ये तस्वीर कनाडा में Banff नेशनल पार्क की है...
ये ज़मीं नहीं मेरी, वो आसमाँ नहीं मेरा
ठहरी हूँ जहाँ मैं आज, वो जहाँ नहीं मेरा
होगा क्या जुड़ कर भी, उस अनजाने हुज़ूम से
वो लोग नहीं अपने, वो कारवाँ नहीं मेरा
बच कर लौट आती हूँ, गज़ब सागर की लहरों से
कल का क्या भरोसा है, वो तूफाँ नहीं मेरा
कोई है जो मुझको भी, बचा लेता है हर ग़म से
कैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा
शमा हूँ, मेरी अपनी वही जलती हुई लौ है
बुझकर काम क्या आऊँगी, वो धुवाँ नहीं मेरा
पासबाँ=रक्षक
और अब एक गीत ...इसे गाया है किशोर कुमार ने...लेकिन फिलहाल मैं गा रही हूँ...हाँ नहीं तो...!!
अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो (थोड़ा सा अलग करने की कोशिश की है...लगता है मिस फायर हो गया है )
कनाडा के इस पार्क में यह ट्रेन है क्या? यहाँ अमेरिका में तो दो-तीन डिब्बो वाली ही ट्रेन देखी है अभी तक। हाँ मालगाडी जरूर लम्बी थी। गाना सुनकर तो ऐसा लगा कि हमारे ऊपर ही गाया गया है अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो। बढिया है।
ReplyDeleteकोई है जो मुझको भी, बचा लेता है हर ग़म से
ReplyDeleteकैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा
तूफाँ है तो तूफाँ से बचाने वाले भी होंगे ही.
सुन्दर रचना
गीत भी बहुत मधुरता से युक्त
आपको तो गायिका (बालीवुड) होना चाहिये था.
@ जी हाँ अजित जी,
ReplyDeleteहमारे यहाँ तो VIA Rail बहुत मशहूर है...लोग ट्रेन में सफ़र करना लक्ज़री समझते हैं....ट्रेन की टिकट कभी कभी फ्लाईट से ज्यादा होती है.....
यह कनाडा का बहुत ही खूबसूरत इलाका है Banff ... यह वहीँ का दृश्य है और ट्रेन भी...
कोई है जो मुझको भी, बचा लेता है हर ग़म से
ReplyDeleteकैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा
-बहुत शानदार..बेहतरीन रचना!
गीत अब सुनते हैं.
adi di
ReplyDeleteaaj to kamal kar diya kitni sundarta se gaya hai..
bahut khoob.......
अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो। बढिया है।
ReplyDeleteचित्र, ग़ज़ल, गाना सब एक से बढ़ कर एक है आज दी... किसकी ज्यादा तारीफ करुँ???
ReplyDeleteदीपक जी की बात से सहमत
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteअदा जी , हम तो बस यह तस्वीर देखते रह गए । यह पार्क कौन से प्रोविंस में है ? शायद नोर्थ वेस्ट की तरफ ?
ReplyDeleteजहाँ भी ठहर गए , वही जहाँ अपना सा लगने लगता है ।
तभी तो अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो ।
आज तो तीनों ने दिल खुश कर दिया , विशेषकर तस्वीर ने ।
Waah, sundar
ReplyDeletehnm.....
ReplyDeletefir bhi jaane kyun...
ajnabi tum jaane pahchaane se lagte ho...
waah.....!!
कोई है जो मुझको भी, बचा लेता है हर ग़म से
ReplyDeleteकैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा
शमाएँ जो खुदबखुद रोशन हो ...आतिश कहाँ चाहती हैं
ठहरी हूँ जचाहाँ मैं आज, वो जहाँ नहीं मेरा...
बड़ी मुश्किल है
उदास सी लग रही है ग़ज़ल भीतर तक उतरती ....अच्छी भी ...!!
कैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा
ReplyDeleteखूबसूरत जज़्बात... ट्रेन देख कर तो मुग्ध हो गया ... सच्ची
बहुत ही सुन्दर भाव ।
ReplyDeletebachpan ka ek geet yaad a gaya...ye sab jameen hai meri ye aasmaan hai mera....bahut sundar rachna aur geet...
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteक्या ड्रामा कंपनी का कारवां बढ़ाया जाए...
अजनबी तुम जाने पहचाने लगते हो...अरे बाप रे, इन्हें तो अब वो कर्ज़ भी याद आ जाएगा, जो मैंने इनसे ले रखा
है...
जय हिंद...
बच कर लौट आती हूँ, गज़ब सागर की लहरों से
ReplyDeleteकल का क्या भरोसा है, वो तूफाँ नहीं मेरा
कोई है जो मुझको भी, बचा लेता है हर ग़म से
कैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेर
वाह वाह लाजवाब
कोई है जो मुझको भी, बचा लेता है हर ग़म से
ReplyDeleteकैसे मान लूँ बोलो तो, कोई पासबाँ नहीं मेरा
यह पंक्तियाँ सुन्दर लगीं ! आभार ।
Bahut khoob ji
ReplyDeleteजब पासबां है, और उस पर भरोसा भी है आपको तो फ़िर ये वैराग्य की बातें? ये नहीं मेरा और वो नहीं मेरा। शब्द बहुत अच्छे लग रहे हैं, लेकिन सच कहूं तो आज कुछ ज्यादा ही गहरी हो गई लगती है आपकी गज़ल। और आखिरी पंक्ति में अर्धविराम का स्थान कुछ अनुपयुक्त लग रहा है, दो कदम एडवांस रहता तो शायद....। वैसे मैं पारखी नहीं हूं, मुझे जैसा लगा लिख दिया।
ReplyDeleteतस्वीर बहुत शानदार है और गीत बहुत ही मधुर।
आभार।
बहुत अच्छी कविता।
ReplyDelete@ संजय जी ..
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा है अर्धविराम गलत जगह पर था...
आपका हृदय से आभार..