Banff नॅशनल पार्क ..मोरेन लेक...
लहू में कौंध रहीं हैं बिजलियाँ
साँसों में चलने लगीं आँधियां
यादों का आँचल अब उड़ने लगा
नज़रों में तैर गई परछाईयाँ
थके थके से मेरे ख़्वाब जागते रहे
सितारे लेते रहे अंगडाईयाँ
जाने कौन गुज़रा दीवार के पीछे
सुनी थी रात उसकी हिचकियाँ
bahut sundar..
ReplyDeleteझील के निर्मल पानी के समान ही रचना। बधाई।
ReplyDeleteवाह सुन्दर प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDelete
ReplyDeleteजाने कौन गुज़रा दीवार के पीछे
सुनी थी रात उसकी हिचकियाँ
है तो बहुत ही बहुत सुँदर रचना...
पर वह... तोई छलाबी लहा होगा..
वो ही तो हीतकी लेता लैहता है, ना ?
must be approved
जो भी गुजरा
ReplyDeleteवह अपना था
यूँ ही राह चलते
हिचकियाँ नहीं सुनाई देतीं .... एक हिचकी मैं भी सुनती हूँ हर दिन, मुड़कर आँखें दौड़ाई हैं-- कहीं मैं ही तो नहीं
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह
भगवान् करे जिंदगी भर आती रहे तुझे हिचकियाँ ....
ReplyDeleteबात मत करना कभी मुझसे ...
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
bahut hi sunder nazara hai
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना..छोटी पर बेहद प्रभावशाली..
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeletethe flow is gr8....really good
ReplyDeleteएक और खूबसूरत तस्वीर और रचना ।
ReplyDeleteअदा जी आपने बताया नहीं ये पार्क कनाडा के कौन से भाग में है ।
लाजवाब रचना ........बहुत खूब .
ReplyDeleteसादर !
ReplyDeleteहवा से कुछ खुसबू आई है ऐसी
लगा मुझको शायद वो गुजरा इधर है
रत्नेश त्रिपाठी
@ दराल साहेब,
ReplyDeleteसबसे पहले माफ़ी..देर से जवाब देने के लिए...
Banff नॅशनल पार्क,कनाडा का पहला नॅशनल पार्क है यह ..लभग डेढ़ घंटे की ड्राइविंग दूरी पर , अल्बर्टा के कैलगरी नमक स्थान के पश्चिम में है ..यह पार्क ६६४१ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है...यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता बेजोड़ है...मैं और तसवीरें दिखाने की कोशिश करुँगी....
Banff में कनाडा का सबसे बड़ा फिल्म इंस्टिट्यूट भी है...वहां संतोष जी को director की position भी मिली थी लेकिन कुछ कारणवश नहीं जा पाए....
खूबसूरत एहसास से जागे ज़ज्बात में लिखी नज़्म ... बेहतरीन ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ। दिल को छू जाने वाली एकदम।
ReplyDeleteये फ़ोटोग्राफ़ न होकर पेंटिंग लग रही हैं, रंग विन्यास और पर्वत पेड़ों की आकृति ऐसे भी दिख सकती है? बहुत शानदार दृश्य।
सदैव आभारी।
जाने कौन गुज़रा दीवार के पीछे सुनी थी रात उसकी हिचकियाँ
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
waah bahut khoob ..tasveer bhi sundar hai
ReplyDelete@ दाकतल छाहेब ...:)
ReplyDeleteहो छकता है छलाबी ही था....अच्छा हुआ...
हाँ नहीं तो..!!
:):)
अच्छी रचना पढ़वाने के लिए आभार.
ReplyDeleteआह आह वाह
ReplyDeleteसीधे शब्दों में सुन्दर भाव ।
ReplyDeleteऊँहूँ.. हिचकियाँ फिट नहीं बैठ रहा दी... बाकी बहुत अच्छी रचना बन रही है. पूरी कीजिए..
ReplyDeleteऊँहूँ.. हिचकियाँ फिट नहीं बैठ रहा दी... बाकी बहुत अच्छी रचना बन रही है. पूरी कीजिए..
ReplyDeleteजाने कौन गुज़रा दीवार के पीछे
ReplyDeleteसुनी थी रात उसकी हिचकियाँ
सशक्त और सुन्दर अभिव्यक्ति----
अरे! बस कमाल है!
ReplyDeleteऐसे ही एक पंजाबी साहिबा को मियां जी के परदेस जाने के बाद हिचकियां ले लेकर बुरा हाल हो गया...साहिबा ने मियां जी को फोन कर के कहा...याद पये करेंदे हो या जान पये कडेंदे हो...(याद कर रहे हो या जान निकाल रहे हो...)
ReplyDeleteजय हिंद...
:)
ReplyDeletehnm...