Sunday, June 6, 2010

हम तो शेरों को कुछ नहीं समझते फिर गीदड़ों की क्या बिसात....

 
ज्यादातर ब्लोग्गर्स का मानना है कि ब्लॉग जगत में गुटबाजी है...और हो भी क्यों नहीं यह मानवीय गुण है  एक तरह की पसंद रखने वाले लोग एक साथ रहना पसंद करते हैं...अपने शहर में ही देखिये..हिन्दुओं का मोहल्ला और मुसलमानों का मोहल्ला जैसी जगहें देखने को मिलती ही हैं...यह तो अपने-अपने कम्फर्ट की बात होती है ....
लेकिन ब्लॉग जगत में, इन सबके बावजूद भी जो अच्छा लिखते हैं उन्हें लोग अवश्य पढ़ते हैं बेशक टिप्पणी न करें, पढ़ने वाले पढ़ते हीं हैं...जैसे मैं http://hathkadh.blogspot.com/...ज़रूर पढ़ती हूँ, हालाँकि वहाँ कमेन्ट करने का प्रोविजन नहीं है.....मैं http://mosamkaun.blogspot.com/ भी ज़रूर पढ़ती हूँ....मैं अपनी बात जानती हूँ मुझे बहुत सारे लोग प्रतिदिन पढ़ते हैं लेकिन ...सभी टिप्पणी नहीं करते हैं....और इसमें कोई हर्ज नहीं है...

मैं ख़ुद बहुत सारे पोस्ट्स पढ़ती हूँ..लेकिन हर जगह टिप्पणी नहीं कर पाती.... अगर आप अच्छा लिखते हैं तो लोग आपको पढेंगे ही...हाँ ग्रुप में रहने का फायदा यह ज़रूर है कि आपने कुछ भी लिखा हो आपको टिप्पणी मिल जाती है...और जैसा कि ब्लॉग जगत की मानसिकता है..जिसे जितनी ज्यादा टिप्पणी मिलती है वो उतना ही सफल ब्लोग्गर माना जाता है..टिप्पणी  की महत्ता इतनी ज्यादा कर दी गई है कि अब लोग अच्छे लेखन  की तरफ कम अधिक टिप्पणी पाने के तिकड़म में ज्यादा उलझे हुए नज़र आ रहे हैं....और इस तरह की प्रवृति से सबका ह्रास ही हो रहा है....

मुझे याद है जब मैंने अपने ब्लॉग की शुरुआत की थी तो एक उल्लास था, एक उत्साह था...बहुत सारी अच्छी पोस्ट्स पढ़ कर एक प्रेरणा मिलती थी और उससे प्रेरित होकर मैं और अच्छा लिखने की कोशिश करती थी...एक सृजन का माहौल था...सभी रचनात्मक योगदान कर रहे थे....लेकिन अब वैसी बात नहीं है...कितना भी अच्छा अभिनेता क्यों न हो अगर सामने वाला सही अभिनय नहीं कर रहा है तो उसके भी अभिनय में गिरावट आ ही जाती है...यही हाल आज हिंदी ब्लॉग जगत का हो रहा है...सभी अपने-अपने अहम् की तुष्टि में इस तरह लिप्त हैं कि ये नहीं देख पा रहे हैं यह प्रवृति हिंदी ब्लॉग जगत का कितना नुक्सान कर रही है,  हालांकि  हिंदी ब्लॉग जगत है..और आगे भी रहेगा..बस इसकी प्रगति धीमी ही रहेगी...सृजनात्मकता बाधित रहेगी और ज्यादा कुछ नहीं होगा.....सही लोगों को पहचान मिलने में देर होगी.....इसकारण कुछ लोग हताश होकर छोड़ जायेंगे.....नए लोगों का मनोबल टूटेगा.....और यह एक बड़ी कमी रहेगी ....

कहते हैं प्रसिद्धि और पैसा हर कोई हैंडल नहीं कर सकता है ...यह मत भूलें कि अगर ब्लॉग जगत नहीं होता तो बहुत से लोग हैं जिनकी कोई पहचान नहीं होती...कम से कम इस वजह से एक पहचान बन रही है लोगों की...जहाँ तक हो सके इस पहचान को एक अच्छी पहचान बना कर रक्खा जाए तो फायदे की बात होगी...वर्ना ये मौका निकल जाए तो सिर्फ़ पछतावा ही हाथ में रहेगा...

