Monday, June 28, 2010

आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए .....


एक कली आशा की इस बगिया में खिल जाए 
मन आँगन में प्रीत का पंछी जाने क्या क्या गाये 
यादों की बयार चली और यादें झूमतीं जाय 
इक साया सा नयनों में क्यों आये और लहराए 
लिखते-लिखते क्यों रूकती हूँ कोई तो बतलाये 
सपनों में जब खो जाती हूँ वो नींद से मुझे जगाये
मेरे हृदय मूरत बसी है वो मुझे निज हृदय बसाए 
बिन उसके जो हाल है मेरा कोई तो दे समझाए 
बहुत कठोर निष्ठुर है वो फिर भी मुझको भाए 
मुझे देखते जाने क्यों वो पत्थर ही हो जाए 
हर शाम राहों में उसकी दीया रखूँ मैं जलाए 
आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए  

23 comments:

  1. हर शाम राहों में उसकी दीया रखूँ मैं जलाए
    आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए
    एहसास बहुत सघन हैं
    सुन्दर रचना

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  2. बहुत कठोर निष्ठुर है वो फिर भी मुझको भाए
    मुझे देखते जाने क्यों वो पत्थर ही हो जाए
    हर शाम राहों में उसकी दीया रखूँ मैं जलाए
    आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए

    बहुत सुन्दर भाव हैं

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  3. राह में उसके दिया जलाये ...कहीं उसको ठोकर ना लग जाए ...
    सुन्दर प्रेम कविता !

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  4. वाह जी!! बहुत बढ़िया.

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  5. एक ऐसी रचना जिसे पढते-पढते पाठक बरबस गाने लगता है।

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  6. एक ऐसी रचना जिसे पढते-पढते पाठक बरबस गाने लगता है।

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  7. वाह अदा जी वाह
    मेरे हृदय मूरत बसी है वो मुझे निज हृदय बसाए
    बिन उसके जो हाल है मेरा कोई तो दे समझाए

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  8. फिर से निकला वाह -

    हर शाम राहों में उसकी दीया रखूँ मैं जलाए
    आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए

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  9. हर शाम राहों में उसकी दीया रखूँ मैं जलाए
    आते-जाते कहीं उसे कोई ठोकर न लग जाए
    वाह क्या बात है बहुत सुन्दर रचना बधाई

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  10. सुंदर ... भावपूर्ण रचना ...प्रेम की प्रकाष्ठा में कुछ ऐसे ही भाव होते हैं ...मीरा की भक्तिपूर्ण पदावली सदृश ...

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  11. बहुत सुन्दर रचना..बधाई.

    ***************************
    'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !

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  12. ठोकर कैसे लग पायेगी,
    जब घेरेंगी अंगुली चारों ओर दिये को,
    शायद कोई ही रावण तब,
    पहुँच सकेगा उन किरणों तक,
    लक्ष्मण रेखा खिंच जायेगी ।

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  13. बहुत सुन्दर रचना बधाई.

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  14. अद्भुत स्नेह-समर्पण!

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  15. सुन्दर भावनाएं !

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  16. behn adaa ji khbsurt vaani or khubsurt alfaaz inkaa anuthaa sngm koi dekhe to voh kaavy mnjushaa men aapne bhr diyaa he thokr se aate jaate bchaane ki jo koshish he yeh jaari rhegi to insaa allah aek din saari thokr lgne vaali baadhaayen dur ho jaayengi or snsaar nhin to kmse km meraa aapkaa yeh desh thokr mukt ho jaaayegaa fir bsegaa nyaa snsaa. akhtar khan akela kota rajsthan

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  17. दिया तो बचाकर रखना ही होगा ।

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  18. याद आयी किसी की कविता की पंक्तियाँ ---
    '' जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
    अन्धेरा धरा पर कहीं रह न पाए ! ''

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