Wednesday, June 9, 2010

मैं लड़की होने की सज़ा पा रही हूँ .....


'इज्ज़त' 'आबरू'
ये महज शब्द नहीं हैं
नकेल हैं,
जिनसे बंधा है मेरा वजूद
ये कील हैं,
जिनसे टंगा है मेरा मन
ये रस्सी है जिससे
बंधा है मेरा पेट
और ये हथकड़ी हैं
जिससे बंधे रहते हैं
मेरे हाथ-पाँव.... ता-उम्र
फिर भी मैं इन्हें बचा रही हूँ....
मैं लड़की होने की सज़ा पा रही हूँ .....


39 comments:

  1. बहुत ही बेहतर ढंग से कम से कम शब्दों में बांधा है आपने व्यथा को....पर समाधान क्या लिखा जाये इस बारे में दुविधा में हूँ
    वैसे मुझे नहीं लगता इस बात का कोई जवाब है किसी के भी पास

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  2. वाह वाह
    बेहतरीन रचना
    आपकी कलम को सलाम
    http://chokhat.blogspot.com/

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  3. नकेल, कील, रस्सी, हथकङी के संयोजन से मार्मिकता संवेदना के साथ उकेरा है आपने लङकी की विवशता को..........सुन्दर, सार्थक व सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई।

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  4. bahut badhiya,
    bahut sateek udaaharan pesh kiye hain aap ne

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  5. kam shabdon main, bahut sahi baat ki aapne

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  6. मैं लड़की होने की सजा पा रही हूँ .....
    बहुत खूब यथार्थ है
    लड़कियाँ वाकई लड़की होने की सजा पाती हैं

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  7. मुझे तो लगा था ये शब्द एक कच्ची पगडण्डी है जिस पर कभी भी पैर फिसल सकता है....

    मगर मै गलत.....

    निकाल दो ये नकेल,उतार फेंको ये इज्ज़त-आबरू का ढकोसला....यदि इसे बचाना सजा ही है तो....और फिर जैसा लगेगा वो भी बताना...

    कुंवर जी,

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  8. 'इज्ज़त' 'आबरू'
    ये महज शब्द नहीं हैं
    नकेल हैं,
    जिनसे बंधा है मेरा वजूद
    ये कील हैं,
    जिनसे टंगा है मेरा मन
    ये रस्सी है जिससे
    बंधा है मेरा पेट
    और ये हथकड़ी हैं
    जिससे बंधे रहते हैं
    मेरे हाथ-पाँव.... ता-उम्र
    फिर भी मैं इन्हें बचा रही हूँ....
    मैं लड़की होने की सजा पा रही हूँ .....

    बेहतरीन रचना है.......कैफ़ी साहब की नज़्म औरत सहसा याद आ गयी.

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  9. जब तक लड़कियों को हांड-मांस का पुतला मात्र समझा जाएगा तब तक शायद ऐसा ही होता रहेगा।
    आपकी रचना से मैं सोच में पड़ गया हूं।

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  10. सुन्दर और प्रभावशाली रचना ... माध्यम वर्ग की स्त्रियों के दर्द का प्रतिनिधित्व करती हुई ...

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  11. नारी की सदियों-सदियों से यही कहानी है!
    सहना-सहना सहते रहना, नारी की लाचारी है!!

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  12. behad samvedansheel dard ukera hai ek ladki ka....

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  13. "इज्जत"."आबरू" क्या महज "शब्द" है लडकों के लिए ?

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  14. राणा जी,
    यह एक स्त्री के मनोभाव हैं...
    हम जीवन में कोई भी काम करने से पहले अपनी सुरक्षा का घ्यान रखते हैं....
    पग-पग पर हमारी प्रतिष्ठा हमें बहुत सारे काम करने से रोकती है....ज़रा सोचिये अगर यह 'इज्ज़त' 'आबरू' जैसी बात हम स्त्रियों के साथ नहीं जुडी होती तो सही मायने में लडकियां और कितने सार्थक काम कर सकती थीं ....कितनी ही मेधवी लडकियां, गुणी लडकियां सिर्फ इसी एक कारण से कुछ नहीं कर पाती हैं...
    आप खुद सोचिये...जैसे उदहारण के तौर पर....मेरी बेटी की बहुत इच्छा है कोई एक काम करने की ...लेकिन उसे घर से बाहर जाकर अकेले रह कर करना होगा....मैं उसे नहीं भेजूंगी...क्यों ? क्योंकि क्या पता उसके साथ क्या हो जाए...नतीजा ....वो नहीं जायेगी...और उसका वो सपना वही कुंद होकर रह जाएगा....
    मेरी यह कविता इसी बात को बताने कि कोशिश है....

    आशा है मैं समझा पायी हूँ...

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  15. अच्छी रचना... लेकिन 'इज्ज़त' 'आबरू' के बिना जीने वाले लोग यक़ीनन इस रचना से इतर राय रखते होंगे.

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  16. प्रभावशाली कविता है .

