आज खड़ी मैं अकेली बताइये जनाब
हम नज़र में किसी के थे माहताब
लगा डूबने क़िस्मत का आफ़ताब
वफ़ा की डगर पर मैं चलती रही
वो रुके चुन रहे हैं जफ़ायें बेहिसाब
मुझे कब थी आदत तेरे दाद की
यूँ ही कसते रहो फ़िकरे लाजवाब
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
बेकरार दिल तू गाये जा खुशियों से भरे वो तराने
आवाज़ ....स्वप्न मंजूषा 'अदा'
Gaa ke sunateen tab kahte na waah waah.. abhi to badhiya kah rahe hain.. poochhiye kyon? kyonki apni besuri awaz me ga rahe hain Di.. :)
ReplyDeleteमैं अकेली क्यों खड़ी जनाब ....
ReplyDeleteकभी नहीं घबराने का ...अकेले होने पर ज्यादा अच्छी तरह समझ पाते हैं हम अपने आप को
थे नजर में माहताब ....
अपनी नजर में क्या है ....फर्क सिर्फ इससे पड़ना चाहिए .....दूसरी नजरों से नहीं ....
मुझे आदत कब हुई दाद की कब रही करते रहो फिकरे लाजवाब ....
फिकरों से भी घबराने का नहीं ....
मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब ....
अब इससे बड़ा जवाब और क्या हो ....
क्या ये कविता किसी दूसरी कविता का जवाब है ...जो भी है ...लाजवाब है .....
बहुत बढ़िया ....
हमेशा मेरे साथ रहने और साथ देने के लिए बहुत आभार ....
ReplyDeleteवाणी की बच्ची,
ReplyDeleteतेरा कमेन्ट छाप तो दिया, लेकिन दिल किया तेरा गला दबा दूँ ...बस..
हा हा हा हा हा ...
@ मुझे कब थी आदत तेरे दाद की
ReplyDeleteयूँ ही कसते रहो फ़िकरे लाजवाब
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
लाजवाब ।
ब्लॉग की अपनी एक छोटंकी कविता याद आ गई:
"हमने जो पूछा उनका हाल
देखा किए वे कहर का सामान
गुम थे सुम थे
लौट आए हम।
..फिर सुलगते रह गए अरमान।"
चौदहवीं का चांद हो, या आफ़ताब हो,
ReplyDeleteजो भी हो, खुदा की कसम लाजवाब हो...
जय हिंद...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteपिछले दिनों एक जरूरी फोन आना था...और मोबाईल जिद कर रहा था के रिचार्ज नहीं होगा...
बस..
पूरे होशो-हवास में पटक के दे मारा..
जब से मोबाइल तोड़ा है...आपकी आवाज़ से महरूम हो गए हैं...
काश उस वक़्त ध्यान रह पाता के इसी मोबाइल में
बेकरार दिल..
सुखनवर मेरा..
और चन्दा ओ चन्दा....फीड हैं तो शायद.......
और हाँ...चलें जैसे हवाएं सनन सनन भी...........................
फिलहाल बस काम चल रहा है का....पर वो बात नहीं रही...
गीत याद हो आया है....
गीत और कविता ....दोनों पर खामोश हैं...
गीत फिर से ना सुन पाने के कारण शर्मिन्दा हैं....
अजी चुप सी क्यों लगी है, जरा कुछ तो बोलिए ... बेकरार दिल तू गाए जा सुनकर आनन्द आ गया।
ReplyDeleteअब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
ReplyDeleteमेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
-अब इससे आगे कोई क्या कहे...गाया भी जबरदस्त!!
मुझे कब थी आदत तेरे दाद की
ReplyDeleteयूँ ही कसते रहो फ़िकरे लाजवाब
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
बिल्कुल सटीक और सामयिक रचना लग रही है मुझे तो. लाजवाब जवाब दिया आपने.
रामराम.
लाजवाब !!! रचना भी, फोटू भी और गीत भी.
ReplyDeleteथे अपने मेरे कल सुनो बेहिसाब
ReplyDeleteआज खड़ी मैं अकेली बताइये जनाब
CHINTAIIIICHHH nahi apun hai na...
