aisa krm mt krna mha pap hai jindgi jeeti hai sai 2 var sah kr bhi jindgi jeeti hasi hrek var sah kr bhi jndgi ki phli tedhi mgr aasan hai pr suljhti hai khan vo chhor gah kr bhi dr. ved vyathit
Aaphi hame kahen,kya hai yah?Waise jo bhi likha gaya hai manse hai..banawati nahi hai...jab kabhi manme nirasha aati hai,shabdonme chhalak hi jati hai..
अब ऐसा जुल्म न कीजिये मर्दों पर. महिलायें भी कम नहीं होतीं. आपको अपनी (जो अपनी न हो सकी) का पता दूं क्या.. वैसे कुछ तो मजबूरियां रही होंगी... रचना बहुत शानदार.
बड़े नहीं होना चाहिये था आपको, या फ़िर हम में से किसी को भी। पर ये सब अपने बस में कहां है? बड़े होने की कीमत चुकानी ही है। हां, जब किनारे पहुंच जायेंगी तो पहले से भी बड़ी, मजबूत और आशावादी हो चुकी होंगी। विश्वास करना शायद सहज नहीं है, पर जो होता है अच्छे के लिये होता है। रचना(आपकी) बहुत अच्छी लगी और तस्वीर ने शब्दों का असर बहुत बढ़ा दिया। आभार।
Hum darwaje bandh kar dete hai sabhi, tumhe darane ko. Taki smaz jao tum hamari chuppi se, kya chahte hai hum. Kya kare,aur koi rasta bhi to nahi, Sadio ki hakumat bachane ka. 'Zuko,ya mar jao' yehi hai kayda purkho ke jamaneka.
किसने छोड़ा है बीच मझदार नाव में .... डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है ...तिनके के सहारे नैया पार लग जायेगी ,.... और अभी डूबना के डर से कैसे चलेगा...अभी तो गाँव में जमीन खरीदनी है कि नहीं ....:):)
अदा जी, इस कविता के दो भाव हैं। एक सामान्य सा कि नारी अकेली भवसागर में डूब गयी है। लेकिन दूसरा है कि नारी पुरुष के अन्दर डूब गयी है। क्योंकि आपने प्रारम्भ में लिखा है कि तुम्हारी जीतने की जिद। समर्पण का भाव है यह। मेरी व्याख्या ठीक है या फिर वहीं नारी वाली। बताना।
कभी -कभी सब दरवाजे बंद कर अकेला छोड़ने का अर्थ है...तुम्हें स्वयं से मिलाने का अवसर देना...नाव बेश्क छोटी है...लेकिन पतवार का इंतजाम है... नजरे दौड़ाओ और खोज लो उसे...हम समुन्दर में ही हैं... हर कोई अपनी नौका में सवार... नाव पलटती है ... तब भी वह है तुम्हें तुमसे मिलाने को ! सुंदर बोधपूर्ण और आशावादी.... है ना !!!!!
nice
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...पुरुष के अहं का यथार्थ चित्रण पर स्त्री को निराशावादी क्यों बताया है ?
ReplyDeleteaisa krm mt krna mha pap hai
ReplyDeletejindgi jeeti hai sai 2 var sah kr bhi
jindgi jeeti hasi hrek var sah kr bhi
jndgi ki phli tedhi mgr aasan hai
pr suljhti hai khan vo chhor gah kr bhi
dr. ved vyathit
रचना, एक जज्बातों की गठड़ी।
ReplyDeleteमेरी छोटी सी है नाव
ReplyDeleteतेरे जादूगर पांव ,
मोहे डर लागे राम
कैसे बिठाऊ तोहे नाव में |
आपकी यह रचना पढ़कर पता नही क्यों? यह पंक्तिया याद हो आई |
अनुभूति की अच्छी अभिव्यक्ति.......
ReplyDelete.
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html
abhi koi bada ship aayega.. langar dalega to uske sahare kashtee ship me chali jayegee, bharosa rakhiye.. :)
ReplyDeleteओह! आह!
ReplyDeleteउम्दा!
Aaphi hame kahen,kya hai yah?Waise jo bhi likha gaya hai manse hai..banawati nahi hai...jab kabhi manme nirasha aati hai,shabdonme chhalak hi jati hai..
ReplyDeleteअरे नाईस नाईस मत बोलो भागओ यह तो हाई है.... कच्चा खा जायेगी....
ReplyDeleteआत्मावलोकन के क्षण पुरुष के एकान्त को अपराध न समझा जाये ।
ReplyDeleteअब ऐसा जुल्म न कीजिये मर्दों पर. महिलायें भी कम नहीं होतीं. आपको अपनी (जो अपनी न हो सकी) का पता दूं क्या.. वैसे कुछ तो मजबूरियां रही होंगी... रचना बहुत शानदार.
ReplyDeleteकोई रास्ता नहीं रह जाता !
