Saturday, March 27, 2010

जाने क्या है ये.....


जाने क्या है ये !
मुझे सताने का मंसूबा
या तुम्हारी जीतने की जिद्द,
जो सारे दरवाज़े 
बंद कर देते हो 
छोड़ देते हो मुझे
अकेला...!
छोटी सी नाव में
बिन पतवार ;
बीच समुन्दर में ,
और तब 
कोई रास्ता नहीं रह जाता !
सिवाय नाव पलट कर, डूब जाने के....




32 comments:

  1. बहुत बढ़िया...पुरुष के अहं का यथार्थ चित्रण पर स्त्री को निराशावादी क्यों बताया है ?

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  2. aisa krm mt krna mha pap hai
    jindgi jeeti hai sai 2 var sah kr bhi
    jindgi jeeti hasi hrek var sah kr bhi
    jndgi ki phli tedhi mgr aasan hai
    pr suljhti hai khan vo chhor gah kr bhi
    dr. ved vyathit

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  3. रचना, एक जज्बातों की गठड़ी।

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  4. मेरी छोटी सी है नाव
    तेरे जादूगर पांव ,
    मोहे डर लागे राम
    कैसे बिठाऊ तोहे नाव में |
    आपकी यह रचना पढ़कर पता नही क्यों? यह पंक्तिया याद हो आई |

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  5. अनुभूति की अच्छी अभिव्यक्ति.......
    .
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html

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  6. abhi koi bada ship aayega.. langar dalega to uske sahare kashtee ship me chali jayegee, bharosa rakhiye.. :)

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  7. Aaphi hame kahen,kya hai yah?Waise jo bhi likha gaya hai manse hai..banawati nahi hai...jab kabhi manme nirasha aati hai,shabdonme chhalak hi jati hai..

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  8. अरे नाईस नाईस मत बोलो भागओ यह तो हाई है.... कच्चा खा जायेगी....

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  9. आत्मावलोकन के क्षण पुरुष के एकान्त को अपराध न समझा जाये ।

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  10. अब ऐसा जुल्म न कीजिये मर्दों पर. महिलायें भी कम नहीं होतीं. आपको अपनी (जो अपनी न हो सकी) का पता दूं क्या.. वैसे कुछ तो मजबूरियां रही होंगी... रचना बहुत शानदार.

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  11. कोई रास्ता नहीं रह जाता !
    सिवाय नाव पलट कर, डूब जाने के...

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  12. घो-घो रानी कितना पानी?

    बड़े नहीं होना चाहिये था आपको, या फ़िर हम में से किसी को भी। पर ये सब अपने बस में कहां है? बड़े होने की कीमत चुकानी ही है। हां, जब किनारे पहुंच जायेंगी तो पहले से भी बड़ी, मजबूत और आशावादी हो चुकी होंगी। विश्वास करना शायद सहज नहीं है, पर जो होता है अच्छे के लिये होता है।
    रचना(आपकी) बहुत अच्छी लगी और तस्वीर ने शब्दों का असर बहुत बढ़ा दिया।
    आभार।

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  13. इतनी निराशा? आपके द्वारा? नहीं.

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  14. हम इसे इश्वर और भक्त के बीच का द्वन्द भी मान सकते है न?

    लेकिन इश्वर ने छोडा भी होगा तो इसलिये कि आप बीच समन्दर भी न घबराओ और बढती जाओ..

    नाव, तो कायर डुबोते है.. और तुम पर तो उसका हाथ है.. चलते जाओ नाविक.. चलते जाओ..

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  15. जाने क्या है ये...

    ये हौसला है, समुद्र को हराने का...

    जय हिंद...

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  16. इतनी निराशा ठीक नहीं। डूबते को तो तिनके का सहारा काफी है। आप के पास तो अभी नाव है। कभी भी किनारे लग सकती है।

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  17. Hum darwaje bandh kar dete hai sabhi, tumhe darane ko.
    Taki smaz jao tum hamari chuppi se,
    kya chahte hai hum.
    Kya kare,aur koi rasta bhi to nahi,
    Sadio ki hakumat bachane ka.
    'Zuko,ya mar jao' yehi hai kayda purkho ke jamaneka.

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  18. मानसिकता को उकेरती रचना
    बहुत गहराई
    सुन्दर रचना

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  19. (बड़े) बच्चन जी याद आ गए.

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  20. नुस्खा - हरि अोम शरण का श्रवण विशेषतया 'तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार' अौर गीतांजलि का पठन, मनन

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  21. किसने छोड़ा है बीच मझदार नाव में ....
    डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है ...तिनके के सहारे नैया पार लग जायेगी ,....
    और अभी डूबना के डर से कैसे चलेगा...अभी तो गाँव में जमीन खरीदनी है कि नहीं ....:):)

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  22. kashti ki baat rahne de samandar bhi dubo de too.....


    .................


    aisaa ho nahin saktaa....

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  23. अंतिम पंक्तियाँ पुनर्विचार्नीय हैं।
    पतवार न भी तो भी किश्ती किनारे लग सकती है , बस हिम्मत होनी चाहिए ।

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  24. अदा जी, इस कविता के दो भाव हैं। एक सामान्‍य सा कि नारी अकेली भवसागर में डूब गयी है। लेकिन दूसरा है कि नारी पुरुष के अन्‍दर डूब गयी है। क्‍योंकि आपने प्रारम्‍भ में लिखा है कि तुम्‍हारी जीतने की जिद। समर्पण का भाव है यह। मेरी व्‍याख्‍या ठीक है या फिर वहीं नारी वाली। बताना।

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  25. कभी -कभी सब दरवाजे बंद कर अकेला छोड़ने का अर्थ है...तुम्हें स्वयं से मिलाने का अवसर देना...नाव बेश्क छोटी है...लेकिन पतवार का इंतजाम है... नजरे दौड़ाओ और खोज लो उसे...हम समुन्दर में ही हैं... हर कोई अपनी नौका में सवार... नाव पलटती है ... तब भी वह है तुम्हें तुमसे मिलाने को ! सुंदर बोधपूर्ण और आशावादी.... है ना !!!!!

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  26. kuchh adhura sa lag raha hai...jaane kyo?

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  27. ये सोच आपसे कुछ मेल नहीं खाती.....

    ना हो
    हाथ में पतवार
    पर
    मन का हौसला
    बाकी है
    बंद हों
    सारे दरवाज़े
    पर
    रोशनी का
    एहसास ही
    काफी है .....

    सस्नेह

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  28. नौका तो है मगर कोई पतवार नही है!
    जंग जीतने चले मगर तलवार नही है!
    कोई नहीं खँगालता सागर का गहरा तल,
    सरदार तो बहुत हैं, असरदार नहीं है!!

    अदा जी!
    आपकी रचना के बारे में तो यही कह सकता हूँ-
    "देखन में छोटे लगे, घाव करें गम्भीर!"

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  29. amma yaar to kisne kaha tha naav lekar nikal pado samudr me....aur nikal hi pade the to apne baazuo par bharosa hona chaahiye...

    to samjhe na????
    APNA HATH JAGANNATH....ha.ha.ha.

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