कुछ बुलबुले
कुछ बुलबुले देख कर
ख़ुश हो जाती हैं
ज़िन्दगानियाँ
ज़िन्दगानियाँ
भूल जाते हैं कि
जब ये फूटेंगे तो
क्या होगा !
जब ये फूटेंगे तो
क्या होगा !
हाथ रिक्त
आसमाँ रिक्त
रिक्त सा जहाँ होगा
देवता
कहते हैं !
तुम काम क्रोध छोड़ दोगे तो
देवता बन जाओगे
काम क्रोध छोड़े हुए
कोई देवता देखा नहीं !
पीर पीर
पोर पोर में पीर है
और पोर पोर में पीर
पीर पोर पोर की जाई प्रभु
और पीर पोर पोर बसी जाई....
सुंदर और गंभीर अर्थों वाली क्षणिकाएँ! बधाई!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन!!
ReplyDelete-पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात...तभी जब तक बुलबुले हैं, खुश हो लेते हैं!!-
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
Bahooooooooooot hi gahri baat bahut hi sada shabdon me kah di di..
ReplyDelete(१)पहली रचना के बारे में अभी कुछ नहीं कहेंगे...
ReplyDeleteकल दोबारा आयेंगे..
(२) तीसरी रचना आपको थोड़ी और स्पष्ट करनी होगी...
(३) अब दूसरी रचना....देवता...
एकदम सही कहा आपने... देवता तो बहुत मामूली चीज है..
आदमी तक नहीं देखा....
पर एकदम सही समय ...सही स्थान पर आयें तो दोनों ही बहुत जरूरी हैं...
एकदम मानवीय गुण जो हैं काम/क्रोध......
वो और बात के इनकी अति इन्हें दुर्गुण बना देती है...
कुछ लोग इन्हीं गुणों की देवताओं में...अथवा ईश्वर में होने की दुहाई देकर....जाने क्या क्या काण्ड कर जाते हैं...
और नाम देते हैं...ईश्वर-लीला का...
कहते हैं !
ReplyDeleteतुम काम क्रोध छोड़ दोगे तो
देवता बन जाओगे
काम क्रोध छोड़े हुए
कोई देवता देखा नहीं !
अत्यंत सुन्दर, सत्य है
बेहतरीन। लाजवाब।
ReplyDeleteVani ji ne email bheja...
ReplyDeleteबुलबुले फूटेंगे तो मवाद बह जायेगी और क्या ...
फटे तो बम नहीं तो फुस्स .....:):)
पीर पोर पोर की जाई प्रभु
और पीर पोर पोर बसी जाई....
ऐसा असर .....:):)
रामनवमी की बहुत शुभकामनायें ....!!
आपकी रचनाएँ बुलबुले नहीं है.....
ReplyDeleteबुलबुला कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, नियति उसकी फूटना ही है...
ReplyDeleteऔर ज़िंदगी भी एक बुलबुला ही तो है...
जय हिंद...
बुलबुलो की नियति फ़ूटना है..वो क्षणिक खुशियो के जैसे ही तो होते है..लेकिन इन्सान को वो भी नही मिलती तभी तो उनके लिये भी मरा जाता है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.. आभार..
देवी देवता बसते हैं , करोड़ों यहाँ
ReplyDeleteइंसान बनकर दिखाओ , तो कोई बात बने ।
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं अदा जी ।
बेहतरीन।
ज़िंदगी भी एक बुलबुला ही तो है...
ReplyDeleteसंजय,
ReplyDeleteमुझे हमेशा तुम्हारी २ टिपण्णी देखने कि आदत है...लगता है जबसे मैंने तुम्हें छेड़ा है होली के लिए तुम बुरा मान गए हो....
अरे बाबा..बुरा मत मानो ..बल्कि गाओ ..टिपण्णी का राजा हूँ मैं...और २ टिप्पणी करो...:)
दीदी..
