ख़्वाब मेरे उठे थे, तूने क्यूँ सुला दिया
नाम के ताने बाने में क्यूँ उलझा दिया
रुक्न की हद तक हम पहुंच ही गए थे
क्यूँ बे-वक्त का ये मक्ता रचा दिया
दिल है मेरा ये तू वज़न क्यों देखता है
धड़कन को मेरी क्यूँ बहर बना दिया
गिरफ्त-ए-मतला में तो परेशाँ है 'अदा'
अश्क से ही सही क़ाफिया अता किया
गर्व है हमें हम हिन्दुस्तानी हैं.....
रचना पढ़ी ..आनन्द लिया..विडियो देखा झूम उठे...गजब कर दीद्दा सरदार जी ने तो. :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDelete--
आपकी देश-भक्ति को प्रणाम!
--
कभी उच्चारण पर भी पधारें!
हमें भी गर्व है कि आप हिन्दुस्तानी हैं ।
ReplyDeleteरचना और वीडियो दोनों बहुत ही गजब हैं, हमें भी गर्व है कि हम हिन्दुस्तानी हैं।
ReplyDeleteकहाँ रदीफो-काफिये में उलझी हैं आप...?
ReplyDeleteग़ज़ल सीख रही हैं का....?
shaandaar hai ji....
ReplyDeletekunwar ji,
हम भी होन्दोस्तानी हैं ।बहुत खूब लिखा है बधाई
ReplyDeleteआपने तो ग़ज़ल का पूरा व्याकरण ही समझा दिया...वाह...विडिओ तो वाऊ है...
ReplyDeleteनीरज
achchhi rachna............:)
ReplyDeletevideo chal nahi pa raha........:(
सादर !
ReplyDeleteलाजबाब ! पता नहीं क्यों भारत में एक सरदार सुस्त पड़ा है, कुछ करता ही नहीं |
रत्नेश त्रिपाठी
पोस्ट है आशिकाना,
ReplyDeleteटाइटल है वतनपरस्ताना,
वीडियो है शान-ए-सरदाराना...
सिंह इज़ किंग...
जय हिंद...
आप भी ना ...कभी कुछ ...कभी कुछ ...:):)
ReplyDeleteअजितजी की पोस्ट पर कोस रही थीं और अब गर्व कर रही हैं ..
वैसे गर्व ही करते रहना चाहिए ....
@ अश्क से ही सही काफिया अता किया ....सुन्दर ...!!
adaa behn hme bhi grv he ke hm hindustaani hen to dur bethi hindustaani aek bhn hmaaare hindustaan ke liyen hi soch rhi hen . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteहा हा हा सरदार जी ! !
ReplyDeleteअंग्रेज़ नूं भी भंगड़ा सिखा दित्ता जी ।
वाणी जी,
ReplyDeleteमैंने नहीं कोसा था ..मैंने कहा था अगर हमने अपनी करतूतों पर पाबन्दी नहीं लगाई और आने वाली पीढ़ियों के बारे में नहीं सोचा तो वो हमें कोसेंगी..पानी पी-पी कर...
और फिर जितनी अपनी अच्छाइयों के प्रति हम सजग हैं उससे ज्यादा अपनी बुराइयों के प्रति सजग रहे तो ज्यादा बेहतर है...
जैसे आपने बता ही दिया मुझे बहिन जी....ये भी उसी का उदहारण हो सकता है ...बस जरा सा मिस हुआ है समझने में...:):)
हाँ नहीं तो..!!
हा हा हा
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आज आपकी पोस्ट देखी तो उस समय वीडियो नहीं दिख रहा था। गजल पढ़कर और नीचे लिखा ’गर्व से कहो’ देखकर टोटल भेजा फ़्राई हो गया था, कि गज़ल से इस जुमले का क्या संबंध है? अब वीडियो देखकर क्लियर हो गया और गर्व भी हो गया है हिन्दुस्तानी होने पर।
ReplyDeleteवीडियो मजेदार, लेकिन गज़ल बहुत शानदार।
आभार।
ek gana yaad aa raha hai
ReplyDeleteham sab bharteey hain ..
सरदारजी का भांगडा तो छा गया जी। भारत के इतने रंग है कि उन सबको सहेज ले तो जीवन के रंग भी बदल जाएंगे। कई दिन हो गए हैं बात करे, कहाँ है? लग रहा है कि गाने की प्रेक्टिस के बाद कहीं भांगडा की प्रेक्टिस तो शुरू नहीं हो गयी है? वो भी जुगलबंदी से। हा हा हा।
ReplyDeletegood
ReplyDeleteसुबह सुबह धमाकेदार शो दिखा दिया आपने तो
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इसके लिए
इस बार तो आपको थोड़ी बड़ी लिस्ट के अर्थ बताने होंगे अदा जी
रुक्न
मक्ता
मतला
क़ाफिया अता
जानता हूँ अर्थ पूछ पूछ कर आपके पाठकों में सबसे ज्यादा परेशान मैं ही करता रहा हूँ इसके लिए क्षमा कर दें
बस इस बार बता दीजिये ...प्लीज
ReplyDeleteरुक्न
मक्ता
मतला
क़ाफिया अता
@ गौरव,
ReplyDeleteरुक्न...ग़ज़ल की लय जिसे बह्र कहा जाता है उसका एक निश्चित हिस्सा...१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ ......इसमें चार रुक्न हैं...१२२२ गुना ४..
मक्ता.....ग़ज़ल का आखिरी शे'र...जिसमें शायर का नाम आता है....जैसे..
पूछते हैं वो, कि 'ग़ालिब' कौन है..
कोई बतलाओ कि हम बतलायें क्या..
इसमें क्यूंकि शायर का नाम आया है और ये आखिरी शे;र है ग़ज़ल का..तो यह मक्ता कहलायेगा...
मतला...ग़ज़ल का पहला शे'र ...जिसके दोनों ही मिसरों में काफिया आना जरूरी होता है..
ये ना थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता.....
ये मतला है...
इस ग़ज़ल में रदीफ़ है 'होता' जो कि हर शे'र के दूसरे मिसरे में जैसे का तैसा ही रहेगा....
और काफिया है 'आर' की ध्वनि जो कि हर शे'र के दूसरे मिसरे में बदल बदल कर आयेगा...
जैसे उस्तुवार होता, एकबार होता, बादाख्वार होता, वो अगर शरार होता.....आदि...
लेकिन पहले शे'र में इस 'आर' की ध्वानी दोनों मिसरों में आणि अनिवार्य है...जैसे कि ऊपर आई है..
विसाले यार होता..
इंतज़ार होता...
काफिया वही..जिसके बार में अभी ऊपर कहा है....