सोचा न था के तू इस क़दर बदल जाएगा
अब के जो गया है तो लौट कर न आएगा
परवाज़ लौट आये पर इनका क्या भरोसा
कब तक ये रुकेंगे अब मौसम ही बताएगा
मेरे घर में रह रही है बेघरी कई दिनों से
जाए के अब रहे ये पर तमाशा तो हो जाएगा
सुलझे हुए दिखे हैं उलझे हुए से बन्दे
कब तक ये रुकेंगे अब मौसम ही बताएगा
मेरे घर में रह रही है बेघरी कई दिनों से
जाए के अब रहे ये पर तमाशा तो हो जाएगा
सुलझे हुए दिखे हैं उलझे हुए से बन्दे
उलझे हुओं की सुलझन में तू उलझ जाएगा
सागर की प्यास का तुम्हें इल्म ही कहाँ है
कभी अश्क पी के देखो सब पता चल जाएगा
कभी अश्क पी के देखो सब पता चल जाएगा
बस तंज कस दिया न सोचा फिर पलट के
हर्फों की तल्ख़ तासीर से इंसा बदल जाएगा
सुलझे हुए दिखे हैं उलझे हुए से बन्दे
ReplyDeleteउलझे हुवों की सुलझन में तू उलझ जाएगा
सागर की प्यास का तुम्हें इल्म ही कहाँ है
अश्क पी की देखो सब पता चल जाएगा
Ky baat hai harek panktiki...mai khamosh ho jati hun..
bahut sundar ...abhaar
ReplyDeleteसागर की प्यास का तुम्हें इल्म ही कहाँ है
ReplyDeleteअश्क पी की देखो सब पता चल जाएगा
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अश्क पीता रहा इश्क की राह में
प्यास बुझती नहीं, सिलसिला चलता रहा
क्या कहें एक एक लफ्ज़ मन में उतर गया
ReplyDeletebahut sunder adaji. bahut sunder.
ReplyDeleteसागर की प्यास का तुम्हें इल्म ही कहाँ है
ReplyDeleteअश्क पी की देखो सब पता चल जाएगा
गजल का हरेक शेर बहुत ही शानदार है!
अब के जो गया है तो बदल जाएगा
ReplyDeleteउलझे हुवों की सुलझन में उलझ जाएगा
- 'अश्क पी की' को 'अश्क पी के' कीजिए।
- 'हुवों' को 'हुअों' कीजिए।
हर्फों की तल्ख़ तासीर से इंसा बदल जाते तो अाज संसार कुछ अौर होता।
शेरों का प्रवाह दर्शनीय है।
बहुत उम्दा
ReplyDelete---
अभिनन्दन:
आर्यभटीय और गणित (भाग-2)
अदा जी, बहुत शानदार रचना के लिये बधाई।
ReplyDeleteचांद बहुत निर्मल है, इसीलिये एक धब्बा भी खटकता है, ’अश्क पी की’ में मात्रा ठीक नहीं है, खटक रही है। हालांकि गिरिजेश जी पहले ही इंगित कर चुके हैं, पर टोकाटाकी से मैं भी नहीं बाज आ पा रहा हूं।
धब्बा अगर है तो हटाने में ही अच्छा है।
आभार
सागर की प्यास का तुम्हें इल्म ही कहाँ है
ReplyDeleteअश्क पी के देखो सब पता चल जाएगा
ha.n kabhi socha hi nahi ki kitni similarity hai dono ke paani me...aakhir hai to dono hi khare...
बस तंज कस दिया न सोचा फिर पलट के
हर्फों की तल्ख़ तासीर से इंसा बदल जाएगा
jo juba pe aag rakhte he
vo socha nahi karte...
talkh mijaji wale insa
insa ki kadr nahi karte..
गजब कहानी लिख दी टूटे हुए दिल की इस ग़ज़ल में आपने
ReplyDeleteमुझे एक शेर समझ नहीं आया
समझा देंगे तो बहुत अच्छा लगेगा
ये वाला शेर
मेरे घर में रह रही है बेघरी कई दिनों से
जायेगी या रहेगी तमाशा तो हो जाएगा
दिल और दिमाग दोनों पर असर कर गयी...
ReplyDelete.
http://laddoospeaks.blogspot.com/
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .....
ReplyDeletegajab! kabil-e-tareef!
ReplyDeleteयशवंत जी,
ReplyDeleteबेघरी का अर्थ है ..बिना घर-बार के ..
मैं घर में होते हुए भी बेघर हूँ....
और घर में बेघर होना ही अपने आप में एक तमाशा है...
di aur kya boloon.. yahi kah sakta hoon ki sari samvednayen likh daali hain
ReplyDeleteदेख तेरे इनसान की हालत क्या हो गई भगवान,
ReplyDeleteकितना बदल गया इनसान, कितना बदल गया इनसान
सूरज न बदला, चंदा न बदला, न बदला रे आसमान,
कितना बदल गया इनसान, कितना बदल गया इनसान....
जय हिंद...
बस तंज कस दिया न सोचा फिर पलट के
ReplyDeleteहर्फों की तल्ख़ तासीर से इंसा बदल जाएगा ...
वाह ...
एक एक शेर मुंह बोल रहा है ..
जाने कितने कालेजों को घायल कर जाएगा ...
लौटेगा एक दिन वो घर भी जब खुद फैसला कर पायेगा ...
बहुत बढ़िया ...
बहुत ही बढ़िया ...!!
सिर्फ़ एक शब्द कहुंगा "नायाब"
ReplyDeleteरामराम
-ताऊ मदारी एंड कंपनी
achchaa likhaa hai.....
ReplyDeletewo aur baat ke kai khtke hain...
par jaane dijiye...
ab kuchh nahin khatktaa.....
सागर की प्यास का तुम्हें इल्म ही कहाँ है...
ReplyDeleteYe khaas baat kahi hai.
bahut khoob!!!!
ReplyDeleteक्या बात है? सारे ही रिकोर्ड तोडने हैं क्या? दिल को छूने वाली रचना, बधाई।
ReplyDeletetum bas meri rooh apna kar dekho sab pata chal jayega
ReplyDelete-Shruti
खूबसूरत ग़ज़ल...तंज से बहुत कुछ बदल जाता है..
ReplyDeleteसागर की प्यास का तुम्हें इल्म ही कहाँ है
ReplyDeleteतुम अश्क पी के देखो सब पता चल जाएगा...
hmmm pata chal gaya....
अब के जो गया है तो बदल जाएगा
ReplyDeleteउलझे हुवों की सुलझन में उलझ जाएगा ...
क्या बात है जी.
धन्यवाद