Friday, June 4, 2010

ब्लॉग की ज़मीं आज करबला सी है .....


अब इस घर में अजब उदासी है 
ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है 

जाने कितने राह भटक रहे हैं 
ये और कुछ नहीं बदहवासी है 

कहना है उनसे न करो तार-तार
कल ही तो रिश्तों की क़बा सी है

अहमकी के हक़ पर हो रहा यलग़ार
ब्लॉग की ज़मीं आज करबला सी है

क़बा = ढीला ढाला वस्त्र 
करबला = वो जगह जहाँ इमाम हुसैन और यज़ीद की लड़ाई हुई थी 

30 comments:

  1. कहना है उनसे न करो तार-तार
    कल ही तो रिश्तों की क़बा सी है

    जिनकी फितरत ही है अवसादों में रस लेने की
    उनसे भी उम्मीद लगाये ये मन बावरा बैठा है

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  2. आईये जाने ..... मन ही मंदिर है !

    आचार्य जी

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  3. बहुत सही लिखा आपने!
    मगर मेरे लिए तो ब्लॉग की जमीं "बला" सी है!

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  4. संवेदनशील मन की संवेदनशील रचना

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  5. अरे कहाँ करबला और कहाँ अपना ब्‍लाग जगत? यहाँ एकाध झगड़ा करता है तो क्‍या बाकि तो प्रेम करने वाले ही हैं।

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  6. किसका किस्से झगडा ...? हम तो इन सबसे दूर रहना ही पसंद करते हैं ... ब्लॉग अपनी बात कहने का माध्यम है , युद्ध स्थल मत बनने दो ....

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  7. sare riste tar tar ho rahe he



    hindi jagat meye sab sobha nahi deta ham sab bhudhi jivo ko

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  8. hnm...


    khuafnaak chitraa...

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  9. आज के हालात को दर्शाती बहुत ही बढ़िया रचना

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  10. अपना खून कौन बहाये आज,
    अपनों का बहाने से गुरेज नहीं उन्हे ।

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  11. ब्लॉग की ज़मीं आज करबला सी है

    अब इस घर में अजब उदासी है
    ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है
    जाने कितने राह भटक रहे हैं
    ये और कुछ नहीं बदहवासी है

    सच कहा है आपने। बहुत से निराश लोगों के दिल की बात कही है।
    एक ऐसे आत्ममुग्ध संसार की अंदरूनी पड़ताल की है आपने, जो अपनी पहचान के लिए छटपटा रहा है और एक अनियंत्रित भीड़ के बीच में अपने समूह और कबीले की तलाश कर रहा है। परन्तु देखता है कि जिसका गणित प्रिंट मीडिया की तरह का है ,वही यहां भी सफल है।
    रचनात्मक रिश्ते बहुत कम विकसित हो रहे हैं। सब शर्तों के खेल है। घोषित अघोषित....

    सच्चाई बयान करती हुई रचना।

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  12. अब इस घर में अजब उदासी है
    ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है

    रचनात्मक रिश्ते बहुत कम विकसित हो रहे हैं। सब शर्तों के खेल है। घोषित अघोषित....

    सच्चाई बयान करती हुई रचना।

    Visit http://drramkumarramarya.blogspot.com/

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  13. badhiya...sahi keh rahi hain...sab marne katne ko taiyaar hain...

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  14. हम तो सोचे सारी जमी ही ऐसी है....

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  15. ''अरे कहाँ करबला और कहाँ अपना ब्‍लाग जगत? यहाँ एकाध झगड़ा करता है तो क्‍या बाकि तो प्रेम करने वाले ही हैं।'' ajit ji ki baat se mai sahamat hu.

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  16. aisa kuchh hai kya??

    hame kya matlab!! ..:)

    ham to bass iss karbala me pyare ke kabootar udne dena chahte hain...;)

    achchhi rachna!

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  17. ajit gupta ji se shmat,
    kal hi to aapne likha prem prem prem

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  18. पहले इन पंक्तियों ने
    "अब इस घर में अजब उदासी है
    ख़ुशी तो है पर बहुत ज़रा सी है" और फिर
    पुखराज जी ने बहुत कुछ कह दिया है...

    हम मूक दर्शक बने या फिर इसमें हिस्सा ले...कुछ समझ नहीं आ रहा है...दुखद...

    कुंवर जी,

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  19. पता नहीं क्या है दी.. कर्बला या कुछ और पर अच्छा हो कि सब ये मंत्र जान लें कि 'कर भला हो भला'

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  20. आपका चिन्तित होना स्वाभाविक है, लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आप अपना कर्म करती रहें। किसी के दुखी होने से कौन अपना काम छोड़ता है। आपकी पोस्ट्स की नियमितता को देखते हुये लगता है कि आपके लिये यह एक साधना से कम नहीं है।
    पहले तो रेडियो प्रस्तुति पेश करके और फ़िर अधर में छोड़कर हमारी आदत बिगाड़ दी, अब ये गाना मत छोड़ दें आप माहौल से दुखी होकर।
    निवेदन ही कर सकते हैं, कर रहे हैं।

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  21. अजी नही, यहां सब प्यार से मिलते है, एक दो को छोड कर... कल उन्हे भी अकल आ जायेगी,
    बाकी अजीत गुप्ता जी की बात से सहमत है

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  22. इसी बहाने इतनी खूबसूरत गज़ल तो मिली सुनने को. धन्यवाद उन लोगों को भी...

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  23. 05.06.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

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  24. 05.06.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

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  25. नही ब्लॉग जगत की इस खून खराबे से कोई तुलना नहीं >>

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  26. अभी थोड़ा समय बाकी है वैसा होने में. :)

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  27. उससे पहले ही गुलशन गुलज़ार हो जाए ...
    आखिर बनाने वाले हम ही तो हैं ...!!

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