Friday, June 11, 2010

नापसन्दी का जो चटका है हमारा ....(पैरोडी...ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारी )

 
नापसन्दी का जो चटका है हमारा    
इतना तगड़ा ये फटका है हमारा 

दूसरा और कोई यहाँ क्यूँ रहे 
मेरी ही पोस्ट के दरमियां क्यूँ रहे
हाँ यहाँ क्यूँ रहे
ये यहाँ क्यूँ रहे
हां जी हां क्यूँ रहे
ये जो हाट लिस्ट है, बाप का है हमारा
नहीं दिख सकता, कभी पोस्ट तुम्हारा
नापसन्दी का जो चटका है हमारा

कैसे दीदार ब्लोग्गर तुम्हारा करे
रूखे पोस्ट का कोई कैसे नज़ारा करे
हां नज़ारा करे 
क्या बेचारा करे
बस पुकारा करे 
नापसन्दी का चटका है दे मारा  
नहीं आने दूंगा तुमको मैं दोबारा
नापसन्दी का जो चटका है हमारा

रुख से परदा कभी तो सरक जाएगा 
तब वो कम्बख्त चेहरा नज़र आएगा
हाँ नज़र आएगा
फिर किधर जाएगा 
हां जी मर जाएगा
तेरे चटके से बड़े हैं मेरे पाठक
संग मेरे तो खड़े मेरे पाठक 
हो. हो..हो..
नापसन्दी का जो चटका है हमारा    
इतना तगड़ा ये फटका है हमारा   

21 comments:

  1. चटके को लगाया क्या जोर का फटका है ...
    मस्त ..बढ़िया ...शानदार ...

    मेरी कविता देखना ...शायद आज तुझे इतनी बुरी नहीं लगे ...

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  2. अरे वाह आनंद आ गया .....आभार

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  3. गाया काहे नहीं साथ में. :) मजेदार!

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  4. बहुत सुंदर !
    कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

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  5. तेरे चटके से बड़े हैं मेरे पाठक
    संग मेरे तो खड़े मेरे पाठक
    हो. हो..हो..

    ये अंतिम लाइन बहुत अच्छी लगी एकदम सही जगह पर ... सुखद अंत की तरह

    आपकी पोस्ट से प्रेरित होकर मैंने भी चार पंक्तिया लिखी है

    देखी आपने अदा जी के घूसा मरने की अदा....
    कलियुग है... अच्छी पोस्ट पर होंगे " --" चटके सदा...
    पर चटका तो बस एक छोटा सा दृष्टि कोण है ....
    अपनी नज़र तो रहती है " पढ़े गए" कौन है ...

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  6. ये चटके फटके का क्या चक्कर है? बहुत दिन बाद आयी हूँ ब्लाग जगत मे मगर हलचल अभी भी जोरों पर है । कैसी हो? शुभकामनायें

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  7. जोर का झटका घीरे से लगा गई है आप चटका !! वैसे समीरदादा की बात ठीक लगी "गाया काहे नहीं साथ में ??????

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  8. ha ha ha....
    ekdam mast wali baat hai ji...

    kunwar ji,

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  9. बहुत बढिया पैरोड़ी

    मजा आ गया।

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  10. अदा जी,
    कमलहासन की फिल्म हिंदुस्तानी का गीत याद आ रहा है..

    चटका लगा दिया है हमने,
    झटका दिखा दिया है हमने...

    इसी तरह रेखा-नवीन निश्चल की पहली फिल्म सावन भादों का गीत...

    कान में झुमका, कमर में ठुमका,
    बगल में चोटी लटके...
    हो गया दिल का पुर्जा-पुर्जा,
    जब लगे पिचासी झटके ( या चटके),
    ओ नापसंदगी वाले तेरा रंग है नशीला,
    अंग अंग है ज़हरीला...

    जय हिंद...

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  11. सादर !
    भयंकर व्यंग किया है आपने इस गीत के माध्यम से, अगर इसे गाकर बताया होता तो मजा दुगुना हो जाता |
    रत्नेश त्रिपाठी

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  12. आभार इस कविता को प्रस्तुत करने का..अच्छी पोस्ट!

