सब्जी वाले के नाम सुपारी भिजवा दें का ...वैसे भी हमरे हाथ में एक दू गो मर्डर लिखा ही है ...हाँ नहीं तो और क्या ... पुदीना बहुत ही लोकप्रिय मारवाड़ी सोंग है ... लुल जाई रे हरिया पुदीना...ये गाती तो कोई बात थी .. और मैं तेरी पड़ोसन कब से ...सवाल ही नहीं उठता ...किसी जन्म में नहीं ....सच्ची
ऐ राम राम मधर-उधर का बात मत करो बालिके.... और पड़ोसन तो तुम हो....हमारे दिल में मुख्य कमरे में हमारे वो रहते हैं...और पड़ोस के कमरे में तुम....:):) चाहो की मत चाहो....हाँ पुदीने के बदले तुझे सब्ज़ीवाले को देना ...ठीक बात नहीं थी....): गलती हो गयी हमका माफ़ी दै दो...हाँ नहीं तो...!!
अदा जी ! कब से अगोर रहा था कि आपकी पिकबैनी आवाज को लोक-कूजित होते देखूं ! आज बड़ा सुकून मिला ! इधर कई दिनों की व्यस्तता के बाद आज ब्लॉग की खिड़की खोली तो लोक-वाणी ने मन खुश कर दिया ! अब उम्मीद है कि अन्य लोकगीतों को आपका कंठ मिलेगा ! मैं तो कब से ऐसा निवेदन आपसे कर रहा हूँ ! आभार !
poora sauraal aur bagal wali sab kuch sabji waale ko de diya wo bhi sirf hare pudeene ke liye...ha ha ha:D...bahutahi badhiya mam...
ReplyDeleteपोदीना के बदले ....
ReplyDeleteऔर फिर आवाज का जादू .... वाह
ha ha ha ..maja aa gaya
ReplyDeleteहा हा हा ........मजा आ गया |
ReplyDeleteऔर याद भी कर लिया ..!
रत्नेश त्रिपाठी
सब्जी वाले के नाम सुपारी भिजवा दें का ...वैसे भी हमरे हाथ में एक दू गो मर्डर लिखा ही है ...हाँ नहीं तो और क्या ...
ReplyDeleteपुदीना बहुत ही लोकप्रिय मारवाड़ी सोंग है ...
लुल जाई रे हरिया पुदीना...ये गाती तो कोई बात थी ..
और मैं तेरी पड़ोसन कब से ...सवाल ही नहीं उठता ...किसी जन्म में नहीं ....सच्ची
आवाज़ का जादू बरक़रार रहे, शुभकामना!
ReplyDeleteऐ राम राम मधर-उधर का बात मत करो बालिके....
ReplyDeleteऔर पड़ोसन तो तुम हो....हमारे दिल में मुख्य कमरे में हमारे वो रहते हैं...और पड़ोस के कमरे में तुम....:):)
चाहो की मत चाहो....हाँ पुदीने के बदले तुझे सब्ज़ीवाले को देना ...ठीक बात नहीं थी....):
गलती हो गयी हमका माफ़ी दै दो...हाँ नहीं तो...!!
माफ़ करना दी कुछ समझ नहीं आ रहा.. यहाँ तो कोई गीत कोई तस्वीर नहीं दिख रही ना कोई लोकगीत... :(
ReplyDeleteबस तीन पंक्तियाँ हैं... माजरा क्या है?
निकाल दो सभी को, बहुत जल्दी ही आप भी सास बनेगी तब हम गाएंगे। ओ सब्जी वाले सास को ले जा। बढिया गीत।
ReplyDeletecan't see, can't hear, कुछ गड़बड़ है शायद!
ReplyDeleteअदा जी ! कब से अगोर रहा था कि आपकी पिकबैनी
ReplyDeleteआवाज को लोक-कूजित होते देखूं ! आज बड़ा सुकून मिला !
इधर कई दिनों की व्यस्तता के बाद आज ब्लॉग की खिड़की
खोली तो लोक-वाणी ने मन खुश कर दिया !
अब उम्मीद है कि अन्य लोकगीतों को आपका कंठ मिलेगा !
मैं तो कब से ऐसा निवेदन आपसे कर रहा हूँ ! आभार !
वाह !!...बहुत अच्छा लगा सुन कर .
ReplyDeleteवाह वाह! मज़ा आ गया - क्या निखरा है यह लोकगीत आपकी मधुर आवाज़ में. Excellent!
ReplyDeleteबहुत मधुर...
ReplyDeleteमुझे लग रहा था.... कहीं न कह दे.. "इस सब्जी वाले के भैया नहीं है.. पति को मेरे ले जा...." :)
mazaa aa gaya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मैं शादी लोक में चली गई .. ढ़ोरों गीत ऐसी याद हा रहे हैं पर आज तो यही ....
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