Tuesday, March 9, 2010

मैं गर न टूटूं ....


तुम्हारी चोट से
मेरा दरकना लाज़मी तो नहीं,
मगर
कुछ बातें मेरे इख्तियार में भी नहीं
मुझे बार-बार तोड़ना,
फिर जोड़ना,
प्रिय शगल है तुम्हारा,
स्वामित्व का बोध कराता है
तुम सिर्फ मेरी हो !
पुख्ता 
अहसास दिलाता है 
मैं तुम्हें खुश होने देती हूँ,
इसलिए नहीं, कि मैं निर्बल हूँ
अपितु इसलिए कि,
मैं गर न टूटूं
तो तुम बिखर जाओगे
ख़ुद को अपने चारों ओर पाओगे 
समेट सकती हूँ मैं तुम्हें,
लेकिन
तुम्हारे हर टुकड़े में
दंभ चस्पा है
जिसमें गोंद भी तो नहीं होती.....

और अब मयंक की चित्रकारी ....बताइयेगा ज़रा कैसी लगी...मेरा राजा बेटा है ना..उसकी तारीफ सुनना मुझे अच्छा लगता है....:):)



44 comments:

  1. मयंक का तो कहना ही क्या हैं ? एक कुशाग्र माँ का कुशाग्र बेटा -बहुत सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति !!
    मगर यी धडाधड कवितायें कुछ लोगों में बहुतै कन्फ्यूजन पैदा कर रही हैं -
    कोई आपको सिखा रहा था न कि आप भी अब चेहरों की असलियत जान गयी हैं और यह अच्छा हुआ
    वे चेहरे कौन या कौन कौन है अदा जी ? मैं तो कभी मुख्य ह्रदय पथपर रहा ही नहीं किसी के ...
    फरिया नहीं देगीं तो सचमुच कई लोगों का हर्ष विषाद बना रहेगा !
    वूड यू प्लीज ?

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  2. मयंक की चित्रकारी प्रभावी है.


    समेट सकती हूँ मैं तुम्हें
    लेकिन
    तुम्हारे हर टुकड़े में
    दंभ चस्पा है
    जिसमें गोंद भी तो नहीं होती.....

    -क्या बात है..बहुत बढ़िया.

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  3. कमाल की रचना और रेखा चित्र वाकई बहुत खूबसूरत हैं .

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  4. वाकई बहुत खूबसूरत हैं .

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  5. मैं गर ना टूटू तो तुम बिखर जाओगे ...तुम्हारे हर टुकड़े में दंभ चस्पा है ....जिसमे गोंद भी नहीं होती ...
    मैं इसलिए ही तुम्हे टूटने नहीं देती ....
    चोट खाकर भी खुद के दर्द से ज्यादा चोट पहुचने वाले को टूट कर ना बिखरने से बचने की यह ख्वाहिश .....हद है ......

    मयंक के चित्र का तो कहना ही क्या ...??

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  6. sundar abhivyakti,
    manyank ka rekhankan badhiya hai.
    shubhkamnayen

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  7. बहुत अच्छी कविता।
    बहुत अच्छी चित्रकारी।

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  8. मुझे बार-बार तोड़ना,
    फिर जोड़ना,
    प्रिय शगल है तुम्हारा...

    और दो प्रिय के हाथ में फेवीकोल का डिब्बा...

    मयंक, छोटे जहांपनाह...तुसी ग्रेट हो...

    जय हिंद...

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  9. ह्रदय को छूती हुई बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति !सामने वाले के दंभ कायम रखने के लिए स्वयं का टूटना भी जिसे मंज़ूर हो वह नारी ही हो सकती है ! सुन्दर रचना के लियर बधाई !

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  10. सुन्दर अभिव्यक्ति !
    मयंक जी को शुभाशीष!
    रेखाचित्र बढ़िया हैं!

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  11. चित्रकारी की विशेष समझ नहीं है अपने पास किन्तु चित्र अच्छे लगे!