अश्लील लिखना कोई बड़ी बात नहीं है...न ही इसमें कोई बहादुरी की बात है...ये काम कोई भी कर सकता है...बल्कि ये काम सभी कर सकते हैं..एक कूली, एक मजदूर ..एक चपरासी, एक शराबी एक जुआरी..कहने का अर्थ है कोई भी....बहादुरी तब है जब वैसा लिख कर दिखायें जैसा बिरले ही कोई लिख गया हो...फिर तो बात बनती हैं...और यह होगी बहादुरी की बात...अभी हाल में किसी पोस्ट पर बहुत ही ग़लत भाषा का प्रयोग देखा...लोग भूल जाते हैं कि यहाँ जो भी लिखा जाता है वह 'ब्रह्म वाक्य' बन जाता है...आने वाली पीढियां वही देखेंगी...और जब देखेंगी कि उनके पिता ने अपनी अभिव्यक्ति कैसी भाषा में की है तब आपको कैसा लगेगा ये आप सोच लीजिये...

अंत में यही कहूँगी ..एक बार फिर वैसा ही सृजनात्मक माहौल बनाने कि चेष्टा सभी मिल कर करें ताकि सभी अच्छा लिख सकें...

एक बात याद रखें , जो अच्छा लिखता है वह किसी भी ग्रुप का मोहताज़ नहीं है....झुंड गीदड़ बनाते हैं शेर नहीं ....और हम तो शेरों को कुछ नहीं समझते फिर गीदड़ों की क्या बिसात....
अजी अकेले ही काफी हैं...हाँ नहीं तो...!!

और अब ये गाना सुनिए....
सुनने से पहले आँख बंद कीजिये...और अपनी पत्नी, प्रेयसी, सहचरी जो भी हों अपने मन में लाइए...ये सोचिये कि वो गा रहीं हैं आपके लिए....
और खबरदार :):):)  जो आँख खोला तो...हाँ नहीं तो..

36 comments:

  1. "सृजनात्मक माहौल बनाने कि चेष्टा सभी मिल कर करें।" प्रशंसनीय संदेश।

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  2. बहुत-बहुत उम्दा प्रस्तुती और सार्थक विचार ....

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  3. अपने अहम का नंगा नाच हम हिन्दी वालों की कमजोरी नहीं ताक़त है (यदि सहमत न हों तो किसी से भी पूछ लें)... :-))

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  4. अदा जी,
    आप बहुत अच्छी हैं. हाँ नहीं तो !

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  5. अदा जी एक सार्थक ब्लॉग | पर यह सब चिंता कि बात नहीं है | यह बड़ी बात है कि हमें लोग पढ़ पातें हैं और ब्लॉग पर बहुत कुछ नया और अच्छा पढ़ने को रोज़ मिल जाता है | हंस की तरह हमें पानी में से दूध चुन लेना चाहिए | पर इस पोस्ट को पढ़ के एक पुराना शेर याद आ गया शायद बशीर बद्र जी का है -

    " भरी बरसात में शादाब बेलें सूख जाती हैं,
    हरे पेड़ों के गिरने का कोई मौसम नहीं होता"

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  6. सृजनात्मक माहौल बनाने कि चेष्टा सभी मिल कर करें

    -सही बात!! सभी को प्रयास करना होगा.

    अब आँख मींच लिए हैं गाना सुनने को!! :)

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  7. एक अच्छी और सच्ची बात कही है आपने ।
    सार्थक लेखन करते रहें तो , कामयाबी एक दिन ज़रूर मिलती है ।

    लेकिन हम तो कब से आँखें बंद किये बैठे हैं , गाना क्यों नहीं सुनाई पड़ रहा जी ।

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  8. @ जो अच्छा लिखता है वह किसी भी ग्रुप का मोहताज़ नहीं है
    --- हम तो एकला चलो में विश्वास रखते हैं तभी तो कविगुरु की ये पंक्तियां मेरे मंत्र बन गये हैं
    जोदि केऊ तोहार डाक शुने ना आशे तबे एकला चलो रे!
    हाँ नहीं तो..

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  9. अजी छोडो इन झगडो रगडो को.... हम चले यह गीत जो मेरी ओर मेरी "उस का" सब से पसंदीदा गीत है तो जी राम राम वेसे आंखे ना भी मींचे तो भी नुतन ओर सुनील दत्त का चेहरा सामने आता है...

