यूँ हीं होतीं हैं
कभी बेहुनर बातें
दिल करता है
कभी नगमाग़र बातें
पलकें झुक जातीं है
और बन जातीं है ज़बान
फिर कर ही जातीं हैं
कभी अश्के-तर बातें
तेरी ख़ामोशी अब
जानलेवा होती जाती है
कुछ तो करो मुझसे भी
हमसफ़र बातें
दिल की बात कहीं
दिल में न रह जाए
कर भी लो अब ज़रा
मुझसे खुल कर बातें.....
अश्के-तर=आँसूओं से तर
अश्के-तर=आँसूओं से तर
दिल की बात कहीं
ReplyDeleteदिल में न रह जाए
कर भी लो अब ज़रा
मुझसे खुल कर बातें.....
खुलकर जब बात की जायेगी तो एहसासों से मुलाकात हो जायेगी.
बहुत सुन्दर
सुभान अल्लाह!
ReplyDeleteबेहुनर , नग्मागर , अश्कतर बातें ...
ReplyDeleteवाह ...शब्दों का सुन्दर चयन ...
अब तो होकर ही रहेंगी खुशनुमा बातें ...:):)
बहुत प्यारी सी लगी कविता ...!!
विचारणीय आलेख
ReplyDeleteआभार
ब्लाग4 वार्ता प्रिंट मीडिया पर प्रति सोमवार
बहुत जबरदस्त ...
ReplyDeleteअश्कतर का मतलब क्या होता है अदा जी ?
बहुत बढ़िया रचना...आभार
ReplyDeleteत्यागी जी,
ReplyDeleteअश्के-तर होना चाहिए था....टंकण में त्रुटि थी..
अर्थ है आँसूओं से तर...
आपका धन्यवाद...
बहुत बढ़िया रचना...
ReplyDeleteसरकार कहां से ले आते हैं ऐसे खूबसूरत अल्फ़ाज़?
ReplyDeleteऔर ऐसे चित्र?
अब हम तो क्या तारीफ़ करें, वड्डे शायर अनुराग शर्मा साहब जी ’चीता’ भी जब सुभान अल्लाह कह गये तो हमारी तो वाह वाह कहनी बनती ही है।
बहुत खूबसूरत जज्बात पेश किये हैं आज आपने,
बधाई।
सदैव आभारी।
bahut sundar ...
ReplyDeleteकर भी लो ज़रा मुझसे खुल कर बातें...
ReplyDeleteसेरिडॉन आप ही प्रोवाइड कराएंगी या घर से लेकर आनी पड़ेगी...
जय हिंद...
बातें खुलकर हों,
ReplyDeleteशिकायतें मिलकर हों,
मन के उन्माद उठे जब भी,
वे बारिशें सम्हलकर हों
यूँ ज़िन्दगी ठंडी न बीते कहीं,
जलवे-जवानी जलकर हों
पलकें झुक जातीं है और बन जातीं है ज़बान....
ReplyDeleteफिर कर ही जातीं हैं कभी अश्के-तर बातें......
बहुत गहरे भाव में पहुंचा दिया आपने...और सच में इस वक्त अगर कोई सोचे तो करीब करीब वैसा ही चित्र ज़ेहन में बन जाता है जैसा आपने ऊपर प्रयोग किया है
हाँ ज़ेहन वाले चित्र में आंसू भी होते है .. मैं तो यहीं ठहर गया था थोड़ी देर बाद फिर आगे पढ़ा
यह बात तो माननी पड़ेगी रचना तो प्रभावी होती ही है आपकी .... साथ में जो चित्र लगाया जाता है वो भी पढने के पहले और बाद में देखा जाये तो अलग ही अदभुद सी अनुभूति दे जाता है
इस रचना के लिए धन्यवाद
पलकें झुक जातीं है और बन जातीं है ज़बान....
ReplyDeleteफिर कर ही जातीं हैं कभी अश्के-तर बातें......
बहुत गहरे भाव में पहुंचा दिया आपने...और सच में इस वक्त अगर कोई सोचे तो करीब करीब वैसा ही चित्र ज़ेहन में बन जाता है जैसा आपने ऊपर प्रयोग किया है
हाँ ज़ेहन वाले चित्र में आंसू भी होते है .. मैं तो यहीं ठहर गया था थोड़ी देर बाद फिर आगे पढ़ा
यह बात तो माननी पड़ेगी रचना तो प्रभावी होती ही है आपकी .... साथ में जो चित्र लगाया जाता है वो भी पढने के पहले और बाद में देखा जाये तो अलग ही अदभुद सी अनुभूति दे जाता है
इस रचना के लिए धन्यवाद
aao paas baithe
ReplyDeletebhul jayen zamane ke gam
bas apni baat kahen
khulker ehsaason ko jee len
badhiya
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त .........
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeleteअपकी रचना का शीर्षक बहुत ही अच्छा लगा एक दम लयात्मक सच कहूं तो ललचाने वाला :)
ReplyDeleteहूँ!
ReplyDeleteकोमल सुन्दर भाव की मनमोहक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसुन्दर रचना...सुखद लगा पढना...
आभार..
mumbai tiger
इन लफ्जों में कही बातें मन को छू गई
ReplyDeleteghazab kee lekhani hai. awesome specially
ReplyDeleteबच कर लौट आती हूँ, गज़ब सागर की लहरों से
कल का क्या भरोसा है, वो तूफाँ नहीं मेरा