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  12. Bahut sundar chitrakari ...Mayankji ko Shubhkamanae!
    Rachana ka to kya kahun post hone ke pahale hi isane mujhe kayal bana liya tha :)

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  13. रचना और रेखांकन दोनो लाजवाब।आप का तो जवाब है ही नही और मयंक भी लाजवाब है।सच्ची तारीफ़ है एकदम सच्ची।

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  14. अकेले मंयक की तारीफ लिख दें तो चलेगा? कविता की तारीफ बिल्‍कुल ना करें? अरे भाई दोनों ही माँ-बेटे श्रेष्‍ठ हैं। लेकिन अब बैल के बहाने भड़कना तो बन्‍द करो। अदाजी आपका फोन लगाया था लेकिन लगा नहीं, कहीं कुछ नम्‍बर में शायद गलती हो गयी है और आपका समय भी बताएं। क्‍योंकि जब यहाँ दिन तो वहाँ रात। हम कैसे अंदाजा लगाएं कि आप कब सोती हैं और कब जागती हैं। वैसे तो आप हमेशा ही जागती हैं, और अपनी लेखनी से हमेशा ही सबको जगाती हैं। अरे इस बार आपने मेरी पोस्‍ट नहीं पढ़ी, पढिए आपको बहुत आनन्‍द आएगा।

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  15. ांअज कहे देती हूँ मंयक बहुत होनहार बच्चा है। कमाल है इसकी चित्रकारी उसे बहुत बहुत आशीर्वाद।
    अपितु इस लिए कि,
    मैं गर न टूटूं
    तो तुम बिखर जाओगे
    ख़ुद को अपने चारों ओर पाओगे
    समेट सकती हूँ मैं तुम्हें,
    लेकिन
    तुम्हारे हर टुकड़े में
    दंभ चस्पा है
    जिसमें गोंद भी तो नहीं होती.....
    अदा जी कितनी सटीक रचना है। दिल को छू गयी। ये नारी मन भी क्या चीज़ है। शुभकामनायें

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  16. mayank ki chitrakaari ke sath aapki rachna bhi behad khoobsurat hai.

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  17. purush ke dambh par karara vaar........gazab ki prastuti.

    aaj maine bhi kuch aisa hi lagaya hai is link par ---http://redrose-vandana.blogspot.com

    mayank ki chitrkari to mom ki rachna se bhi badhiya hai.

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  18. "मैं तुम्हें खुश होने देती हूँ,
    इस लिए नहीं, कि मैं निर्बल हूँ
    अपितु इस लिए कि,
    मैं गर न टूटूं
    तो तुम बिखर जाओगे"

    नारी होने का चरमोत्कर्ष..।
    हां ! रेखाओं की गतियां बता रही हैं
    अभिव्यक्ति की मासूमियत को ।
    चित्रांकन के लिये मयंक को हार्दिक बधाई ।
    आभार..।

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  19. मयंक की उम्र क्या है ?
    -
    -
    आप न भी कहतीं तो भी मैं जरूर कहता
    बहुत अच्छी चित्रकारी है
    राजा बेटा में बहुत संभावनाएं हैं
    बहुत अच्छा हाथ है
    पढाई के बोझ तले उसकी क्रियेटिविटी को
    ओझल न होने दीजियेगा
    -
    -
    ढेर सारा आशीष

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  20. समेट सकती हूँ मैं तुम्हें
    लेकिन
    तुम्हारे हर टुकड़े में
    दंभ चस्पा है
    जिसमें गोंद भी तो नहीं होती.
    bahut sundar ada ji!
    or mayamk ke to kahne hi kya bahut pratibhavaan hai..

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  21. वाह ! आज की रचना और रचना का शिल्प दोनों प्रभावित करता है ... बहुत खूब

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  22. मयंक का चित्र बतला रहा है की वो मुक्त हस्तकला में निपुण है

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  23. मयंक ने सच में बहुत अच्छा चित्र बनाया है,आप उनसे कहिये की इसी तरह से बनाते रहेगे तो एक दिन निपुणता आ जायेगी लेकिन निसंदेह अच्छी चित्रकारी.और आपकी कविता तो लाज़बाब.

