Tuesday, June 22, 2010

गर्व है हमें हम हिन्दुस्तानी हैं.....

ख़्वाब मेरे उठे थे, तूने क्यूँ सुला दिया
नाम के ताने बाने में क्यूँ उलझा दिया

रुक्न की हद तक हम पहुंच ही गए थे
क्यूँ  बे-वक्त का ये मक्ता रचा दिया

दिल है मेरा ये तू वज़न क्यों देखता है
धड़कन को मेरी क्यूँ बहर बना दिया

गिरफ्त-ए-मतला में तो परेशाँ है 'अदा'
अश्क से ही सही क़ाफिया अता किया

गर्व  है हमें हम  हिन्दुस्तानी हैं.....

23 comments:

  1. रचना पढ़ी ..आनन्द लिया..विडियो देखा झूम उठे...गजब कर दीद्दा सरदार जी ने तो. :)

    ReplyDelete
  2. सुन्दर रचना!
    --
    आपकी देश-भक्ति को प्रणाम!
    --
    कभी उच्चारण पर भी पधारें!

    ReplyDelete
  3. हमें भी गर्व है कि आप हिन्दुस्तानी हैं ।

    ReplyDelete
  4. रचना और वीडियो दोनों बहुत ही गजब हैं, हमें भी गर्व है कि हम हिन्दुस्तानी हैं।

    ReplyDelete
  5. कहाँ रदीफो-काफिये में उलझी हैं आप...?
    ग़ज़ल सीख रही हैं का....?

    ReplyDelete
  6. हम भी होन्दोस्तानी हैं ।बहुत खूब लिखा है बधाई

    ReplyDelete
  7. आपने तो ग़ज़ल का पूरा व्याकरण ही समझा दिया...वाह...विडिओ तो वाऊ है...
    नीरज

    ReplyDelete
  8. achchhi rachna............:)
    video chal nahi pa raha........:(

    ReplyDelete
  9. सादर !
    लाजबाब ! पता नहीं क्यों भारत में एक सरदार सुस्त पड़ा है, कुछ करता ही नहीं |
    रत्नेश त्रिपाठी

    ReplyDelete
  10. पोस्ट है आशिकाना,
    टाइटल है वतनपरस्ताना,
    वीडियो है शान-ए-सरदाराना...

    सिंह इज़ किंग...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  11. आप भी ना ...कभी कुछ ...कभी कुछ ...:):)
    अजितजी की पोस्ट पर कोस रही थीं और अब गर्व कर रही हैं ..
    वैसे गर्व ही करते रहना चाहिए ....
    @ अश्क से ही सही काफिया अता किया ....सुन्दर ...!!

    ReplyDelete
  12. adaa behn hme bhi grv he ke hm hindustaani hen to dur bethi hindustaani aek bhn hmaaare hindustaan ke liyen hi soch rhi hen . akhtar khan akela kota rajsthan

    ReplyDelete
  13. हा हा हा सरदार जी ! !
    अंग्रेज़ नूं भी भंगड़ा सिखा दित्ता जी ।

    ReplyDelete
  14. वाणी जी,
    मैंने नहीं कोसा था ..मैंने कहा था अगर हमने अपनी करतूतों पर पाबन्दी नहीं लगाई और आने वाली पीढ़ियों के बारे में नहीं सोचा तो वो हमें कोसेंगी..पानी पी-पी कर...
    और फिर जितनी अपनी अच्छाइयों के प्रति हम सजग हैं उससे ज्यादा अपनी बुराइयों के प्रति सजग रहे तो ज्यादा बेहतर है...
    जैसे आपने बता ही दिया मुझे बहिन जी....ये भी उसी का उदहारण हो सकता है ...बस जरा सा मिस हुआ है समझने में...:):)
    हाँ नहीं तो..!!
    हा हा हा

    ReplyDelete
  15. आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम



    हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!

    ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।

    अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
    http://hamarivani.blogspot.com

    ReplyDelete
  16. आज आपकी पोस्ट देखी तो उस समय वीडियो नहीं दिख रहा था। गजल पढ़कर और नीचे लिखा ’गर्व से कहो’ देखकर टोटल भेजा फ़्राई हो गया था, कि गज़ल से इस जुमले का क्या संबंध है? अब वीडियो देखकर क्लियर हो गया और गर्व भी हो गया है हिन्दुस्तानी होने पर।
    वीडियो मजेदार, लेकिन गज़ल बहुत शानदार।
    आभार।

    ReplyDelete
  17. ek gana yaad aa raha hai
    ham sab bharteey hain ..

    ReplyDelete
  18. सरदारजी का भांगडा तो छा गया जी। भारत के इतने रंग है कि उन सबको सहेज ले तो जीवन के रंग भी बदल जाएंगे। कई दिन हो गए हैं बात करे, कहाँ है? लग रहा है कि गाने की प्रेक्टिस के बाद कहीं भांगडा की प्रेक्टिस तो शुरू नहीं हो गयी है? वो भी जुगलबंदी से। हा हा हा।

    ReplyDelete
  19. सुबह सुबह धमाकेदार शो दिखा दिया आपने तो
    बहुत बहुत धन्यवाद इसके लिए
    इस बार तो आपको थोड़ी बड़ी लिस्ट के अर्थ बताने होंगे अदा जी
    रुक्न
    मक्ता
    मतला
    क़ाफिया अता
    जानता हूँ अर्थ पूछ पूछ कर आपके पाठकों में सबसे ज्यादा परेशान मैं ही करता रहा हूँ इसके लिए क्षमा कर दें

    ReplyDelete
  20. बस इस बार बता दीजिये ...प्लीज

    रुक्न
    मक्ता
    मतला
    क़ाफिया अता

    ReplyDelete
  21. @ गौरव,

    रुक्न...ग़ज़ल की लय जिसे बह्र कहा जाता है उसका एक निश्चित हिस्सा...१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ ......इसमें चार रुक्न हैं...१२२२ गुना ४..


    मक्ता.....ग़ज़ल का आखिरी शे'र...जिसमें शायर का नाम आता है....जैसे..

    पूछते हैं वो, कि 'ग़ालिब' कौन है..
    कोई बतलाओ कि हम बतलायें क्या..
    इसमें क्यूंकि शायर का नाम आया है और ये आखिरी शे;र है ग़ज़ल का..तो यह मक्ता कहलायेगा...


    मतला...ग़ज़ल का पहला शे'र ...जिसके दोनों ही मिसरों में काफिया आना जरूरी होता है..

    ये ना थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
    अगर और जीते रहते यही इंतजार होता.....
    ये मतला है...

    इस ग़ज़ल में रदीफ़ है 'होता' जो कि हर शे'र के दूसरे मिसरे में जैसे का तैसा ही रहेगा....
    और काफिया है 'आर' की ध्वनि जो कि हर शे'र के दूसरे मिसरे में बदल बदल कर आयेगा...
    जैसे उस्तुवार होता, एकबार होता, बादाख्वार होता, वो अगर शरार होता.....आदि...
    लेकिन पहले शे'र में इस 'आर' की ध्वानी दोनों मिसरों में आणि अनिवार्य है...जैसे कि ऊपर आई है..
    विसाले यार होता..
    इंतज़ार होता...



    काफिया वही..जिसके बार में अभी ऊपर कहा है....

    ReplyDelete