पत्थर हो गए हैं
मेरे शब्द, मेरे भाव
आदत झेलने की
फिर तारी है मुझ पर
खो रही है शांति मगर रोना क्यों ?
बरगलाने का मौसम है
नासमझी का आलम है
और उम्र ??
वो तो सभी हद्दें पार कर चुकी है
पीड़ा तो हुई है
आँखों के सामने
पाण्डव के दर्प पर
अभिमन्यु की ऊर्जा का
दाँव पर लग जाना
और उसका फिर
बहक जाना
चाहती हूँ बच जाए
उम्र से पहले न जी जाए
क्यों उसे चक्रव्यूह में
फँसा रहे हो
कोख में ही बूढ़ा बना रहे हो
जीना तो है ही उसे
परन्तु आज क्यों ?
बस हैरान हूँ
मैं अजन्मी धृतराष्ट्र-पुत्री
शतानना !
मुझे कौरव समझने की
भूल मत करना
मैं स्वजा, दुर्गा, काली, लक्ष्मी,
रति और कभी सरस्वती
रति और कभी सरस्वती
सांध्यदीप अर्पण कर रही हूँ
तिमिर को अब
जाना ही होगा
जाना ही होगा
मेरे होने को
अपनाना ही होगा
तुम चाहो या न चाहो
कुरुक्षेत्र मिटाना ही होगा !!
शतानना ! यह मेरी कल्पना में पुत्री है धृतराष्ट्र की...अजन्मी ...
बस मेरे मन के उदगार हैं जो लिख दिया है....आपको यह महाकाव्य में नहीं मिलेगा....
कृपा करके इस बात पर कोई पंगा मत लीजियेगा....
शतानना ! यह मेरी कल्पना में पुत्री है धृतराष्ट्र की...अजन्मी ...
बस मेरे मन के उदगार हैं जो लिख दिया है....आपको यह महाकाव्य में नहीं मिलेगा....
कृपा करके इस बात पर कोई पंगा मत लीजियेगा....
ऐसी वेदना कहां से ला पाती हैं आप?
ReplyDeleteकुरुक्षेत्र मिटाना ही होगा !!
ReplyDeleteपर कैसे बहुत कठिन है...
पाण्डवों या कौरवों की यदि कोई बहन होती तो कदाचित महाभारत के पहले ही भावनायें नम हो जातीं ।
ReplyDeleteरचना बहुत मार्मिक है...
ReplyDeleteशतानना ! ये नाम पहली बार जाना है...
कौरवों की बहन का नाम दु:शाला था . और उसके पति का नाम जयद्रथ...प्रवीण जी को शायद याद नहीं रहा होगा.
संगीता जी,
ReplyDeleteये मेरी काल्पनिक पुत्री है धृतराष्ट्र की...अजन्मी ...
बस मेरे मन के उदगार हैं जो लिख दिया है....आपको यह महाकाव्य में नहीं मिलेगा....
बहुत गहरी सोच है....स्पष्ट करने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteशुभकामनायें.
बेहद रोचक और मार्मिक है।
ReplyDeleteबेहद रोचक और मार्मिक है।
ReplyDeleteme chup rahungi koi panga na lungi...
ReplyDeletebas shat shat naman apko aur apki lekhni ko.
इतनी बडी कल्पना .. शतानना जन्म ले लेती तो महाभारत की कहानी ही उलट जाती !!
ReplyDeleteGirijesh ji ka comment email dwara :
ReplyDeleteपहले शोले
फिर महाभारत
आर्ये !
रहम करें।
शीर्षक ही कविता है
बाकी को क्या कहें ?
पाखी न बोल साखी -
अच्छा प्रयोग है - अर्थयुक्त लेकिन सामयिक घटनाओं से जोड़ कर देखने पर
ऐसे ऐसे अर्थ निकलते हैं कि हैरानी होती है और दु:ख भी। सनातन शतानन के
साथ शतानना भी ! सौ आततायी पुरुषों के बदले एक नारी - शतानना !! पुत्री
भी किसकी - धृतराष्ट्र की !!! अन्धे के आँगन में सान्ध्य दीप जलाती - वह
पंक्ति याद आ गई ..आँख प्रकाश की माता है ...
.. क्षोभ की कविता में आवेग और शक्ति होती है। इसे ऊर्ध्व दिशा दें, दूर तक जाएगी।
कुरुक्षेत्र कभी नहीं मिटते। सृष्टि के मूल नियमों की निष्पत्ति जो होते
हैं। कुरुक्षेत्र का अभाव ही हिमयुग है। ...
..हाँ, ये ब्लॉगरी वाले बिना बात के कुरुक्षेत्र तो मिटने ही चाहिए।
शुभस्य शीघ्रम |
I am referring to your current as well as,last post on 'SANSKRITI'.How wonderful that it took such a long time for a person like you to understand a simple truth of this universe, that main culprit and primitive beast is nobody but a man,obviously I meant 'male' by typing man! Be it a husband , brother, father or anybody, his prime mentality is to rule the women by all means, including in the name of love. Women are being cheated by men in the name of love, Matrutva, Sanskar, Sanskruti, Samaj and so on. Those who opposed, were killed or declared 'Patita' 'Kulakshini'or a 'Dakini' in old days, 'Tharki','Chalu','Whore' in recent days.Even our scriptures didn't spare poor women, you must be knowing 'tadan ke adhikari.'In old western world women were considered 'ASSET'and entitled to trade , exchange or enslaved.'And what one can expect from the reptile,full of venom? I may be sound cynical or biased but I know many men with reputation, who possess very low mentality when subject comes to 'women.' All abusive terms are discriminative towards women, and it can be easily understood that,creators of that terms are nobody but men.And which Sanskriti do they talking about? One who try to rape 'Draupadi' in front of Yudhisthir, a 'Dharm-Raja.' If Dharmaraja was such a coward, what one can expect from ,Adharma-Raja?'