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  10. अदा जी, यह अच्छी बात है कि ब्लौगजगत में विकासवाद प्रभावी है. कुछ पोस्टें कुत्तों पर देखने के बाद अब गीदड़ और शेर को देखना अच्छा लग रहा है.

    आपको आज तक पढ़ा ही था, आज सुन भी लिया. आपका कंठ बहुत मधुर है.

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  11. @ मोनोज बाबू...
    आपनी जे जीबोनेर मोन्त्रो बुझे छि....शेइय आमियो पोछोंदो कोरी...
    जोदी तोमार डाक शुने केऊ ना आशे तोबे तुमि एकला चोलो रे......

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  12. अदा जी बहुत बढिया गीत बहुत बढिया सा गाया है लेकिन आज की नारी समर्पिता नही होना चाहती और ये सही भी है.
    एक बात ये कि आपने मजदूर और चपरासी को शराबी और जुआरी के साथ खडा किय है वो उचित नही है.

    लेख बहुत बढिया है
    और जो हमने लिखा है उसपे नाराज नही हो जाना
    हा नही तो... (आपसे ही साभार )

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  13. ab end me to aankhe band kara di...to bhala rev.kaise du???????

    aaaah aankh band kar k likh rahi hu bas gaana sun k maza aa gaya.

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  14. Ada ji kitne paise mile dusro ke blog ka link dene ke liye........vaise aap likhti achhi hai......

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  15. एक शेर की पंक्ति इस प्रकार है ;
    ' उनका जो काम है वह अहले-सियासत समझें ' , अपना काम तो
    अपनी निष्ठा के साथ जारी रहे बस !

    अब अचरज नहीं होता ब्लॉगवुड में किसी भी 'चिरकुट' कारनामे पर !
    पहले दिल पर 'लोड' ले लेता था पर बाद में ( जब स्वयं भोक्ता बना
    और व्यक्तिगत स्तरपर साक्षात्कार किया तो ) समझ में आया कि अचरज
    की कोई बात ही नहीं , जिसका जो संकल्प है वह वही कर रहा है ! कोई
    ग्रुप-बाजी , कोई अपनी दबी कुचली कुंठा ( यौन और यौनेतर भी ) की
    अभिव्यक्ति अदेस-भदेस किसी भी ढंग से , कोई मार्केटिंग , कोई
    ग्लैमरिंग , कोई कांटेकटिंग , आदि आदि ! सबकी अपनी सीमाएं और
    स्वार्थ हैं ! जहां जो शक्तियां हैं उनका सम्मान करता हूँ ! देर-सबेर सबको
    वयस-प्राप्ति हो ही जाती है अगर चाहे तो ! मुझे भी हुई !

    अब निर्लिप्त-भाव में रहने की कोशिश करने लगा हूँ , शायद यही मुफीद रास्ता
    भी है ! अफ़सोस यही होता है कि जब ब्लॉग की दुनिया में आया था तो कुछ साध्य
    बनने लगे थे , अब उनमें वह गर्मजोशी नहीं रही ! अब टीपों में गर्मजोशी का
    'प्राण' भर पाना बहुत कठिन हो गया है ! पर खुद से ईमानदार रहने का प्रयास
    अभी भी रहता है इसलिए जहां-तहां ब्लोगों पर जाना बंद सा होने लगा है !
    वहीं जाता हूँ जहां अपना अंदाजे-बयां बना रहे और सीखने व मनसायन के
    लिए कुछ मिल सके ! सबसे बड़ी बात अपना मूड और वक़्त न जाया हो !
    इन बातों के साथ अपनी भी सीमा को देखते हुए अब ब्लॉगों को लेकर 'सेलेक्टिव'
    होना ही बेहतर है !

    फिर भी अगर कहीं अपनी भूमिका को देखता हूँ तो जाने की कोशिश करता हूँ ,
    यही सोचकर कि सकारात्मक-नकारात्मक जो भी अनुभव होगा पुष्ट ही करेगा !
    पर इस क्रिया को सर्वथा प्राथमिकता तो नहीं दी जा सकती सो ऐसा कभी कभी !
    आपकी इस बात पर अमल करने का यत्न किसी के लिए भी श्रेयकारी होगा ---
    '' बहादुरी तब है जब वैसा लिख कर दिखायें जैसा बिरले ही कोई लिख गया हो...
    फिर तो बात बनती हैं...और यह होगी बहादुरी की बात .... ''
    --- इसकी चाहत शायद बहुत कुछ शोधित करेगी , बाह्य और आभ्यंतर भी !
    सहज ही कबीर याद आते हैं ---
    हद तजै सो मानवा , बेहद तजै सो साध |
    हद बेहद दोउ तजै ताकै मता अगाध ||
    [ आपकी पिछली एक प्रविष्टि में मानव-देव-अमानव चर्चा में भी यह याद आया था !]

