छन छन्न छन
मेरी पायल बोलती जाती
और
और
तुम मुदित हुए जाते हो
आँगन में अंगना
बनी मैं
डोल रही हूँ
पायल की झंकार
रस घोल रही है
हक़ है मेरी पायल
को बोलने का
पर मुझे नहीं !!
तुम क्यों
मुझे बोलने दोगे
पर
हक़ है मेरी पायल
को बोलने का
पर मुझे नहीं !!
तुम क्यों
मुझे बोलने दोगे
पर
होठ मेरे अब और
प्रतीक्षा नहीं करेंगे
प्रतीक्षा नहीं करेंगे
छटपटाते हुए
शब्द अब कहाँ
रुकेंगे
शब्द अब कहाँ
रुकेंगे
भाव भी आ रहे हैं बाहर
वाणी की सांकल
अब खुल ही जायेगी
किनारों में बंधी
नहीं रह पाएगी
कगार पर आ गई है
मेरी सोच
कगार पर आ गई है
मेरी सोच
पायल की रुनझुन
ने चिटकनी खोल दी
ने चिटकनी खोल दी
दौड़ गए हैं बाहर
मेरे भी कुछ
Di.. antarman ko jhankrat kar gayee aaj ki kavita..
ReplyDeleteaur Mayank ki art ka kya kahna! natural hai, bahut bada gift diya hai use uparwale ne..
रचना कुछ अतिश्योक्ति सी है..चित्रकारी उम्दा!
ReplyDeleteमयंक का कविता पढ़कर बनाया गया स्केच है क्या? कविता का आक्रोश मूर्तिमान सा दिख रहा है पहले स्केच में!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteअच्छी कविता।
ReplyDeleteअंतर्मन के भावों को प्रदर्शित करती हुई।
आभार
गहरे अर्थों की कविता
ReplyDeleteअंतर्मन के मंथन को व्यक्त करती रचना....अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवो तुम्हारे
ReplyDeleteचुने हुए कपड़े
पहन भी लें तो क्या
तुम तो उन्हें निर्वस्त्र ही देखते हो ..!!
अब और कुछ कहने की जरुरत भी नहीं ...
हाँ, वो नहीं खुदा-परस्त, जाओ, वो बेवफा सही
ReplyDeleteजिसको हो दीन-ओ-दिल अजीज, उसकी गली में जाए क्यूँ..
रोयेंगे हम हज़ार बार...कोई हमें सताए क्यूँ...?
एक बहेतरीन रचना .....और साथ साथ में मयंक जी कलाकारी का तो कोई जवाब नहीं .......बहुत बढ़िया .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गहरी भावाभिव्यक्ति। शुभकामनायें
ReplyDeleteइतना मत कोसो
ReplyDeleteथोड़ा एक बार फिर सोचो
बोलो, मैं नहीं कहता रोको
लेकिन फिर भी रूको,
और सच में सोचो...
क्या जितना गहरा लिख डाला,
वो सच में है,
या तुमने बना ली
एक तस्वीर जो कल्पना में है, दे दिया शब्दी रूप
घाघरा, गोड़हरा और पायल के साथ हवाई चप्पल ! - निकालने, प्रयोग करने और पुन: धारण करने के लिहाज से परम उपयोगी। :)
ReplyDeleteबिछुआ ढूँढते रहे नहीं दिखा। बिछुआ उतारना सुहागन के लिए एक कठिन कार्य। गहन सांकेतिक फोटो - कहाँ से ढूढ़ लाईं यह फोटू ?
@ चित्र
लगता है मयंक बाबू एनीमेशन भी सीख रहे हैं।
@ दौड़ गए हैं बाहर मेरे भी कुछ धधकते से विचार निर्वस्त्र होकर
अब नहीं पहनेंगे वो तुम्हारे चुने हुए कपड़े
पहन भी लें तो क्या
तुम तो उन्हें निर्वस्त्र ही देखते हो ..!!
विचार जब वस्त्र पहनते हैं तो अनर्थ जन्म की भूमिका बनती है।
चित्रकारी तो उम्दा है,मयंक को बधाई.
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियां दिल को चीरती हुई निकल गयी। बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति। मयंक को भी बधाई।
ReplyDeleteअंतर्मन के मंथन को व्यक्त करती रचना....
ReplyDeleteअच्छी कविता।
ReplyDeleteअंतर्मन के भावों को प्रदर्शित करती हुई।
Behad sundar...rachana aur chitrkaaree dono! Kamal hai,bas,kamal hai!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता जी. धन्यवाद
ReplyDeleteमयंक जी का कार्टून और
ReplyDeleteआपके अन्तर्मन के भाव
बहुत सुन्दर हैं!
माँ और बेटा दोनों ही बधाई के पात्र हैं!
Ada ji kahin bhaut gehri koi baat chhupi hai rachna main...
ReplyDelete@
ReplyDeleteबिछुआ ढूंढे नहीं मिल रहा ....इस तस्वीर में भी यह पता लगाना चाह रहे हैं कि विवाहित है या अविवाहित ...बुरी आदत है ....:):)
वाणी की सांकल अब खुल ही जायेगी
ReplyDelete-wah wah...ek bar to laga VANIGEET ji ne saankal laga di thi....
bt seriously ye bhaav acchhe lage rachna me.
मेरी सोच पायल की रुनझुन
ने चिटकनी खोल दी
waise sach hi hai...payal to kam se kam apni awaz se gussa dikha hi sakti hai.
दौड़ गए हैं बाहर मेरे भी कुछ धधकते से विचार निर्वस्त्र होकर अब नहीं पहनेंगेवो तुम्हारे चुने हुए कपड़ेपहन भी लें तो क्यातुम तो उन्हें निर्वस्त्र ही देखते हो ..!!
yessssssssssss....ye soch ek dam pukhta hai....to fir dar kahe ka....badhe chalo....
acchhi rachna.
बढ़िया.
ReplyDeleteपायल की रुनझुन
ReplyDeleteने चिटकनी खोल दी
दौड़ गए हैं बाहर
मेरे भी कुछ
धधकते से विचार
निर्वस्त्र होकर
अब नहीं पहनेंगे
वो तुम्हारे
चुने हुए कपड़े
पहन भी लें तो क्या
तुम तो उन्हें निर्वस्त्र ही देखते हो ..!!
behtrin kavita ,kala hi kala yahan ...
bahut kuch khti sarthak kavita .
ReplyDeleteकविता के साथ फटी बिवाई वाले पाँव की तस्वीर अच्छी लगी यह बात कविता मे भी आनी चाहिये ।
ReplyDeleteआपके पाँव देखे..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत हैं....
इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा....
मैले हो जायेंगे...
विद्रोही और क्रांतिकारी रचना ....
ReplyDeleteऔर मयंक जी की चित्रकारी तो अद्भुत और मंजी हुई है .. पता नहीं उनकी उम्र क्या है लेकिन वो निश्चित ही वेल ट्रेन्ड लगते हैं ... यद्यपि चित्रकारी में पश्चिम और आधुनिकता की छाप सहज ही उभर आती है
बहुत शुभकामनाएं
@ Sharad Ji
ReplyDeleteI could not find ' फटी बिवाई ' in the photograph :)
Yes, it is really symbolic.