Saturday, June 5, 2010

मैं बहुत सेलेक्टिव हूँ....


मैं बहुत सेलेक्टिव हूँ
अपने पिता को अपनी माँ
से ज्यादा प्यार करती हूँ
लेकिन मैं माँ पर भी मरती हूँ
मुझे सफ़ेद साड़ी ज्यादा पसंद है
क्योंकि वो मुझपर फब्ती है
फिर भी कोई-कोई काली साड़ी
भी मुझ पर जंचती है
मुझे मीठा पसंद है
मैं खट्टा नहीं खाती हूँ
लेकिन आम का अचार
चट कर जाती हूँ 
मुझे लता से ज्यादा आशा
भाती है
जबकि मैं जानती हूँ
लता कितना अच्छा गाती है
मैं बात सबसे करती हूँ
पर दिल में एक को बसाती हूँ
शायद ये कमियाँ हैं मुझमें
लेकिन मुझे इनपर नाज़ है
ये दुर्गुण ही सही मेरे मनुष्य
होने का प्रमाण तो देते हैं
यहाँ अवतारों की बड़ी भीड़ है
ये मुझे अलग खड़ा कर देते हैं
मैं यहाँ कुछ और
वहाँ कुछ कह जाती हूँ
कभी कभी तो मौन ही रह जाती हूँ
क्योंकि मैं उत्तम बनने का कोई
उपक्रम नहीं करती हूँ
मैं जो हूँ वही दिखती हूँ
स्वीकारना है स्वीकारो मुझे
माना तुम अवतार हो 
पर मुझे प्रमाण पत्र 
देने की हैसियत 
अभी तुम्हारे पास नहीं 
आज सुन लो तुम्हें बताती हूँ
मैं देवी बनने से कतराती हूँ.....


25 comments:

  1. आज सुन लो तुम्हें बताती हूँ
    मैं देवी बनने से कतराती हूँ....

    निशब्द हुआ मैं तो

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  2. मैं यहाँ कुछ और
    वहाँ कुछ कह जाती हूँ
    कभी कभी तो मौन ही रह जाती हूँ
    मौन रहना भी तो अभिव्यक्ति का एक सशक्त साधन है शायद
    बहुत सुन्दर रचना

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  3. देवी बनने की चाहत ही मुखौटे चढ़ाती है। वास्‍तविकताओं पर पर्दे डालती है और रिश्‍ते तो क्‍या दोस्‍ती भी झूठ और फरेब की भेंट चढ़ जाती है। बहुत ही अच्‍छी कविता, बधाई।

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  4. बहुत अच्छी कविता.
    ...बधाई.

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  5. बहुत अच्छा सोच है। देवी बनने की कहां दरकार है।स्त्री तो जन्म से ही देवी है। कुछ भी बनने की कौशिश ही घातक है। न बनो,न बनाओ ! सब स्वभाविक चलने दो!

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  6. मनुष्य होने के सारे अवगुण तो हममे भी है ...
    सिर्फ एक के सिवा ...
    ki कहीं कुछ कही कुछ बोल जाती हूँ मैं ..

    मुझे लगता नहीं कि आज के इस युग में कोई देवी या ईश्वर बनना चाहता होगा ...थोड़ी कमियां थोड़ी खूबियों के साथ सभी इंसान ही बने रहना चाहते हैं ... रावण , कंस और शूर्पनखा बनने की चाहत रखने से बेहतर इंसान बनना ही ठीक है

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  7. ओह! सो सेलेक्टिव!!

    अच्छा रहा यह जानना!! :)

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  8. ङम तो अदा जी को आदा देवी जी ही कहेंगे!

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  9. इंसान ही बने रहे ...यही ठीक ...!!
    अच्छी कविता ..

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  10. wow !!!!!!!


    bahut khub

    ...अबहुत खूब !!!

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  11. वाणी जी ने कहा :

    मनुष्य होने के सारे अवगुण तो हममे भी है ...

    सिर्फ एक के सिवा ...

    ki कहीं कुछ कही कुछ बोल जाती हूँ मैं ..


