे बेहतर खाना बना सकते हैं...और मुझसे बेहतर तरीके से घर भी संभाल लेते हैं ...!!
वाह आज तो फिर से ब्लागजगत की खुशी लौट आयी है। अदा के बिना कमेन्टबा़ भी सूने सूने से लगे। तीनो चीज़ें लाजवाब हैं मयक तो सही मे चित्रकार बन गया।गीत ? वाह । बधाई
ReplyDeletekuch ghanton ke liye gayi thi...
ReplyDeleteusi mein sako laga ki main chali gayi...
ha ha ha ...
Bahut acchi post likhi di aaj to aapane ....Mayank Babu abhi to Mahila Arkshan ne apana parakram bhi nahi dikhaya aur aapane purush ki ye dasha chitrit kar di :D
ReplyDeleteBahut badhiya post sab kuch accha laga...Dhanywaad!
स्वागत है आपका. गीत अति मधुर और उम्दा चुनाव.
ReplyDeleteरामराम.
लेख अपनी जगह पर मयंक का चित्र वास्तव में ही बहुत सुंदर है.
ReplyDeleteवास्तव में चेतना जगाने वाली पोस्ट!
ReplyDeleteखत का मजमून तो लिफाफा देख कर ही
पता लग गया है!
मयंक भविष्य में बढ़िया चित्रकार बनेगा!
आपकी आवाज भी बहुत मधुर है!
आज सुकून के साथ श्रीमती जी के साथ
मैंने आपका पूरा गाना सुना!
बधाई!
आस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इस आलेख में मुखरित हुए हैं । आलोचना करने पर भी संतुलन नहीं खोना आपकी विशेषता है।
ReplyDeleteaalekh par charchaa
ReplyDeletebaad mei...
pehle
"naino mei badraa chhaae..."
kamaaaaaal
one of my fvrts...
aur ye...welcome back kyooN
"main chali,,,main chali.."
kayaa aisa keh kr gayi theeeeN....!!
मुझे पता है आप कहां गई थीं...जूऊऊऊउSSSSSS से...लेकिन बताऊंगा नहीं..
ReplyDeleteहां, नहीं तो...
हर पुरुष के अंदर एक राम होता है और एक रावण...इसी तरह हर महिला के अंदर एक सीता होती है और एक मंथरा...हमें ज़रूरत है बस अपने अंदर के राम और सीता को जगाए रखने की...अगर सब कोई गलत काम करते वक्त बस अपने अंदर के राम और सीता से डरने लगें तो सतयुग अपने आप ही दोबारा आ जाएगा...
जय हिंद...
बाप रे तौबा तौबा ...मैं बच गया .....वर्ना आपने तो ...मेरी ..हां नहीं तो .....कर ही दी थी ....काहे की वैलकम बैक जी ...चौबीसों घंटे तो आप भी यहां आलथी पालथी मारे बैठी रहती हैं हमारे साथ ...बस अपनी हरी बत्ती रहती है ....और आप मिस्टर ..नहीं नहीं मिस्टरनी इंडिया ..अरे अदृश्य बन के रहती हैं ....अब कहिए हां नहीं तो.......
ReplyDeleteअजय कुमार झा
मैं हूँ न !!!!:यही तो लफ़ड़ा है!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट है! मयंक का बनाया चित्र सुन्दर है!
अच्छा आलेख,जी बिल्कुल समाज बदल रहा है,बस इसे गति देने की ज़रूरत है. मयंक अच्छा प्रयास .
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
Ek sarsarbhit post ke liye aabhar di.. lekin taazzub hai ki achchhoi post padhne ke liye logon ke paas samay nahin hota..
ReplyDeleteMayank ke chitra ke to kahne hi kya.. jakad ke rakh diya ladke ko wire se.. :)
अच्छी पोस्ट और रेखांकन भी शानदार,मयंक को बधाई।
ReplyDeleteमयंक तो गज़ब कर रहा है ..उसके लिये अलग से एक ब्लॉग बनवा दीजिये ।
ReplyDeleteशरद जी की बात पर ध्यान दीजिएगा
ReplyDeleteऔर यह सब आपका स्वागत क्यों कर रहे? कहीं जाना हुआ था कि कोई ईनाम जीत लाए हैं? :-)
हम ही दो दिन से गायब थे, शहर से दूरssssssssssssss
निहायत खूबसूरत !
ReplyDeleteमयंक के चित्रकारी के साथ-साथ आपकी पोस्ट भी बहुत बढ़िया लगी ।
ReplyDeleteखूबसूरत !
ReplyDeleteशरद जी की बात मान ही लीजिये !
वह ब्लॉग सहेजने लायक होगा, अत्युत्तम ! आभार ।
वैसे गौर-तलब तो ये भी है मैम कि आज का पुरूष भी तो बदल गया है...बदल रहा है।
ReplyDeleteमयंक की स्केचिंग मुझे मेरे फ़ेवरिट करेक्टर पीटर पार्कर की याद दिला रहा है।