रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
जब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
वो परवाना लगता है कभी और कभी दीवाना सा
जल कर जब भी ख़ाक हुआ शमा की चुहल कह देते हैं
वो आके खड़े हो जाते हैं जब सादगी लिए उन आँखों में
वो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं हम ताजमहल कह देते हैं
लगता तो था कि आज कहीं हम शायद नहीं उठ पायेंगे
सीने में वो जो दर्द उठा चलो उसको अजल कह देते हैं
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
अजल=मौत
अब आज मयंक की चित्रकारी ...कैसी है ?
एक ग़ज़ल 'किसने कहा हुजूर के तेवर बदल गए'
आवाज़ 'अदा',
संगीत 'संतोष शैल'
शायर जनाब रिफत सरोश
कच्चा-पक्का है बुरा मत मानियेगा...
कमप्लीट पैकेज डील....
ReplyDeleteउम्दा गज़ल:
रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
जब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
बेहतरीन कलाकृति
और
शानदार गायन और संगीत.
संतोष भाई को भी बधाई.
किसने कहा था कि आप गजल कुछ कमतर लिखती कहती हैं -वल्लाह!
ReplyDeleteमयंक की चित्रकारी सोने में सुहागा !
ये बेखुदिये शौक परवान चढ़े -मुन्तजिर हूँ उसी पहले के मंजर और माजी का !
जो लौट गया वो फिर लौट के आ पता है क्या ?
फिर भी इंतजार है शायद !
कविता, ग़ज़ल और चित्र तीनो लाजवाब
ReplyDeleteआपके स्वर सुनना लहरों पर चलने जैसा है.
वो आके खड़े हो जाते हैं जब सादगी लिए उन आँखों में
ReplyDeleteवो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं हम ताजमहल कह देते हैं
.nice
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं ...रंगमहल कह देते हैं .....
ReplyDeleteजख्मे रिसते हैं मेरे ...वो ग़ज़ल कह देते हैं ....:):)
मेरा खवाबो का महल शीशे का ...
वो पत्थर उठाये हाथों में
एक वार हमने बचाया तो बुरा मान गए ....
थोड़ी व्यस्त हूँ ...इस शेर पर ग़ज़ल लिख दे तो क्या बात....
मयंक की चित्रकारी बहुत अच्छी लगी। आपका और संतोषजी का गाना शानदार च जानदार। गजल भी सुन्दर है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा।
ReplyDelete(१)सबसे पहले ताज...
ReplyDeleteवो तो है ही खुद में बेजोड़ नमूना..
बेशक लोग उसे एक शहंशाह के गुरूर ...
बेकार कि जिद..जिसे मुहब्बत कहते हैं.
मजदूरों पर जुल्म...
पैसे का घमंड...और जाने क्या क्या कहते हैं....वो लोग भी ठीक कहते हैं..
और हम भी ठीक हैं....
पिछले दिनों इसी ताज को वोट करने के लिए जाने कितना पैसा उड़ाया एस एम एस करने के लिए हमने..
जब के हम एक भी एस एम एस नहीं करते अक्सर.......
ताज ..ताज ही है...
(२)..ग़ज़ल....वही है शायद वैसी ही..ताजमहल और रंग महल वाले शे'र बेजोड़ हैं....बेहद खूबसूरत...लेकिन ग़ज़ल में खटके हैं....
आप नहीं सुधरने वाली....
:)
(३)..मयंक...रेखाए सही डाल रहा है....रंगों को अपने उम्र के हिसाब से सही देख समझ रहा है...
आपसे ज्यादा मेहनती है...ज्यादा होनहार....
उसे कहिएगा...के जब अमूर्त पर काम करना शुरू करे तो पहले मूर्त को ठीक से समझ ले.....
(४)..मोबाईल आज भी वो नहीं है....आवाज़ आज भी नहीं सुन सके...
पर अब सुनने कि जरूरत भी नहीं...मन के भीतर रम चुकी है...गूंजती ही रहती है....
उलटी पड़ी है आज मुहब्बत कि हर बिसात...
ये शातिराने-दह्र अजब चाल चल गए.......
कमेन्ट पर काफी मेहनत हो चुकी है..छाप दीजिएगा....
ये फेमिली है या कला का भण्डार किस किस की कितनी कितनी तारीफ की जाए :)
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट है आज की तो ..
संतोष साहब के संगीत ने कायल कर दिया ..मयंक बाबू इसी तरह अपनी कला के नए आयाम घडते रहे यही शुभकामना है !!
एक गीत काफी देर से मन में घूम रहा है...
ReplyDeleteतू खेले खेल कई...
मेरा खिलौना है तू...........
................
..........................................
................
राम करे कभी हो के बड़ा....
तू बन के बादल गगन में उड़े....
जो भी तुझे देखे बस ये कहे...
किस माँ का ऐसा दुलारा है तू...
गाईयेगा मत अदा जी...
आपके गाने के लिए नहीं लिखा है ये कमेन्ट...
ये सिर्फ और सिर्फ...
आप नहीं समझेंगी...
हम किसी की माँ नहीं हैं ना.....?
लगता तो था कि आज कहीं हम शायद नहीं उठ पायेंगे
ReplyDeleteसीने में वो जो दर्द उठा चलो उसको अजल कह देते हैं
bas yahi ghat raha hai.....
intjar intjar............jivan ka karvan manjil ki or chalne ko taiar .....adesh ka intjar hai...,
abhi gaya huaa nahi suna hai.
maynk rango ke sath parchhiyan bhi ubhar raha hai.......
meri tarf se ashish dijiyega.....
aabhar........