    मुझे लगता नहीं कि आज के इस युग में कोई देवी या ईश्वर बनना चाहता होगा ...थोड़ी कमियां थोड़ी खूबियों के साथ सभी इंसान ही बने रहना चाहते हैं ... रावण , कंस और शूर्पनखा बनने की चाहत रखने से बेहतर इंसान बनना ही ठीक है



    वाणी जी,

    लगता है आप मेरी कविताओं को समझ नहीं पाई हैं....

    मेरी किसी भी कविता में मैंने ऐसी कोई इच्छा जाहिर नहीं की ...बस इन चरित्रों को थोडा सा मौका दिया है अपनी अच्छाइयों को उजागर करने का वर्ना....इन चरित्रों को कालिख के सिवा कुछ नहीं मिला है...और हम सभी जानते हैं कोई भी व्यक्तित्व ....absolute black या absolute white नहीं होता ...भगवान् भी नहीं...

    आपने कई बार मुझे उलाहना दिया है...मेरे एक कमेन्ट के बारे में...लेकिन एक कमेन्ट की तुलना में सैकड़ों कॉमेंट्स को बिलकुल दरकिनार करना कहाँ तक उचित है...आप ख़ुद सोचिये....

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  12. कहीं की भड़ास कही निकालना उचित नहीं है ...
    मैं कहाँ कुछ समझ पाती हूँ ...तुझसे बेहतर कौन जानता है ...

    तेरे कमेन्ट पर उलाहन कब दिया ...मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है ...:)

    मैंने कमेन्ट पर उलाहना नहीं दिया था ...ये कहा था कि एक जैसी पोस्ट पर दो अलग तरह की प्रतिक्रिया मुझे परेशान करती है यदि वो किसी खास अपने की हो ...

    फिर भी टोकना और उलाहना तो तुझे देती रहूंगी ...मैं अपना अधिकार समझती हूँ तुझ पर ...
    मन की भड़ास निकलती रहनी चाहिए ... तुझे भुनभुनाते हुए देखना भी अच्छा ही लग रहा है ....:):)

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  13. थोडी बहुत कमी तो यहा हर किसी मे है
    दरिया भी खूबियो का मगर आदमी मे है
    उसके गुनाह की सजा औरो को क्यू मिले
    कि चन्द्रमा का दाग कही चान्दनी मे है

    (डा. कुवर बेचैन)

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  14. you are awesome ! आप जब भी लिखती हैं निरुत्तर कर देती हैं. अलग-अलग बातों में सेलेक्टिव होना ही लोगों को अलग व्यक्तित्व देता है. इसलिए इससे घबराना नहीं चाहिए. प्रसंग क्या है, नहीं मालूम पर आपकी कविता हमेशा की तरह लाजवाब है.

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  15. you are awesome ! आप जब भी लिखती हैं निरुत्तर कर देती हैं. अलग-अलग बातों में सेलेक्टिव होना ही लोगों को अलग व्यक्तित्व देता है. इसलिए इससे घबराना नहीं चाहिए. प्रसंग क्या है, नहीं मालूम पर आपकी कविता हमेशा की तरह लाजवाब है.

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  16. मास्तु, इदम अधिकं भवति

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  17. bhut aasan hai apne ko ughadte jana pr jhan tk ughd chuke ho vhan tk hi shi kuchh to sesh bcha rh jaye
    ek koshish hi mnushyta ki phli sidhi hai aur yhi to devtv ka rasta hai jo bhut kthin hai
    dr. ved vyathit

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  18. देखा..... देखा.... ही ही ही ही ..... मैं ना कहता था कि रोमन हिंदी की चीथड़े - चीथड़े उड़ेंगे.... ही ही ही .... नाम बड़े दर्शन छोटे.... एक्ज़ाम्पल तो देख ही लिया है.... ही ही ही ही ...

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  19. पसंदों, नापसंदों में जीवन को बाँध देना तो मूढ़ता हुयी । जिस समय जो अच्छा लगे, वही जिया जाये । आप किसी खाँचे में क्यों बैठें । नभ का, पवन का कोई खाँचा है ?

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  20. selection पर एक शेर याद आ गया है, हाज़िर है:-

    तंग दामन, वक़्त कम, गुल बेहिसाब,
    इंतेखाब, ए दस्ते गुलचीं, इंतेखाब.

    --

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  21. आज सुन लो तुम्हें बताती हूँ
    मैं देवी बनने से कतराती हूँ....

    hmm, hmm ..hmm..sahi hi hai na :)

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