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  17. kitni sahajta se kataksh kiya .... yahi satya hai samaj ka

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  18. मुझे लगता है ....
    ये बात तो हम सब जानते हैं की शायद ही कोई कविता सार्वभौमिक सत्य का प्रतिनिधित्व कर सकती है (सिर्फ वैराग्य भाव को छोड़ दें)
    हर कविता एक रस विशेष और जीवन वर्ग विशेष का ही प्रतिनिधित्व करती है...
    ये कविता इस उद्देश्य में सफल है .....

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  19. अदा जी !! सादर प्रणाम !

    आप बहुमुखी प्रतीभा की धनी कवयित्री, गायिका और एक समझदार और संवेदनशील व जागरुक महीला हैं । इसके बावजूद आपको अपनी बेटी को घर से दूर भेजने में डर है ? मैं समझता हूँ कि आपको अपनी बेटी पर विश्वास रखना चाहिए और उसे अपने पसंद के काम के लिए घर से बाहर जाने दीजिए । कम से कम आप तो उसकी नकेल न बनिए । निश्चित ही माता-पिता को अपनी बच्ची की सुरक्षा की चिंता रहती है, लेकिन मैं समझता हूँ कि बच्चे जब बड़े हो जाएँ तो उन्हें उनके निर्णय खुद लेने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए । समय बहुत बदल चुका है ? अपने जमाने के समय को याद कर बेटी के पाँव की जंजीर मत बनिए । उसे अपनी पसंद के कार्य को करने दीजिए...और उसे अपनी सुरक्षा खुद करने का अहसास कराइए उसमें आत्म विश्वास भरिए...मैं समझता हूँ कि वह सुरक्षित रहेगी ।

    हमारी शुभकामनाएँ

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  20. @ भारती जी,
    मेरी बेटी वाली बात मैंने एक उदहारण के तौर पर कही थी....अभी ऐसी स्थिति नहीं है, वो बहुत छोटी है अभी...
    अपनी बेटी पर विश्वास तो होता है लेकिन दूसरों पर नहीं.....मेरे कहने का तात्पर्य ये था....
    हृदय से आपका धन्यवाद...

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  21. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  22. आपकी अभिव्यक्ति से अभिभूत हूँ...इस पोस्ट की टिप्पणी के लिए मुझे अपने गुरुदेव के अल्फाज़ उधार लेने होंगेः

    आले भरवा दो मेरी आँखों के
    बंद करवा के उनपे ताले लगवा दो.
    जिस्म की जुम्बिशों पे पहले ही
    तुमने अहकाम बाँध रखे हैं
    मेरी आवाज़ रेंग कर निकलती है.
    ढाँप कर जिस्म भारी पर्दों में
    दर दरीचों पे पहरे रखते हो.
    फिक्र रहती है रात दिन तुमको
    कोई सामान चोरी ना कर ले.
    एक छोटा सा काम और करो
    अपनी उंगली डबो के रौग़न में
    तुम मेरे जिस्म पर लिख दो
    इसके जुमला हुकूक अब तुम्हारे हैं.

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  23. क्‍या करें महिला को तो बचकर चलना ही होगा चाहे उसे इज्‍जत का नाम दें या फिर सुरक्षा का। भगवान ने पुरुष को ऐसा हथियार दिया है कि वह किसी के तन को ही नहीं मन को भी कभी भी घायल कर सकता है इसलिए ही महिला को सुरक्षा की आवश्‍यकता होती है।

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  24. सच है...कड़वा लेकिन सच है...हम बाहर रहकर पढ़ने वाली लडकियां इस सच से रोज रूबरू होती हैं.
    बहुत प्रभावशाली रचना !

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  25. उन हालातों के लिए शर्मिंदा हूँ जिनके कारण एक लड़की को इस सब से गुज़रना पड़ता है..

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  26. बहुत ही प्रभावशाली रचना...

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  27. नारी को नारी होने की सजा देने वाले भी तो आप हम , आप हममे से ही हैं ...
    कविता अच्छी लगी ...!!

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  28. good expressions

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  29. बहुत ही कम शब्दों में और सार्थक ढंग से एक भारी व्यथा-कथा को मूर्त रूप दिया है आपने ।

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  30. बहुत ही अच्छे ढंग से पेश की है आपने लड़की की व्यथा। बहुत खूब।

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  31. फिर भी मैं सृष्टि को रचे जा रही हूं,
    काल के चक्र को घुमाए जा रही हूं,
    क्या तुम्हें खुद पर नहीं आती ग्लानि,
    मैं लड़की होने की सज़ा पा रही हूं...

    जय हिंद...

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  32. ji apki is kavita se mujhe nari ke majburi ke darshan hue, par mujhe lagta hai ki ap apni majburi batane ke alawa apne ap {nari jati} ko shashakt banane ki koshish kare to behtar hoga, na nari hona saja hai
    aur n nar hona maja hai
    www.santoshpyasa.blogspot.com

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  33. I used to feel..
    "Nari hona saza hai"

    Few years later...

    I observed that women are..
    "pain in the neck" for men.

    Now with a clear vision i can gladly say ..
    " How beautiful it is to walk together "

    Men and women together !

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  34. हतप्रभ कर दिया आपने यानी आपकी इस अभिव्यक्ति ने....निशब्द हैं हम सब!!!!

    फुर्सत मिले तो हमज़बान पर शाया रंजना जी की कविताओं पर नज़र सानी की जाए.

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