ReplyDeleteSo dear Adaji, these all are hypocritical stories about 'sanskriti' not to be bought by any person with a head on the shoulder.We,all men have its own 'Taliban' resides in our inner body. We use it sparingly, time to time to cheat the women, who gave us birth, feed us, save us, entertain us, cry for us.In return we give them nothing but a misery. All happy things are not that much happy always.Behind that happiness lies the sacrifice of silent sufferer,we call her 'Stree' 'Shakti' 'Shree' but only to put her in illusion that we are worshiping her.For under illusion she may not scream, oppose, protest when we betray her.
Thanks for giving me initiative to think on the subject.
अदा जी,
ReplyDeleteवाकई अभिमन्यु की ऊर्जा को बचाना है,
बहकने से बचाना है...
जय हिंद...
जो कविता को कविता की तरह देखता है वह सचमुच पंगा नहीं लेगा । मिथको के प्रयोग का यह एक अच्छा काव्यात्मक उदाहरण है ।
ReplyDeleteसोचने पर मज़बूर करती है आपकी रचना । इस देश मे जहाँ, हम ’नारी’ को देवी मानकर पूजते है, वहीं पर उनपर ज़ुल्मे भी कसते है और बंदिशे भी लगाते है । सोच बदलना होगा । बधाई ।
ReplyDeletemain bhi Sharad bhaia ki baat ko dohrata hoon.. sath me ek utkrisht kavita ke srijan par badhai Di..
ReplyDeleteमार्मिक रचना.
ReplyDeleteकल के विचार विमर्श ने शतानना को जन्म दे दिया ...दुशाला को तो हम भूल ही गये थे ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता ...क्या कहूँ मौजू(?) ....मगर दुशाला की मौजूदगी भी कौरवों की अनैतिकता पर लगाम कस नहीं पायी ...शक्ति का दंभ ही ऐसा होता है ...
अदाजी, बढिया है। कनाडा में अब तो बर्फ पिघलने लगी होगी?
ReplyDeleteकाल्पनिक नाम उसी जमाने का अच्छा लगा,अच्छी कविता.
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
कुरुक्षेत्र मिटाना ही होगा !!
ReplyDeleteआज के ज़माने में कुरुक्षेत्र होना ही नहीं चाहिए ।
जो कल्पना इस युग को महाभारत काल से connect करती है उसे प्रणाम.कमाल की सोच और सुन्दर शब्द विन्यास. ’धृतराष्ट्र पुत्री’को नमन.
ReplyDeletejis sandarbh mein kavita ka janam huaa hai aur uska maksad aur marm sab spasht ho gaya hai ...........bahut hi salike se aapne apni baat bhi kah di aur samjhne wale samajh bhi gaye..........aabhar.
ReplyDeleteकविता सिर्फ़ कविता नहीं होती,कोरी भावुकता नहीं होती, लक्षणा-कला नहीं होती,यूंही कल्पना या कथन नहीं होती----वह सामाजिक सरोकार होती है ---पौराणिक सन्दर्भ में बात करते समय ग्यात तथ्यों से अवान्तर रखना है तो खोजी तथ्य प्रस्तुत करने चाहिये, यूं ही खेल कुछ नहीं होता। कितनी बहनों ने कुरुक्षेत्र बचालिये हैं आज तक?
ReplyDeleteएक-एक शब्द जैसे गहरे सागर में दुबकी मार कर निकले गए लगते हैं...या फिर दिल के अंदर गहराई से निकल कर उमड़ पड़े हैं.....बहुत...बहुत...बहुत..बहुत...बहुत.....सुंदर अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteसमीर के बोल थे...अदा दीदी की आवाज और बेहद प्यारा संगीत। वो भी अद्बत था, और यह भी अद्भुत}
ReplyDeletebahut hi sundar, kavita..rochak bhi aur maarmik bhi...
ReplyDeleteअभिमन्यु(वह उपाधि जो हाल ही बाँटी गयी है) के सापेक्ष
ReplyDeleteशतानना की अवतारणा का औचित्य समझ में आ गया है !
जब कुरुक्षेत्र नया हो तो नयी कल्पना का उदय शतानना के
रूप में ही होगा !
सुन्दर ! प्रासंगिक ! नव्य !
आभार !
कल्पना के आधार पर रचित भावपूर्ण सुन्दर रचना लगी ...आभार
ReplyDeleteआपसे पंगा कौन लेगा भला... आपने आज तक कोई scope छोड़ा है कि कोई पंगा ले सके...
ReplyDeleteवैसे ग़ालिब भी तो कह कर गये हैं, यूँ होता तो क्या होता...