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
...वाह!
रानी विशाल जी की टिप्पणी को हमारी टीप भी मानी जाये।
ReplyDeleteआप की ग़ज़ल और मयंक की चित्रकारी दोनों बेहतरीन...
ReplyDelete--इस गजल की हर लाइन उम्दा और बेहतरीन लगी, बहुत धन्यवाद दीदी ----
ReplyDeleteक्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
दिल को छू गया।
"क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं "
क्या खूब..। और मयंक की तूलिका के क्या कहने..। गजब की विविधता लिये हुए है ।
आभार..।
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
वाह अदाजी बहुत खूब। साज और आवाज़ दोनो लाजवाब। शुभकामनायें
वाह मयंक... शनै शनै प्रगति...
ReplyDeleteग़ज़ल पर कुछ नहीं कहंगे... हाँ आखरी मकते के शेर जरुर लाजवाब हैं.
गीत बाद में सुनूंगा... शुक्रिया
Vani ne email se likha :
ReplyDelete@ मोटी...एक शुभकामना ऐसी भी ...
plz. इस पोस्ट को हटा दे ....इसको देख देख कर दिल दुःख रहा है ...
vani tere liye hi likha tha aur teri baat ka maan rakhti hun..hata diya hai..
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा',
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं...
हर दीवाने का ये संगदिल दुनिया पहले यही हाल करती है...लेकिन बाद में उसी के नाम की माला जपती है...
दुनिया बनाने वाले, तूने काहे को ये दुनिया बनाई...
जय हिंद...
किसने कहा हुजूर के तेवर बदल गए
ReplyDeleteरुख की शिकन गयी है न माथे के बल गए
कर्णप्रिय बन पड़ा है ... अच्छी कोशिश है
उर्दू लफ्जों के उच्चारण में काम बाकी है
मयंक ने शायद कामिक्स करेक्टर को चित्रित किया
बहुत खूब ... क्या बात है
आटोग्राफ मिलेगा क्या
उसे खूब सारा आशीर्वाद
Hello Ji,
ReplyDeleteKya khoob talent hai...
जब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
Waah!! Waah!!
The entire family is talented. Mayank has done a great job! :)
Perhaps, it is all in the family :)
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
behad sundar.... koshish idhar bhi hui thi.... lekin mujhe alfaaz hi na mile... :)
ReplyDeleteगजल और चित्रने मन मोह लिया है!
ReplyDeleteआपकी खनखनाती आवाज में बहुत मिठास है!
sabkuchh bahut khubsurat hai Ada ji !
ReplyDeletekhas taur par Mayank ki chitrkari..Superb.....
अदभुत बहुत अच्छा गाया है अपने ,और मयंक की कलाकृत दिन पर दिन निखर रही है,एक बात बताना चाहता हू आपको की मेरा छोटा भाई अभी मेरे पास आया है कुछ समय के लिए,एक दिन मैंने यूँ ही आपके गए हुए गानों में एक सुनने लगा तब से मेरा भाई कहता है की चंदा वो चंदा वाला गाना चलाइए ये गाना आपका उसके साथ साथ मुझे भी बहुत पसंद आया,एक निवेदन है की बस इसी तरह शिद्त से गाते रहिएगा ,आभार
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
ReplyDeleteजब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
वाह वाह... आज तो हमारी वाह वाह्भी फ़िकी लग रही है आप की इस सुंदर गजल के सामने.
धन्यवाद
Gazal hamesha ki tarah Itihas rachti hui si..
ReplyDeletechitra jaroor achchha hai lekin dekha hua di.. ;)
aur Mayank.. Mayank.. Mayank tu to chhaa gaya.. bas mere ko ye sikha de ki shadow kaise banai?
baki sab to nakal se seekh loonga.. ha ha ha
aur haan di wo pahle sher me Kanwal hi hai ya Kamal?
सुंदर रचना है। पढ़कर अच्छी लगी।
ReplyDeleteतन,मन, और भाव से परिपूर्ण.....
ReplyDeletehttp://laddoospeaks.blogspot.com
सुबह जब तैयार होती है बीबी,
मुझे नाश्ता कराने के लिए,
तो मन करता है,
बिंदी लगाने के पहले उसका माथा चूम लूं,
और बिंदी लगाने के बाद उसकी बिंदी.
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से.
वो परवाना लगता है कभी और कभी दीवाना सा
ReplyDeleteजल कर जब भी ख़ाक हुआ शमा की चुहल कह देते हैं
Wah...aur chitrkaree to haihee anoothi..utsfurt!
मुझे वैसे तो ग़ज़ल वगैरह ज़्यादा समझ में आती नहीं, लेकिन पढ़कर कुछ हुआ। कुछ अच्छा सा।
ReplyDeleteक्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
ReplyDeleteमंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं|
छा गये जी तुसी "शैल ग्रुप आफ़ आर्टिस्ट्स"।
जाने कहां मेरा कमेंट गया जी?
ReplyDeleteअरसा पहले भेजा था किधर गया जी?
ada kya hai teri ada
ReplyDeletephariste bhi panaah mangte hain...
सही है यूँही गज़ल नहीं हो जाती ।
ReplyDeleteतरोताजा हो गया !
ReplyDeleteगज़ल, चित्र और फिर गायकी - सब घुलमिल गये अनुभूति में !
एक साथ बहुत कुछ, सब कुछ ! आभार ।