तन्हाई, रात,
बिस्तर, चादर
और कुछ चेहरे,
खींच कर चादर
अपनी आँखों पर
ख़ुद को बुला लेती हूँ
ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी
और ख्यालों से
दोस्ती
जिनके हाथ थामते ही
तैर जाते हैं
कागज़ी पैरहन में
भीगे हुए से, कुछ रिश्ते
रंग उनके
बिलकुल साफ़ नज़र
आते हैं,
तब मैं औंधे मुँह
तकिये पर न जाने कितने
हर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की
रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं....
औंधे मुँह
ReplyDeleteतकिये पर जाने कितने
हर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की
रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं....
फिर एकबार और बार-बार बढ़िया कविता का सृजन.. दी..
तन्हाई की एक और शाम ,
ReplyDeleteदर्द का गुबार ,.
ख्यालों का बिछौना
एहसासों की चादर
और ...
तकिये के धब्बे
बन जाते हैं हर्फ़ ...
अधमुंदी पलकों में इतने आंसू जो होते हैं ...
अल्फाज़ जो उकेरे है कविता के रूप में , नमी इनकी अंतस तक भिगो रही है ....
तकिये पर न जाने कितने
ReplyDeleteहर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की
रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं....
एहसास की सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर
चित्रकारी किधर है जी आज मयंक की!
ReplyDeleteओह! ऐसे भाव!
ReplyDeleteजुनूने-गिरिया का ऐसा असर भी दिल पे होता है
ReplyDeleteकि जब तकिया नहीं मिलता तो दिल कागज़ पे रोता है..
लाजवाब कविता ...
निशब्द...
वाह! एक ख्याल याद आता है,इस रचना पर
ReplyDeleteनीद को बद्दुआ न दे जाना,
मुझे जीने की सज़ा न दे जाना!
अनूप जी,
ReplyDeleteआज मयंक की चित्रकारी नहीं डाली क्योंकि सबने कहा अब उसका अलग ब्लॉग होना चाहिए....
देखती हूँ जब समय मिलेगा तो बनाना भी पड़ेगा...उसके पास तो फुर्सत है ही नहीं....फिर भी कहूँगी कुछ कर ले...
पूछने के लिए आपका बहुत शुक्रिया....
कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
ReplyDeleteरौशनी में
ReplyDeleteधब्बे से बन जाते हैं....
फिर एकबार और बार-बार बढ़िया कविता का सृजन.. दी..
Sorry for comment in English - I hate writing Hindi in Roman.
ReplyDeleteपैरहन- शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्र
Am I right? ... little confused!
Any way I arranged it like prose (my experimentism :))
तन्हाई, रात, बिस्तर, चादर और कुछ चेहरे,खींच कर चादर अपनी आँखों पर ख़ुद को बुला लेती हूँ ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी और ख्यालों से दोस्ती जिनके हाथ थामते ही तैर जाते हैं कागज़ी पैरहन में भीगे हुए से, कुछ रिश्ते रंग उनके बिलकुल साफ़ नज़र आते हैं, तब मैं औंधे मुँह तकिये पर न जाने कितने हर्फ़ उकेर देती हूँ जो सुबह की रौशनी में धब्बे से बन जाते हैं....
and then I read, really enjoyed the flow and new meanings coming out. Gradually I am believing that free verse poetry should be presented like prose lines. It gives a different texture and effect to poetry.
Is " रौशनी " correct?
बहुत खूबसूरत रचना .....
ReplyDeleteया गर्मियों की रात जो पुरवाइयां चलें,
ReplyDeleteठंडी सफ़ेद चादरों पे जागे देर तक,
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए,
दिल ढूंढता है, फिर वही फुर्सत के रात दिन...
जय हिंद...
नायाब अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब ,,,अच्छी रचना ,,,,कई बार पढ़ने के लिए प्रेरित किया .....
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.vichrokadarpan.blogspot.com
ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी और ख्यालों से दोस्ती,
ReplyDeletekaash is raat ki subah na ho
ek achhi kavita
dhanyvad
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
ख़्वाबों से कुट्टी है मेरी और ख्यालों से दोस्ती
ReplyDeletekaash is raat ki subah na ho
ek achhi kavita
dhanyavad
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
कविता में तो आपने दिल उलेड़कर रख दिया है....
ReplyDeleteMai dang rah jati hun,ki, aapko aisee kalpnayen soojhtee kaise hain?Aur itne khoobsoorat alfaaz, jinme wo piroyi jati hain?
ReplyDeleteकाबिले तारीफ़ !
ReplyDeleteये सारे के सारे सपनों के हमराही भी हैं ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पेशकश।
ReplyDeleteअब मै क्या कहूं!
ReplyDeleteदेवदास फिल्म में एक शेर सुना था-
"दिल के छालो गर कोई शायरी कहे परवाह नहीं,
तकलीफ तो तब होती है जब लोग वह-वह करते है!"
बस यही सोच कर मै चुप हूँ!
कुंवर जी
sab kuchh to samait liya hai is rachna me. ...lekin kuwar ji k rev.ka khayaal aata he to wah wah kaise karu???
ReplyDeleteये सब चीजें तो हमारे पास भी हैं पर ऐसा सृजन नहीं कर सकते कभी भी, शायद एक संवेदनशील हृदय की भी जरूरत होती है, बस वही नहीं है।
ReplyDeleteइन चंद लाईनों ने मथ कर रख दिया है जी हमें तो।
आभार।
"तब मैं औंधे मुँह
ReplyDeleteतकिये पर न जाने
कितने हर्फ़ उकेर देती हूँ
जो सुबह की रौशनी में
धब्बे से बन जाते हैं...."
इस वक्त सिर्फ़ सोच रहा हू...
पता है, मैंने पहले भी कहा था कि आपके ब्लॉग पर आती हूँ और बिना टिप्पणी किये चली जाती हूँ. आज भी मन नहीं कर रहा था टिप्पणी करने का, पर सोचा कि कर ही दूँ. वैसे कुछ कहने को होता नहीं खासकर आपकी कविताओं को पढ़ने के बाद, बस उसे महसूस करने का जी होता है.
ReplyDeleteख़्वाबों से कुट्टी है मेरी
ReplyDeleteऔर ख्यालों से
दोस्ती
जिनके हाथ थामते ही
तैर जाते हैं
अदा जी!
आपने इस रचना में
भावो के उतार-चढ़ाव का
सुन्दर समन्वय किया है!
बहुत-बहुत बधाई!
तब मैं औंधे मुँह
ReplyDeleteतकिये पर न जाने कितने
हर्फ़ उकेर देती हूँ
bahut achcha laga.