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
arey bhai ek chup so baato ka jawab hota hai....aur jo baato se nahi haar mante...vo chuppi se haar man jate hai...
so to kisi ne galat thode hi kaha he...ek chup..sau sukh....
kyu ji theek he na???
सुन्दर अभिव्यक्तियाँ..लाजवाब रचना..बधाई !!
ReplyDelete____________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़ें 'अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस' पर आधारित पोस्ट. अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस के 100 साल पर बधाई.
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
ReplyDeleteमेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
हमेशा की तरह सुंदर रचना...
कुछ न कह कर तो सब कुछ कहा जाता है। बहुत अच्छी रचना और गीत ? वो तो अपकी सुरीली आवाज़ मे अच्छा ही लगता है धन्यवाद।
ReplyDelete"मुझे कब थी आदत तेरे दाद की
ReplyDeleteयूँ ही कसते रहो फ़िकरे लाजवाब
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब"
यह रही बेहतर अदा आपकी !
खूबसूरत प्रविष्टि ! आभार ।
सुन्दर अभिव्यक्ति……………।बिना कहे भी बहुत कुछ कहा जाता है।
ReplyDeleteKya gazab likhtee hain aap...har baar mai stabdh ho jati hun..
ReplyDeleteमेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
ReplyDeleteऔर क्या.. बहुत बढ़िया...
aadaab !
ReplyDeleteचुप्पी भी बहुत कुछ कह जाती है।
ReplyDeleteबेक़रार दिल ----लाज़वाब।
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ReplyDelete.
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ऐसे मनाये महिला दिवस
सर्वसाधारण के हित में >> http://sukritisoft.in/sulabh/mahila-diwas-message-for-all-from-lata-haya.html
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteचुप्पी? ऐसा हो नहीं सकता.......! what would be iron, if gold rusts?
ReplyDeleteगाना हमेशा की तरह शानदार।
मुझे कब थी आदत तेरे दाद की
ReplyDeleteयूँ ही कसते रहो फ़िकरे लाजवाब
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
सुंदर रचना.
घड़ियाल के आंसू तो दिख ही नहीं रहे हैं दिखने थे न ?
ReplyDeleteकविता वाकई बहुत अच्छी है --देखिये न मेरे मौन को भी मुखर कर गयी!
जवाब तो हैं मेरे पास बस उनके सवाल खो गए हैं -ढूंढ रहा हूँ ,मदद नहीं करेगीं ?
कैसी सहृदया है आप ? मगर हुआ क्या है/था आखिर ?
आप वही कनाडा वाली स्वप्न मंजूषा जी हैं न ?
कविता आशावाद से भरी है ,
ReplyDeleteआज के दिन यह आशावाद और भी सोने में सुहागे सा लग रहा है !
@ मेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
अज्ञेय जी की बात याद आ रही है ;
'' मौन भी अभिव्यंजना है '' !
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सोच रहा हूँ की काश कविता '' मौन को भी मुखर कर गयी! '' होती !!!
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गाना बड़ा अच्छा लगा , हमेशा की तरह ! आभार !
Khamoshi apane aap me bahut kuch samae rahati hai kuch parithitiyon me to khamoshi sanwaad se jyada bayaan kar jaati hai....Bahut bhadiya lagi yah rachana!!
ReplyDeleteDhanywaad
एक चुप सौ को हराती है....बहुत खूबसूरती से लिखी है ग़ज़ल.....
ReplyDeleteपर अकेली कहाँ???????
अदाजी! सुंदर गजल :
ReplyDelete
ReplyDeleteचुप चुप खड़ी हो.. ज़रूर कोई बात है
ये भी कोई मुलाकात है जी, कैसी मुलाकात है ..
ट्रेंरूँ..ट्रेंरूँ !
इतनी बढ़िया गज़ल पर यह भयानक चित्र क्यों लगाया है अदा जी ?
ReplyDeleteaaj naye pc ke sath pahli bar apaka git suna, bahut hi sundar gaya hai.
ReplyDeletekavita bhi achchhi hai.
badhai
अब रोके तुम्हें कौन, कुछ भी कहो
ReplyDeleteमेरी चुप्पी रहेगी तुम्हारा जवाब
मौन सशक्त है । कुछ प्रश्नों का मौन से कठोर उत्तर हो ही नहीं सकता ।