किसी के मारे हम कब मरेंगे
बातों में तल्खी की धार ने मारा
जाँ हमारी अटकी रही थी
न आये तुम इंतज़ार ने मारा
गुलों का झांसा देते रहे तुम
दामन में पोशीदा खार ने मारा
थे ज़िन्दगी से बस हारे ही हारे
तुमसे जो हारे हार ने मारा
हमें तो आदत है बेतकल्लुफी की
तकल्लुफ से मिला यार ने मारा