बहुत दिनों से ये गीत याद आ रहा है जो हम बचपन में गाया करते थे...
बरसात के दिनों में मखमली लाल रंग का कीड़ा (कीड़ा कहते हुए भी बुरा लग रहा है वो इतना खूबसूरत होता है ) को देख देख कर हम गाया करते थे ....
घो घो रानी कितना कितना पानी....
इसके आगे का अगर आपको पता है तो बता दीजिये...
एक दूसरा गीत था...
दस बीस तीस चालीस पचास साठ सत्तर अस्सी नब्बे सौ...
सौ में लगा धागा चोर निकल के भागा राजा की बेटी सोती थी, फूल की माला गुंथी थी..धाम-धूम घोड़ा.....
उसके बाद का मुझे याद नहीं है...
एक और भी था....जो हम गुल्ली-डंडा खेलते वक्त डंडा से दूरी नापते वक्त कहते थे...
एडी दुड़ी तिड़ी चौवा चंपा सेख सुतेल....
आगे का मुझे याद नहीं...
एक ये वाला था..
ऐ बी सी डी ई ऍफ़ जी ..उससे निकले पंडित जी ..पंडित जी ने .....
इसके आगे आप बताएं...
आज आप लोगों से यही अपेक्षा है...वो सारे गाने जो हम बचपन में गाते थे अगर याद हैं तो आज लिख ही डालिए इसी बहाने ये एक जगह संकलित भी हो जायेंगे और....हम अपने बचपन को भी याद कर लेंगे..
क्यों क्या ख़याल है ???
ऐ बी सी डी ई ऍफ़ जी ..
ReplyDeleteउससे निकले पंडित जी ..
पंडित जी ने मारा डंडा
उसमें से निकला मुर्गी का अंडा
पोशम्पा भाई पोशम्पा.
ReplyDeleteडाकिये ने क्या किया.
१०० रूपए कि घडी चुराई
अब तो जेल में जाना होगा.......
क्या जमाना था १०० रूपए कि घड़ी आ जाया करती थी :)
Nice Post...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर बचपन की स्मृतियाँ ताजा हो गई हैं! मगर इससे आगे तो कुछ हमें भी याद नही है!
ReplyDeleteमयंक जी की चित्रकारी सराहनीय है!
हां ऐसी बहुत सारी कविताएं और गाने थे .. जो हमलोग बचपन में गाते थे .. और अब भूल चुके हैं !!
ReplyDeleteABBG TPOG PKIG RPOG
ये वो गीत है ...जो गा कर बचपन बीत जाता है .....और कब लब से छूट जाते हैं पता नहीं चलता
ReplyDeletenahi ek aur...
ReplyDelete1 2 3 ...buddhe baba ki masheen
budhha kam tolta
buddha jhoot bolda
ek aur..
11 baj gaye...12 baj gaye...upar baj gaya 1...mashter ji ne chhutti na di..bukha mar gaya pait...pait me se nikla foda...foda me se nikla khoon..jaldi se kar do telephoon...telephoon me taar nahi..ham tumhare yaar nahi..yaar gaye dilli...vaha se laaye 2 billi..1 billi kani...vo sappu ki nani...ha.ha.ha.
ख्याल तो नेक है जी और ये संकलन बहुत बढ़िया होगा। हम इंतजार करेंगे।
ReplyDeleteबिहार के कुछ इलाकों में गाया जाता था....
ReplyDeleteअक्कड बक्कड बम्बे बो
अस्सी नब्बे पूरे सौ....
.....बहुत मजा आया.......बचपन की याद आ गयी........
अटकन बटकन दही चटकन बर्फुले रेला फुले ...सावन में करेला फुले
ReplyDeleteनेवरा नेवरी जोरी .....धर कान ममोरी ....
पता नहीं कितने शब्द सही है इसमें ...अब तो बस यही उल्टा पुल्टा याद है ...
hnm...
ReplyDeleteapni jawaani yaad aa gayi....
@ sangeeta ji....
ReplyDeleteCorrection: instead of RPOG it's UPOG. :)
There is a song Ring-a-ringa roses...
i would recommend all of (interested) blogger to read the history of this rhyme.