    आज आपकी पोस्ट पढ़ते हुए अनुभव उमड़े-घुमड़े , कुछ बक गया ! बोझिल लगेगा तो उपेक्षित
    कर दीजिएगा !
    गाना बड़ा अच्छा लगा ! पर आख खोल के ही सुना :) ! जागृति का संगीत समझ ! सो अंत तक
    आँख खोले ही रह गए -:)

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  16. भास्कर बच्चे (नाम तक अपना नहीं है तुम्हारे पास )
    मैं पैसों में काम नहीं करती dollar में काम करती हूँ...और ५ million dollar के नीचे के तो मैं प्रोजेक्ट ही नहीं लेती बच्चे...हिंदी ब्लॉग जगत के २०००० ब्लॉग मिला कर भी ५ million के नहीं होंगे , तो फिर मुझे पैसा देने की सोच भी कौन सकता है....तुम्हारी तो फ़ोकट के ब्लॉग की भी औकात नहीं है....मुझे बहुत अफ़सोस हुआ जान कर की तुम सड़क पर हो.....बताना अगर कुछ मदद कर पाऊं तो...
    हा हा हा हा ....

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  17. लगता है कमेंट ही करना भूल गया हूं...

    सही कहा आपने, जिस तरह ब्लॉगिंग पर निरंकुशता हावी हो रही है, उसे देखकर कभी सोचता हूं कि यहां से भागिंग कर ली जाए, वही अच्छा है...लेकिन विषम परिस्थितियों में भी जिस तरह आप लेखन का उच्च स्तर बनाए रखती हैं, उससे फिर कुछ अच्छा लिखने की ऊर्जा मिलती है...ये भी ध्यान आता है कि कमल हमेशा कीचड़ में ही खिला करते हैं...

    लता जी का सदाबहार गीत सुनाने के लिए शुक्रिया...आपसे सुन-सुन कर संतोष जी को भी ये गीत कंठस्थ हो गया होगा...

    जय हिंद...

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  18. हम आँख मींच कर सुन्दर सा गाना सुन रहे हैं बस ...

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  19. मुझे लगता है की ब्लॉग की उम्र बढ़ने के साथ साथ टिपण्णी पाने की लालसा में कमी आनी चाहिए
    शुरुआत में अगर कुछ हो रहा है तो कोई विशेष बात नहीं है पर अगर ये जारी रहता है तो चिंता का विषय है
    वैसे आपकी इस पोस्ट का हर पेराग्राफ दमदार है
    दो नए ब्लोग्स से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया
    हर बार की तरह इस बार भी आपकी आवाज बहुत अच्छी लगी (ऑंखें बंद करने का प्रयोग बिलकुल सही रहा )
    (मैंने अपनी पोस्ट पर आपके कहने के अनुसार सुधार कर दिए हैं समय मिले तो देखिएगा )

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  20. अकेले मंजिल की और बढ़ते लोग जुड़ जाते हैं , कारवां बन जाता है ...
    हाँ ...सायास भीड़ जुटाने का प्रयत्न नहीं होना चाहिए ...

    गीत मधुर है हमेशा की तरह ...
    अब लोग चालीस पर दो होने के बाद ही सठियाने लगे तो हम तो चार पार कर चुके हैं ..हां ..नहीं तो ...क्या ...!!

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  21. सभी को प्रयास करना होगा.

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  22. बजा फरमाया आपने. अजी आजकल के शेर तो चूहों से भी बदतर हैं. लगता है जैसे लोग उर्दू के अप्रचलित शब्दों को बिठाकर शायरी करने लगे हों. हम तो अब शेरो-शायरी की परवाह छोड़कर कव्वाली सुनने लगे हैं.

