रिश्तों का
कारोबार
चलता ही है
अहसास के
सिक्कों से
जज़्बात के गुँचे
खिले नहीं कि
मोहब्बत परवान
चढ़ गयी
फिर जलने लगे
दिलों में
दर्द के दीये
बातें, गुस्सा और कभी रूठना
वो उसका दूर चले जाना
फिर
पहले से भी ज्यादा क़रीब आना
जैसे
कोई हाई जम्प से
पहले कुछ क़दम पीछे
जाता है
और हर बार एक नई ऊँचाई
पाता है
ऐसा ही कुछ
वो भी कर रहा है
मैं रोक नहीं पा रही
उसका अहसास
उसका अहसास
दिल का एक
और
कमरा भर रहा है .....
मयंक की चित्रकारी :
Bahut jhoobsoorat nayi upmaayen gadhee hain di... badhiya lagi Mayank ki chitrakari aur design kiya gaya logo bhi..
ReplyDeleteआज की कविता बहुत सुंदर लगी, सच में। इस अहसास के कारोबार में रिसेशन कभी नहीं आये, यही दुआ है सभी के लिये।
ReplyDeleteआज कोई गीत नहीं गुनगुनाया?
और हां, आपका ब्लाग पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रहा है, नजर न लग जाये, काजल का टीका लगा लीजिये।
ReplyDeleteहर बार दूर जाना और लौट कर आना दुगुने एहसासों से भर जाता है दिल का कमरा ...दिल के हर कमरे का कोना कोना ऐसे ही अहसासों से जगमगाता रहे ...दुआ रहेगी हमेशा ....
ReplyDeleteजानती हो ना ...कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा जाता है ...
वाह !! बहुत खूब .......मयंक की चित्रकारी तो लाजवाब
ReplyDeleteजज़्बात के गुँचे
ReplyDeleteखिले नहीं कि
मोहब्बत परवान
चढ़ गयी
फिर जलने लगे
दिलों में
दर्द के दीये
मनोभावों का सुन्दर चित्रण किया है आपने!
मयंक जी को शुभाशीष!
वाह! काफी अच्छा लिखा है अपने. मैं आपके ब्लॉग को अपने BLOG LIST में जोड़ रहा हूँ. धन्यवाद
ReplyDeleteरिश्तों का
ReplyDeleteकारोबार
चलता ही है
अहसास....
सुन्दर बात.
हाईजम्प के बिम्ब का अच्छा प्रयोग है ।
ReplyDeleteहर बार एक नई ऊँचाईपाता हैऐसा ही कुछवो भी कर रहा है हर बार उसका अहसास दिल का एकऔरकमरा भर रहा है .....
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
ReplyDeleteada ji aapki tareef ke liyee
nice
ReplyDeletehnm...
ReplyDeletevery nice...
आप यूं फासलों से गुजरते रहे,
ReplyDeleteदिल के कदमों की आहट होती रही,
आप यूं फासलों से...
जय हिंद...
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
ReplyDeleteलेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
एक एसएमएस याद आ गया।
ReplyDeleteदिलवालों से बड़ा कोई धनवान नहीं मिलता।
मंदिर जाने से कभी भगवान नहीं मिलता।
लोग शायद पत्थर इसलिए पूजते है कि
दुनिया में भरोसे के लायक कोई इंसान नहीं मिलता।
बहुत सुन्दर रचना है ! मन के बेहद नाज़ुक अहसासों को बड़ी खूबसूरती से बयान किया है आपने ! अहसास चिरंतन होते हुए भी उनका नितांत आधनिक ट्रीटमेंट बहुत अच्छा लगा ! बधाई !
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण..आपका अपनी तरह और मयंक का अपनी तरह!! आनन्द आया.
ReplyDeleteAdaa ji
ReplyDeleteaaj kafi time ke baad apka blog pada. bahut achha laga. iska look abhi pehle se jyada achha laga raha hai.
-Shruti
सुन्दर रचना, मयंक की चित्रकारी के तो जलवे हैं।
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteIt is beautifully written and quite touchy... nice verbiage used :)
ReplyDeleteAnd for Mayank -- Very good work done by him :)
Regards,
Dimple
वाकई शब्द नही है तारीफ़ के लिए,मेरे पास,बस अहसास है रिश्तों का।बहुत सुन्दर और लिटिल चैम्प की तो बात ही निराली है,नज़र ना लगे उसे किसी की।
ReplyDeleteरिश्तों का कारोबार चलता ही है अहसास के सिक्कों से जज़्बात के गुँचे खिले नहीं कि मोहब्बत परवान चढ़ गयी....
ReplyDelete...................
रिश्तों के मेरे अहसासों को पढ़ें....
.......
जाड़े के दिनों में,गरम-गरम,
गुलगुली-गुलगुली सी रजाई से निकल कर,
ड्यूटी जाने का मन नहीं करता,
मन करता है,
मीठे-मीठे सपने देखने का, बीबी से लिपटकर.
........पूरी कविता के लिए लिंक है....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_3507.html
ehsaaso ka ekdam sateek chitran.........badhaai
ReplyDelete"जज़्बात के गुँचे
ReplyDeleteखिले नहीं कि
मोहब्बत परवान
चढ़ गयी
फिर जलने लगे
दिलों में
दर्द के दीये"
वाह!
बहुत खूब .......
अति सुंदर रचना और उतनी ही सुंदर चित्रकारी.
ReplyDeleteरामराम.
आज तो अहसासों ने हाई जम्प मारा है।
ReplyDeleteबढ़िया लगी ये रचना , और चित्रकारी भी।
dil ko gahre tak chhu jane wali rachna.busy bee ko badhayi.
ReplyDeleteRachana aur chitrakari dono hi bahut sundar hai...!!
ReplyDeleteone of the best from you... superb..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteआपके ज़ज्बात पड़कर
कुछ अपना सा लगा
यूँही पिरोते रहिये अपने दिले राज़
अन्दर-बाहर अपने जैसा भी लगा
कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
http://qatraqatra.yatishjain.com/
high jump se pahle ek kadam peeche... wow!!
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