Sad history of the most famous rhyme but that's what it was.
Truly nostalgic post.
:)
एक कुमाउंनी :
ReplyDeleteघुघूती... बासूती...
........ (something)
........ (something)
को खालो? (कौन खायेगा?)
भो खाल ! (मेरा बच्चा खायेगा)
घो घो रानी,
ReplyDeleteकितना पानी....
shaayad kabhi sunaa nahi...
.ऐ बी सी डी ई ऍफ़ जी ..उससे निकले पंडित जी ..पंडित जी ने खाया अंडा उसमे निकला तिरंगा झंडा... तिरंगे झंडे पे आई आंधी उसमे निकली इंदिरा गांधी ... इन्द्रा गाँधी ने खाया गोस उसमे निकले सुभाष चन्द्र बोस ... शुभाष चन्द्र ने पिया चाय उस में निकले लाजपत राय ... लाजपत राय ने लगाया तेल उसमे निकले भाई पटेल ...भाई पटेल ने धोती बाँधी उसमे निकले बापू गांधी ... बापू गांधी जी ने लगाया नारा हिन्दुस्तान है सब से प्यारा
ReplyDelete..... थोड़ा याद था थोड़ा जुगाड किया है... आप तो जानती हैं हिन्दुस्तान का जुगाड़ दुनिया में फेमस है ...
एक बार अमेरिका(नहीं शायद कनाडा का) का कोई मिसाइल नहीं चल रहा था, पूरी दुनिया के इंजीनियर हार गए तो इण्डिया वाले ने क्या किया कि उसे थोड़ा एक तरफ झुकाया और वो चालू हो गया ... लोगों ने पूछा भाई ये कैसे किया तो बोला जुगाड़ है इण्डिया का ... हमारे यहाँ जब स्कूटर स्टार्ट नहीं होता तो एक साइड में झुका कर किक मारो स्टार्ट ... बस वही मैंने किया
हा हा हा .....
बहुत अच्छी पोस्ट बधाई
अभी फिर आऊंगा अन्य भी तो पूरी करनी है
हिंदी में कहते हैं..
ReplyDeleteहरा समंदर..
गोपी चंदर..
बोल मेरी मछली कितना पानी....?
इतना पानी...!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
:(
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
ReplyDeleteये वो गीत है ...जो गा कर बचपन बीत जाता है .
ReplyDeleteअदा जी इन मखमली जीवों को हमारे यहां " वीर-बहूटी" के नाम से बुलाते हैं. इसे जब हम हाथ में उठाते थे, तो ये अपने पैर सिकोड लेता था, और एकदम गोल हो जाता था. हथेली पर रख के हम गाते थे-
ReplyDelete’ वीर बहूटी-वीर बहूटी
तेरे घर में चोर
अपने पंजे खोल"
इसी तरह हमारा एक अलग खेल था, जिसमे सारे बच्चे गोला बनाते थे, और एक बच्चा बीच में रहता था, सब गाते थे-
इत्तन-इत्तन पानी- घो-घो रानी
और बीच का बच्चा क्रमश: पानी का लेबल ऊपर बताता चलता था. यह एक लाइन का ही गीत है.
सिर के ऊपर पानी जाने के बाद बीच का बच्चा पूरे घेरे में से निकलने की कोशिश करते हुए कहता है-
" इधर का ताला तोडूंगा"
सारे बच्चे- "पचास डंडे मारूंगा"
हम कबड्डी खेलते समय गाते थे-
होल कबड्डी आल-ताल
मर गये बिहारीलाल
जिनकी मूंछें लाल-लाल-लाल-लाल....
और खेलते थे-
"आ जा मेरी सुमन परी, धीरे-धीरे आना
शोर न मचाना
एक झपट्टा मार के
धीरे से चली जाना
तालियां बजाना."
और-
कोडा दीवान का ही
पीछे देखो मार खाई
पीपल का पत्ता
हरा दुप्पट्टा
और-
एक लड़की
बाग में रो रही थी
उसका साथी कोई नहें
उठो सहेली आंखें पोछों
चारों तरफ़ देख लो
अपना साथी ढूंढ लो"
आपने ऐसा विषय छेड़ा है न कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही.....