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  23. किये गये कार्य के एवज में कुछ पाने की अभिलाषा रखना स्वाभाविक है। अतः टिप्पणियाँ पाने की अभिलाषा रखने को भी अनुचित नहीं कहा जा सकता। किन्तु टिप्पणियाँ पाने के लिये तरह-तरह के हथकंडे अपनाने को उचित कदापि नहीं कहा जा सकता।

    आपके कंठस्वर में "तुम्हीं मेरे मन्दिर..." गीत सुनकर बहुत अच्छा लगा। इसे सुनकर याद आया कि फिल्म 'खानदान' के इस लोरी को स्क्रीन पर सुनील दत्त के लिये नूतन ने गाया था। इस फिल्म के प्रदर्शित होने के कुछ दिनों बाद फिल्म 'मिलन' आया था जिसमे सुनील दत्त ने नूतन के लिये "राम करे ऐसा हो जाये मेरी निंदिया तोहे मिल जाये...." लोरी गाया था। तब हम मजाक में कहा करते थे कि सुनील दत्त पर नूतन की एक लोरी उधार थी जिसे उसने छुटा दिया। :-)

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  24. आपका कथन सार्थक है ।
    गुटबाजी से लाभ है - जिन्हे लिखना नही आता उनको काम मिल जाता है . समय कट जाता है ।
    टिप्पणियाँ खुद बोलती हैँ जिससे टिप् करने का उद्देश्य पता चल जाता है ।

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  25. जिस तरह से फोटो में सहचरी सुना रही है, उसी तरह तो हम भी सुनते रहते हैं जी। बिल्कुल आंख मूंद कर

    प्रणाम

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  26. मैं भी आपको और बहुत सारे ब्लाग्स प्रतिदिन पढता हूं, लेकिन टिप्पणी कभी-कभार ही कर पाता हूं

    प्रणाम

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  27. किसी एक जैसी विचारधारा के लोग एक दूसरे को पढने-समझने, जानने लगते हैं और किसी विचार पर सहमत होते हैं तो उनको गुटबाज कहना संकीर्ण सोच है।

    आपकी यह पोस्ट बहुत-बहुत ज्यादा अच्छी लगी, धन्यवाद
    प्रणाम स्वीकार करें

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  28. जी :)

    सभी चेष्टा करें. सब अच्छा होगा.

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  29. jo aap kah gayi wo hamne bhi suna raha magar sochte hi rahe aesa kyo ?
    karm pradhaan hai in baato se dil jalaya nahi jaata ,nahi jalana chahiye .ati sundar .shukriya blog par aai ,khushi hui .

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  30. अगर आप अच्छा लिखते हैं तो लोग आपको पढेंगे ही...apne lakh take ki baat kah di. ye dukh ki baat hai ki aajkal bloggers tippani ki or bhag rahe hai.

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  31. जोदी तोमार डाक शुने केऊ ना आशे तोबे तुमि एकला चोलो रे......
    ....aapki hi baat.

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  32. सटीक कहा ...
    आपकी इस गीत में इतना खो गये की और कुछ याद ही नही रहा .... आँखें अब भी बंद हैं ...

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  33. मैं भी उन्हीं में से हूँ जो टिप्पणी अक्सर नहीं करते, आपके यहाँ भी नहीं।
    आपका आज का अलेख इतना रुचा कि बरबस सहमति जतानी पड़ी। हाँ वहाँ टिप्पणी ज़रूर करता हूँ जहाँ लगता है कि हौसला अफ़्ज़ाई से कुछ बेहतर की उम्मीद बनेगी। मुझे अब तो "नाइस" सबसे अच्छा कमेण्ट लगने लगा है। :)
    गुटबन्दी की बात जहाँ तक है, तो एक गुट तो ज़रूर है जिसमें मैं शामिल होने को सबका आह्वान करना चाहूँगा - और वो गुट वो है जिस बारे में अमरेन्द्र ने टिप्पणी में इशारा करके छोड़ दिया।
    मेरा पैग़ाम मुहब्बत है…
    और यक़ीनन, मैं इस गुट में शामिल हूँ।

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  34. अच्छा लिखें व अच्छा पढ़ें । अच्छी टिप्पणियाँ भी लिखें ।

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  35. सुन्दर विचार हैं, भास्कर जी कि तो आपने बहुत ही निर्ममता से धुलाई कर दी, ठीक ही है ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए, आँखे बंद करके गाना तो सुना लेकिन सिर्फ आप ही नज़र आये हमें तो!

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  36. hamaari wo gayaa karti thi kabhi hamaare liye...

    apni dono aankhein band kar ke.....






    hamein ab tak yaad hai...

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