    विकास पाण्डेय
    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  24. बहुत ही सुन्दर रचना और चित्र के तो कहने ही क्या । उम्दा । आभार दीदी

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  25. मैं गर न टूटूं
    तो तुम बिखर जाओगे
    ख़ुद को अपने चारों ओर पाओगे

    संग रहने में अपना कुछ न कुछ तो खोना पड़ता है, कुछ अहम, कुछ वहम, कुछ तृष्णा ।

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  26. मेरी इस कविता को बहुत से लोगों ने ग़लत समझा है....लेकिन महिलाएं बिलकुल सही समझ गई हैं....यह कविता स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध पर है...(अरविन्द जी आपका या किसी का भी इस कविता से कोई लेना-देना नहीं है ...बस महिला दिवस के अवसर पर एक महिला के विचार थे )
    कुछ पुरुष सचमुच दिमाग से पैदल हैं....हाँ नहीं तो...

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  27. कितना अच्छा लगेगा अगर मयंक को आप कविता समझायें और उस पर वह चित्र बनाये ?

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  28. वैसे देखा जाये तो ये चित्र भी यहां फिट बैठ रहा है। कविता-रेखाचित्र दोनों ही सुंदर।

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  29. तारीफ करूँ क्या उसकी , जिसने इन्हें बनाया --
    और जिसने इसे बनाया :)

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  30. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति...चित्रकारी प्रभावी है.

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  31. ये आजमाईशें क्या जरूरी हैं जीने के लिये? शायद हां......। दो में से एक का तो ऐसा होना अवश्यंभावी है ही। और एक पक्ष यदि इस प्रश्नकर्ता सा हो जाये तो भी गनीमत है।
    आपको खुश करने के लिये मयंक की झूठी वाहवाही (आज)नहीं कर पायेंगे क्योंकि आज अपना कम्प्यूटर विज़्युल्स स्पष्ट नहीं दिखा पा रहा है। आपकी रचना भी बहुत मेहनत करके पढ़ पाये हैं। वैसे मयंक के बनाये कृष्ण जी के चित्र पहले देख कर तारीफ़ कर चुके हैं, मयंक की, मयख की रचना की और आपकी रचना(मयंक) की।

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  32. सुन्दर कविता...

    मयंक की रेखाएं...दिन ब दिन सशक्त हो रही हैं.....कभी किसी को नहीं बनाया पर शायद एक दिन उसे ही उस्ताद बना लें हम...

    अब क्यूंकि वक़्त कम है समझने के लिए आजकल...
    सामने कविता भी है और स्केच भी.... और दिमाग खाली हो चुका है अपना....

    सो हाथ जोड़कर विनती है के मयंक बेटे से पता करवा दीजिये के नीचे वाली तस्वीर में अगला दांयाँ पाँव क्या सोच के बनाया है...!
    है एकदाम सही....मगर क्या सोच कर है..बस ये जानना चाहते हैं...
    क्यूंकि एक बिन्दु भी कोई डाले तो कोई भी दूसरा उस पर सिर्फ कयास लगा सकता है....कन्फर्म नहीं कर सकता....
    हम गलत कह रहे हों तो आपके ही ब्लॉग पर साइड में लगी मोनालिसा से पूछ लीजिये..

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  33. sunader rachana or khoobsurat chitrakari.

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  34. sunader rachana or khoobsurat chitrakari.

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  35. Hello,

    Nice composition and like always brilliantly written.

    And wonderful drawing by your son!!

    Hats off to you and him!!

