अब इस घर में अजब उदासी है
ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है
जाने कितने राह भटक रहे हैं
ये और कुछ नहीं बदहवासी है
कहना है उनसे न करो तार-तार
कल ही तो रिश्तों की क़बा सी है
अहमकी के हक़ पर हो रहा यलग़ार
ब्लॉग की ज़मीं आज करबला सी है
क़बा = ढीला ढाला वस्त्र
करबला = वो जगह जहाँ इमाम हुसैन और यज़ीद की लड़ाई हुई थी
कहना है उनसे न करो तार-तार
ReplyDeleteकल ही तो रिश्तों की क़बा सी है
जिनकी फितरत ही है अवसादों में रस लेने की
उनसे भी उम्मीद लगाये ये मन बावरा बैठा है
आईये जाने ..... मन ही मंदिर है !
ReplyDeleteआचार्य जी
nice
ReplyDeleteअति प्रभावशाली
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने!
ReplyDeleteमगर मेरे लिए तो ब्लॉग की जमीं "बला" सी है!
संवेदनशील मन की संवेदनशील रचना
ReplyDeleteअरे कहाँ करबला और कहाँ अपना ब्लाग जगत? यहाँ एकाध झगड़ा करता है तो क्या बाकि तो प्रेम करने वाले ही हैं।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील!
ReplyDeleteकिसका किस्से झगडा ...? हम तो इन सबसे दूर रहना ही पसंद करते हैं ... ब्लॉग अपनी बात कहने का माध्यम है , युद्ध स्थल मत बनने दो ....
ReplyDeletesare riste tar tar ho rahe he
ReplyDeletehindi jagat meye sab sobha nahi deta ham sab bhudhi jivo ko
hnm...
ReplyDeletekhuafnaak chitraa...
आज के हालात को दर्शाती बहुत ही बढ़िया रचना
ReplyDeleteअपना खून कौन बहाये आज,
ReplyDeleteअपनों का बहाने से गुरेज नहीं उन्हे ।
ब्लॉग की ज़मीं आज करबला सी है
ReplyDeleteअब इस घर में अजब उदासी है
ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है
जाने कितने राह भटक रहे हैं
ये और कुछ नहीं बदहवासी है
सच कहा है आपने। बहुत से निराश लोगों के दिल की बात कही है।
एक ऐसे आत्ममुग्ध संसार की अंदरूनी पड़ताल की है आपने, जो अपनी पहचान के लिए छटपटा रहा है और एक अनियंत्रित भीड़ के बीच में अपने समूह और कबीले की तलाश कर रहा है। परन्तु देखता है कि जिसका गणित प्रिंट मीडिया की तरह का है ,वही यहां भी सफल है।
रचनात्मक रिश्ते बहुत कम विकसित हो रहे हैं। सब शर्तों के खेल है। घोषित अघोषित....
सच्चाई बयान करती हुई रचना।
अब इस घर में अजब उदासी है
ReplyDeleteख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है
रचनात्मक रिश्ते बहुत कम विकसित हो रहे हैं। सब शर्तों के खेल है। घोषित अघोषित....
सच्चाई बयान करती हुई रचना।
Visit http://drramkumarramarya.blogspot.com/
badhiya...sahi keh rahi hain...sab marne katne ko taiyaar hain...
ReplyDeleteहम तो सोचे सारी जमी ही ऐसी है....
ReplyDelete''अरे कहाँ करबला और कहाँ अपना ब्लाग जगत? यहाँ एकाध झगड़ा करता है तो क्या बाकि तो प्रेम करने वाले ही हैं।'' ajit ji ki baat se mai sahamat hu.
ReplyDeleteaisa kuchh hai kya??
ReplyDeletehame kya matlab!! ..:)
ham to bass iss karbala me pyare ke kabootar udne dena chahte hain...;)
achchhi rachna!
ajit gupta ji se shmat,
ReplyDeletekal hi to aapne likha prem prem prem
पहले इन पंक्तियों ने
ReplyDelete"अब इस घर में अजब उदासी है
ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है" और फिर
पुखराज जी ने बहुत कुछ कह दिया है...
हम मूक दर्शक बने या फिर इसमें हिस्सा ले...कुछ समझ नहीं आ रहा है...दुखद...
कुंवर जी,
पता नहीं क्या है दी.. कर्बला या कुछ और पर अच्छा हो कि सब ये मंत्र जान लें कि 'कर भला हो भला'
ReplyDeleteआपका चिन्तित होना स्वाभाविक है, लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आप अपना कर्म करती रहें। किसी के दुखी होने से कौन अपना काम छोड़ता है। आपकी पोस्ट्स की नियमितता को देखते हुये लगता है कि आपके लिये यह एक साधना से कम नहीं है।
ReplyDeleteपहले तो रेडियो प्रस्तुति पेश करके और फ़िर अधर में छोड़कर हमारी आदत बिगाड़ दी, अब ये गाना मत छोड़ दें आप माहौल से दुखी होकर।
निवेदन ही कर सकते हैं, कर रहे हैं।
अजी नही, यहां सब प्यार से मिलते है, एक दो को छोड कर... कल उन्हे भी अकल आ जायेगी,
ReplyDeleteबाकी अजीत गुप्ता जी की बात से सहमत है
इसी बहाने इतनी खूबसूरत गज़ल तो मिली सुनने को. धन्यवाद उन लोगों को भी...
ReplyDelete05.06.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
ReplyDeletehttp://chitthacharcha.blogspot.com/
05.06.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
ReplyDeletehttp://chitthacharcha.blogspot.com/
नही ब्लॉग जगत की इस खून खराबे से कोई तुलना नहीं >>
ReplyDeleteअभी थोड़ा समय बाकी है वैसा होने में. :)
ReplyDeleteउससे पहले ही गुलशन गुलज़ार हो जाए ...
ReplyDeleteआखिर बनाने वाले हम ही तो हैं ...!!