Tuesday, June 1, 2010

जो बिना खर्चा बिना असलहे के जीत की गारंटी दिलाती है ......

 कहीं मंदिर में घंटी बाजे
कहीं अजान सुनाती है
पाँच बजे पौ फटते ही
वो पानी भरने जाती है
चारों चौहद्दी नलका के मजमा बड़ा लगाती है
बाल्टी और देगची की
कतार बढ़ती ही जाती है
मेरी बारी पहले आये हर रण-नीति अपनाती है
ऐसी पोलिटिक्स चलती है कि
पोलिटिक्स ख़ुद बिलबिलाती है
चाणक्य की कूटनीति भी
यहीं पर मुंहकी खाती है
धुरंधर राजनीतिज्ञों की राजनीति  फट से फुस हो जाती है  विफलताएं शांति वार्ताओं कीकितनी सफल नज़र आती हैंझोंटा- झोंटी जूतम-पैजार केअनुपम दृश्य दिखाती है साहित्यकारों की कलम तो
अब छंदमुक्त ही गाती है
विशुद्ध अनुप्रास और छंदमयी वाणी
यहीं प्रेरणा पाती है
छि: छिछोरी छिनाल छद्मी
री छप्पन छुरी कहाँ जाती है
मेरी बाल्टी वहां पहले थी
अपने बाप का राज चलाती है
तू कुलटा कलमुंही कुलछनी
बाप तक तू क्यूँ जाती है
नकटी, नकचढ़ी नागिन निगोड़ी
काहे नाच दिखाती है
बेसुरी बंदरिया बदजात बावरी
बकबक करती जाती है
तेरे बाबा ने कभी नलका देखा
जो इतनी बात बनाती है
यह दृश्य जब देखा हमने बात एक मन में आती है
ऐसी गति और ऐसी आग
बंदूकें भी कहाँ पाती है
वो कोलाहल और वो मार मिसाइल तक शर्माती है यह अनुपम शक्ति काहे को पनघट पर जाया जाती हैक्यूँ नहीं हमरी सरकार एक ऐसी सेना बनाती हैजो बिना खर्चा बिना असलहे के
जीत की गारंटी दिलाती है 

18 comments:

  1. अद्भुत शब्द-संयोजन....

    कहाँ शुरू कर से कहाँ पहुंचाई बात...
    बात ही बात में सरकार को दिखाई औकात....

    कुंवर जी,

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  2. अदा जी ! इंडिया होकर आई हैं क्या?:) लाजबाब रचना है .

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  3. ADA JI , AAPNE TO HINDUSTAN KI AAM JANTA KI PEEDA KO AB JAGJAHIR KAR DIYA ,
    MUJHE APNE SHAHAR KI HALAT YAAD AAGYI

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  4. पेयजल की समस्या पर लिखी गई झकझोरती हुई सी कविता.. सच में ऐसी कविता इस विषय पर पहली बार देखने को मिली.

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  5. लाजबाब रचना है

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  6. what an attitude ji, इस समस्या में से भी कुछ रस निकाल लिया आपने। बहुत खूब लिखा है। अनुप्रास पता नहीं कौन सा अलंकार है, मजेदार लगा।

    और ये पसंद का चटका लगाने पर तो और भी अच्छे अच्छे गाने सुनाई देने वाले थे, उसका क्या हुआ? या तो अपना वादा पूरा करिये या हमारे पसंद वाले चटके लौटाईये।

    आपका ’हां नहीं तो.....’ बहुत पॉपुलर हो रहा है, कापीराईट करवा लीजिये, समय से।

    सदैव आभारी।

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  7. बहुत शानदार!!



    पाँच बजे पौ फटते ही
    वो पाने भरने जाती है



    इसमें पाने को पानी कर लें..शायद टंकण त्रुटि हो गई है.

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  8. @ sameer ji..
    bahut bahut dhanywaad...truti hi thi..
    budhapa...!!!
    ;)

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  9. अच्छा ज़बरदस्त व्यंग है....पानी की बहुत किल्लत है...

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  10. हा हा हा ! अदा जी , ये पनघट ओटवा का तो नहीं हो सकता ।

    नल के आगे झगड़ रही थी , शांति पारो और अमीना
    नाज़ुक बदन कोमल हाथों में लिए बाल्टी , मिस नीना चढ़ रही थी जीना ।

    ये तो कलयुग का प्रकोप है ----

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  11. hnm...

    udhar bhi aisaa hi najaaraa dikhtaa hai kyaa....??

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  12. पेयजल की समस्या?? अरे क्या कानाडा मै भी पानी के लिये लाईन लगती है??:)

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  13. रचना और विषय दोनों उत्तम है ..पर शिकायत है पानी भरने के चक्कर में 'गाना' खा गयी ,,और पानी भी ना भर पायी ..अदा जी रचना और गाने दोनों चाहिए ,,,अन्यथा बात दिल्ली तक पहुंचा देंगे :-).../हमारे यहाँ कुछ नया है ..आ जाना बस ! तारीफ़ खुद ब खुद हो गयी समझो

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  14. बहुत सुंदर !!! ..... मुझे आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. धन्यवाद ..

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  15. पनिहारिन को बिम्ब बना कर
    आम जिन्दगी का सुन्दर चित्रण
    आपने कविता के माध्यम से किया है!

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  16. vaah !
    शानदार शैली और शानदार रचना

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  17. Paani ki samasaya pe kavita.........pani sa nimaral!!

    bahut khubsurat panktiyan!!

    dil ko chhuti hui.......:)

    kabhi hamare blog pe aayen!

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