तीनों ही क्षणिकाएं बहुत गहरे अर्थ लिए हैं ..और देवता -मानव के बीच तुलना , उनके संवेगों/भावों को लेकर तो बेहतरीन लगी । मुझे तो लगता है कि मानव की सबसे उच्चतम श्रेणी ही देव कहलाई होगी ..हां ईश्वर भिन्न होंगे ....बहरहाल मुझे सभी पसंद आई हैं
ReplyDeleteअजय कुमार झा
कुछ बुलबुलेकुछ बुलबुले देख कर ख़ुश हो जाती हैं
ReplyDeleteज़िन्दगानियाँ भूल जाते हैं कि
जब ये फूटेंगे तो
क्या होगा !हाथ रिक्त आसमाँ रिक्त रिक्त सा जहाँ होगा
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया..... बहुत सुंदर ......रचना....
क्षणिकाएँ आधुनिक दौर के दोहों और सोरठों सरीखी हैं। इनमें हाइकू और त्रिपदी भी जोड़ दीजिए।
ReplyDeleteदेखन को छोटन लगें, घाव करें गम्भीर।
ये अंतिम वाली कहीं और भी देखी थी :)
कुछ बुलबुले .. ठीक ही है .. हाँ नहीं तो ... :)
ReplyDeleteजी हाँ गिरिजेश जी,
ReplyDeleteआपकी कविता पर ही टिपिया आये थे...
हाँ नहीं तो...!!
vaaaaaaaaah di...kon se gahre samudr mai paith kar aayi ho jo itni gahrayi se bhare moti been laayi ho.
ReplyDeletebahut khoob...badhayi.
गहरी बैटन को कम शब्दों में बखूबी व्यक्त किया है....पढ़ना अच्छा लगा...
ReplyDeleteवाह जी . तीनों ही बहुत सुंदर.
ReplyDeleteजब ये फूटेंगे तो
ReplyDeleteक्या होगा !
हाथ रिक्त
आसमाँ रिक्त
रिक्त सा जहाँ होगा
बुलबुलों के फ़ूटने के बाद तो सब कुछ रिक्त ही होगा----सुन्दर और दार्शनिक पंक्तियां।
कहते हैं !
ReplyDeleteतुम काम क्रोध छोड़ दोगे तो
देवता बन जाओगे
काम क्रोध छोड़े हुए
कोई देवता देखा नहीं !
कुछ बुलबुले देख कर
ख़ुश हो जाती हैं
ज़िन्दगानियाँ
भूल जाते हैं कि
जब ये फूटेंगे तो
क्या होगा !
हाथ रिक्त
आसमाँ रिक्त
रिक्त सा जहाँ होगा
मन को छू लेने वाली क्षणिकाएं!
आपकी बहुमुखी प्रतिभा प्रभावित करती है..
आप इसी तरह से लिखती रहें ...गाती रहें...तो शायद दुनियां में कुछ चैनोअमन फिर अपने तने पर हरी पत्तियां उगा पाए!
सुन्दर शब्द चित्र!
ReplyDeleteरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर लगीं तीनों रचनायें। सांसारिक व्यक्ति बुलबुले देखकर ही खुश हो जाते हैं और दार्शनिक इनमें भी नश्वरता, अमरता जैसी चीजें ढूंढ लेते हैं। देवता बन पाना शायद बहुत मुश्किल नहीं है, एक अच्छा इंसान बनना शायद नामुमकिन ही है। और पीर वाली बात तो क्या कहें। इंसान भी आ गये, देवता भी झलक दिखला गए, शैतान रह गए थे तो हमारी हाजिरी कमेंट के माध्यम से लगा ली जाये।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं अच्छी हैं..."देवता" खासकर बहुत पसंद आई
ReplyDeletebahut sundar aur gahari baat....dhanywaad!
ReplyDeleteकुछ बुलबुले देख कर
ReplyDeleteख़ुश हो जाती हैं
ज़िन्दगानियाँ..
वाह क्या कहने हैं.
कहते हैं !
ReplyDeleteतुम काम क्रोध छोड़ दोगे तो
देवता बन जाओगे
काम क्रोध छोड़े हुए
कोई देवता देखा नहीं !
अद्भुत पंक्तियाँ..कलेजे पर मार करती हैं..और कितना सही!!
Hello,
ReplyDeleteVery deep thoughts put in using simple words & they leave such a big impression in mind :)
Nice!!
Regards,
Dimple