Adbhut
DeleteAdyutiya
यह सब गीत हमे याद तो आ गये लेकिन हमारी तरफ़ यह कुछ अलग तरह के होते थे, लेकिन यह पोशम्पा भाई पोशम्पा.बिलकुल ऎसे ही था, जब लडकियां खेलती थी ओर हम लोगो को नही खिलाती तो हम भी उन्हे तंग करते थे खेलने नही देते थे, तो फ़िर कॊई भी बडी उम्र की ओरत कभी हमे तो कभी उन लडकियो को समझाती थी, बस खेल फ़िर शुरु ओर खुब मजा आता, फ़िर लडके बोर हो कर खुद ही भाग जाते थे, आज आप ने इस गीतो से उस बचपन की याद दिला दी जिस मै बस भोला पन होता था,ओर चारो ओर बेफ़िकरी.
ReplyDeleteलेकिन अब भी बचपन की कोई लडकी या लडका मिले तो बहुत खुशी होती है, ओर हम उम्र भुल कर फ़िर बचपन मै गुम जाते है.
धन्यवाद इस बहुत ही सुंदर लेख के लिये
खूबसूरत यादों को सजोने का अच्छा तरीका ,लेकिन माफ कीजियेगा मै भी भूल चुका हूं .
ReplyDeletevikas pandey
www.vicharokadarpan.blogspot.com
हा हा हा.. :) मुझे भी कुछ कहना है..
ReplyDeleteआलू कचालू बेटा कहा गये थे..
पापा के बिस्तर मे सो रहे थे..
घोडे ने लात मारी, रो रहे थे..
पापा ने पैसे दिये, हस रहे थे...
ट्म टमा टम टम
टमाटर खाये हम
अन्ग्रेज के बच्चे क्या जाने,
अन्ग्रेजी जाने हम... :)
हो गया..चलो अब सब लोग ताली बजाओ.. :)
सुहाने बचपन में ले जाती भड़िया पोस्ट ..इन सब के अलावा वर्षा ऋतू के आगमन पर हमारे यहाँ एक और बालगीत बहुत प्रचलित है ....जैसे की बच्चे गोल गोल घुमाते हुए वर्षा को आमंत्रित कर रहे है. और गाते है
ReplyDeleteपानी बाबा आजे
ककड़ी भुट्टा लाजे :)
बचपन के दिन भुला ना देना.. आज हँसे कल रुला ना देना..
ReplyDeleteवैसे मेरी कई बातें जो मैं कहना चाहता था शिखा जी ने वंदना अवस्थी जी ने कह ही दीं हैं फिर भी कुछ और कहता हूँ.. जैसे कि हमारे यहाँ गुल्ली-डंडा खेलते समय बिले(hole) से गुल्ली जहाँ गिरी होती थी व्हाहं तक की दूरी डंडे से गिनते थे 'पंजा, चिट्ठी, मुट्ठी, घोड़े, पुच्छी, आँख, झाँख' कहते हुए.. और जहाँ पर भी डंडे से नापते हुए दूरी ख़त्म होती और जिस शब्द पर ख़त्म होती उसी के अनुसार अगली हिट मारनी होती थी.
लड़कियां खेलती थीं- 'एक सहेली रो रही थी
धूप में बैठी रो रही थी
उसका साथी कोई नहीं
उठो सहेली मुँह धो लो
अपना साथी ढूंढ लो'
और इतना कहते ही सब फुर्र से भाग जाते थे.
एक था-
रेल चली भाई रेल चली
सौ-सौ डब्बे छोड़ चली
उसमे बैठे लाट-साब
लाट-साब की काली टोपी
काले हैं कलियान जी
भूरे हैं भगवान् जी
सीता जी की गोद में
कूंद पड़े हनुमान जी'
कोई अगर अस्प्रश्य व्यक्क्ति से छुल जाता तो उसे चिढाते हुए कहते-
'छोत के मलोत के
भंगी के जोत के
ठांडे(खड़े हुए) को छू लियो
बैठे को ना छुओ'
और जब तक वो दस खड़े लोगों को ना छू लेता या लेती तब तक उसको भी अस्प्रश्य मानते.. :) और यही क्रम चलता रहता.