ReplyDeleteसिवाय नाव पलट कर, डूब जाने के...
घो-घो रानी कितना पानी?
ReplyDeleteबड़े नहीं होना चाहिये था आपको, या फ़िर हम में से किसी को भी। पर ये सब अपने बस में कहां है? बड़े होने की कीमत चुकानी ही है। हां, जब किनारे पहुंच जायेंगी तो पहले से भी बड़ी, मजबूत और आशावादी हो चुकी होंगी। विश्वास करना शायद सहज नहीं है, पर जो होता है अच्छे के लिये होता है।
रचना(आपकी) बहुत अच्छी लगी और तस्वीर ने शब्दों का असर बहुत बढ़ा दिया।
आभार।
इतनी निराशा? आपके द्वारा? नहीं.
ReplyDeleteहम इसे इश्वर और भक्त के बीच का द्वन्द भी मान सकते है न?
ReplyDeleteलेकिन इश्वर ने छोडा भी होगा तो इसलिये कि आप बीच समन्दर भी न घबराओ और बढती जाओ..
नाव, तो कायर डुबोते है.. और तुम पर तो उसका हाथ है.. चलते जाओ नाविक.. चलते जाओ..
जाने क्या है ये...
ReplyDeleteये हौसला है, समुद्र को हराने का...
जय हिंद...
इतनी निराशा ठीक नहीं। डूबते को तो तिनके का सहारा काफी है। आप के पास तो अभी नाव है। कभी भी किनारे लग सकती है।
ReplyDeleteHum darwaje bandh kar dete hai sabhi, tumhe darane ko.
ReplyDeleteTaki smaz jao tum hamari chuppi se,
kya chahte hai hum.
Kya kare,aur koi rasta bhi to nahi,
Sadio ki hakumat bachane ka.
'Zuko,ya mar jao' yehi hai kayda purkho ke jamaneka.
मानसिकता को उकेरती रचना
ReplyDeleteबहुत गहराई
सुन्दर रचना
(बड़े) बच्चन जी याद आ गए.
ReplyDeleteनुस्खा - हरि अोम शरण का श्रवण विशेषतया 'तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार' अौर गीतांजलि का पठन, मनन
ReplyDeleteकिसने छोड़ा है बीच मझदार नाव में ....
ReplyDeleteडूबते को तिनके का सहारा काफी होता है ...तिनके के सहारे नैया पार लग जायेगी ,....
और अभी डूबना के डर से कैसे चलेगा...अभी तो गाँव में जमीन खरीदनी है कि नहीं ....:):)
kashti ki baat rahne de samandar bhi dubo de too.....
ReplyDelete.................
aisaa ho nahin saktaa....
अंतिम पंक्तियाँ पुनर्विचार्नीय हैं।
ReplyDeleteपतवार न भी तो भी किश्ती किनारे लग सकती है , बस हिम्मत होनी चाहिए ।
अदा जी, इस कविता के दो भाव हैं। एक सामान्य सा कि नारी अकेली भवसागर में डूब गयी है। लेकिन दूसरा है कि नारी पुरुष के अन्दर डूब गयी है। क्योंकि आपने प्रारम्भ में लिखा है कि तुम्हारी जीतने की जिद। समर्पण का भाव है यह। मेरी व्याख्या ठीक है या फिर वहीं नारी वाली। बताना।
ReplyDeleteकभी -कभी सब दरवाजे बंद कर अकेला छोड़ने का अर्थ है...तुम्हें स्वयं से मिलाने का अवसर देना...नाव बेश्क छोटी है...लेकिन पतवार का इंतजाम है... नजरे दौड़ाओ और खोज लो उसे...हम समुन्दर में ही हैं... हर कोई अपनी नौका में सवार... नाव पलटती है ... तब भी वह है तुम्हें तुमसे मिलाने को ! सुंदर बोधपूर्ण और आशावादी.... है ना !!!!!
ReplyDeletekuchh adhura sa lag raha hai...jaane kyo?
ReplyDeleteये सोच आपसे कुछ मेल नहीं खाती.....
ReplyDeleteना हो
हाथ में पतवार
पर
मन का हौसला
बाकी है
बंद हों
सारे दरवाज़े
पर
रोशनी का
एहसास ही
काफी है .....
सस्नेह
नौका तो है मगर कोई पतवार नही है!
ReplyDeleteजंग जीतने चले मगर तलवार नही है!
कोई नहीं खँगालता सागर का गहरा तल,
सरदार तो बहुत हैं, असरदार नहीं है!!
अदा जी!
आपकी रचना के बारे में तो यही कह सकता हूँ-
"देखन में छोटे लगे, घाव करें गम्भीर!"
amazing
ReplyDeleteamma yaar to kisne kaha tha naav lekar nikal pado samudr me....aur nikal hi pade the to apne baazuo par bharosa hona chaahiye...
ReplyDeleteto samjhe na????
APNA HATH JAGANNATH....ha.ha.ha.