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  13. आह हा !
    हम तो यही कहेंगे --
    फटका लगाकर , चटका लगाकर , चटकारे लेकर , जइयो ना
    नैन मिलाकर , चैन चुराकर , निंदिया उड़ाकर जइयो ना। --हा -- हो --

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  14. अरे वाह ..मजा आ गया जी

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  15. hahahha....blog world ke hisaab se samyik rachna hai ...kai bloggers ke dil ka hal bayaan karti rachana

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  16. अरे हाँ ये तो सोचा ही नहीं
    aarya said...
    "अगर इसे गाकर बताया होता तो मजा दुगुना हो जाता "
    दुगना नहीं दसगुना ....
    आपकी बात से मैं भी बिलकुल सहमत हूँ

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  17. अदा जी,
    नमस्कार।
    पिछले सप्ताह की सारी पोस्ट्स पढ़ ली हैं, गाने सुन लिये हैं। सारे गाने बहुत सुन्दर हैं, खासतौर पर तुम्हीं देवता वाला और सरस्वती चन्द्र वाला गाना बहुत पसन्द आये। इसी टिप्पणी को जम्बो टिप्पणी मान लें, और ज्यादा आभारी मानेंगे। हमारा तो जी पसन्द वाला चटका भी दुश्मन हो गया है। पता नहीं ब्लॉगवाणी वालों की कौन सी भैंस खोल ली है हमने, हमारी पसन्द को ही नहीं स्वीकार कर रहे हैं।
    जिसका जो काम है, वो कर रहा है। नापसन्द करने वाले अपना काम कर रहे हैं, आप कौन सा कम हैं, इसमें से भी इतनी बढ़िया पोस्ट तैयार कर ली।
    और मेरी गैरहाजिरी की बात, टिप्पणी के बहाने ही सही आपको कुछ कमी खली, हम धन्य हो गये।
    धन्य तो हम पहले भी होते रहे हैं, जब जब आप हमारे ब्लॉग पर आती रही हैं, चर्चा मंच में जिक्र कर दिया, अपनी पोस्ट में लिंक डाल दिया, और तो और एक पत्थर भी उछाला गया आपकी तरफ़ इस मुद्दे पर कि कितने पैसे लिये लिंक डालने के। सोच रहा हूं जी अपना नाम एलाहाबादी या अकबराबादी की तर्ज पर धन्यबादी रख लूं।
    वो विवादास्पद पोस्ट, भास्कर प्रोफ़ाईलधारी का आरोप, आपका जवाब, महफ़ूज की भर्त्सना और नीलेश माथुर जी का कमेंट सब कुछ पढ़ कर थोड़ा सा कन्फ़्यूज हो गया हूं कि धन्यवाद कहूं आपको या सॉरी फ़ील करूं। दोनों पेश हैं, जो सही लगे रख लेना।
    भास्कर को इतना कहना है कि भाई, मैं तो आज भी खुद किराये के मकान में रहता हूं, लोन लेकर एक मोटर साईकिल ले रखी है, शायद सबसे सस्ते मेक की। मशहूर होने के लिये पैसे देने की गुंजाईश अपनी थी भी नहीं, है भी नहीं और होगी भी नहीं। आगे से आरोप लगाते समय पार्टियों की हैसियत का पता लगा लें तो शायद स्टिंग आप्रेशन कामयाब हो जाये। और बहुत ठंडे दिमाग से सलाह देना चाहता हूं कि कोशिश करे कि एक्स्पोज़ न हो पाये कि नकाब के पीछे कौन सा चेहरा है। जिस पर तुमने आरोप लगाया है, उसके व्यक्तित्व के सामने तुम्हारी क्या हैसियत है, मालूम तुम्हें भी है तभी चेहरा छुपाकर आये थे।
    अदा जी, पहले आभारी होता था, आज नतमस्तक हो रहा हूं

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  18. मैं तो कहता हूं मेरे ब्लाग प्र नैगेटिव चटका ज़रूर लगाने आईये मेरे ब्लाग की कीमत बढाईये

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  19. badhiya chitra to bahut kuch kehta hai...:)

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