'अचकन-बचकान दही चटोकन
फूल फूल बंजारी के
बाबा जी की नारी के
बाबा लाये दो कटोरी
एक कटोरी फूट गई
बाबा की टांग टूट गई
बाबा की बहू रूठ गई'
ऊपर पंखा चलता था
नीचे बेबी सोती थी
सोते सोते भूख लगी
खा लो बेबी मूंगफली
मूंगफली में दाना नईं
हम तुम्हारे नाना नईं
नाना गए दिल्ली
दिल्ली से लाये दो बिल्ली
एक बिल्ली कानी
सब बच्चों की नानी
या फिर
बिल्ली ने मारा पंजा
नाना हो गए गंजा'
चंदा मामा दूर के
पुए पकाएं पूर के
आप खाएं थाली में
मुन्ने को दें प्याली में
प्याली गई टूट
मुन्ना गया रूठ
नई प्याली लायेंगे
मुन्ने को मनाएंगे
वीर-बहूटी के नाम से लिखी आदरणीय निर्मला कपिला मासी की कहानी या पुस्तक जरूर पढ़ें .. मेरे पास शब्द नहीं उसकी तारीफ़ के लिए..
बाकी फिर कभी.. :)
जय हिंद..
ये मखमली जंतु आया तो होगा हमारे वक़्त में भी..
ReplyDeleteपर उन दिनों हम ही अपने ठिकाने पर ना रहे होंगे...
वो भी क्या दिन थे...
एक बार फिर मन है वापिस छोटा होने का....
मजेदार पोस्ट और टिप्पणियां! मयंक की चित्रकारी बहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteअकड बकड बम्मे बो, अस्सी नब्ब्े पूरे सौ, सौ में लगा धागा, चोर निकल के भागा।
ReplyDeleteमुझे लगता है कि यह बच्चों के गीत सारे भारत में गाए जाते हैं, इनका कौन रचयिता था?
हम वापिस अपने बेटे के पास जाकर यह सब कविताएँ पूरी कर देंगे और नई कविताएँ भी देंगे।
ReplyDeleteहाथी घोड़ा पालकी!
ReplyDeleteजै बिहारीलाल की!!
और हाँ, भले ही मयंक आपकी नजरों में छोटा हो, पर अब वह बड़ा हो गया है। उसे उंगली पकड़कर चलाने के बजाय अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाइये और उसे अपने स्वयं का ब्लॉग बना कर आगे बढ़ने की प्रेरणा दीजिये। उसकी चित्रकारी अच्छी लगी!
ई तो आज बुढौती से एकदमे बचपने मे लेजाके पटक दिये हैं...ओह ये लाल कीडा नही है..यह सावन के महिने मे बहुतायत से कुछ ही दिनो मे लिये दिखाई देता है. राजस्थान हरयाणा मे तीज का त्योंहार होता है उसी समय यह दिखाई देता है जिसे वहां तीज कहते हैं......
ReplyDeleteआज समझ आया कि ब्लागिंग का एक यह भी रूप है जो आपकी पोस्ट पढते ही कितने पीछे के काल खंड मे लौटा लेगया...आपकी आज तक की सबसे सुंदरतम और उम्दा पोस्ट का खिताब आज इस पोस्ट को देता हूं.(इसका मतलब अन्य भी कमतर नही हैं :).
रामराम
-ताऊ मदारी एंड कंपनी
बचपन मे गाये गीत और तुकबंदियां भी याद आरही हैं.:)
ReplyDeleteरामराम.
लो जी बचपन के सारे गीत आ गए लेकिन सबसे सॉलिड तो सारे भूल ही गए...
ReplyDeleteआधा पादा किसने पादा
राम चंद्र जी की घो ड़ी ने पा दा...