    Regards,
    Dimple

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  36. बढ़िया भाव निहित बढ़िया रचना....मयंक जी तो बड़े अच्छे कलाकार निकले...अच्छी पेंटिंग्स...मयंक जी को बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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  37. चोट देकर
    उन्हे खुश होने तो दो
    अपने प्रिय खिलोने
    अहम से
    उन्हे खेलने तो दो..!
    इस एहसास में
    जब डूब जायें वो
    निर्बल समझ
    ठूठ से जब
    अकड जायें वो..
    तब जरा गरज के
    दिखाना सखी,
    थोडा लरज के
    सिमट जाना सखी !
    जब दंभ उनका
    बीखरणे लगे
    तब गोद अपनी
    फैला के जताना उन्हे
    कि कितने कमजोर है
    खिलोने ये उनके
    अहम, दंभ, स्वामित्व ...
    के एहसास
    खुद के लिए ही
    कितने खोखले और
    खुद से ही दूर है उनसे..!
    कितने कमजोर है वो..
    बस खामा-खा के ही सिरमौर है वो..

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  38. इससे पहले कमेंट में मयंक की जगह मयख लिखा गया, सॉरी।
    फ़ारसी में एक वाक्य है, "यक न शुद, दो शुद" यानि एक ही कम न था तो दो कहां कम होंगे"-
    हम तो आप की रचनात्मकता देखकर ही बेहोश हो जाया करते हैं, आप के राजा बेटा की तूलिका का प्रवाह देखकर बहुत अच्छा लगा।
    आप सभी को शुभकामनायें,
    और हां (वाह-वाह) * २

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  39. Poem is subtle,ponderous and at the same time, revealing the plundered truth.

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  40. तुम्हारे हर टुकड़े में
    दंभ चस्पा है
    जिसमें गोंद भी तो नहीं होती.....

    चंद सतरें जो खास पसंद आयी

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  41. मेरी इस कविता को बहुत से लोगों ने ग़लत समझा है....लेकिन महिलाएं बिलकुल सही समझ गई हैं....यह कविता स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध पर है...(अरविन्द जी आपका या किसी का भी इस कविता से कोई लेना-देना नहीं है ...बस महिला दिवस के अवसर पर एक महिला के विचार थे )
    कुछ पुरुष सचमुच दिमाग से पैदल हैं....हाँ नहीं तो...

    March 9, 2010 7:40 PM

    **********************************
    हा! हा! मैं बच गया इसी लिये comment नही कर रहा था!!!!

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  42. मैं यहाँ आया था समीर जी के गीत को आप और संतोष जी द्वारा सुर-स्वर देने से प्रभावित होकर, और जा रहा हूँ मयंक का 'फ़ैन' हो कर, फिर आने के लिए।
    मयंक की प्रतिभा अद्भुत है, उसे ढेरों आशीष। हो सके तो उसकी कृतियों को सहेज कर एक ब्लॉग पर, चाहे पोस्टरस पर ही, प्रस्तुत करें तो अच्छा होगा। यह भेद भी थोड़ी देर टहलने घूमने पर खुल ही गया कि आप को मयंक की माँ होने का गौरव प्राप्त है, अत: पुन: आपको भी बधाई।
    संतोष जी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है, मगर प्रज्ञा_पापा वाला गीत भी अच्छा बन पड़ा है। देखिए मैं बहुत क़रीने से जीने वाला व्यक्ति नहीं हूँ सो बातें भी बेतरतीब ही करता हूँ। क्या संतोष जी से और मयंक से सीधे बात नहीं हो सकती?
    खैर, बहुत अच्छा लगा, आज जाल पर टहलना सफल हो गया। बहुत दिनों बाद अच्छे कलात्मक कृतित्व से भेंटने का अवसर मिला। साहित्य तो मिल ही रहा है, रोज़ाना छह-छह घण्टे के अंतर पर तीन-तीन कैप्सूल।
    विदा…

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  43. "मैं तुम्हें खुश होने देती हूँ,
    इसलिए नहीं, कि मैं निर्बल हूँ
    अपितु इसलिए कि,
    मैं गर न टूटूं
    तो तुम बिखर जाओगे"

    बहुत खूब ! ये सिर्फ एक नारी की ही सोच हो सकती है

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