इस की ये खासियत थी कि शुरुआत तो शब्दों के साथ की जाती थी लेकिन आखिर में किसी को फंसाने के लिए शब्दों को तोड़ना शुरू हो जाता था...और आखिर में जिस पर दा आता था उसकी हालत देखने वाली होती थी...
जय हिंद...
घो घो रानी कितना कितना पानी....इन पंक्तियों को पढ़कर मुझे भी अपना बचपना याद आ गया . इसको बच्चे खेल खेल में इस रूप में गया करते थे ... कुछ इस तरह से
ReplyDeleteएक पूछता था - घो घो रानी कित्तन कित्तन पानी
दूसरे का उत्तर रहता था - घो घो रानी इत्तन इत्तन पानी
आपकी यह पोस्ट पढ़कर बचपन की यादें जेहन में घूम गई है .. .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
खुशदीप जी,
ReplyDeleteउसकी आगे की पंक्ति थी..
अगली बगली बू
आउट गो यू....
हा हा हा हा
वंदना जी,
ReplyDeleteआपकी याददाश्त के क्या कहने मान गए हम...
बहुत कुछ याद दिला दिया आपने...
सच्ची...
आपका बहुत बहुत आभार...
दीपक,
ReplyDeleteतुमने भी कमाल कर दिया...
मज़ा आ गया पढ़ कर..
ह्म्म्मम्म्म्मम्म........हूँ.........हम्म्म्मम्म्म्म.........हूँ...........धत्त.....भूल ही गया.......चलो बाद में कभी........!!
ReplyDeleteDear Ada, insect you are talking about is 'Bir-Bahuti', it will be interesting to know that it has been used in Ayurvedic oil for neuritis.Dead insects are being used along with other herbal medicines.
ReplyDeleteSearch 'BirBahuti' on Google and you will find it.
In gujarati we called it 'gokul gai' means 'cow from gokul.' In monsoon childeren got around those insects in circle grabing each others hand and sing "gol gol dhani, ketale ketle pani?"
Still I see those insects during my long-walk in monsoon.How beautiful were those days, when we found joy from small natural things!
I think Gokal Gai is different thing. It is called slug in English. The word sluggish for a slow-moving thing comes from that. In Gujarati also they say Gokal Gai ni gatiye when something is moving very slowly.
DeleteOne more gujarati.
ReplyDeleteadko,dadko,dahi- daduko,savan gaje, pilu pake, oor moor datarde khajoor, sakar- sherdi sindur,makai kera fool.
hnm...
ReplyDeleteएक चीज अच्छी हुई..
निर्मला कपिला जी के ब्लॉग ''वीर बहूटी'' का मतलब पता चल गया
:)
पंडित जी ने खाई लाई उसमे से निकली लक्ष्मी बाई लक्ष्मी बाई ने खोदा गढ्ढा उसमे से निकला गान्धी बुढ्ढा , गान्धी बुढ्ढे ने धूम मचाई अंग्रेजो की नाक कटाई..... हहहाअहाहाहा ..कितना मज़ा आता था इसे गाते हुए ।
ReplyDeleteA B C D सातारा त्यात निघाला म्हतारा म्हतार्यान खाल्ल क्याळ त्यात निघाल बाळ बाळाने खाल्ला आंबा त्यात निघाला सांबा सांबा म्हनाला मेलो मेलो डॉक्टर म्हणाले आलो आलो ..............
ReplyDeleteराहील्या त्या फक्त आठवणी
मोटू सेठ सड़क पर लेट
ReplyDeleteगाड़ी आई फट गई पेट
गाड़ी का नंबर एटीएट(88)
चल मेरी गाड़ी इंडिया गेट
इंडिया गेट से आई आवाज
चाचा नेहरू जिंदाबाद•....
Bachpan me gakar ghar me sabhi ko sunate the
जब बारिश आने वाला होता था तो हमलोग गाते थे की >
एक रुपया के हल्दी
पानी आवे जल्दी
और जब आसमान में बगुला दिखाई देते थे तो गाते थे बगुला बगुला दाम दे
चिनिया बेदाम दे 😀
बचपन याद आ गया 😭
Thank You and I have a swell supply: How To Design House Renovation old home renovation
ReplyDelete